हफ्ते से ज़्यादा होने लगा है रातों की नींद, दिन का चैन गायब है. अपने नियंत्रण वाली वेबसाईट्स पर हैकर्स के जबरदस्त हमले से उत्त्पन्न तनाव कम करने में कुछ खबरों ने बहुत मदद की. अमेरिकी खुफिया एजेंसी सी आई ए की वेबसाईट हैक हो गई, भारत की बोर्डर सिक्योरटी फोर्स की वेबसाईट हैक, ममता बैनर्जी वाली तृणमूल कॉंग्रेस की वेबसाईट हैक, माइक्रोसोफ्ट की वेबसाईट हैक, सिक्ख समुदाय कल्याण वाली वेबसाईट हैक, आंध्र प्रदेश सरकार की बजट वेबसाईट सहित 26 विभागों की वेबसाईट हैक!
किस्सा यह कि एक साथ 20 हजार वेबसाइट्स हैक करने का दावा है पिछले दो चार दिनों में . उधर रेडियो रूस ने खबर दी कि भारत में रूसी दूतावास की वेबसाइट को हैक किया गया, इधर बीबीसी ने खबर दी कि कुछ संगठनों ने धमकी दी है कि आने वाले दिनों में वे भारत के नेशनल स्टॉक एक्सचेंज सहित कई अन्य सरकारी वेबसाइट भी हैक कर लेंगे.
तब लगा कि यार, अपन किस खेत की गाजर मूली हैं :-) भिड़े हुए है अब भी इन हैकर्स से अकेले ही!! गुरू मंत्र बहुत काम आ रहा "सवा लाख से एक लड़ाऊँ..."
इन्ही तनावों के बीच ब्लॉग जगत पर निगाह पडती रही . दो जगह कुछ अधिक तवज्जो गई महफूज अली के विचारों वाला लेख महिलायें सावधान और मनीषा पांडे का इंडिया टुडे में लिखा गया लेख हिंदी ब्लॉगिंग के दुश्मन कौन?. दोनों लेखों से बड़ी कसमसाहट हुई. ये कोई बात हुई एकतरफ़ा पोस्ट लिखी जाए और महिलाओं को सावधान किया जाए कि इस प्रकार के पुरुषों की पहचान कैसे की जाए और इनसे कैसे बचा जाए? पुरुषों को सावधान कराती पोस्ट आए तो कुछ कहें :-) या फिर हिन्दी ब्लॉग की दुनिया में ठहराव आ गया है, सबसे ज़्यादा चर्चित/ पढ़े जाने वाले ब्लॉग पर 200 -300 हिट्स होते हैं प्रतिदिन! जबकि कई ऐसे ब्लॉग हैं जहां रोजाना हज़ारों हिट्स हैं. और हिंदी ब्लॉगों की संख्या भी 30,000 बताई गई जबकि यह केवल एक कोरा अनुमान है.
मन किया कि इस बार कुछ ब्लॉग्स की बातें करते हुए पहेली जैसा पूछा जाए कि बतायो इन सभी ब्लॉग लेखों पर कौन सी बात एक जैसी है? ये सभी ब्लॉग लेख पिछले सप्ताह नज़र से गुजरे हैं
अब देखिए ना! राकेश खैरालिया और लख्मी चंद कोहली कई तरह के संवाद को लेकर एक शहर में शिरक़त कर रहे. वहीं लिखा दिखा कि ये ख़त मैं तुम्हे जहर खाने से एक घंटा पहले लिख रही हूँ। अगर जहर नही खा पाई तो घर से भाग जाऊंगी. अम्मा तुमने एक ही टाइम मे वो सब कैसे पी लिया जो इस छोटी सी जहर की शीशी से भी ज्यादा जहरीला था... तुम जवान दिखती थी ...तो तुम्हारी जवानी की शक्ल में मैं होती थी। तुम जो जो बताती जाती लगता जाता कि वो सब मैं कर रही हूँ या मेरे साथ ही हो रहा है। मैं तुम्हारी कही हर बात मे, रात मे, कहानी मे सब कुछ करती जाती थी... आखिर हमारे बीच में 30 साल का गेप मिनटों मे भर जाने का एक यही तो रास्ता था।
एक और प्रेमचंद महाशय का कहना है कि मैं खूब घबराया. इस प्रकार के मैसेज के लिये तो तैयार ही नहीं था. सो घबरा कर पत्नी को आवाज़ दे दी. पत्नी कम्प्यूटर वगैरह नहीं चलाती पर कभी कभार उसे फेसबुक दिखा कर बताता रहता हूँ कि मेरे अब नौ सौ बाईस फेसबुक मित्र बन गए हैं. पत्नी को अच्छी नहीं लगती यह बात. कहती है अता न पता बस आप दोस्त बनाते जा रहे हो. लेखकों लेखिकाओं की तो बात और है, पर कभी कोई अजनबी नुक्सान पहुंचा दे तो? पत्नी हक्की बक्की से खड़ी थी, बोली – ‘काट दो इस आदमी का नाम, अपने फ्रेंड सर्किल से. फिर और दोस्त न बनाओ, सहजवाला का पन्ना पर लिखा गया है कि आप का फोन नंबर इस घटिया आदमी को कैसे पता चला
