आज टीपू सुल्तान का जन्मदिन है , उन्हें नमन
देखते ही देखते ये वर्ष भी बीतने को , यानि कि आखिरकार वो वर्ष भी आ ही पहुंचा है जिसके लिए संभावना व्यक्त की जा रही है कि वो महाप्रलय वाला वर्ष होगा , वर्ष २०१२ , हालांकि पिछले दिनों जिस तरह से लगातार प्रकृति हलचलों से अपना दर्द बाहर उडेल रही है , उससे यही ज़ाहिर हो रहा है कि आने वाले समय में धरती पर जीवन का बने रहना एक कठिन चुनौती साबित होने वाली है । खैर , हमेशा की तरह हमें सकारात्मक होकर आगे बढना चाहिए । जैसा कि मैं शीर्षक में बता चुका हूं कि वर्षांत में हिंदी अंतर्जाल से संबंधित बहुत सारी हलचले वास्तविकता के धरातल पर दिखने वाली हैं । इधर एक प्रस्तावित ब्लॉग कार्यशाला और एक ब्लॉग अकादमी के गठन को लेकर गहमा गहमी शुरू हो चुकी है । अपने मेल बक्से में एक मेल और उसपर आई प्रतिक्रियाओं से ही ये सहज़ अंदाज़ा लग रहा है कि न सिर्फ़ गहमा गहमी बल्कि गर्मा गरमी भी होने वाली है ,
देखिए
दिनांक ०९ -१० दिसम्बर २०११ को के.एम्.अग्रवाल महाविद्यालय ,कल्याण (पश्चिम ) में " हिंदी ब्लागिंग : स्वरूप, व्याप्ति और संभावनाएं " इस विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रिय संगोष्ठी में आने के इच्छुक प्रतिभागियों से अनुरोध है कि वे निम्नलिखित बातों का ख़याल रखें .
१- प्रतिभागियों को किसी तरह का यात्रा व्यय महाविद्यालय क़ी तरफ से नहीं मिलेगा .
२-आवास और भोजन क़ी व्यवस्था सिर्फ दो दिनों के लिए ही क़ी गयी है, ०९ और १० दिसम्बर २०११ . इन दो दिनों के अतिरिक्त आवास और भोजन क़ी व्यवस्था प्रतिभागी क़ी अपनी जिम्मेदारी होगी .
३- कोई प्रतिभागी यदि अपने परिवार के साथ आना चाहता है तो वे अपनी व्यक्तिगत व्यवस्था के साथ ही आयें. महाविद्यालय क़ी तरफ से अलग से कोई व्यवस्था नहीं क़ी जायेगी .
४- पंजीकरण शुल्क ४०० रुपए सभी प्रतिभागियों को देने होंगे .
५- आवास क़ी सुविधा के लिए हर प्रतिभागी को ५०० रुपए देने होंगे .
६- आवास क़ी व्यवस्था बालाजी इंटर नेशनल होटल में क़ी गयी है. एक कमरे में ०३ प्रतिभागियों . के रुकने क़ी व्यवस्था है .
७- एक व्यक्ति -एक कमरा --- जैसी व्यवस्था नहीं है
८- आवास क़ी व्यवस्था पूर्व सूचना देने वाले प्रतिभागियों के लिए ही क़ी गयी है
9- प्रपत्र वाचन के लिए किसी प्रकार के मानधन क़ी व्यवस्था नहीं है. इसकी अपेक्षा भी ना करें .
१०- कार्यक्रम से सम्बंधित किसी भी प्रकार के निर्णय को लेने के लिए महाविद्यालय स्वतन्त्र है .
आशा है आप सभी का सहयोग हमे मिलेगा . किसी बात को अन्यथा ना लें . बात साफ़-सुथरे तरीके से कह देना जादा बेहतर है .
