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शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

बोलता बुलेटिन - ब्लॉग बुलेटिन

तमाम ब्लोगर मित्रों को हमरा परनाम.

ऊ का है कि रिश्तेदारी कभी-कभी बहुत मोसकिल में डाल देता है आदमी को. एगो हमरी छोट बहिन हैं अर्चना चावजी. अचानके उनका संबाद आया कि हमको 'ब्लॉग बुलेटिन' से निमंत्रण मिला है कि आप भी एक रोज के लिए हमरी संबाददाता बन जाइए. हम बोले कि ठीक है, बहुत सा मेहमान ब्लोगर को आमंत्रित किया जा रहा है ओहाँ, त तुम भी मन का बात लिख आओ. तुमरे ब्लॉग का भी नाम त ओही है. ऊ बोली कि एही त समस्या है भैया. हमको बुलेटिन लिखना नहीं आता है अऊर सिवम जी बोले हैं कि उनको “बोलता बुलेटिन” चाहिए.

हमरा माथा चकरा गया अऊर गियान का चक्छू खुल गया. आप लोग को तो मालूम है कि अर्चना चावजी का पहचान ब्लोगर से जादा, पोडकास्टर के रूप में है. घुमते-घुमते जउन बात पसंद आ गया, उसका पॉडकास्ट बनाकर ऊ अपना ब्लॉग पर लगा देती हैं. लेखक को अपना पोस्ट पढ़ने में त आनंद आएबे करता है, सुनने में अऊर आनंद आता है. बस “ब्लॉग बुलेटिन” बोलता बुलेटिन अपने आप में एकदम अनोखा पर्जोग है. आप लोग को जरूर आनंद आएगा.

अंत में एगो बात... ई प्रस्तुति आज एगो पर्जोग के तौर पर दिया जा रहा है, इसलिए ऊ बहुत कम ब्लॉग का चयन की हैं अऊर हो सकता है कि इसमें से कुछ रिपीट भी हुआ हो. लेकिन आराप लोग को अगर ई प्रयास पसंद आया, त अर्चना जी एगो फुल ऑडियो बुलेटिन लेकर हाजिर होंगी.




25 टिप्पणियाँ:

Dev K Jha ने कहा…

बहुत अच्छा प्रयोग...
अर्चना जी की आवाज़ का जादू ने आज बुलेटिन को एक नया रंग दिया है.... वाकई अदभुत... सलिल दादा आपका ज़वाब नहीं...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

एक अनोखा और सराहनीय प्रयोग! इस तरह के प्रयोग एकरसता को भंग कर नवीनता लाते हैं!!भविष्य में ऐसी और बुलेटिन की प्रतीक्षा रहेगी!!

Atul Shrivastava ने कहा…

वाह!
ब्‍लाग पोस्‍टों की सैर और इसके बहाने अर्चना चावजी की आवाज।
शब्‍द से ज्‍यादा प्रभावी होते हैं स्‍वर... और स्‍वर के माध्‍यम से ब्‍लाग पोस्‍टों का परिचय।
बढिया लगा यह नया प्रयोग।

Hirwani ने कहा…

अर्चना जी की आवाज़ का जादू ने आज बुलेटिन को एक नया रंग दिया है.... वाकई अदभुत... सलिल दादा आपका ज़वाब नहीं...

Hirwani ने कहा…

अर्चना जी की आवाज़ का जादू ने आज बुलेटिन को एक नया रंग दिया है.... वाकई अदभुत... सलिल दादा आपका ज़वाब नहीं...

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

sach me.. bahut pyara sa prayas..:))

रश्मि प्रभा... ने कहा…

अर्चना जी की तो मैं कायल हूँ ही ... यहाँ दिग्गजों ने बुलेटिन का पताका फहराया है , ये मेरा इंडिया , नहीं नहीं - हमारा इंडिया , हमारा भारत - जहाँ डाल डाल पर ज्ञान है और कई विशेषताएं ...

अजय कुमार झा ने कहा…

बहुत ही कमाल का अनोखा प्रयोग । बोलता बुलेटिन खूब भाया मन को । अर्चना जी का बहुत बहुत शुक्रिया और आभार

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

salil bhai ka bhi parjog majedar hai :-)

सूत्रधार ने कहा…

आपकी इस बेहतरीन प्रस्‍तु‍ति के लिए शुभकामनाएं ।

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

पहले शब्द से ही पता चल गया ये एक बिहारी भाई का ही होगा ,वे तो पहले से ही छोटी बहन से रिश्तेदारी से परेशानी में है तो बड़ी बहन क्यों बना गले में बोझ डाले.... "अब जा समझ में आइल" "बढियां - बढियां लिंक्सवाँ के बढियां दिखावल गइल" अरे मै गलत हूँ... ! ये तो "दिखावल गइल" ना ,ये तो सुनाया जारहा है ये तो अपनी छोटी बहन से प्रेम दिखलाने का तरीका था ब्लॉग-बुलेटिन का नायब तरीका पा दिल-मन आनन्दित हो गया.... अभी तो बहुत जानना बाकी.... !! इस समंदर में नायाब हीरे है.... आभार "सलिल भाई "
धन्यवाद....!!रश्मि प्रभा जी ,शिवम् भाई , अजय भाई.... :)

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

अनोखा प्रयोग प्रसंनीय है अर्चना जी की आवाज और प्रस्तुति अच्छी लगी,फिर भी इसमे थोड़ी और सुधार करने
की आवश्यकता है,जैसे कि रचनाओं को पूरा पढ़ा जाय,
ब्लॉग बुलेटिन की ये पहल स्वागत योग्य है,...बधाई शुभकामनाए

सदा ने कहा…

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ...आभार ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बोलता बुलेटिन नया और अच्छा प्रयोग .... बधाई ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत ही सुन्दर प्रयोग..