मजे की बात यह भी हुई कि कठफोड़वा अपने गांव में वह टावर देखकर सोच में पड़ गया कि आखिर इस उजाड़ और सूखे गांव में मोबाइल कंपनियों को क्या मिलेगा। लेकिन कुछ देर बाद ही पता चल गया कि गांव में मोबाइल क्रांति की वजह मोबाइल टावर ही था। युवाओं के बीच अब अधिकतर बातें मोबाइल को लेकर ही होती हैं। मसलन, तेरा कौन सी कंपनी का फोन है, कैमरा है क्या, कितनी मेमरी है, कौन-कौन से गाने हैं आदि। जब से मोबाइल टावर लगा है, कुछ मां-बाप ने कर्जा लेकर बच्चों को मोबाइल दिलवाया है। मोबाइल टावर के लिए अलग से बिजली की लाइन पहुंची थी। गांव के घरों में भले ही अंधेरा हो लेकिन टावर की बिजली की खुराक में कमी नहीं आने दी गई थी।
यह बात तो बिलकुल सही लगी कि जो मजा चोरी से अपनी पसंद से तोडकर गन्ना खाने में है, वो पूछकर लेने में तो बिल्कुल भी नही। यही सोचकर अंकुर दत्त और उनका छोटा भाई दूसरे गांव के गन्ने के खेत में घुस चुके थे। ललचाई नजरों से कईंयों गन्ने की खोज बीन में जंगल की गहराईयों में उतरते चले गये। भगवान कसम ! दोनों ही भूल चुके थे कि आगे जाना बिल्कुल भी खतरे से खाली न होगा। खोजते हुए बस दो ही कदम बमुश्किल चले होंगें हमे अपने आस-पास कुछ सुगबुगाहट महसूस हुई। फिर लगा जैसे किसी शेर ने डकार भरी हो। सांसें जस की तस थम गई। शरीर में रक्त की गति करीब दस गुनी हो गई थी। अगले ही पल महसूस हुआ कि उस विशालकाय प्राणी ने एक करवट बदली है
टेलीविजन में लव स्टोरीज दर्शकों को बेहद पसंद आती रही है. ऐसी कई प्रेम कहानियां भी हैं, जो शादी के बाद रंग लाती हैं. ऐसी प्रेम कहानियां परदे पर इसलिए बेहतरीन लगती है, क्योंकि इन प्रेम कहानियों में दो लोगों को एक दूसरे को जानने का मौका मिलता है और उनकी बीच एक अलग तरह की झिझक रहती है, जो परदे पर बेहतरीन लगती है. ऐसी कहानियां इसलिए भी सफल होती हैं क्योंकि ऐसी कहानियों में एक दूसरे को समझने में ही कई साल लग जाते हैं. साथ ही अपने जीवनसाथी से वैसी आशाएं नहीं रहतीं. जितनी लव अरेंज में होती है. यह अनुख्यान यहाँ पढ़ा जा सकता है
एक अलग मुद्दे की बात हो तो बाजार अब मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने पर आमादा है, अमुक चीजें खरीदो नहीं तो आपको जीने का हक ही नहीं है या अमुक चीज नहीं होने पर आपका तो जीना ही बेकार है। आंखें बंद करके सोचिये कि आपके पिता या दादाजी के जमाने में हमारे घरों में एक रेडियो हुआ करता था, जो प्रायः अगली पीढ़ी को चालू हालत में प्राप्त होता था। वह हमारी पैतृक संपत्ति होती थी, जिसकी कीमत बहुत अधिक नहीं थी लेकिन वह हमारी भावनाओं से जुड़ी थी। बदलते हालातों में देखिये कि गरीब से गरीब आदमी भी बहुत हुआ तो छः महिने या साल भर में अपना मोबाइल हैण्ड सैट बदल ही लेता है। सबसे अधिक बुरे हालात भारत के मध्यम वर्ग के होने लगे हैं क्योंकि वही वर्ग आज बाजार के निशाने पर है। भई, पुंगीबाज का तो यही कहना है.आओ मुझमें समां जाओ, मुझसे प्यार करो और बर्बाद हो जाओ...