अब ज़रा इस पर आई प्रतिक्रियाओं पर भी नज़र डालें
avinash das
कृपया इस तरह के मेल करके दूसरों का वक्त बर्बाद न करें। वरना राष्ट्रीय संगोष्ठी के नाम पर इस तरह के फर्जीवाड़े को एक्सपोज करना बहुत आसान होता है।
ashish Maharishi
अविनाश भाई
एक तो बेचारे डॉक्टर साब आपको निमंत्रण भेज रहे हैं और दूसरी ओर, आप उन्हें ही लपेट रहे हैं।
avinash das
ऐसा कौन निमंत्रण है, जिसमें हर चीज के लिए मेहमानों से पैसे मांगे जा रहे हों। नियमावली पढ़िए, जैसे धमकी दी जा रही हो। निमंत्रित करने का तरीका होता है। तरीके से बुलाइए, तो लिहाज से बात की जाएगी। वरना दूसरे भी बदतमीजी से बात कर सकते हैं।
ashish Maharishi
हां..इस बात से पूरी तरह सहमत हूं। भाषा के स्तर पर इस कार्यक्रम का आमंत्रण काफी आपतिजनक है।
arvind shesh कृपया इस तरह के मेल करके दूसरों का वक्त बर्बाद न करें। वरना राष्ट्रीय संगोष्ठी के नाम पर इस तरह के फर्जीवाड़े को एक्सपोज करना बहुत आसान होता है।
अविनाश जी की बातों से पूरी सहमति जताते हुए दोबारा मैं भी यही कह रहा हूं।
अशोक कुमार पाण्डेय आप आमंत्रण दे रहे हैं या अपमान कर रहे हैं?
बेहतर हो कि ऐसे घटिया मेल प्रसिद्धि के भूखे ब्लागर्स को ही भेजें.
उम्मीद करता हूँ कि दुबारा मेल नहीं करेंगे
अशोक
Arun Roy
कैसा है यह आयोजन... कैसा यह निमंत्रण.... अफ़सोस है कि हम में से ही ऐसे लोग हैं... माननीय आयोजक महोदय.. यह मेल केवल उन्हें भेजे जो आपके कार्यक्रम में आ रहे हैं.... अशोक पाण्डेय जी से मैं पूरी तरह सहमत हूँ.... कृपया और समय नष्ट न करें...
सादर
Avaneesh Tiwari
आयोजक महोदय,
भाषा की विनम्रता की कमी लोगों को खली है | इसका उत्तर दीजिये | मैंने मुबई / नवी मुम्बई जैसे इलाकों में कई बार aise कार्यक्रमों में भाग लिया है, ज्यादातर बहुत कम पैसों में हो जाते हैं |
शायद कहे गए शुल्क में लोगों का रुझाव कम हो , दूबार विचार करिए | कार्यक्रम की रूपरेखा और विस्तृत जानकारी दीजिये ?
अवनीश तिवारी
mrityunjay
अविनाश भाई, अशोक भाई,
आप लोग हिन्दी की ठेठ सेमिनारी ठस्सेबाजों से वाकिफ होते तो यूँ न कहते. दरअसल यू जी सी ने जब से नियम बनाया है क़ि राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में भागीदारी का प्रमाणपत्र मास्टरी और प्रमोशन के लिए आवश्यक है, तब से यह धंधा खूब फला-फूला.
"पैसा लो, सर्टिफिकेट दो." वाला हिसाब है. और आजकल तो बहुतेरे विश्वविद्यालयों ने हिदी विषय के भीतर पत्रकारिता एक प्रश्नपत्र के रूप में पढ़ाना शुरू किया है, तो ब्लागर सम्मलेन का सर्टिफिकेट भी काम आने वाला होगा.
इस धंधे में फायदा ही फायदा है. गंभीरता का आलम यह है क़ि अगर आप विषय पर थोड़ी बातचीत आयोजकों से करना चाहें तो हालात साफ हो जाते हैं.
यानि कि कुलमिलाकर आतिशबाज़ी शुरू हो चुकी है । इसके आगे गए तो देखा कि ब्लॉग अकादमी के गठन की बात न सिर्फ़ चल निकली है बल्कि समाचार पत्रों में इस खबर को बाकायदा स्थान भी मिला है , देखिए
कल अचानक मेरी निगाह दैनिक जागरण और प्रभात खबर में प्रकाशित इस खबर पर पडी कि ब्लॉग अकादमी हेतु तैयारियां शुरू हो गयी है और यह वेहद ख़ुशी की बात है कि इसके प्रारूप पर मधेपुरा के ब्लॉगर और प्रखर साहित्यकार भाई अरविन्द श्रीवास्तव ने कार्य प्रारंभ कर दिया है . इस विषय पर जब मैंने दूरभाष पर रवीन्द्र प्रभात जी से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि "अकादमी के गठन पर अभी काफी कार्य करना होगा . हमें एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना होगा. यदि इस प्रक्रिया को हनुमान कूद की संज्ञा दी जाए तो शायद न किसी को अतिश्योक्ति होगी और न शक की गुंजायश हीं . इस विषय पर प्रथम चरण में हम हिंदी तथा विभिन्न भारतीय भाषाओं के प्रखर विद्वानों से गहन मंत्रणा कर रहे हैं ताकि किसी ठोस नतीजे पर पहुंचा जा सके ."
