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बुधवार, 30 नवंबर 2011

ब्लॉग जगत से कोहरा हटा और दिखा - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रो ,
प्रणाम !

सर्दियों के मौसम में आम बात है कोहरा, जिसकी वजह से थम जाती है रोजमर्रा की रफ्तार। आखिर क्या वजह होती है इस प्राकृतिक घटना की ...
यूं तो सर्दियों का मौसम बहुत खुशगवार होता है, लेकिन सभी के लिए नहीं। इन दिनों अक्सर देर रात और सुबह धरती के ऊपर धुएं जैसा आवरण छा जाता है। इसे कोहरा [फॉग] कहते हैं। इसकी वजह से न केवल राहगीरों को बल्कि ट्रेन ड्राइवरों और एयरोप्लेंस के पायलटों तक को रास्ता ठीक से नहीं दिखाई देता। कभी-कभी तो कोहरा इतना घना होता है कि हमें ड्राइंग रूम से मकान का मेन गेट तक नहीं दिखाई देता है। सर्दियों में ऐसे दृश्य देखकर यकीनन आपके मन में भी सवाल उठता होगा कि आखिर यह कोहरा क्या चीज है?

फॉग और स्मॉग

आइये देखें, कोहरा कैसे बनता है? 

हमारे चारों ओर उपस्थित हवा में जलवाष्प [वॉटर वेपर] होती है, जिसे हम नमी कहते है। सर्दियों में पृथ्वी की सतह के पास की गर्म हवा में मौजूद जलवाष्प ऊपर मौजूद ठण्डी हवा की परतों से मिल कर जम जाती है। इस प्रक्रिया को सघनन [कंडेन्शन] कहते है। जब हवा में बहुत ज्यादा कंडेन्शन हो जाता है तो यह भारी होकर पानी की नन्हीं-नन्हीं बूंदों में बदलने लगती है। आसपास की अधिक ठडी हवा के सपर्क में आने पर इसका स्वरूप धुएं के बादल जैसा बन जाता है। इसी को मौसम वैज्ञानिक कोहरा बनना कहते है। 

क्या होता है 'स्मॉग' ??

औद्योगिक क्षेत्रों में कोहरा ज्यादा घना हो जाता है और इसे 'स्मॉग' कहते हैं। स्मॉग स्मोक और फॉग से मिलकर बना शब्द है। अब तो आप इसका मतलब समझ ही गये होगे, फैक्ट्रियों का धुआ कोहरे के साथ मिलकर जो बादल बनाता है उसे स्मॉग कहते है।

क्या होती है धुंध?

धुंध भी कोहरे की तरह ही होती है, अंतर बस केवल इतना है कि यह अधिक घनी हो जाती है। जहाँ कोहरा हमें जाड़े में दिखायी देता है वहीं धुंध बरसात के दिनों में हवा में नमी की मात्रा बढ़ जाने के कारण उत्पन्न होती है। धुंध पहाडि़यों और जंगलों वालों क्षेत्रों में अधिक बनती है।

कैसे होता है हिमपात?

कोहरे में उपस्थित पानी के कणों के कारण आर-पार देखना मुश्किल हो जाता है। जब यह प्रक्रिया खूब ठण्डे पहाड़ी इलाकों में होती है तब पानी की बूंदे जमकर बर्फ के नन्हे क्रिस्टल्स में बदल जाती हैं। इसी को हम 'हिमपात' अथवा बर्फ गिरने के नाम से जानते है।

छाटा भी जा सकता है कोहरा

बड़े शहरों में कोहरा गाँव व कस्बों में दिखने वाली कोहरे की परतों की अपेक्षा अधिक मोटा होता है। कारण यह है कि बड़े शहरों की हवा में धूल और धुएं के कण अधिक होते है जो कोहरे में उपस्थित पानी के कणों से मिलकर इसे गहरा बना देते है। कोहरे वाले स्थान पर सिल्वर आयोडाइड या कैल्शियम क्लोराइड का छिड़काव करने से कोहरे में मौजूद पानी बूंदों के रूप में जमीन पर गिर जाता है और कोहरा छट जाता है!

बिना सर्दियों के कोहरा!

आपने तो सर्दियों के मौसम में ही कोहरा देखा होगा, लेकिन समुद्र में सफर करने वाले नाविक अक्सर कोहरे से दो-चार होते है। दरअसल समुद्र में पानी की गर्म और ठण्डी धाराओं के सतह के ऊपर की हवा से टकराने से कोहरा बन जाता है।

जीवन के लिए वरदान

कोहरा रेगिस्तानी इलाकों में पशु-पक्षियों और वनस्पति के लिए जीवनदाता बनकर आता है। बाजा [कैलिफोर्निया], कैनरी आईलैण्ड, केप वर्डे आईलैण्ड, नामिब डेजर्ट, पेरू और चिली दुनिया के कुछ ऐसे स्थानों में है जहाँ वर्ष भर सूखा पड़ा रहता है। कोहरे के कारण इन स्थानों में हवा में पानी की मात्रा बढ़ जाती है। इस पानी के कारण रेगिस्तानी पशु-पक्षी तथा पेड़-पौधे मजे से जीवित रह लेते है। इन क्षेत्रों के निवासियों ने ऐसी तकनीकें विकसित की है जिनसे कोहरे से पानी एकत्र किया जा सकता है।


आइये अब इस कोहरे को हटाते हुए चलते है आज की ब्लॉग बुलेटिन की ओर ...


सादर आपका 


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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिंद !!

मंगलवार, 29 नवंबर 2011

बुलेटिन नहीं बुलेट है ..अरे माने फ़टफ़टिया समाचार जी






आज के बुलेटिन वाचक हम हैं ,ई आपको एक लईना पढके भी पता चलिए जाएगा । इसलिए आधिकारिक उदघोषणा के तहत हम आपको ई भी बताते हुए चलते हैं कि , ई हमारे कैप्सनवा का पोस्ट से कोनो रिलेसन हो , ई कतई जरूरी नहीं है , काहे से कि हम सेंटीमेंटली सेट हो के मेंटली लिख डाले हैं , झेला जाए प्रेमपूर्वक 






दुखी हैं ? तो ब्लॉगिंग क्यूं नहीं करते:- हां , दुखी रहने से अच्छा है दूसरे को दुखी किया जाए


काश मैं तुम्हारा पति होता : - उंह्ह इत्ती हसरत से न बुला भईए ,भगवान सुन भी लेता है कई बार बे


अब मन बृज में लागत नाहीं : राधा रात भर सीरीयल देखे , भोर भए फ़िर जागत नाहीं


सोनिया का प्रभावी लोकपाल का वादा :- आगे के बोल हैं ..तू वादा न तोड , तू वादा न तोड , पूरा न तोड , आधा न तोड



कौए की निजि जिंदगी :- में मिसर जी की गहन ताक झांक


दिल और दिमाग की द्वंद में किसे चुनें : - अरे ई बताइए पिरतियोगिता का उत्तर एस एम एस से भेजना है कि मिस काल मारना है जी । अच्छा माने अगर नय चुनने का मन करे कुछो , द्वंद के बीच डोलने का मन हो तो ..


राबर्ट ब्लॉय : हम क्यों नहीं मरते : ए राबर्टवा , अबे पूछ रहे हो कि डिकलेरेसन है बे ....कौन हो बाबू ,मरबे नय करते हो , इहां तो रोजिन्ना लोग कै कै बार मर जाता है ।


एक गीत खुली किताबों में : आउर एक ठो लेसन , टी सीरीज का केसिट में । अरे जब गीतवा किताब में धरिएगा तो लेसन तो केसिट में भरईबे करेगा न


आखिर कहां जा रहे हैं हम ? : जी भाड में जा रहे हैं , और कहां ?


उन्होंने मुझे हज़ार दफ़ा फ़ांसी पर लटकाया : अरे कऊन थे जी , भेजिए तो उनको , एक दू ठो को लटकवाना है जी , सरकारो नय लटका रही है , मामला को लटका के रख दिहिस है सब ..ओह हाऊ मच लटका लटकी ..


सत्य का स्वरूप : सर्दी की धूप ..