एक बार संध्या ने पीछे घूमकर देखा या उस बच्चे की घूरती हुई आंखों ने बरबस ही पलटने पर मजबूर किया। पहले जो बच्च याचक नजर आ रहा था अब वह कुछ उग्र था। उसने हिकारत भरी नजरों देखा और कुछ गालियों जैसा ही दिया। पानी पीने के लिए बोतल खोली तो अब लगता है कि मेरी व्हिसलरी पर उस बच्चे का घूरना सही था। मेरा गुनाह था कि उस भूखे बच्चे के सामने मैंने 15 रुपए उस पानी में बहाए, जिसे मैं हैंडपम्प से मुफ्त में पा सकती थी। उस बच्चे के घूरने का मतलब था कि उसकी या यों कहें कि भूखे बच्चों की अदालत में मैं गुनहगार हूं। और अब मैं उस गुनाह को कबूल करती हूं। संध्या का यह गुनाह कबूलना उनके ब्लॉग पर देखा जा सकता है
ब्लॉग तो और भी बहुत हैं बताने को लेकिन चलिए अब आप बताईए कि ऊपर बताए गए ब्लॉग लेखों में ऎसी कौन सी दो बातें हैं जो सभी ब्लॉगों पर लागू होती हैं. दोनों सही ज़वाब देने वाला मास्टर ब्लॉगर माना जाएगा और एक सही ज़वाब देने वाला जागरूक ब्लॉगर माना जा सकता है. एक भी सही ज़वाब ना आया तो ब्लॉगर तो है ही वो :-)
सही ज़वाब मिलेगें ठीक 24 घंटे बाद इसी पोस्ट पर.
और हाँ!
यह निजी विचार जब शब्दों में ढाले जा रहे थे तो छींटे और बौछारों के बीच एक निराशा दिखी कि कोई एग्रीगेटर ही नहीं है अब. बड़ी हैरानी हुई कि डेढ़ दर्जन से अधिक हिन्दी ब्लॉग एग्रीगेटरों की जानकारी देती एक पोस्ट ब्लॉग पढ़ने के लिए एग्रीगेटर तलाश रहे हैं आप? इधर देख लीजिए शायद निगाह से नहीं गुजरी है अभी
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मन किया कि इस बार कुछ ब्लॉग्स की बातें करते हुए पहेली जैसा पूछा जाए कि बतायो इन सभी ब्लॉग लेखों पर कौन सी बात एक जैसी है? ये सभी ब्लॉग लेख पिछले सप्ताह नज़र से गुजरे हैं
अब देखिए ना! राकेश खैरालिया और लख्मी चंद कोहली कई तरह के संवाद को लेकर एक शहर में शिरक़त कर रहे. वहीं लिखा दिखा कि ये ख़त मैं तुम्हे जहर खाने से एक घंटा पहले लिख रही हूँ। अगर जहर नही खा पाई तो घर से भाग जाऊंगी. अम्मा तुमने एक ही टाइम मे वो सब कैसे पी लिया जो इस छोटी सी जहर की शीशी से भी ज्यादा जहरीला था... तुम जवान दिखती थी ...तो तुम्हारी जवानी की शक्ल में मैं होती थी। तुम जो जो बताती जाती लगता जाता कि वो सब मैं कर रही हूँ या मेरे साथ ही हो रहा है। मैं तुम्हारी कही हर बात मे, रात मे, कहानी मे सब कुछ करती जाती थी... आखिर हमारे बीच में 30 साल का गेप मिनटों मे भर जाने का एक यही तो रास्ता था।
एक और प्रेमचंद महाशय का कहना है कि मैं खूब घबराया. इस प्रकार के मैसेज के लिये तो तैयार ही नहीं था. सो घबरा कर पत्नी को आवाज़ दे दी. पत्नी कम्प्यूटर वगैरह नहीं चलाती पर कभी कभार उसे फेसबुक दिखा कर बताता रहता हूँ कि मेरे अब नौ सौ बाईस फेसबुक मित्र बन गए हैं. पत्नी को अच्छी नहीं लगती यह बात. कहती है अता न पता बस आप दोस्त बनाते जा रहे हो. लेखकों लेखिकाओं की तो बात और है, पर कभी कोई अजनबी नुक्सान पहुंचा दे तो? पत्नी हक्की बक्की से खड़ी थी, बोली – ‘काट दो इस आदमी का नाम, अपने फ्रेंड सर्किल से. फिर और दोस्त न बनाओ, सहजवाला का पन्ना पर लिखा गया है कि आप का फोन नंबर इस घटिया आदमी को कैसे पता चला