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

जादू है अपने आप में यह बुलेटिन... बढ़िया/नया प्रयोग....
सादर आभार.

Shanti Garg ने कहा…

अनुपम भाव संयोजन के साथ बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

आदरणीय धीरेन्द्र जी,
आपकी टिप्पणी का स्वागत है. आपकी भावनाओं का सम्मान करते हुए यह स्पष्टीकरण इसलिए भी अनिवार्य हो जाता है कि आप संवेदनशील व्यक्ति हैं. जैसा कि किसी भी चर्चा की परम्परा है, चर्चाकार पोस्ट्स की झलक प्रस्तुत करते हैं और पूरा पढ़ने के लिए लिंक्स प्रस्तुत किये जाते हैं ताकि उनसे ब्लॉग तक पहुंचा जा सके और पोस्ट को पूरा पढ़ा जा सके.
उसी परम्परा का निर्वाह करते हुए यहाँ भी पोस्ट की झलक ही अर्चना जी ने अपने स्वर के माध्यम से प्रस्तुत की है. यदि पूरी की पूरी पोस्ट ही पढ़ी जाए तो आठ दस पोतों की चर्चा में बैंडविड्थ का इतना भार पडेगा कि आपका कंप्यूटर उसे वहन नहीं कर पाएगा और ऑडियो बुलेटिन का उद्देश्य पराजित होगा. हाँ, एकल ब्लॉग के मामले में यह संभव हो सकता है और अर्चना जी अपने ब्लॉग पर तथा अन्य ब्लॉग पर ऐसा करती भी रही हैं.
आपने अपने बहुमूल्य सुझाव रखे उसका हम स्वागत करते हैं! भविष्य में अपने विचारों से अवगत कराते रहें. आपके सुझाव हमारा मार्गदर्शन करेंगे. सादर!!

शिवम् मिश्रा ने कहा…

सब से पहले देरी के लिए बहुत बहुत माफ़ी चाहता हूँ ... हलाकि पोस्ट तो सुबह ही देख ली थी ... माफ़ कीजियेगा देख और सुन ली थी ... पर कुछ जरुरी काम आ जाने के कारण कमेन्ट नहीं कर पाया |

प्रयोग के रूप में लगाई गई इस सार्थक बोलती बुलेटिन के पीछे जो कड़ी महेनत है उसको मेरा शत शत नमन है | अर्चना जी आपका बहुत बहुत आभार जो आपने ब्लॉग बुलेटिन पर एक "मेहमान रिपोर्टर" के रूप में अपनी यह पोस्ट लगाई ! हमारी इस नयी श्रृंखला को एक और बढ़िया परवाज़ देने के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद ! साथ साथ सलिल दादा आप को मेरा प्रणाम !

shikha varshney ने कहा…

सुन्दर और नया प्रयोग ..अच्छा लगा.

मनोज कुमार ने कहा…

पहली बार आंखें मूंद कर किसी चर्चा/बुलेटिन को पढ़ा।
सच कहूं तो गंगा दर्शन सा आनंद आया। मुझे तो लगा मेरी पोस्ट जी उठी।
प्रयोग नायाब है।
एक सुझाव पोस्ट परिचय फटाफट समाचार स्टाइल में हो और दूसरा यह कि टिप्पणी बॉक्स अलग खुले, इसके खुलते ही पोडकास्ट बंद हो जाता है।

Archana Chaoji ने कहा…

धन्यवाद.. आप सभी का इसे पसन्द करने और प्रोत्साहन देने के लिए ..आपके सुझावों पर उचित ध्यान दिया जाएगा...
निशिचत रूप से मेहनत तो बहुत लगी(तकनिकी ज्ञान की कमी के कारण ), मैं शिवम जी (जिन्होंने ये करने का मौका दिया) और सलिल भैया (भैया होते ही किसलिए हैं? :-) )की विशेष रूप से आभारी हूँ...बुलेटिन टींम को भी सादर नमस्ते ...

Shah Nawaz ने कहा…

वाह! वाह! क्या अंदाज़ है ब्लॉग बुलेटिन का... मज़ा आ गया... ज़बरदस्त बुलेटिन अर्चना जी..

बेहतरीन प्रस्तुति सलिल जी..

अजय कुमार झा ने कहा…

नायाब प्रस्तुति और बेहतरीन प्रयोग । बुलेटिन पाठकों का चहेता यूं ही नहीं बन रहा है । अर्चना जी और सलिल भाई का शुक्रिया और आभार

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

बेहतरीन प्रयोग। आनंद आ गया पढ़कर। पहले तो मुझे भी अर्चना जी का बीच में रुक जाना खला फिर समझा कि नहीं रूकतीं तो मैं उस ब्लॉग पर जाता ही क्यों..! अच्छा है..बहुत अच्छा। हिंद युग्म से ही अर्चना जी को सुन रहा हूँ..अब तो यह आवाज लाखों में पहचानी जा सकती है।..आप सभी का आभार जिन्होने इतना सुंदर प्रयास किया।

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