नीम हकीम और नीम पागल : दुन्नो का कनेकसन नीम से ही है ई जान जाईए



गूगल आजकल पता नहीं किया कहना चाहता है : हमको तो लगता है ससुरा चुप रहना चाहता है



स्वभावों के भेद : जानने के लिए इहे मेन गेट है , किलिकियाइए और जान जाइए



बहस आजकल कुछ खट्टी मीठी :  वो कोयले का इंजन वो रेल की सीटी



जिंदगी रिवाईंड : करके समुंदर के लहरों पर हेलिए



छा रहा इस देश पर कोहरा घना है : श्श्श , इस कोहरे को चीर कर देखना मना है



अनामिका की उलझन है कि वो क्या करे : इन मुद्दों पर जमके बहस हुआ करे ।



जहां बाड खुद खेत को है खाती : 



मटर दिलों में प्रेम बढाता : तुम्हारा प्रेम पनीर प्रिये , मिलके तैयार मटर पनीर हो जाता



जिंदगी का कुंआं : - कहीं कोहरा , कहीं धुआं



कुछ उलझे हुए विचार : अक्सर एक  कमाल की पोस्ट का बायस बन जाते हैं



बदनाम रहे बटमार : और हो गया बंटाधार



क्या जमानत पर छूट जाने पर भी जमानत निरस्त हो सकती है : - ठीक से जान लीजीए , वर्ना खस्ता हालत पस्त हो सकती है



स्वीकार सको तो स्वीकार लेना : जीत सको तो जीत लेना , हार सको तो हार लेना




उलटफ़ेर : फ़ौरन सीखें , बिना देर




जन्मदिन : बधाई हो बधाई ,खूब खुशी आई



दल उभरता नहीं संगठन के बिना : आ बनाएं , फ़िर सरकार को कराएं ताक धिना



आपके गले की तो वाट लग गई है : कार्टून वाली ये  पोस्ट झन्नाट लग गई है




देश के 48 प्रतिशत से अधिक किसान परिवार ऋणग्रस्त : यही विडंबना बडी , कोई मस्त ,कोई पस्त



सर्दियों में बालों और त्वचा की देखभाल : फ़ौरन इस पोस्ट का करें इस्तेमाल



मैं भूल गया : सोचिए , याद रहता तो का का लिख देते जी



नेता है तो समझो देशभक्त है : लेकिन पब्लिक समझने में बहुत सख्त है



बिठूर के बारे में कुछ जानकारी : यहां से पाएं हे माऊसधारी



उस्ताद सुलतान खान का निधन : हमारी श्रद्धांजलि , हमारा नमन

सोमवार, 28 नवंबर 2011

मेरे देश में सब बिकता है ... खरीदोगे ??? - ब्लॉग बुलेटिन

सभी मित्रों को देव बाबा की राम राम..... लीजिये आज के बुलेटिन की शुरुआत एक मुद्दे के साथ करते हैं....

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आज सुबह के अखबार की एक खबर थी "समाचार पत्र 'मिड डे' के वरिष्ठ पत्रकार ज्योतिर्मय डे की हत्या के सिलसिले में पुलिस ने शुक्रवार को एक अंग्रेजी समाचार पत्र एशियन एज की महिला पत्रकार को गिरफ्तार किया। उन्हें अदालत में पेश किया गया।"  मन सोच में पड़ गया की आखिर एक पत्रकार कैसे एक पत्रकार की हत्या की साजिश रच सकता है, क्या यह कोई नयी साज़िश है? जो भी हो, हमें अपने देश की न्याय-पालिका में विश्वास रखना चाहिए.. जो भी होगा सामने आएगा.... लेकिन एक लोक-तांत्रिक देश में पत्रकारिता एक मजबूत स्तम्भ है..... पत्रकार सामान्य जनता का सचेतक है, हितैषी है..... सोती हुई सरकारों को जगाने के लिए और हर सामाजिक मुद्दे पर पत्रकारिता ही जनता की नुमाइंदगी है....

लेकिन......     आज बात इसी लेकिन पर आकर रुक गयी है..... आखिर आज की पत्रकारिता वास्तव में निष्पक्ष है ? देख कर लगता तो कतई नहीं..... आज कल के तथाकथित क्राइम पत्रकार खबर के नाम पर अंदर-वर्ल्ड के साथ मिलकर ऐसी भी साज़िश रच सकते हैं ? क्या कहियेगा.... आज कल हर किसी पर बाज़ार हावी है.... यह बाज़ार हर किसी को चका-चौंध कर सकता है.... खबर को तोडा मरोड़ा जाता है..... हर बात के नफे और नुकसान का बखूबी आंकलन होता है.... सावधानी के साथ उसकी सैटिंग होती है..... और फिर सौदा हो जाता है..... यही है आज कल की सच्चाई.... क्या कहें... ?

हंगामे खड़े होंगे....
सियासी बवाल खड़े होंगे....
मेरे इस लोक-तंत्र पर ..
फिर से सवाल खड़े होंगे...

शायद कभी तो हिंदुस्तान के पत्रकारों को अपने सरोकार और कर्तव्य-परायणता की याद आएगी..... हमारा लोक तंत्र आज कल एक अजीब से दौर से गुज़र रहा है..... महंगाई अपने चरम सीमा पर है, सरकार की आँखे बंद हैं, क्योंकि सत्ता पर कोई आंच नहीं है..... और उनकी सत्ता निर्बाध चलती रहेगी...  जनता का रोष अपने चरम पर है..... लेकिन क्या कहियेगा..... पहली बार ऐसा लग रहा है जैसे इस लोक-तंत्र में ना पक्ष है और ना ही विपक्ष... पत्र-कारिता में हो चुके इस बदलाव की बात कहनी ही क्या ?
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अब इन लिंक्स पर गौर फरमाइए..... 
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चलिए आज का बुलेटिन यहीं समाप्त करते हैं..... फिर मिलेंगे..... 
जय हिंद 
देव कुमार झा

रविवार, 27 नवंबर 2011

२६/११ के शहीदों को एक श्रद्धांजलि....



२६/११  के दिन मुंबई मे आतंकवादी हमले में कई जाने गई थी| सवाल यह है कि आज तीन साल होने के बाद जब मुंबई हमले में पकडे गए आतंकवादी अजमल कसाब पर सारे आरोप सिद्ध हो चुके है यहाँ तक कि कोर्ट ने उसे फाँसी कि सजा भी सुना दी है फिर आज वो भारत में पकडे जाने वाला इतना खर्चीला आतंकवादी क्यों बन गया है ?
क्या ये सरकारी लोचा है या फिर ये भारत पाकिस्तान के बीच रिश्ते न बिगड़ पाए इसलिए टला जा रहा है मुझे तो समझ ही नहीं आता|
"अमन की आशा " मुझे तो लगता है की इस गैर सरकारी संस्था को बंद कर देना चाहिए क्योकि भारत पाक के बीच कभी समझोता नहीं हो सकता| आपको याद होगा की जब अमेरिकी सील्स ने ओसामा बिन लादेन को मरने के लिए चुपचाप हमला किया था| हमले के बाद एक टीवी रिपोर्ट में एक बच्चे का इंटरव्यू लिया गया और उससे सवाल किया गया कि जब हेलीकाप्टर गिरा तो उसे क्या लगा तो उसके बच्चे का जवाब था "जब हेलीकाप्टर गिरने और बंदूकें चलने की आवाज़ आई तो मुझे लगा कि भारत ने हम पर हमला कर दिया"   उसकी इस बात से ये पता चलता है कि पाकिस्तान के आम लोगो को यहाँ तक कि स्कूलों में भी भारत विरोधी शिक्षा दी जाती है तो फिर पाकिस्तान की आने वाली पीडी अमन के बारे में सोच भी कैसे सकती है| उसे तो बस इतना पता है कि लोगों से अगर दुश्मनी हो तो उसके हल सिर्फ उनको मार कर ही निकला जा सकता है| इसीलिए तो आज विश्व भर में आतंकवाद का सोर्स पाकिस्तान है|
आप लोगो का इस बारे में क्या सोचना है कृपया अपनी राय दीजिये|


आज की हेडलायंस कुछ इस प्रकार है


कलमाड़ी, राजा का नया टेंशन !!!
लहू पुकारता है इशरत जहां का
भारत के लिए याहू की नयी विडियो साईट
संसद चल रही है ... ???
बुनियाद.... -सतीश सक्सेना
अर्थशास्त्र जाये भाड़ में !!
पूर्व नियोजक से बकाया परिलाभ प्राप्त करने के लिए क्या उपाय है?
एक दाँव जो उल्टा भी पड़ सकता है
हताशा से जूझते भारत का ज्ञान और सपने
माया का आइडिया माल्या के लिए!!
कार्टून :- .... लो एक शोहदा और आया
इकोनोमिक्स या पोलिटिक्स ??
फोकस न लूज करो, मि.मल्टी-टास्कर!!!
मनमोहन की सचमुच कोई नहीं सुनता.

सरकार का सेन्स ऑफ़ ह्यूमर.
गिलानी को शांति का नोबेल ???


आज के लिए इतना ही फिर मुलाकात होगी ... जय हिंद !!

शनिवार, 26 नवंबर 2011

२६-११.... तीसरी बरसी .... वह ६० घंटे..... ब्लॉग बुलेटिन

तीन साल.... तीन साल हो गए.... किस तरह १० हमलावरों ने मुंबई को ख़ून से रंग दिया था. हमलों में २०० से ज़्यादा लोग मारे गए थे, कई घायल हुए थे... और कैसे उस दिन की केवल याद से आज भी सिहरन हो उठती है.... सबसे पहले तो नमन उन शहीदों को, जो शहीद हो गए...   हमारी श्रद्धांजलि... 
 


