प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !
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3 November 1906 – 29 May 1972 |
पृथ्वीराज कपूर की संवाद अदायगी की आज भी लोग दाद देते हैं, हालांकि कई बार उन्हें अलग आवाज की वजह से परेशान भी होना पड़ा..
जब 1931 में फिल्मों ने बोलना शुरू किया, तो फिल्म 'आलम आरा' में
पृथ्वीराज कपूर की आवाज को लोगों ने दोष-युक्त बताया। बाद में वे लोग ही
उनकी संवाद अदायगी के कायल हो गये। पृथ्वीराज कपूर ने जब फिल्मों में
प्रवेश किया, तब फिल्में मूक होती थीं। मूक फिल्मों के इस दौर में कलाकार
की आवाज के बजाय इस बात को महत्व दिया जाता था कि वह दिखने में कैसा है और
उसकी भाव-भंगिमा कैसी है? तब सिर्फ सुंदरता पर ही नहीं, इस बात पर भी
ध्यान दिया जाता था कि उसके शरीर की बनावट कैसी है और यदि वह ठीक डीलडौल
का है, तो उसे प्रभावशाली माना जाता था।
पृथ्वीराज कपूर का जन्म अविभाजित भारत के पेशावर में 3 नवंबर 1906 को हुआ
था। घर में किसी चीज की कमी नहीं थी। हां, एक दुख उन्हें तीन साल की उम्र
में जरूर मिला और वह यह कि उनकी मां दुनिया से चल बसीं। पेशावर से ही
उन्होंने ग्रेजुएशन किया। स्कूल और कॉलेज के समय से ही उनका नाटकों में मन
लगने लगा था। स्कूल में आठ साल की उम्र में अभिनय किया और कॉलेज में नाटक
'राइडर्स टू द सी' में मुख्य महिला चरित्र निभाया। रंगमंच को उन्होंने
अपनाया लाहौर में रहते हुए, लेकिन पढ़े-लिखे होने के कारण उन्हें नाटक
मंडली में काम नहीं मिला।
पृथ्वीराज कपूर अच्छे और संस्कारी खानदान से थे न कि अखाड़े से, लेकिन
डीलडौल में किसी पहलवान से कम नहीं थे। शारीरिक डीलडौल और खूबसूरती की
बदौलत 1929 में इंपीरियल कंपनी ने उन्हें अपनी मूक फिल्म 'चैलेंज' में काम
दिया। इसके कुछ समय बाद ही बोलती फिल्मों का दौर शुरू हो गया। मूक फिल्मों
में काम करने वाले कई कलाकारों के पास संवाद अदायगी के हुनर और अच्छी
आवाज का अभाव था। पृथ्वीराज कपूर भी अपवाद नहीं थे। 'आलम आरा' में
पृथ्वीराज कपूर की आवाज को आलोचकों ने दोष-युक्त बताया, लेकिन पृथ्वीराज
कपूर ने हार नहीं मानी। उन्होंने इस दोष को सुधारा और अपनी दमदार आवाज के
बल पर लगभग चालीस साल इंडस्ट्री में टिके रहे। बीच में खुद की नाटक कंपनी
बनाई और लगे पूरी दुनिया घूमने।
पृथ्वीराज कपूर की सफलता की एक खास वजह
थी उनका राजसी व्यक्तित्व। कई भूमिकाओं में तो उनके राजसी व्यक्तित्व के
सामने उनकी आवाज गौण हो गई। 'विद्यापति', 'सिकंदर', 'महारथी कर्ण,
'विक्रमादित्य' जैसी फिल्में इसका उदाहरण हैं।
अकबर के रूप में |
अकबर की भूमिका अनेक
कलाकारों ने की है, लेकिन उनकी कभी चर्चा नहीं हुई। अकबर का नाम आते ही
सिनेमा प्रेमियों की नजर के सामने आ जाते हैं 'मुगल-ए-आजम' के पृथ्वीराज
कपूर। यही आलम उनके द्वारा निभाई गई सिकंदर की भूमिका का भी है।
सिकंदर के रूप में |
1968 में पृथ्वीराज
कपूर अभिनीत फिल्म 'तीन बहूरानियां' रिलीज हुई। एस. एस. वासन इस फिल्म के