इस पोस्ट पर आई कुछ प्रतिक्रियाओं पर नज़र डालना भी जरूरी है
विनीत कुमार ने कहा…
मैं इस तरह वर्चुअल स्पेस को संस्थागत रुप दिए जाने के सख्त खिलाफ हूं। ये ब्लॉग लेखन की प्रकृति के प्रतिकूल है। आप सबों ने ब्लॉग के शुरुआती दौर के मिजाज से इसके विकासक्रम को देखा होगा तो मेरी बात पर सहज ही यकीन करेंगे। ये दरअसल मुख्यधारा की मीडिया की मठाधीशी के खिलाफ शुरु हुआ था और अब यहां भी यही सब शुरु हो रहा है। ये आगे चलकर कूड़ा-कबाड़ा और मसखरई का अड्डा साबित होगा,इससे ज्यादा कुछ नहीं। माफ कीजिएगा,मैं सुझाव के बजाय असहमति दर्ज करता हूं। १९ नवम्बर २०११ ५:४६ अपराह्न
girish pankaj ने कहा…
''अकादमी', 'परिषद्' आदि शब्दों का उपयोग केवल सरकारी स्तर पर होता है. निजीतौर पर इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. जब पंजीयन कराएँगे, तो पंजीयन कार्यालय आपत्ति करेगा. अगर पंजीयन करना है तो ''अकादमी' की जगह कोई और दूसरा शब्द रखना होगा. जैसे, 'ब्लाग संघ', संगठन, मंच, आदि. प्रयास अच्छा है. सार्थक ब्लागरों का मंच होना ही चाहिए. १९ नवम्बर २०११ ५:५३ अपराह्न
अरुण कुमार झा ने कहा…
तकनिकी रूप से गिरीश भाई ने सही बात कही है और सलाह भी उनकी सही है. यदि इसी के अनुरूप चला जाये तो सफलता मिलनी ही है. एक बात यह साफ होनी चाहिए कि,प्रस्तावित संसथान का उद्दश्य क्या होगा, जैसा अकादमी शब्द से से परिचित है, कि इसमें ब्लॉग सिखने वालों को प्रशिक्षण दिया जायेगा, और सफल प्रशिक्षनार्थी को डिग्री या डिप्लोमा या प्रमाणपत्र, लेकिन इसकी उपयोगिता क्या होगी, या बी तय होनी चाहिए.
वैसे मैं आपके पवित्र प्रयास में हर प्रकार से साथ हूँ,सिर्फ शुभकामनाओं से कम नहीं चलता,
धन्यवाद आपका अच्छी चीज लेन की उर्वर सोच के लिए, १९ नवम्बर २०११ ६:२४ अपराह्न
मनोज पाण्डेय ने कहा…
गिरीश और अरुण जी,
आप अनुभवी हैं ,आपके सुझाव अच्छे हैं, किन्तु जहां तक मेरी व्यक्तिगत मान्यता है की निजी स्तर पर प्रयास करने से ही धीरे-धीरे शासन -प्रशासन और सरकारी नुमायंडे रजामंद होते है. प्रयास करने में बुराई क्या है ? अब तो यु जी सी के तरफ से ब्लॉगिंग संगोष्ठी आयोजित हो रही है. नन्ही ब्लॉगर अक्षिता को राष्ट्रीय महिला और वाल कल्याण परिषद् सम्मानित कर रहा है . ऐसे में प्रयास किया जाय तो अकादमी की मंजूरी भी कराई जा सकती है. हर बड़े काम के लिए किसी न किसी को तो आगे आना ही पड़ता है.