लेकिन आज भी सवाल वही है की आखिर इतनी बड़ी साज़िश कैसे रची गयी... और हमने उन हमलो से कुछ सीखा? शायद कुछ खास नहीं... आज ३ साल के बाद कम से कम लगता तो ऐसा ही है....

२६/११ के बाद महाराष्ट्र सरकार ने हथियार और गाड़ियों के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च कर दिए गये। करीब सात करोड़ रुपए में मोबाइल स्केनर वैन खरीदी गई।
२६/११ के बाद केंद्र और राज्य सरकार ने बीच के खुफ़िया नेटवर्क को मजबूत करने और अपने आपस में इन्फ़ार्मेशन नेटवर्क को और मज़बूत करनें की भी गारंटी दी..... लोगों को यह भरोसा भी दिया की अब इस प्रकार की कोई घटना नहीं होगी.... लेकिन जब संदिग्ध डेविड हेडली और तहव्वुर राणा की एफ़ बी आई नें पोल खोली तो पता लगा की वह २६/११ के बाद भी कई बार मुम्बई आये हैं.....
२६/११ के बाद सी एस टी स्टेशन पर और शापिंग माल में मेटल-डिटेक्टर भी लगाए गये.... लेकिन क्या वह किसी काम के हैं.... अरे भाई वह पूं पूं करते हैं और लेकिन कोई ध्यान देनें वाला नहीं.... सरकार नें कहा की फ़ोर्स-वन बनाएगी, लेकिन शायद मुम्बई पुलिस की ज़िन्दगी नाकाबन्दी और कोर्ट कचहरी और कसाब की रखवाली करनें में ही बीतेगी.....

कुछ भी कहिये, लेकिन आज यह बात समझ पाना कठिन है की कसाब जिंदा क्यों है ? आखिर उसको पालने में हो रहे पैसे का बोझ आम आदमी पर क्यों.... आखिर टैक्स-पेयर्स का पैसा इस दरिन्दे को पालने में क्यों? सवाल का ज़वाब कोई नहीं देगा.... क्योंकि यहाँ भी राजनीति की बू आ रही है..... जब पूरी दुनिया को पता है की आतंकियों को ट्रेनिंग पाकिस्तानी नौसेना ने दी.... और कैसे उन दरिंदो ने इतनी बड़ी साज़िश को अंजाम दिया...... फ़िर भी कसाब ज़िन्दा क्यों.... क्या कहिएगा..... थोडा सोचिये बस...... 

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चलिए आज की ब्लाग बुलेटिन पर नज़र डालिए.....
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जय हिन्द
देव कुमार झा

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

सूरा सो पहचानिए ... जो लड़े दीन के हित ... - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रो ,
प्रणाम !

सब से पहले आज की एक बड़ी खबर ...

केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार को गुरुवार को महंगाई से परेशान एक युवक ने तमाचा मार दिया। युवक को हिरासत में ले लिया गया है और उससे पूछताछ की जा रही है। घटना नई दिल्ली नगर पालिका परिषद [एनडीएमसी] सेंटर में हुई। पवार यहां इफको के एक कार्यक्रम में शिरकत करने आए थे।
इस घटना के बारे में पूछे जाने पर शरद पवार ने कहा कि वह एक युवक द्वारा खुद को चांटा मारे जाने के मामले पर कोई प्रतिक्रिया देना नहीं चाहते। उन्होंने इसे सुरक्षा में चूक मानने से भी इंकार किया।
पवार ने कहा, मैं क्यों अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करूं। मैं इसे सुरक्षा में चूक भी नहीं कहूंगा। मैं देखूंगा कि कहीं इसकी समीक्षा करने की जरूरत तो नहीं है। उन्होंने आगे कहा, मैं अपनी कार की ओर बढ़ रहा था। उस समय पत्रकारों का एक समूह मेरे साथ था। वे सवाल पूछ रहे थे। मैंने उसे [हमलावर] अपनी ओर बढ़ते देखा] ऐसा लगा कि वह पत्रकारों के समूह के साथ था। यह पूछे जाने पर कि युवक ने महंगाई के मुद्दे पर आक्रोश में उन्हें चांटा मारा, पवार ने कुछ भी कहने से इंकार कर दिया।
पवार को चांटा मारने के बाद युवक को इससे पहले कि वहां मौजूद सुरक्षाकर्मी पकड़ते, उसने अपनी कृपाण निकाल ली और हवा में लहराने लगा। बाद में युवक को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। उसने अपना नाम हरविंदर सिंह बताया है। चार दिन पहले उसने ही पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम पर हमला किया था।


 अब इस खबर का हमारे ब्लॉगर मित्रो पर असर ... जैसा कि फेसबुक पर देखने को मिला ... पेश है चुनिन्दा कुछ दिवालो की झलकियाँ ...

चाँटा लगाssss हाय लगा
शर्म आ रही है मुझे ऐसे मुफ्तखोरों पर...थप्पड़ तक मुफ्त में खा रहे हैं
राहुल बाबा को सलाह दी जाती है कि किसी "भिखारी"(?) से उसके राज्य का पता पूछने से पहले उसके दोनों हाथ बँधवा लें… :)
क्या हुआ शरद बेटा? दोनों गाल क्यों ढाँप रखे हैं? याद नहीं गांधी जी ने क्या कहा था?....

 
सुनने में आ रहा है कि कुछ समाचार चैनल, थप्पड़ चलाने और जूता चप्पल फेंकने की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए इस तरह की घटनाओं को कवर करने के लिए अपना एक विशेष प्रतिनिधि तय करने पर विचार कर रहे है। यदि जूता, चप्पल या थप्पड़ चलाने से पहले कोई व्यक्ति इसकी सूचना चैनल को देता है, तो वह विशेष कार्यक्रम बनाने पर भी विचार कर सकती है। (उंगलबाज डॉट कॉम, हमारी विश्वसनीयता संदिग्ध है)
दिल को ठंडक मिली, दो चार और पड़ते तो मजा कुछ ज्यादा आता। ये निकला मर्द, जब तक उल्टा नही टंगेगे होश ठिकाने नही आने इन चोरो के
सुनाने में आया है की आज Thanksgiving Day है ...

और हरविंदर सिंह ने शरद पवार को थप्पड़ भी मारा है

आईये हम सब मिलकर एक साथ उनको धन्यवाद कहें ............धन्यवाद हरविंदर सिंह जी !!
चांटा खाया क्‍यों भूख लगी थी

धन से पेट नहीं भरा करते क्‍या
 
मैं खुद भी कहता हूँ कि मैं कातिल हूँ मगर
जिसको मारा है अभी उसको मर तो जाने दो..

जिसके लिए मिली है हाकिम से उम्रकैद
पहले काम वो तमाम मुझको कर तो जाने दो
...
उनसे कहा के सब तो चला गया है प्यार में
वो मुस्कुरा के बोले, अभी ये सर तो जाने दो

क्यों फिर से आ गए हो खंज़र की दुआ लेने
ज़ख्म पहले जो दिए तुमको भर तो जाने दो

कब मौत से डरे हैं दिलेर उस बस्ती के 'मशाल'
अबकी ज़िंदगी को भेजा है जरा डर तो जाने दो
 
 
इतनी मंहगाई में जूते कहां से लांए ?
 
राष्ट्र के नाम सन्देश ... चांटे की निंदा !!
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मुझे बहुत अफसोस है
कि-
मेरे एक भले व निर्दोष सांथी को
... एक सिरफिरे ने -
बेवजह चांटा झड दिया है
मैं उस चांटे की घोर निंदा करता हूँ
और यह आशा करता हूँ
कि -
इस तरह की
चांटे मारने वाली घटनाएँ
दोबारा नहीं होंगी !

इस तरह की घटनाओं से
निसंदेह
हमारा लोकतंत्र कमजोर होगा
मैं मानता हूँ
कि -
इस दौरान -
मंहगाई
भ्रष्टाचार
घुटालेबाजी
जैसी घटनाओं में बढ़ोत्तरी हुई है
लेकिन, इसका यह तात्पर्य नहीं है
कि -
हमारे युवा, आपा खो बैठें
और मेरे निर्दोष सांथियों पर
चांटे जैसे गंभीर प्रहार करें !

मैं घटना की निंदा करता हूँ
और युवाओं से आव्हान करता हूँ
कि -
वे इस तरह के हिंसक रास्ते छोड़ कर
सक्रीय राजनीति में आएं
और चुनावी अखाड़े में कूदकर
खुद को आजमाएं, जौहर दिखाएँ
क्यों, क्योंकि
हम अहिंसा के पुजारी हैं
तथा
एक ऐंसे लोकतंत्र के समर्थक हैं
जो हमें न सिर्फ आजादी प्रदान करता है
वरन हमें सुरक्षित भी रखता है!
चलिए ये तो हो गयी फेसबुक की बात ... अब एक नज़र ब्लॉग पोस्टो पर ... पेश है आज की ब्लॉग बुलेटिन ... पर आज सिर्फ हेडलाइन्स ...
सादर आपका 
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लीजिये अब पेश है एक विडिओ ... ताकि आपको भी एक सूरा की पहचान हो जाए ...
            
