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शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

विश्व पुस्तक मेले की खुशबू से गमकेगी दिल्ली …नई किताबों की महक और कुछ पोस्ट कतरे - ब्लॉग बुलेटिन


कल से राजधानी दिल्ली में विश्व पुस्तक मेले की शुरूआत हो जाएगी । दिल्ली में रहने का एक बहुत बडा लाभ ये जरूर है कि ऐसे राष्ट्रीय आयोजनों में भागीदारी , बेशक एक दर्शक के रूप में ही सही ,बहुत ही सुलभ हो जाती है । मैं दिल्ली पुस्तक मेले में जरूर शिरकत करता हूं और नीचे जब फ़ेसबुक पर मैंने ये लिखा और लगाया तो ज़ाहिर है कि दोस्तों को जिनकी दोस्तें किताब ही हैं ,के मन को भी खूब भाया

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घर में दोस्तों का एक अस्थाई सा ठिकाना
दिल्ली पुस्तक मेला हर वर्ष अगस्त महीने के आसपास आयोजित होता है , अप्पन हर साल हिंदी की खूब सारी किताबें धर लाते हैं । विश्व पुस्तक मेला मुझे कभी भी उतना आकर्षित नहीं कर पाया जितना हर साल और लगभग एक जैसा लगने दिखने वाला दिल्ली पुस्तक मेला , लेकिन पाठकों विशेषकर बहुभाषी पाठकों के लिए तो ये उत्सव सरीखा होता है । इस बार हम हिंदी अंतर्जालियों के लिए तो ये और भी खुशी वाला है क्योंकि अब तक लगभग आधा दर्जन साथी ब्लॉगरों के पुस्तक के लोकार्पण होने की सुखद सूचना मिल गई है । इस बहाने सत्ताइस फ़रवरी की शाम एक दूसरे से कई ब्लॉगर , फ़ेसबुकिए और गूगलिए साथी एक दूसरे के रूबरू होंगे ऐसी खबर है । नई किताबों के पन्नों के बीच की वो खुशबू ,अनोखी और बिंदास , ऐसी कि और कहीं पाई न जाए ..चलिए आइए अब कुछ पोस्टों के कतरों से मुलाकात करवाते हैं आपकी
नेह निमंत्रण -सतीश सक्सेना
आशीर्वाद दें, इन बच्चों को कि वे दोनों मिलकर एक सुनहरे भविष्य का निर्माण कर सकें !
आप सबको आदर सहित......


इस नेह पत्रिका के  द्वारा ,
आमंत्रण भेज रहा सब को !
अंजलि भर, आशीषों की है
बस चाह, हमारे बच्चों को !
दिल से  निकले  आशीर्वाद ,दुर्गम पथ  सरल  बनायेंगे  !
विधि-गौरव के नवजीवन में, सौभाग्य पुष्प बिखराएंगे  !


आपको क्या लगता है ब्लॉगिंग में ,हिंदी ब्लॉगिंग में विज्ञापन नहीं आ रहे हैं , देखिए अवधिया जी की इस पोस्ट पर ..आ लीजीए एक ठो कामर्शियल ब्रेक ..तब तक हम अवधिया जी पालटी के लिए जगह फ़िक्स करते हैं


पेलार्ड रेकॉर्ड चेंजर (Paillard Record Changer) का एक विज्ञापन
जी.के. अवधिया

(चित्र को बड़ा करके देखने के लिए चित्र पर क्लिक करें)
(चित्र http://4.bp.blogspot.com/_zfDuy4-yDB8/TIPJEzv3g0I/AAAAAAAAFcc/7jxyV2XBJ64/s1600/paillard_tomatic_record_changer_ad_1939.jpg से साभार)




बहुत खराब है महिलाओं का समय प्रबन्ध image
वैसे तो ऐसे  पुरुष भी कमतेरे नहीं हैं जिनका समय का प्रबंध बहुत लचीला रहता है -समय से आफिस नहीं पहुंचते,प्रायः बॉस की डांट खाते हैं मगर अमूमन महिलाओं का समय प्रबंध बहुत कमज़ोर होता है ऐसा मेरा अनुभव रहा है . आश्चर्य है इतने महत्वपूर्ण विषय पर आज तक कोई गंभीर अध्ययन नहीं हुआ है या कम से कम मेरी खोजबीन का नतीजा यही रहा है ...कई भारतीय महापुरुषों का समय प्रबन्ध बड़ा ही सटीक और शानदार रहा -गांधी जी समय के बड़े पाबन्द थे ...एक बार उन्होंने एक अध्यापक को मिलने का समय दिया था जो दस मिनट देर से पहुंचे तो गांधी जी ने उन्हें  बड़ी फटकार लगाई -कहा कि अगर यही आदत उनके छात्रों की होगी तो देश समय के कितने पीछे चला जायेगा ...विदेशों में समयबद्धता की कितनी मिसालें तो हम अक्सर सुनते ही रहते हैं ..मुझे विदेशी पुरुषों और महिलाओं के तुलनात्मक समय प्रबंध की कोई प्रमाणिक जानकारी तो नहीं है मगर कहे सुने की बात है कि सारी दुनिया में ही अमूमन समय प्रबंध के मामले में पुरुषों की तुलना में वे खासी फिसड्डी होती हैं ....