इन हलचलों के साथ कुछ और भी खबरें हैं कि , वर्षांत के दिनों में हरियाणा के सांपला में , छत्तीसगढ और राजधानी दिल्ली में भी हिंदी अंतर्जाल के बंधु आमने सामने और आसपास होंगे , इसलिए हमारे रिपोर्टर बाबू लोग अपने कैमरा का धार पर सान लगवा रहे हैं , ताकि बुलेटिन बांचने में आपको और प्रसन्नता हो । चलिए अब कुछ पोस्टों से मिलवाया जाए आपको
आजकल बापी दा का ऊ लाला ऊ लाला ..सबके लाईफ़ को झिंगालाला झिंगालाला करा रहा है । टीवी पर अहां आआ अ हां ..का मूजिक से आप कान बंद भी कर लें तो पीछा नय छोडा सकते हैं । दक्षिण भारत की तारिका सिल्क स्मिता उर्फ़ विजय लक्ष्मी के जीवन पर बनी ये पिक्चर , और इसके आगे पीछे का सारा इतिहास भूगोल इस पोस्ट पर पढने को मिलेगा आपको देखिए
परीकथा की तरह थी सिनेमा उसके लिए
८० के दशक में भारतीये फिल्म जगत की अत्यंत लोकप्रिये अभिनेत्री सिल्क स्मिता का जन्म 2 दिसम्बर 1960 में कोव्वली गांव, एल्लेरू, आन्ध्र प्रदेश के एक साधारण परिवार में हुआ था. आज भी उसका परिवार इसी गांव में रहता है. उनकी मातृभाषा तेलगु थी. धन की कमी की वजह से उन्हें ४थी क्लास में ही उसे अपनी पढाई छोडनी पड़ी. विजया दिखने में खूबसूरत थी इस वजह से उसे समाज के बुरी नज़र का अक्सर ही सामना करना पड़ा. शायद इसी वजह से काफी काम उम्र में ही उसके घर वालों ने उसकी शादी कर दी. शादी शुदा जिंदगी का उसका अनुभव काफी उथल-पुथल भरा रहा. वो बीमार और चिडचिडी भी रहने लगी. अंततः एक दिन भागकर मद्रास चली गई. वहाँ वो अपने एक आंटी के साथ रहने लगी. पता नहीं इस बात में कितनी सच्चाई है कि वहाँ उसे अपने खर्चा पानी जुटाने के लिए एक आटा चक्की मिल में काम करना पड़ा. पर ये तो सच है की वो सपने सिनेमा के ही देखती थी और एक बड़ी फिल्म स्टार बनाना चाहती थी.
पूजा उपाध्याय की अधिकांश पोस्टों में आपको सागर पे दौडती एक लडकी जो बेशुमार प्यार लुटाती है, शब्दों को एक ऐसा भाव देती है कि सब इस ब्लॉग की टैग लाईन की तरह , जिंदगी के साथ बहते चले जाते हैं , और फ़िर आज तो वो जिंदगी को ही कह रही हैं
बंगलौर में सर्दियाँ शुरू हो गयी हैं...यहाँ के साढ़े तीन साल में ये पहले बार है जब मौसम वाकई ठंढा सा हो रहा है. अख़बारों में भी आया है कि इस बार बंगलोर हर बार से थोड़ा ज्यादा ठंढा है. प्यार के बारे में मेरे अनगिनत थ्योरम में एक ये भी है कि 'Winter is the season to fall in love'. ठंढ का मौसम प्यार करने के लिए ही होता है.
जबसे काटजू साहब ने प्रेस परिषद का कार्यभार संभाला है एकदम से परेस करके धर दिया है मीडिया को नतीजा डेली ठेलम ठेल , डेली रेलम पेल । रोजिन्ना एक एक बात और फ़िर उस बात से निकला बतंगड
बड़ी मुश्किल होती है जब, आप किसी व्यक्तित्व के बेहद प्रभाव में रहें और उस व्यक्तित्व की बेबाकी की तारीफ करते रहें। और, अचानक ऐसा मौका आए जब वो, व्यक्ति आपकी भी कमियों पर बेबाक टिप्पणी करने लगे। उसकी बात सही होते हुए भी आप उस बेबाकी के खिलाफ ढेर सारे कुतर्क लाने की कोशिश करने लगते हैं। यहां संदर्भ है जस्टिस मार्कंडेय काटजू का। जो, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के ताजा-ताजा अध्यक्ष बने हैं। अध्यक्ष बनते ही जस्टिस काटजू का अदालत में फैसला सुनाने वाला अंदर का न्यायाधीश जग गया और उन्होंने अपने मन में बनी और समाज के मन में तेजी से बसती जा रही इस धारणा के आधार पर बयान दे डाला कि मीडिया में कम जानकार लोग हैं। कुछ भी लिखते-दिखाते रहते हैं। अब तो, वो मीडिया को लोकपाल के दायरे में लाने की बात भी कर रहे हैं।