 ( यहाँ यह भी बिलकुल साफ़ साफ़ शब्दों में लिखता चलूँ कि हम किसी भी रूप में हरविंदर सिंह की तुलना अमर शहीद सरदार भगत सिंह जी से नहीं कर रहे है ... क्यों कि यह संभव ही नहीं है ... !!! )
हम सिर्फ़ और सिर्फ़ एक शूरवीर को परिभाषित कर रहे है ... गुरु महाराज कह गए है , 
" सूरा सो पहचानिए ... जो लड़े दीन के हित ... पुर्जा पुर्जा कट मरे ... कबहू ना छाडे खेत "
 
 
आज इस घटना के बाद ... एक आम आदमी के दिल को कितनी ठंडक मिली है ... इसका अंदाजा आप 
खुद अपने दिल से लगा सकते है ... बस इस लिए ही हम सरदार हरविंदर सिंह जी को भी एक 'सूरा' मान रहे है !!



आज के भारत देश में आप से और मुझ से ज्यादा दीन कोई है ... मुझे तो नहीं लगता ...


जय हिंद !!

बुधवार, 23 नवंबर 2011

एक गरम चाय की प्याली हो ... संग ब्लॉग बुलेटिन निराली हो ...

प्रिय ब्लॉगर मित्रो ,
प्रणाम !


गुलाबी ठंड की शुरुआत हो चुकी है। अब वह समय आ गया है जब बिस्तर में दुबके अपने शरीर को बाहर निकालने से पहले स्फूर्ति का अहसास देने वाली चाय की प्याली मिल जाए तो फिर कहना ही क्या। ऐसे में चाय की हर चुस्की से मिलती है ज्यादा स्फूर्ति और दम। इस पेय को समूचे विश्व में स्वास्थ्यव‌र्द्धक पेयों की श्रेणी में गिना जाने लगा है।
स्वास्थ्यव‌र्द्धक आखिर क्यों? शोधों से यह सच सामने आया है कि चाय दैनिक दिनचर्या में काफी असरदायक हो सकती है। धूम्रपान करने वालों के लिए और कैंसर को कुछ हद तक दूर रखने में ग्रीन चाय व हर्बल टी काफी लाभदायक सिद्ध हो सकती है।
चाय पीने से रंग काला हो जाता है। अधिकांश लोग इस भ्रांति से ग्रसित रहते हैं। अगर ऐसा होता तो इंग्लैंड सहित यूरोप के अधिकांश लोग काले होते, क्योंकि वहां चाय हमारे यहां की अपेक्षा अधिक मात्रा में पी जाती है। इसलिए मन से यह संदेह निकाल देना चाहिए कि चाय पीने से आप काले हो जायेंगे  अच्छी क्वालिटी की चाय आपको स्फूर्ति का अहसास कराएगी। एक बात और कुछ लोग यह सोचते हैं कि चाय पीने से मोटापा बढ़ता है, उनको यह बात जान लेनी चाहिए कि ब्लैक टी में कैलोरी लगभग शून्य होती है। दूध के प्रयोग से ही इसमें कैलोरी की मात्रा बढ़ती है। यही कारण है कि आजकल लेमन टी और ब्लैक टी का प्रचलन जोर पकड़ने लगा है। आप भी अपनी हर सुबह की शुरुआत ताजगी भरी चाय के साथ कीजिए और पाइए नई स्फूर्ति। एक बार आजमाकर तो देखिए। 

हम तो हुज़ूर ... यह नुस्खा आज़मा रहे है और इस समय चाय पीते हुए ही यह बुलेटिन लगा रहे है ... ;-)

सादर आपका 



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नूडल्स (लघु कथा)  :- संग चाय मिलेगी क्या ??








फ़रमाईश :- पूरी हुयी क्या ?


जिंदगी के ये मसले कभी आसान तो होंगे...:- उम्मीद तो की ही जा सकती है ..   


निराश कविता में आस की पदचाप!  :- उम्मीद पर दुनिया कायम है ...  


क्या समीर जी की पोस्ट से नाराज हैं अन्ना...खुशदीप :- हम को नहीं मालुम ... हम मिडिया थोड़े ही है ... 


जिस्म एक सपाट पार्क है  :- कम से कम मेरा तो नहीं ही है ... ;-)


देसिल बयना – 106 : हंसा था सो उड़ गया, कागा भया दिवान...!  :- "ए ब्रह्मण तू लौट जा बाघ कहीं जजमान"












दुनिया की सबसे महंगी सब्जी  :- क्या वहां भी कांग्रेस की सरकार है ???  








"सुकून" के अपहरणकर्ताओं से...चंद बातें  :- तो कब आज़ाद हो रहा है सुकून ???  



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अब आज्ञा दीजिये ... कल फिर मिलते है ... तब तक एक पोस्ट हमारी भी झेलिये सरकार ... ;-)

महंगाई का कारण :- हर एक पर ३२ का होना ...


जय हिंद !!


मंगलवार, 22 नवंबर 2011

नाक नल ना बन जाए ... संभालो यारो ... - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रो ,

प्रणाम !

आजकल हम दुखी है २ नलों से ... एक से पानी बह नहीं रहा और दुसरे से बहना बंद नहीं हो रहा ... ;-) 

जी हाँ आप ठीक समझे आजकल बदले हुए मौसम ने मुझे अपना शिकार बना रखा है ... और नाक नल हुए जा रही है ... दूसरी ओर ४ दिनों से घर में पानी की दिक्कत है ... सरकारी टियूब वेल खबर पड़ा है ... और क्यों कि मामला सरकारी है तो आप समझ ही सकते है काम किस रफ़्तार से चल रहा होगा उसको ठीक करने का ???

चलिए आज आपको थोडा ज्ञान ... सेहत पर दे दिया जाए ... क्यों ठीक है न ... 


बेशक सर्दियों का मौसम स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा माना जाता है, लेकिन असावधानी बरतने पर इस ऋतु में कई बीमारिया हो सकती हैं। अगर हम इस मौसम में होने वाली बीमारियों के बारे में सचेत हो जाएं, तो यह मौसम साल के सबसे उम्दा मौसम में तब्दील हो सकता है। आइए जानते हैं, इस मौसम के कुछ रोगों के बारे में..

फ्लू पर करें फतेह

सर्दियों में बच्चों व वयस्कों की सास नली [रेस्पॉयरेट्री ट्रैक्ट] के ऊपरी व निचले भाग में सक्रमण होने के मामले कहीं ज्यादा बढ़ जाते हैं। फ्लू भी सास नली से सबधित रोग है। फ्लू के वाहक कुछ खास किस्म के वाइरस अपनी सख्या को तेजी से बढ़ाते हुए सास नली में वाइरस का सक्रमण पैदा कर समस्या खड़ी कर देते हैं।

लक्षण

* बुखार आना और नाक बहना।
* गले में खराश रहना।
* खासी आना।
* थकान रहना और शरीर में दर्द महसूस होना।

इलाज

लक्षणों के आधार पर फ्लू का बेहतर इलाज किया जाता है। वैसे फ्लू को दूर करने के लिए पैरासीटामोल, भाप [स्टीम] लेने, विटामिन सी की टैब्लेट्स लेने, बलगम और सीने में जकड़न आदि की शिकायतों को दूर करने वाली दवाओं [डीकन्जेस्टेंट्स] का इस्तेमाल किया जाता है। लक्षणों के गभीर होने पर डॉक्टर से परामर्श लें।

रोकथाम

* फ्लू की वैक्सीन लगवा लेने से इस बीमारी के लक्षण गभीर नहीं होने पाते।
* मधुमेह से ग्रस्त व्यक्तियों, बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बुजुर्र्गो को फ्लू से ग्रस्त होने का जोखिम ज्यादा होता है। इन लोगों को फ्लू वैक्सीन लगवानी चाहिए।
* फ्लू वैक्सीन लगवाने से इनफ्लूएंजा के सक्रमण को रोकने में मदद मिलती है।
* साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें। कुछ भी खाने से पहले साबुन से हाथ धोएं।
* स्वस्थ व्यक्ति को पीड़ित शख्स की छींकों से बचना चाहिए।

कान में सक्रमण

मौसम बदलने का असर कान में सक्रमण पर भी पड़ता है। जाड़े की शुरुआत से कान में सक्रमण के मामले बढ़ जाते हैं। हालाकि इस तरह के सक्रमण के मामलों का अक्सर शुरुआती दौर में पता नहीं चल पाता।

लक्षण

* कान में तेज दर्द होना।
* बुखार होना
* कान में खुजली होना और कान का बहना।
* उपर्युक्त सभी लक्षण प्रत्येक मरीज में हों, यह जरूरी नहीं है। अलग-अलग मरीजों में कोई दो लक्षण भी पाये जा सकते हैं।
बहरहाल कान के अधिकतर सक्रमण वाइरस के कारण होते हैं। इसलिए यह जरूरी नहीं कि रोगी को एंटीबॉयोटिक्स दवाएं ही दी जाएं, लेकिन दर्द से राहत पाने के लिए डीकन्जेस्टेंट्स नामक दवाएं दी जा सकती हैं। जब तक कान में सक्रमण खत्म नहीं हो जाता, तब तक कान की सुनने की क्षमता और कान के पर्दे का परीक्षण किया जाता है। 
अब आप कहेंगे कि भाई आप इतना कैसे जानते है ... तो ऐसा है जनाब ... इन्टरनेट ... का सदुपयोग कर रहे है बस ... वैसे बता दें कि ऊपर दी गयी जानकारी डा.के.के.हान्डा, डाइरेक्टर-ईएनटी, हेड एन्ड नेक सर्जरी, मेदात दि मेडिसिटी, गुड़गाव  से मिली जानकारी के आधार पर आप को दी गयी है |
आइये अब चलते है आज के ब्लॉग बुलेटिन की ओर ...
सादर आपका 

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अब आज्ञा दीजिये ... फिर मुलाकात होगी एक और बुलेटिन के साथ ...