इक किरन मेरी नहीं !
चुभ रही हर बात हमको ,
कुछ नहीं परवाह उनको ,
मेरे हिस्से में अँधेरा ,
धूप की बौछार उनको !(१)


मौसम हुआ है फगुनई,
रुचियाँ बदलतीं नित नई,
हमने भी कोई चाह की,
तो कहानी बन गई ?(२)


क़ाबा नहीं बनता है तो बुतखाना बना दे

"बहजाद" लखनवी साहब को राज कपूर की फिल्म "आग" के मशहूर गीत "जिंदा हूँ इस तरह कि गम-ए-जिंदगी नहीं" के रचनाकार के रूप में खासी शोहरत मिली. लखनवी तहजीब को अपनी शायरी में रंग देने वाले जनाब सरदार अहमद खान यानी बहजाद लखनवी की एक गज़ल पेश है बेगम अख्तर की दिव्य आवाज़ में -



मोहब्बत के शहर से

अर्से से
संभाल रखी थी
मोहब्बत की धरोहर के लिए मशहूर
शहर से लाई एक सफ़ेद प्लेट
उसकी संग ए मरमरी जाली के पास कई रंग थे
इक-दूजे की खूबसूरती में लिपटे

" खुश करती खुशबू ......"

अहसास,
कि तुम मिलोगी,
ये आभास,
कि तुम मिलोगी,
ये ख़याल,
कि तुम होगी,
और रोज़ की तरह,
खिलखिलाती,
मींच आँखे,
सकुचाते,
लजाते,
यह कहोगी,
नहीं थे आप,
आज, वह प्लेट टूट गयी
रंग बिखर गए
सिर्फ सफ़ेद नज़र आता है अब
टूटी यादों को फेंका नहीं उसने
जोड़ा और सहेज लिया

क्या कहूँ ......

स्नेह प्यार या कहूँ
छलकता बरसता दुलार
नदिया की लहरों सी
मन बहकाती उमंगें हैं
लाल हो या गुलाबी
बड़ी हो या फिर छोटी
ये बिंदिया तो बस
तुम्हारी साँसों को ही
निरख-निरख कर
बस यूँ ही निखरती हैं
सम्मोहक बिंदु बन
तुमको आभासित करती
मन प्रभासित कर जाती है

कैसा हिन्‍दू... कैसी लक्ष्‍मी!
देश के पुराने अंगरेजी अखबार ने हिन्‍दू नाम के साथ प्रतिष्‍ठा अर्जित की है, पिछले दिनों इस हिन्‍दू पर लक्ष्‍मी नामधारी पत्रकार ने ऐसा धब्‍बा लगाया है, जिस पर अफसोस और चिन्‍ता होती है। इस मामले का उल्‍लेख मेरी पिछली पोस्‍ट 36 खसम पर है।
रायपुर से प्रकाशित समाचार पत्र दैनिक 'छत्‍तीसगढ़ वॉच' ने इसकी सुध ली है।

20 फरवरी, मंगलवार को मुखपृष्‍ठ पर प्रकाशित समाचार


शहरयार के बहाने आर्टिस्ट और आर्ट पर... image ..पूजा उपाध्याय
वो बड़ा भी है तो क्या है, है तो आखिर आदमी
इस तरह सजदे करोगे तो खुदा हो जाएगा
-बशीर बद्र
अमृता प्रीतम की रसीदी टिकट का एक हिस्सा है जिसमें वो बयान करती हैं कि उनकी जिंदगी में सिर्फ तीन ही ऐसी मौके आये जब उनके अंदर की औरत ने उनके अंदर की लेखिका को पीछे छोड़ कर अपना हक माँगा था. एक पूरी जिंदगी में सिर्फ तीन मौके...