मजे की बात यह भी हुई कि कठफोड़वा अपने गांव में वह टावर देखकर सोच में पड़ गया कि आखिर इस उजाड़ और सूखे गांव में मोबाइल कंपनियों को क्या मिलेगा। लेकिन कुछ देर बाद ही पता चल गया कि गांव में मोबाइल क्रांति की वजह मोबाइल टावर ही था। युवाओं के बीच अब अधिकतर बातें मोबाइल को लेकर ही होती हैं। मसलन, तेरा कौन सी कंपनी का फोन है, कैमरा है क्या, कितनी मेमरी है, कौन-कौन से गाने हैं आदि। जब से मोबाइल टावर लगा है, कुछ मां-बाप ने कर्जा लेकर बच्चों को मोबाइल दिलवाया है। मोबाइल टावर के लिए अलग से बिजली की लाइन पहुंची थी। गांव के घरों में भले ही अंधेरा हो लेकिन टावर की बिजली की खुराक में कमी नहीं आने दी गई थी।
यह बात तो बिलकुल सही लगी कि जो मजा चोरी से अपनी पसंद से तोडकर गन्ना खाने में है, वो पूछकर लेने में तो बिल्कुल भी नही। यही सोचकर अंकुर दत्त और उनका छोटा भाई दूसरे गांव के गन्ने के खेत में घुस चुके थे। ललचाई नजरों से कईंयों गन्ने की खोज बीन में जंगल की गहराईयों में उतरते चले गये। भगवान कसम ! दोनों ही भूल चुके थे कि आगे जाना बिल्कुल भी खतरे से खाली न होगा। खोजते हुए बस दो ही कदम बमुश्किल चले होंगें हमे अपने आस-पास कुछ सुगबुगाहट महसूस हुई। फिर लगा जैसे किसी शेर ने डकार भरी हो। सांसें जस की तस थम गई। शरीर में रक्त की गति करीब दस गुनी हो गई थी। अगले ही पल महसूस हुआ कि उस विशालकाय प्राणी ने एक करवट बदली है
टेलीविजन में लव स्टोरीज दर्शकों को बेहद पसंद आती रही है. ऐसी कई प्रेम कहानियां भी हैं, जो शादी के बाद रंग लाती हैं. ऐसी प्रेम कहानियां परदे पर इसलिए बेहतरीन लगती है, क्योंकि इन प्रेम कहानियों में दो लोगों को एक दूसरे को जानने का मौका मिलता है और उनकी बीच एक अलग तरह की झिझक रहती है, जो परदे पर बेहतरीन लगती है. ऐसी कहानियां इसलिए भी सफल होती हैं क्योंकि ऐसी कहानियों में एक दूसरे को समझने में ही कई साल लग जाते हैं. साथ ही अपने जीवनसाथी से वैसी आशाएं नहीं रहतीं. जितनी लव अरेंज में होती है. यह अनुख्यान यहाँ पढ़ा जा सकता है
एक अलग मुद्दे की बात हो तो बाजार अब मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने पर आमादा है, अमुक चीजें खरीदो नहीं तो आपको जीने का हक ही नहीं है या अमुक चीज नहीं होने पर आपका तो जीना ही बेकार है। आंखें बंद करके सोचिये कि आपके पिता या दादाजी के जमाने में हमारे घरों में एक रेडियो हुआ करता था, जो प्रायः अगली पीढ़ी को चालू हालत में प्राप्त होता था। वह हमारी पैतृक संपत्ति होती थी, जिसकी कीमत बहुत अधिक नहीं थी लेकिन वह हमारी भावनाओं से जुड़ी थी। बदलते हालातों में देखिये कि गरीब से गरीब आदमी भी बहुत हुआ तो छः महिने या साल भर में अपना मोबाइल हैण्ड सैट बदल ही लेता है। सबसे अधिक बुरे हालात भारत के मध्यम वर्ग के होने लगे हैं क्योंकि वही वर्ग आज बाजार के निशाने पर है। भई, पुंगीबाज का तो यही कहना है.आओ मुझमें समां जाओ, मुझसे प्यार करो और बर्बाद हो जाओ...