जय हिंद !!

              


सोमवार, 21 नवंबर 2011

बहन जी मांगें यु पी के टुकड़े चार - खिचड़ी , पापड़ , दही , आचार - ब्लॉग बुलेटिन

प्रणाम ,
ब्लॉगर मित्रो एवं मेरे बड़े 


मेरा नाम रुद्राक्ष पाठक है| ब्लॉग्गिंग की दुनिया में कदम रखे हुए मुझे ३ साल हो चुके है और अब ब्लॉग्गिंग मेरी  दिनचर्या का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है| अगर एक भी दिन ब्लॉग्गिंग न की जाये तो हमको तो खाना ही हजम नहीं होता| मैं ये भी बताना चाहूँगा कि मुझे ब्लॉग्गिंग की चमकदार दुनिया में लाने वाला और कोई नहीं बल्कि मेरे बड़े भाई शिवम् मिश्रा जी है| मैं आगरा में रहने वाला मैनपुरी प्रवासी कक्षा १२ का छात्र हूँ|


चलिए बात करते है मुद्दे की, आज तो मुख्यमंत्री मायावती जी ने उत्तर प्रदेश को बाँट देने की तैयारी विधान सभा में बिल पारित करने के बाद पूरी कर ली है| मेरे तो यह समझ में नहीं आता की आखिर ये मैडम चाहती क्या है ? क्या ये राज्यों की संख्या बढाकर अपनी पार्टी के जिताने के अवसरों को बढाना चाहती है या फिर कोई और सोची समझी राजनितिक चाल है|



कभी मैनपुरी जैसे छोटे शहरो के विकास के बारे में तो नहीं सोचा| मैंने मैनपुरी में अपने जीवन के १६ साल निकाल दिए पर मैंने आज तक कोई विकासात्मक कार्य होते हुए नहीं देखा| जिधर देखा उधर भ्रष्टाचार, धांदल गर्दी, गुंडा गर्दी| जब एक छोटे से शहर का विकास ये सरकार नहीं कर पाई तो उत्तर प्रदेश को ४ भागों में बाँटने के बाद राज्यों और शहरो की संख्या बदने के बाद क्या करेगी|


क्या ये कदम कमाई  बढाने का नया तरीका है या फिर कुछ और ? मैं इस बारे में आप लोगों की राय जानना चाहूँगा|


लीजिये आज का बुलेटिन प्रस्तुत है पर आज सिर्फ हेडलायंस 
  1. माया का आइडिया माल्या के लिए!!
  2. अब हिंदी डॉक्युमेंट को भी स्कैन कर बदलिए टेक्स्ट फाइल में
  3. अहा ठंडे-ठंडे फ़िक्सिंग के फंडे
  4. इकोनोमिक्स या पोलिटिक्स ??
  5. फोकस न लूज करो, मि.मल्टी-टास्कर!!!
  6. मेरी लंबाई पे मत जाओ
  7. गूगल का बेहतर उपयोग कीजिये Verbatim के साथ
  8. मनमोहन की सचमुच कोई नहीं सुनता.
  9. पट्ठे सुधर जा नहीं तो तेरी ऑडिट कर दूंगा
  10. आपके हाथ में होंगे मुलायम लचीले फ़ोन...
  11. सरकार का सेन्स ऑफ़ ह्यूमर.
  12. कितने दिग्विजयसिंह लगेंगे ?
  13. गिलानी को शांति का नोबेल ???
  14. कर ही क्या सकता था बन्दा खाँस लेने के सिवा
  15. दादा जी के मकान का बँटवारा कैसे होगा?
  16. हर बात का मतलब हो, ज़रूरी तो नहीं
  17. मेरे 80 CC स्कूटर के लिए बेलआउट पैकेज चाहिए.
  18. जानिए विंडोज 8 की कुछ खूबियों के बारे में
  19. दिग्विजयसिंह भी बिगबॉस में हो तो?
  20. गांधी को लेकर कुछ किन्तु-परन्तु

अब आज्ञा दीजिये ... 


जय हिंद !!

रविवार, 20 नवंबर 2011

हमें चर्चाकार कतई न समझें ..हम खबरची हैं ..ब्लॉग खबरची



 
आज टीपू सुल्तान का जन्मदिन है , उन्हें नमन


देखते ही देखते ये वर्ष भी बीतने को , यानि कि आखिरकार वो वर्ष भी आ ही पहुंचा है जिसके लिए संभावना व्यक्त की जा रही है कि वो महाप्रलय वाला वर्ष होगा , वर्ष २०१२ , हालांकि पिछले दिनों जिस तरह से लगातार प्रकृति हलचलों से अपना दर्द बाहर उडेल रही है , उससे यही ज़ाहिर हो रहा है कि आने वाले समय में धरती पर जीवन का बने रहना एक कठिन चुनौती साबित होने वाली है । खैर , हमेशा की तरह हमें सकारात्मक होकर आगे बढना चाहिए । जैसा कि मैं शीर्षक में बता चुका हूं कि वर्षांत में हिंदी अंतर्जाल से संबंधित बहुत सारी हलचले वास्तविकता के धरातल पर दिखने वाली हैं । इधर एक प्रस्तावित ब्लॉग कार्यशाला और एक ब्लॉग अकादमी के गठन को लेकर गहमा गहमी शुरू हो चुकी है । अपने मेल बक्से में एक मेल और उसपर आई प्रतिक्रियाओं से ही ये सहज़ अंदाज़ा लग रहा है कि न सिर्फ़ गहमा गहमी बल्कि गर्मा गरमी भी होने वाली है ,

देखिए



      दिनांक ०९ -१० दिसम्बर २०११ को के.एम्.अग्रवाल महाविद्यालय ,कल्याण (पश्चिम ) में " हिंदी ब्लागिंग : स्वरूप, व्याप्ति और संभावनाएं " इस  विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रिय संगोष्ठी में आने के इच्छुक प्रतिभागियों से अनुरोध है कि वे निम्नलिखित बातों का ख़याल रखें .
    १-  प्रतिभागियों को किसी तरह का यात्रा व्यय महाविद्यालय क़ी तरफ से नहीं मिलेगा .
   २-आवास और भोजन क़ी व्यवस्था सिर्फ दो दिनों के लिए ही क़ी  गयी है, ०९ और १० दिसम्बर २०११ . इन दो दिनों के अतिरिक्त आवास और भोजन क़ी व्यवस्था प्रतिभागी क़ी अपनी जिम्मेदारी होगी .
३- कोई प्रतिभागी यदि अपने परिवार के साथ आना  चाहता है तो वे अपनी व्यक्तिगत व्यवस्था के साथ ही आयें. महाविद्यालय क़ी तरफ से अलग  से कोई व्यवस्था नहीं क़ी जायेगी .
४- पंजीकरण शुल्क ४०० रुपए सभी प्रतिभागियों को देने होंगे .
५- आवास क़ी सुविधा के लिए हर प्रतिभागी को ५०० रुपए देने होंगे .
६- आवास क़ी व्यवस्था बालाजी इंटर नेशनल  होटल में क़ी गयी है. एक  कमरे में  ०३ प्रतिभागियों . के रुकने क़ी व्यवस्था है .
७- एक व्यक्ति -एक कमरा --- जैसी व्यवस्था नहीं है
८- आवास क़ी व्यवस्था पूर्व  सूचना    देने वाले  प्रतिभागियों के लिए ही क़ी गयी है
9- प्रपत्र  वाचन  के लिए किसी प्रकार  के मानधन  क़ी व्यवस्था नहीं है. इसकी  अपेक्षा  भी  ना  करें  .
१०- कार्यक्रम  से सम्बंधित  किसी भी  प्रकार  के निर्णय  को लेने  के लिए महाविद्यालय स्वतन्त्र  है .
आशा  है आप सभी का सहयोग  हमे  मिलेगा .  किसी  बात को अन्यथा ना लें . बात साफ़-सुथरे तरीके से कह देना जादा बेहतर है .