नर्मदा में जमीन हक का हल्ला बोल
Author:
पुष्पराज
Source:
रविवार, 17 फरवरी 2012
सरदार सरोवर की डूब से प्रभावित सबसे बड़ी आबादी मध्य प्रदेश की है। मध्य प्रदेश के 193 गांवों में अभी भी डेढ़ लाख से बड़ी आबादी निवास कर रही है, फिर एनवीडीए ने विस्थापितों की स्थिति को ‘‘जीरो बैलेन्स’’ क्यों बताया? सत्याग्रह स्थल पर नर्मदा बचाओ आंदोलन के एक पोस्टर में नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण को नर्मदा घाटी ‘‘विस्थापन’’ प्राधिकरण लिखा गया है। पहाड़ के 41 और निमाड़ के 17 सहित डूब में कुल 58 आदिवासी गांव प्रभावित हैं। मध्य प्रदेश के ज्यादातर पहाड़ी गांवों के सड़क संपर्क पथ वर्षों पूर्व डूब में समा गए हैं। कई गांवों की खेती-बाड़ी, घर-बार डूब चुके हैं।
कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की कथा “पूस की रात” के असली नायक 80 साल बाद भी पूस की रात में फसल बचाने के लिये नहीं, फसल उगाने की जमीन के हक के लिये पिछले दो महीनों से “जमीन हक सत्याग्रह” चला रहे हैं। अगर आप "पूस की रात" का संग्राम जानना चाहते हैं तो मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिला के जोबट में शासकीय कृषि फार्म की 87 एकड़ जमीन को अपने कब्जे में लेकर हल जोत रहे आदिवासियों से मिलिये। सरदार सरोवर की डूब से प्रभावित विस्थापित आदिवासियों ने 24 नवम्बर 2011 को इंदौर से 225 कि.मी. दूर स्थित जोबट में मजबूत कंटीले लौह बेड़ों के घेरे को तोड़कर शासकीय कृषि फार्म हाउस पर अपना कब्जा जमाया और खुले आकाश में “जमीन हक सत्याग्रह” शुरू कर दिया। 25 वर्षों से शांतिपूर्वक अहिंसक आंदोलन कर रहे नर्मदा बचाओ आंदोलन के सैकड़ों आदिवासियों ने फार्म हाउस पर कब्जा कर सरकारी कर्मचारियों को सरकारी खेती करने से रोक दिया और फार्म हाउस पर अपना “हक कब्जा’’ घोषित कर दिया। 25 नवम्बर को विस्थापितों ने जोबट शहर में अपने “हक कब्जा’’ के पक्ष में रैली निकाली और जोबट के तहसीलदार को नर्मदा बचाओ आंदोलन की ओर से ज्ञापन दिया।


Friday, February 24, 2012


बादशाह मछेरा !

मछेरे, तुमने
अपना मत्स्य जाल,
गुरुकाय व्हेल के ऊपर
डाला क्यों था?


जिन्न की रिहायश
बोतल में होती है,
यवसुरा* की शीशी से        (*बीयर)  
निकाला क्यों था?


सागर और रेत - भाग एक
पर 8:53 PM
डाकिये की ओर से :प्रस्तुत उद्धरण खलील जिब्रान की क्लासिक 'सेंड एंड फोम' के अपरिपक्व हिंदी अनुवाद है:
_________________________________________
तुम अंधे हो, मैं बहरा और गूंगा.
तो चलो, हाथों को छूकर समझें.
_________________________________________
आपकी प्रासंगिकता इस बात से नहीं है कि आप क्या पाते हैं, अपितु इससे है कि आप क्या पाना चाहते हैं.
_________________________________________
तुम मुझे कान दो, मैं तुम्हें आवाज़ दूँगा.
_________________________________________

Jesus the Son of Man (Khalil Gibran)

हंगामा है क्यूँ बरपा... 'वैलेंटाइन डे'.. एक दिन ही तो है...
पिछली कुछ  पोस्ट्स में बड़ी गंभीर बातें हों गयीं...आगे भी एक लम्बी कहानी पोस्ट करने का इरादा है...(पब्लिकली  इसलिए कह दिया ताकि कहानी पोस्ट करने में अब और देर ना कर सकूँ :)} पर इसके बीच कुछ हल्की-फुलकी बातें हो जाएँ .