एक बार संध्या ने पीछे घूमकर देखा या उस बच्चे की घूरती हुई आंखों ने बरबस ही पलटने पर मजबूर किया। पहले जो बच्च याचक नजर आ रहा था अब वह कुछ उग्र था। उसने हिकारत भरी नजरों देखा और कुछ गालियों जैसा ही दिया। पानी पीने के लिए बोतल खोली तो अब लगता है कि मेरी व्हिसलरी पर उस बच्चे का घूरना सही था। मेरा गुनाह था कि उस भूखे बच्चे के सामने मैंने 15 रुपए उस पानी में बहाए, जिसे मैं हैंडपम्प से मुफ्त में पा सकती थी। उस बच्चे के घूरने का मतलब था कि उसकी या यों कहें कि भूखे बच्चों की अदालत में मैं गुनहगार हूं। और अब मैं उस गुनाह को कबूल करती हूं। संध्या का यह गुनाह कबूलना उनके ब्लॉग पर देखा जा सकता है
ब्लॉग तो और भी बहुत हैं बताने को लेकिन चलिए अब आप बताईए कि ऊपर बताए गए ब्लॉग लेखों में ऎसी कौन सी दो बातें हैं जो सभी ब्लॉगों पर लागू होती हैं. दोनों सही ज़वाब देने वाला मास्टर ब्लॉगर माना जाएगा और एक सही ज़वाब देने वाला जागरूक ब्लॉगर माना जा सकता है. एक भी सही ज़वाब ना आया तो ब्लॉगर तो है ही वो :-)
सही ज़वाब मिलेगें ठीक 24 घंटे बाद इसी पोस्ट पर.
अपडेट @ 20 फरवरी संध्या 07 :40
और सही ज़वाब (जो मेरी ओर से सोच रखे गए थे) हैं:
- इस पोस्ट के प्रकाशित होते तक उपरोक्त लिंक्स पर एक भी (प्रकाशित) टिप्पणी नहीं थी
- इन ब्लौग पोस्टों के लेखकों से ना तो मेरा परिचय है और ना ही किसी भी तरह का संवाद संबंध!
इस लिहाज़ से एकमात्र सही उत्तर मिला अजय कुमार झा जी का. सही मायने में जागरूक ब्लौगर जिन्होंने समय दिया उत्तर तलाशने में
हालांकि दूसरा उत्तर भी तार्किक तौर पर सही माना जा सकता है लेकिन यह तो कोई नियम या शर्त नहीं है कि ब्लॉगर वही होगा जो हर 24 घंटे में एक पोस्ट लिखे ही लिखे :-)
वैसे इस बीच एक रोचक परिस्थिति भी बनी कि इंगित की गई सभी लिंक्स पर जितनी भी नई टिप्पणियाँ आईं वे सभी महिलायों की थी, पुरूषों की ओर से एक भी टिप्पणी नहीं. अब इसका कोई निष्कर्ष ?
और हाँ!