अब ज़रा इस पर आई प्रतिक्रियाओं पर भी नज़र डालें

avinash das

कृपया इस तरह के मेल करके दूसरों का वक्‍त बर्बाद न करें। वरना राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी के नाम पर इस तरह के फर्जीवाड़े को एक्‍सपोज करना बहुत आसान होता है।


ashish Maharishi
अविनाश भाई
एक तो बेचारे डॉक्टर साब आपको निमंत्रण भेज रहे हैं और दूसरी ओर, आप उन्हें ही लपेट रहे हैं।


avinash das

ऐसा कौन निमंत्रण है, जिसमें हर चीज के लिए मेहमानों से पैसे मांगे जा रहे हों। नियमावली पढ़िए, जैसे धमकी दी जा रही हो। निमंत्रित करने का तरीका होता है। तरीके से बुलाइए, तो लिहाज से बात की जाएगी। वरना दूसरे भी बदतमीजी से बात कर सकते हैं।


ashish Maharishi

हां..इस बात से पूरी तरह सहमत हूं। भाषा के स्तर पर इस कार्यक्रम का आमंत्रण काफी आपतिजनक है। 


arvind shesh कृपया इस तरह के मेल करके दूसरों का वक्‍त बर्बाद न करें। वरना राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी के नाम पर इस तरह के फर्जीवाड़े को एक्‍सपोज करना बहुत आसान होता है।
अविनाश जी की बातों से पूरी सहमति जताते हुए दोबारा मैं भी यही कह रहा हूं।


अशोक कुमार पाण्डेय आप आमंत्रण दे रहे हैं या अपमान कर रहे हैं?
बेहतर हो कि ऐसे घटिया मेल प्रसिद्धि के भूखे ब्लागर्स को ही भेजें.
उम्मीद करता हूँ कि दुबारा मेल नहीं करेंगे
अशोक

Arun Roy
कैसा है यह आयोजन... कैसा यह निमंत्रण.... अफ़सोस है कि हम में से ही ऐसे लोग हैं... माननीय आयोजक महोदय.. यह मेल केवल उन्हें भेजे जो आपके कार्यक्रम में आ रहे हैं.... अशोक पाण्डेय जी से मैं पूरी तरह सहमत हूँ.... कृपया और समय नष्ट न करें... 
सादर 


Avaneesh Tiwari
आयोजक महोदय,
    भाषा की विनम्रता की कमी लोगों को खली है | इसका उत्तर दीजिये | मैंने मुबई  / नवी मुम्बई जैसे इलाकों में कई बार aise   कार्यक्रमों में भाग लिया है, ज्यादातर बहुत कम पैसों में हो जाते हैं |
शायद कहे गए शुल्क में लोगों का रुझाव कम हो , दूबार विचार करिए | कार्यक्रम   की रूपरेखा और विस्तृत जानकारी दीजिये ?  
अवनीश तिवारी


mrityunjay

अविनाश भाई, अशोक भाई,
आप लोग हिन्दी की ठेठ सेमिनारी ठस्सेबाजों से वाकिफ होते तो यूँ न कहते. दरअसल यू जी सी ने जब से नियम बनाया है क़ि राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में भागीदारी का प्रमाणपत्र मास्टरी और प्रमोशन के लिए आवश्यक है, तब से यह धंधा खूब फला-फूला.
"पैसा लो, सर्टिफिकेट दो." वाला हिसाब है. और आजकल तो बहुतेरे विश्वविद्यालयों ने हिदी विषय के भीतर पत्रकारिता एक प्रश्नपत्र के रूप में पढ़ाना शुरू किया है, तो ब्लागर सम्मलेन का सर्टिफिकेट भी काम आने वाला होगा.
इस धंधे में फायदा ही फायदा है. गंभीरता का आलम यह है क़ि अगर आप विषय पर थोड़ी बातचीत आयोजकों से करना चाहें तो हालात साफ हो जाते हैं.


यानि कि कुलमिलाकर आतिशबाज़ी शुरू हो चुकी है । इसके आगे गए तो देखा कि ब्लॉग अकादमी के गठन की बात न सिर्फ़ चल निकली है बल्कि समाचार पत्रों में इस खबर को बाकायदा स्थान भी मिला है , देखिए

ब्लॉग अकादमी हेतु तैयारियां शुरू,आपके सुझाव आमंत्रित

कल अचानक मेरी निगाह दैनिक जागरण और प्रभात खबर में प्रकाशित इस खबर पर पडी कि ब्लॉग अकादमी हेतु तैयारियां शुरू हो गयी है और यह वेहद ख़ुशी की बात है कि इसके प्रारूप पर मधेपुरा के ब्लॉगर और प्रखर साहित्यकार भाई अरविन्द श्रीवास्तव ने कार्य प्रारंभ कर दिया है . इस विषय पर जब मैंने दूरभाष पर रवीन्द्र प्रभात जी से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि "अकादमी के गठन पर अभी काफी कार्य करना होगा . हमें एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना होगा. यदि इस प्रक्रिया को हनुमान कूद की संज्ञा दी जाए तो शायद न किसी को अतिश्योक्ति होगी और न शक की गुंजायश हीं . इस विषय पर प्रथम चरण में  हम हिंदी तथा विभिन्न भारतीय भाषाओं के प्रखर विद्वानों से गहन मंत्रणा कर रहे हैं ताकि किसी ठोस नतीजे पर पहुंचा जा सके ."


इस पोस्ट पर आई कुछ प्रतिक्रियाओं पर नज़र डालना भी जरूरी है




विनीत कुमार ने कहा…






मैं इस तरह वर्चुअल स्पेस को संस्थागत रुप दिए जाने के सख्त खिलाफ हूं। ये ब्लॉग लेखन की प्रकृति के प्रतिकूल है। आप सबों ने ब्लॉग के शुरुआती दौर के मिजाज से इसके विकासक्रम को देखा होगा तो मेरी बात पर सहज ही यकीन करेंगे। ये दरअसल मुख्यधारा की मीडिया की मठाधीशी के खिलाफ शुरु हुआ था और अब यहां भी यही सब शुरु हो रहा है। ये आगे चलकर कूड़ा-कबाड़ा और मसखरई का अड्डा साबित होगा,इससे ज्यादा कुछ नहीं। माफ कीजिएगा,मैं सुझाव के बजाय असहमति दर्ज करता हूं।
१९ नवम्बर २०११ ५:४६ अपराह्न




girish pankaj ने कहा…






''अकादमी', 'परिषद्' आदि शब्दों का उपयोग केवल सरकारी स्तर पर होता है. निजीतौर पर इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. जब पंजीयन कराएँगे, तो पंजीयन कार्यालय आपत्ति करेगा. अगर पंजीयन करना है तो ''अकादमी' की जगह कोई और दूसरा शब्द रखना होगा. जैसे, 'ब्लाग संघ', संगठन, मंच, आदि. प्रयास अच्छा है. सार्थक ब्लागरों का मंच होना ही चाहिए.
१९ नवम्बर २०११ ५:५३ अपराह्न




अरुण कुमार झा ने कहा…






तकनिकी रूप से गिरीश भाई ने सही बात कही है और सलाह भी उनकी सही है. यदि इसी के अनुरूप चला जाये तो सफलता मिलनी ही है. एक बात यह साफ होनी चाहिए कि,प्रस्तावित संसथान का उद्दश्य क्या होगा, जैसा अकादमी शब्द से से परिचित है, कि इसमें ब्लॉग सिखने वालों को प्रशिक्षण दिया जायेगा, और सफल प्रशिक्षनार्थी को डिग्री या डिप्लोमा या प्रमाणपत्र, लेकिन इसकी उपयोगिता क्या होगी, या बी तय होनी चाहिए.
वैसे मैं आपके पवित्र प्रयास में हर प्रकार से साथ हूँ,सिर्फ शुभकामनाओं से कम नहीं चलता,
धन्यवाद आपका अच्छी चीज लेन की उर्वर सोच के लिए,
१९ नवम्बर २०११ ६:२४ अपराह्न




मनोज पाण्डेय ने कहा…






गिरीश और अरुण जी,
आप अनुभवी हैं ,आपके सुझाव अच्छे हैं, किन्तु जहां तक मेरी व्यक्तिगत मान्यता है की निजी स्तर पर प्रयास करने से ही धीरे-धीरे शासन -प्रशासन और सरकारी नुमायंडे रजामंद होते है. प्रयास करने में बुराई क्या है ? अब तो यु जी सी के तरफ से ब्लॉगिंग संगोष्ठी आयोजित हो रही है. नन्ही ब्लॉगर अक्षिता को राष्ट्रीय महिला और वाल कल्याण परिषद् सम्मानित कर रहा है . ऐसे में प्रयास किया जाय तो अकादमी की मंजूरी भी कराई जा सकती है. हर बड़े काम के लिए किसी न किसी को तो आगे आना ही पड़ता है.