निर्माता-निर्देशक थे। उनकी भूमिका एक परिवार के सर्वेसर्वा की थी, इसीलिए
वासन ने पृथ्वीराज कपूर का चुनाव किया। इस भूमिका में उनकी आवाज से कोई
परेशानी न हो, इसलिए उनके संवाद अभिनेता विपिन गुप्ता की आवाज में डब
करवाए गए।
1957 में आई फिल्म 'पैसा' का निर्देशन करने वाले पृथ्वीराज कपूर ने तमाम
चर्चित नाटकों में अभिनय किया। उन्होंने कुल 82 फिल्मों में अभिनय किया।
अपने कॅरियर के दौरान ही उन्होंने मुंबई में 1944 में पृथ्वी थियेटर की
स्थापना की। उन्हें राज्यसभा का सदस्य भी बनाया गया। 1972 में उन्हें
सिनेमा के क्षेत्र में योगदान के लिए दादा साहब फाल्के अवार्ड से सम्मानित
किया गया। आज पृथ्वीराज कपूर को गुजरे हुए 38 साल से अधिक वक्त हो चुके
हैं। वह 29 मई 1972 को इस दुनिया से चले गए, लेकिन आज भी जब हम उनकी
फिल्में देखते हैं, तो यह नहीं लगता कि पृथ्वीराज कपूर हमसे दूर चले गए
हैं।
सादर आपका
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15 टिप्पणियाँ:
एक दमदार व्यक्तित्व...सच में अकबर बोले तो = पृथ्वीराजकपूर
Prithvi raj kapoor ji ko aur karib se jankar achha lga....aabhar.
Aur iss bulletin me mujhe shaamil karne k lie shukriya...
Sadar.
विन्रम श्रद्धांजलि बालीवुड के पापा जी को .....
बढिया यादो में खोने दिया आपने
अनारकली ... सलीम तुम्हें मरने नहीं देगा और हम तुम्हें जीने नहीं देंगे ... पृथ्वी राजकपूर का जबरदस्त अंदाज !
वाह , शानदार परिचय दिया आपने पृथ्वीराज कपूर जी का । आज भी सलीम .....वाला डॉयलॉग लोगों के जुबान पर सर चढ के बोलता है । चयनित पोस्टों पर टहल के आते हैं । हमेशा की तरह सार्थक सामयिक और संग्रहणीय बुलेटिन । मैं ब्लॉगर प्लेटफ़ार्म से साइट की तरफ़ बढ चला हूं अब वहीं मिला करूंगा ..।
जरूरी है दिल्ली में पटाखों का प्रदूषण
बहुत बढ़िया लिनक्स लिए बुलेटिन....शामिल करने का आभार
उनकी फिल्म मुग्लेआजम में कमाल की अदाकारी की थी,,,,,लोग आज भी
इस फिल्म को पसंद करते है,,,,
RECENT POST : समय की पुकार है,
कल सोहराब मोदी के बारे में आपने लिखा था और आज पृथ्वी राज जी के लिए जिन्हें पूरी फ़िल्मी दुनिया पापा जी के नाम से जानती है.. सचमुच बुलंद आवाज़ के और बुलंद शख्सियत के मालिक थे वे.. बहुत अच्छी प्रस्तुति!!
सोहराब मोदी और पृथ्वीराज कपूर दोनों में एक बात विशेष थी , दोनों की शख्सियत कमाल की थीं | सौभाग्य से मुगल-ए-आजम मैंने भी देखी है , और सबसे ज्यादा अकबर के किरदार से ही प्रभावित हुआ था |
उनको मेरा नमन |
दिए गए लिंक्स अच्छे हैं
'एक गजल' विशेष रूप से पसंद आया |
सादर
बहुत बहुत शुक्रिया शिवम इस बेहतरीन पोस्ट और ख़ूबसूरत लिंक्स के साथ मेरा कलाम शामिल करने के लिये
वाह शिवम् जी ...अद्भुत....इतनी सुन्दर लिनक्स...मज़ा आ गया ...साभार !!!!!
वाह शिवम् जी ...अद्भुत....इतनी सुन्दर लिनक्स...मज़ा आ गया ...साभार !!!!!
पृथ्वीराज कपूर जी का शानदार परिचय दिया………सुन्दर लिंक्स
सुन्दर सूत्रों से सजा बुलेटिन।
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