यह निजी विचार जब शब्दों में ढाले जा रहे थे तो छींटे और बौछारों के बीच एक निराशा दिखी कि कोई एग्रीगेटर ही नहीं है अब. बड़ी हैरानी हुई कि डेढ़ दर्जन से अधिक हिन्दी ब्लॉग एग्रीगेटरों की जानकारी देती एक पोस्ट ब्लॉग पढ़ने के लिए एग्रीगेटर तलाश रहे हैं आप? इधर देख लीजिए शायद निगाह से नहीं गुजरी है अभी
22 टिप्पणियाँ:
मैं तो मास्टर ब्लौगर बनने से रही ... आपकी प्रस्तुति बताती है कि आप ही मास्टर ब्लौगर हैं ...
जाने दीजिये मैं ब्लौगर ही ...
हमें भी कभी कोई सावधान करे...
हमे तो लग रहा है हम ब्लोगर ही नही हैं :(
अनुपम भाव संयोजन के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
भई... देखिये... हम तो पैदाइशी मास्टर हैं...
बहुत अच्छी प्रस्तुति,
MY NEW POST ...सम्बोधन...
कमल कर दित्ता जी, आपकी पहली पोस्ट पढ़ी मैं किसी अन्य ब्लॉग पर :)........ शानदार तकनिकी चर्चा के लिए आभार.......
कमाल कर दित्ता जी, आपकी पहली पोस्ट पढ़ी मैं किसी अन्य ब्लॉग पर :)........ शानदार तकनिकी चर्चा के लिए आभार.......
हम तो ब्लॉगर ही भले ... ;-)
स्वागत है सर जी ... बेहद उम्दा बुलेटिन ... :)
वाह सर मास्टर स्ट्रोक । पहली बात बुलेटिन में लिंक करने तक इन पोस्टों पर एक भी टिप्पणी (प्रकाशित ) नहीं दिख रही थी जबकि सब की सब नायाब पोस्टें हैं । अब दूसरी तलाशते हैं
बहुत बढ़िया पोस्ट ....
(पा)बला की पहेली का जवाब भला और किस के पास मिलता ... सिवाए (आ)बला के ... ;-)
पाबला जी वाह... मजा आ गया..
:-)
(अ)सरदार बुलेटिन!!!
दूसरी बात इन सभी ब्लॉगों पर पिछले चौबीस घंटे में कोई पोस्ट नहीं आई है , यानि कि सारी पोस्टें पुरानी हैं ...। अब असली जवाब की प्रतीक्षा में हम भी लग जाते हैं । मजेदार रही ये पोस्ट सर , एक से एक ब्लॉग से परिचय करवाने के लिए आभार और शुक्रिया सर ।
सही जबाब है भय और ब्रेनवास , और मैं बन गया मास्टर ब्लोगर:) !
क्या बात है ..अब आप चर्चा भी शुरू कर ही दीजिए.गुरु तो आप हैं ही महा गुरु भी बन जाइये :)
हम तो ब्लोगर ही भले .
पहली ही पोस्ट बम्पर डम्पर !!!
रोचक!
वैसे मास्टर ब्लॉगर बनने की कोशिश भी कम खतरनाक नहीं है... ब्लॉगर बन जाएँ इतना भी कम है क्या?
लिंक और उनका प्रस्तुति कारण बेहतरीन है सर जी...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति कारण.. आप को महा शिव रात्रि पर हार्दिक बधाई..
और सही ज़वाब (जो मेरी ओर से सोच रखे गए थे) हैं:
1. इस पोस्ट के प्रकाशित होते तक उपरोक्त लिंक्स पर एक भी (प्रकाशित) टिप्पणी नहीं थी
2. इन ब्लौग पोस्टों के लेखकों से ना तो मेरा परिचय है और ना ही किसी भी तरह का संवाद संबंध!
इस लिहाज़ से एकमात्र सही उत्तर मिला अजय कुमार झा जी का. सही मायने में जागरूक ब्लौगर जिन्होंने समय दिया उत्तर तलाशने में
हालांकि दूसरा उत्तर भी तार्किक तौर पर सही माना जा सकता है लेकिन यह तो कोई नियम या शर्त नहीं है कि ब्लॉगर वही होगा जो हर 24 घंटे में एक पोस्ट लिखे ही लिखे :-)
वैसे इस बीच एक रोचक परिस्थिति भी बनी कि इंगित की गई सभी लिंक्स पर जितनी भी नई टिप्पणियाँ आईं वे सभी महिलायों की थी, पुरूषों की ओर से एक भी टिप्पणी नहीं. अब इसका कोई निष्कर्ष ?
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बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!