इन हलचलों के साथ कुछ और भी खबरें हैं कि , वर्षांत के दिनों में हरियाणा के सांपला में , छत्तीसगढ और राजधानी दिल्ली में भी हिंदी अंतर्जाल के बंधु आमने सामने और आसपास होंगे , इसलिए हमारे रिपोर्टर बाबू लोग अपने कैमरा का धार पर सान लगवा रहे हैं , ताकि बुलेटिन बांचने में आपको और प्रसन्नता हो । चलिए अब कुछ पोस्टों से मिलवाया जाए आपको

आजकल बापी दा का ऊ लाला ऊ लाला ..सबके लाईफ़ को झिंगालाला झिंगालाला करा रहा है । टीवी पर अहां आआ अ हां ..का मूजिक से आप कान बंद भी कर लें तो पीछा नय छोडा सकते हैं । दक्षिण भारत की तारिका सिल्क स्मिता उर्फ़ विजय लक्ष्मी के जीवन पर बनी ये पिक्चर , और इसके आगे पीछे का सारा इतिहास भूगोल इस पोस्ट पर पढने को मिलेगा आपको देखिए
परीकथा की तरह थी सिनेमा उसके लिए

८० के दशक में भारतीये फिल्म जगत की अत्यंत लोकप्रिये अभिनेत्री सिल्क स्मिता का जन्म 2 दिसम्बर 1960 में कोव्वली गांव, एल्लेरू, आन्ध्र प्रदेश के एक साधारण परिवार में हुआ था. आज भी उसका परिवार इसी गांव में रहता है. उनकी मातृभाषा तेलगु थी. धन की कमी की वजह से उन्हें ४थी क्लास में ही उसे अपनी पढाई छोडनी पड़ी. विजया दिखने में खूबसूरत थी इस वजह से उसे समाज के बुरी नज़र का अक्सर ही सामना करना पड़ा. शायद इसी वजह से काफी काम उम्र में ही उसके घर वालों ने उसकी शादी कर दी. शादी शुदा जिंदगी का उसका अनुभव काफी उथल-पुथल भरा रहा. वो बीमार और चिडचिडी भी रहने लगी. अंततः एक दिन भागकर मद्रास चली गई. वहाँ वो अपने एक आंटी के साथ रहने लगी. पता नहीं इस बात में कितनी सच्चाई है कि वहाँ उसे अपने खर्चा पानी जुटाने के लिए एक आटा चक्की मिल में काम करना पड़ा. पर ये तो सच है की वो सपने सिनेमा के ही देखती थी और एक बड़ी फिल्म स्टार बनाना चाहती थी.

पूजा उपाध्याय की अधिकांश पोस्टों में आपको सागर पे दौडती एक लडकी जो बेशुमार प्यार लुटाती है, शब्दों को एक ऐसा भाव देती है कि सब इस ब्लॉग की टैग लाईन की तरह , जिंदगी के साथ बहते चले जाते हैं , और फ़िर आज तो वो जिंदगी को ही कह रही हैं
जिंदगी, आई लव यू!

बंगलौर में सर्दियाँ शुरू हो गयी हैं...यहाँ के साढ़े तीन साल में ये पहले बार है जब मौसम वाकई ठंढा सा हो रहा है. अख़बारों में भी आया है कि इस बार बंगलोर हर बार से थोड़ा ज्यादा ठंढा है. प्यार के बारे में मेरे अनगिनत थ्योरम में एक ये भी है कि 'Winter is the season to fall in love'. ठंढ का मौसम प्यार करने के लिए ही होता है.

जबसे काटजू साहब ने प्रेस परिषद का कार्यभार संभाला है एकदम से परेस करके धर दिया है मीडिया को नतीजा डेली ठेलम ठेल , डेली रेलम पेल । रोजिन्ना एक एक बात और फ़िर उस बात से  निकला बतंगड

काटजू और मीडिया को एक दूसरे का दोस्त ही बनना होगा

बड़ी मुश्किल होती है जब, आप किसी व्यक्तित्व के बेहद प्रभाव में रहें और उस व्यक्तित्व की बेबाकी की तारीफ करते रहें। और, अचानक ऐसा मौका आए जब वो, व्यक्ति आपकी भी कमियों पर बेबाक टिप्पणी करने लगे। उसकी बात सही होते हुए भी आप उस बेबाकी के खिलाफ ढेर सारे कुतर्क लाने की कोशिश करने लगते हैं। यहां संदर्भ है जस्टिस मार्कंडेय काटजू का। जो, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के ताजा-ताजा अध्यक्ष बने हैं। अध्यक्ष बनते ही जस्टिस काटजू का अदालत में फैसला सुनाने वाला अंदर का न्यायाधीश जग गया और उन्होंने अपने मन  में बनी और समाज के मन में तेजी से बसती जा रही इस धारणा के आधार पर बयान दे डाला कि मीडिया में कम जानकार लोग हैं। कुछ भी लिखते-दिखाते रहते हैं। अब तो, वो मीडिया को लोकपाल के दायरे में लाने की बात भी कर रहे हैं।


इन दिनों एक बहुत ही अच्छी बात ये हो रही है कि हमारे बहुत से ब्लॉगर साथी जिन्हें तकनीक में महारथ हासिल है रोज नए नए टिप्स , नए गजट और नई जानकारियां लेकर हमारे सामने आ रहे हैं , आज इस पोस्ट पर देखिए

 



HTML कलर मेकर सॉफ्टवेर सिर्फ 361 kb का |

आप के ब्लॉग में आप का मनपसंद रंग भरने के लिए एक ऑफ़ लाइन HTML कलर मेकर सॉफ्टवेर जो इस्तेमाल में बहुत ही आसन और साइज़ में बहुत छोटा सिर्फ 361 kb का है|


सॉफ़्टवेयर को आप पोस्ट पर जाकर डाऊनलोड कर सकते हैं

ब्लॉगिंग क्या है  इस बात पर जाने कितनी ही बार पोस्टें आ चुकी हैं , पूछने वाले भी ब्लॉगर और बताने वाले भी ब्लॉगर और अपने मा साब जी ने अपनी पोस्ट में बता दिया कि ई भी नशा ही है ,

ब्लॉगिंग जब नशा बन गया !
पहले बता चुका हूँ कि ब्लॉगिंग का विधिवत श्रीगणेश प्रवीण त्रिवेदी जी के मार्ग-निर्देशन में हुआ.इसके बाद रफ़्ता-रफ़्ता यह सफ़र शुरू हुआ.इस दरम्यान मैंने कई ब्लॉग्स झाँके,टटोले और कहीं टिके भी ! मेरे ब्लॉग पर प्रवीण पाण्डेय जी का आना उल्लेखनीय रहा.मैं इस वज़ह से उनके ब्लॉग पर पहुँचा और बिलकुल अलग अंदाज़ ,स्टाइल का  अनुभव महसूसा ! प्रवीण जी का ,हर टीप का उत्तर देना ,उन्हीं  से सीखा,बाद में उन्होंने यह कर्म बंद कर दिया तो अपुन ने भी. अब हर टीप के बजाय ज़रूरी टीप का ही उत्तर देता हूँ !उन्होंने एक नवोदित-ब्लॉगर को जिस तरह नियमित रूप से (बिला-नांगा किये )  सहयोग किया ,इसका बहुत आभारी हूँ !
इस बीच ई पंडित से भी यदा-कदा तकनीक के बारे में बातें होती रहीं.निशांत मिश्र से भी परिचय हुआ .ज़बरदस्त ब्लॉगर अजय कुमार झा से  भी संपर्क हुआ और मुलाक़ात हुई ! डॉ. अमर कुमार जैसे वरिष्ठ भी मेरे ब्लॉग पर आकर आशीर्वाद दे गए,जिससे बड़ी प्रेरणा मिली .इसी मिलने-मिलाने के क्रम में भाई अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी से विशेष जुड़ाव हुआ और कई मुलाकातें भी !भाई अमरेन्द्र के संपर्क से श्रीयुत अनूप शुक्ल जी (फुरसतिया) से संपर्क सधा जो आगे जाकर एक क्रान्तिकारी घटना सिद्ध हुई ! मुझे अविनाश वाचस्पति जी से भी विशेष स्नेह मिला,इंदु पुरी जी जैसी लौह-महिला (असली वाली ) ने भी बड़ी शाबाशी दी.इन सबका भी विशेष आभार !