'वेलेंटाइन डे' अभी-अभी गुजरा है......अखबार..टी .वी...सोशल नेटवर्क...सब जगह इसके पक्ष-विपक्ष में बातें होती रहीं...पक्ष में तो कम..जायदातर आलोचना ही होती रही कि 'प्यार का एक ही दिन क्यूँ मुक़र्रर है'..वगैरह..वगैरह...पर इतना हंगामा क्यूँ है बरपा..इस एक दिन के लिए......यूँ भी कोई भी कपल...कितने बरस ये वेलेंटाइन डे मनायेगा?..एक बरस...दो बरस...इस से ज्यादा बार 'वेलेंटाइन डे' की किस्मत में एक कपल का साथ नहीं लिखा होता...जन्मदिन या वैवाहिक वर्षगाँठ  जरूर सालो साल मनते रहते  हैं.
जून २०११ को एक मित्र की शादी हुई. २०११ वाले वेलेंटाइन डे के एक दिन पहले...उनकी प्रेमिका ने मुंबई से हैदराबाद कोरियर करके  Bournville chocolate  का एक डब्बा भेजा .उस चॉकलेट के विज्ञापन में यह संदेश रहता था.."यु हैव टु अर्न इट "..यानि की इस चॉकलेट के हकदार बनने के लिए आपको कुछ  करना होगा. वे मित्र महाशय हैदराबाद से फ्लाईट ले १४ फ़रवरी की सुबह...मुंबई पहुँच हाथों में फूलों का गुलदस्ता लिए अपनी माशूका के दर पर हाज़िर .साबित कर दिया कि वे उस चॉकलेट के हकदार हैं.

तो आज के लिए इतना ही …..मिलेंगे फ़िर नई यादों के साथ ..अब दिल्ली दूर नहीं

14 टिप्पणियाँ:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुति,ब्लॉग बुलेटिन के लिंक्स अच्छे लगे.

WELCOME TO MY NEW POST IN -- फुहार

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

दिल्ली में हो रहे "पुस्तक-मेला" में नहीं जाने का बहुत अफसोस है.... !!नई-नई किताबो की महक फैल रही है ,और पोस्ट की अच्छी प्रस्तुती.... !!

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

किताबें तो हर बार अपन भी खूब धर लाते हैं मेले से ताकि लगे कि हम पढ़े-लिखे और साहित्यिक हैं,भले ही उन्हें पढ़ ना पायें !

आपका आभार अजय बाबू हमरा पोस्ट इहाँ चमकाने के लिए !

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

अच्छे लिंक्स का संयोजन...उपयोगी जानकारियाँ...अच्छी प्रस्तुति !!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

विश्व पुस्तक मेला और ब्लॉगर्स की खुशबू ..... कौन कहता है हिंदी आज नहीं है .... लिंक्स देखिये और जानिए ' फुर्कस जिंदा है '

शिवम् मिश्रा ने कहा…

जय हो अजय भाई जय हो आपकी ... खूब दिखलाई ब्लॉग जगत की झलक ... बाकी दिल्ली आ रहे है हम २७ को मिलते है पुस्तक मेले में ... हम लोग ... ;)

Dev K Jha ने कहा…

भई वाह...आना नहीं हो पायेगा लेकिन मन लगा रहेगा.... पूरी रपट का इंतज़ार रहेगा...

संगीता तोमर Sangeeta Tomar ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति.....

Shah Nawaz ने कहा…

मतलब पुस्तक मेला अब ब्लॉगर मेला बनने जा रहा है...

वाह! अजय भाई आप एक से बढ़कर एक लिंक ढूँढ कर लाएं हैं ...

सदा ने कहा…

बहुत ही अच्‍छे लिंक्‍स का चयन लिए हुए बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

अविनाश वाचस्‍पति अन्‍नाभाई ने कहा…

तबीयत के चाहे बज रहे हैं हमारे अब तेरह
27 फरवरी को लगाएंगे पुस्‍तक मेले के फेरे
कौन कौन आ रहे हैं, कहां कहां छपवा रहे हैं
कुछ बिकवा रहे हैं या सब ही बंटवा रहे हैं
99 रुपये की चिल्‍लर में पुस्‍तक खरीद रहे हैं
इतनी सस्‍ती पुस्‍तकें, इतने महंगे चिट्ठाकार
आपस में बढ़ाने को प्‍यार, आया है मेला
विश्‍व की पुस्‍तकों का इस बार
लेकिन हमको जो नहीं भाया है
इस बार फिल्‍म संसार ने पुस्‍तक मेले में सेंध लगाया है
जिक्र जिनका होना चाहिए, उनका नहीं हो रहा है
यहां पर भी विचारों का बाजार सज रहा है

Aruna Kapoor ने कहा…

बहुत अच्छे लिंक्स है!...जाहिर है पुस्तक मेले में ब्लोगर्स मेला भी लगेगा!...हिन्दी भाषा का भविष्य उज्वल है!...इस दिशामें आगे बढ़ने के लिए, 'हिन्दी' भाषा में लिखने वाले लेखकों का उत्साह बढाने की जरुरत है!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बड़े सुन्दर सूत्र...

vidya ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति...
बढ़िया लिंक्स...
शुक्रिया.......

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