देखिए ,खास ऊ अंश ले आए हैं , जिसमें मा साब हमें जोरदार ब्लॉगर घोषित किए हैं साथ में और मित्र जन भी हैं

सच सच बताइए कि गिलहरी ,मैना ,तोता तितली देखे कितने दिन् हो गए आपको , चलिए आज इस चौराहे पर आपको एक गिलहरी से मिलवाते हैं

रामकुमार सिंह की गिलहरी का फ्री-हैंड रिव्यू
रामकुमार की गिलहरी की फ्री-हैंड समीक्षा
एक अक्सरहा सुना शेर है, कुछ यूं — बच्चों के छोटे हाथों को चांद-सितारे छूने दो, चार किताबें पढ़कर वे भी हम जैसे हो जाएंगे। बात एकदम सही है, लेकिन बचपन जैसे ही जवानी तक पहुंचने के आधे रास्ते तक पहुंचकर ठिठकता है, गोया किशोर होता है, उसके मन में बहुतेरी उत्सुकताओं के बवंडर मचलने लगते हैं। अफ़सोस… साधारण-सी उत्सुकता का हल साफतौर पर, सही तरीके से कभी नहीं मिलता। नैतिकता के कितने ही पैबंदों में उलझा जब कोई समाधान सामने आता है, तो उसमें धज्जियों की भरमार ऐन सामने होती है। `वह’, यानी एक गंवई किशोर की कहानी भी इससे ज़ुदा नहीं है। बच्चा जब जानना चाहता है कि उसका जन्म कैसे हुआ, तो पता चलता है — `माँ ने चावल खा लिए थे. रात को उसके पेट में भी दर्द हुआ. अगली सुबह वह खेत पर नहीं जा पाई थी. उस दिन वह पैदा हो गया था’. वह दौर, जब `वह’ ननिहाल में मौजूद भूरे कुत्ते को टहलाता, खिलाता, खिजाता बड़ा हुआ था, इन दिनों 11 साल का होने पर कलिंग की लड़ाई के संदर्भ और लोकसभा की सीटों और विज्ञान की किताब से निकालकर परागण, नर और मादा के भेद को पढ रहा था, तब बच्चे कैसे पैदा होते हैं, इसके जवाब में उसे चावल खा लेने से बच्चा होने की परिभाषाएं समझाई जा रही थीं…हालांकि `ज्योंही स्कूल की छुट्टी होती तो उसके गली के गुरु सक्रिय हो जाते’।


जानते हैं जानते हैं आप कविता ढूंढ रहे हैं न , तो लीजीए मारकंडेय दवे जी की ये रचना देखिए

मुर्दों से जिंदगी अब ,मांगते हो क्यूं भला ,
सोये हैं चैन से , सताते हो क्यूं भला

कॉपीराईट ताला है इसलिए पूरी रचना पोस्ट पर ही जाकर बांचें

प्रमोद भाई , यानि प्रमोद तांबट , मेरे पसंदीदा व्यंग्य लेखकों में से एक हैं , उनके चुटीले व्यंग्य आज की व्यवस्था पर एक आम आदमी का दृष्टिकोण बडे ही कमाल के अंदाज़ में रखते हैं , आज देखिए
छुट्टी का एक भयंकर दिन

//व्‍यंग्‍य-प्रमोद ताम्बट//
            कल रात तो भयंकर नींद आई। अल्लसुबह उठे तो देखा अभी भयंकर अंधेरा है, घूमने निकलना भयंकर झंझट का काम है। आजकल शहर भर में आवारा कुत्ते भयंकर तादात में हो गए हैं, भयंकर काटने को दौड़ते हैं। मैं तो चद्दर ओढ़कर फिर भयंकर नींद में गाफिल हो गया।
            फिर जब उठा तो सूरज भयंकर सर के ऊपर आ चुका था। घरवाली ने भयंकर चिल्लाचोट शुरु कर दी। हाथ-मुँह धोने बाथरूम गया तो देखा कि आज फिर पानी भयंकर गंदा आया है। मुंसीपाल्टी पर भयंकर गुस्सा आया, सुबह-सुबह भयंकर गालियाँ मुँह से निकल पड़ीं। मुँह धोया, चाय पीने बैठा। चाय भयंकर कड़वी थी। घरवाली से थोड़ा दूध डालने का निवेदन किया तो वह फिर भयंकर चिल्लाने लगी कि दूध भयंकर महँगा हो गया है, पानी डाल लो।
            अखबार पढने बैठा, भयंकर विज्ञापनों से भरा हुआ था। भयंकर भ्रष्टाचार, चोरी-चकारी, भयंकर कत्ल, भयंकर राजनैतिक उठापठक से पूरा अखबार भयंकर पटा पड़ा था। कई जगह भयंकर बाढ़ आई थी, कहीं-कहीं भयंकर सूखा पड़ा था। पेट्रोल-डीज़ल के दामों में भयंकर बढ़ोत्तरी हो गई थी। सब्ज़ियाँ दाल-दलहनों के दाम भयंकर आसमान पर चढ़ गए थे। इस देश की हालत भयंकर खराब हो गई है। गरीबों का जीना भयंकर मुश्किल हो गया है।

यूं तो सेंटिमेंट्स का अपना एक अलग ही मनोविज्ञान है किंतु अगर सेंटिमेंटस संडे को उभर उभर के छलक छलक के बाहर आएं तो तो मैखाने तक पहुंच ही जाते हैं
मैख़ाने में संडे सेंटिमेंट्स
जैसा कि हो जाया करता है अक्सर, शुक्रवार की रात कुछ ज़ियादा हो गई । मेरा मतलब शराब से नहीं बल्कि रात से है । बहुत धीमे-धीमे दो कप पिए होंगे साके के । महज़ ग्यारह फ़ीसद अल्कोहलिक मिकदार वाली जापानी साके , अंग्रेज़ी कहाने वाली हिंदुस्तानी शराबों के आगे काफ़ी माइल्ड सौदा है लेकिन किशोर, फिर रफ़ी और फिर कोई समझ से परे के परदेसी सुर सुनते हुए तीन-साढ़े तीन बज गए और दोस्त के घर पर ही लंबलेट हो गए ।


ज़लज़ले अक्सर आते हैं यहाँ । अभी सुबह भी पूरी इमारत थर्राई । लेकिन शनिवार सुबह नींद तोड़ने वाला वो ज़लज़ला ज़मीनी नहीं आसमानी था । एक के बाद एक फ़ाइटर प्लेन्स की जाने कितनी स्क्वॉड्रन्स । कान - फ़ा़डू शोर और काँपती हुई खिड़कियाँ , दरवाज़े ।जब शोर थमा तो मैंने कुछ चुनींदा गालियाँ हवा में उछालीं मग़र अब नींद कहाँ ... ।


आज अरविंद मिश्र जी भी अपने भावों को ,पिरो लाए हैं एक अतुकांत कविता के रूप में

युगांतर की प्रतीक्षा में ...
फूलों की वादियाँ
बुलाती हैं  मुझे बार  बार
खिंचता उनके मोहपाश में
पहुंचता हूँ जब उनके पास
तो अचानक वे ओढ़ लेती हैं
बर्फानी चादरें,
फूलों की घाटी तब्दील
होती जाती है बर्फानी वादियों में
और मैं हतप्रभ  बर्फ की ढेर को
अपनी उँगलियों से
कुरेदता हूँ इस चाह में कि
नीचे दबे उन मोहक फूलों का
दीदार हो सके

और अब एक लाईना पेशे खिदमत है सरकार

कोरे कागज़ : जाने क्या क्या कह जाते हैं अक्सर

मेरा लिखा रह जाएगा :और जाने क्या क्या कह जाएगा

कांटा : अक्सर फ़ूल के करीब रहता है

तुमने उसे कहीं देखा है क्या : अब इस बात का भी कोई लेखा है क्या

हर ख्वाहिश पे दम निकले :हाय कितना भी निकले , कम निकले

उसे बचपन में सपने देखने की बीमारी थी : और जवानी में सपने को पूरा करने की ज़िद

फ़ोकस न लूज़ करो ,मि मल्टी टास्कर : उडन जी बतलाएं , ई बात खासकर

बंटवारे का विलेख पंजीकृत होना आवश्यक है : ओकील साहब बोले हैं तो कंपलसरी है


शेर ऐ मैसूर के जन्मदिन पर विशेष : शिवम भाई याद दिलाने के लिए शुक्रिया

'मैसूर के शेर' के नाम से मशहूर और कई बार अंग्रेजों को धूल चटा देने वाले टीपू सुल्तान राकेट के अविष्कारक तथा कुशल योजनाकार भी थे।
उन्होंने अपने शासनकाल में कई सड़कों का निर्माण कराया और सिंचाई व्यवस्था के भी पुख्ता इंतजाम किए। टीपू ने एक बांध की नींव भी रखी थी। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने टीपू सुल्तान को राकेट का अविष्कारक बताया था। [देवनहल्ली वर्तमान में कर्नाटक का कोलर जिला] में 20 नवम्बर 1750 को जन्मे टीपू सुल्तान हैदर अली के पहले पुत्र थे।


तो आज के लिए बस इतना ही …खबरी बाबू चले और पोस्टें बांचने के लिए

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