इन दिनों एक बहुत ही अच्छी बात ये हो रही है कि हमारे बहुत से ब्लॉगर साथी जिन्हें तकनीक में महारथ हासिल है रोज नए नए टिप्स , नए गजट और नई जानकारियां लेकर हमारे सामने आ रहे हैं , आज इस पोस्ट पर देखिए
आप के ब्लॉग में आप का मनपसंद रंग भरने के लिए एक ऑफ़ लाइन HTML कलर मेकर सॉफ्टवेर जो इस्तेमाल में बहुत ही आसन और साइज़ में बहुत छोटा सिर्फ 361 kb का है|
सॉफ़्टवेयर को आप पोस्ट पर जाकर डाऊनलोड कर सकते हैं
ब्लॉगिंग क्या है इस बात पर जाने कितनी ही बार पोस्टें आ चुकी हैं , पूछने वाले भी ब्लॉगर और बताने वाले भी ब्लॉगर और अपने मा साब जी ने अपनी पोस्ट में बता दिया कि ई भी नशा ही है ,
पहले बता चुका हूँ कि ब्लॉगिंग का विधिवत श्रीगणेश प्रवीण त्रिवेदी जी के मार्ग-निर्देशन में हुआ.इसके बाद रफ़्ता-रफ़्ता यह सफ़र शुरू हुआ.इस दरम्यान मैंने कई ब्लॉग्स झाँके,टटोले और कहीं टिके भी ! मेरे ब्लॉग पर प्रवीण पाण्डेय जी का आना उल्लेखनीय रहा.मैं इस वज़ह से उनके ब्लॉग पर पहुँचा और बिलकुल अलग अंदाज़ ,स्टाइल का अनुभव महसूसा ! प्रवीण जी का ,हर टीप का उत्तर देना ,उन्हीं से सीखा,बाद में उन्होंने यह कर्म बंद कर दिया तो अपुन ने भी. अब हर टीप के बजाय ज़रूरी टीप का ही उत्तर देता हूँ !उन्होंने एक नवोदित-ब्लॉगर को जिस तरह नियमित रूप से (बिला-नांगा किये ) सहयोग किया ,इसका बहुत आभारी हूँ !
इस बीच ई पंडित से भी यदा-कदा तकनीक के बारे में बातें होती रहीं.निशांत मिश्र से भी परिचय हुआ .ज़बरदस्त ब्लॉगर अजय कुमार झा से भी संपर्क हुआ और मुलाक़ात हुई ! डॉ. अमर कुमार जैसे वरिष्ठ भी मेरे ब्लॉग पर आकर आशीर्वाद दे गए,जिससे बड़ी प्रेरणा मिली .इसी मिलने-मिलाने के क्रम में भाई अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी से विशेष जुड़ाव हुआ और कई मुलाकातें भी !भाई अमरेन्द्र के संपर्क से श्रीयुत अनूप शुक्ल जी (फुरसतिया) से संपर्क सधा जो आगे जाकर एक क्रान्तिकारी घटना सिद्ध हुई ! मुझे अविनाश वाचस्पति जी से भी विशेष स्नेह मिला,इंदु पुरी जी जैसी लौह-महिला (असली वाली ) ने भी बड़ी शाबाशी दी.इन सबका भी विशेष आभार !
देखिए ,खास ऊ अंश ले आए हैं , जिसमें मा साब हमें जोरदार ब्लॉगर घोषित किए हैं साथ में और मित्र जन भी हैं
सच सच बताइए कि गिलहरी ,मैना ,तोता तितली देखे कितने दिन् हो गए आपको , चलिए आज इस चौराहे पर आपको एक गिलहरी से मिलवाते हैं
रामकुमार की गिलहरी की फ्री-हैंड समीक्षा
एक अक्सरहा सुना शेर है, कुछ यूं — बच्चों के छोटे हाथों को चांद-सितारे छूने दो, चार किताबें पढ़कर वे भी हम जैसे हो जाएंगे। बात एकदम सही है, लेकिन बचपन जैसे ही जवानी तक पहुंचने के आधे रास्ते तक पहुंचकर ठिठकता है, गोया किशोर होता है, उसके मन में बहुतेरी उत्सुकताओं के बवंडर मचलने लगते हैं। अफ़सोस… साधारण-सी उत्सुकता का हल साफतौर पर, सही तरीके से कभी नहीं मिलता। नैतिकता के कितने ही पैबंदों में उलझा जब कोई समाधान सामने आता है, तो उसमें धज्जियों की भरमार ऐन सामने होती है। `वह’, यानी एक गंवई किशोर की कहानी भी इससे ज़ुदा नहीं है। बच्चा जब जानना चाहता है कि उसका जन्म कैसे हुआ, तो पता चलता है — `माँ ने चावल खा लिए थे. रात को उसके पेट में भी दर्द हुआ. अगली सुबह वह खेत पर नहीं जा पाई थी. उस दिन वह पैदा हो गया था’. वह दौर, जब `वह’ ननिहाल में मौजूद भूरे कुत्ते को टहलाता, खिलाता, खिजाता बड़ा हुआ था, इन दिनों 11 साल का होने पर कलिंग की लड़ाई के संदर्भ और लोकसभा की सीटों और विज्ञान की किताब से निकालकर परागण, नर और मादा के भेद को पढ रहा था, तब बच्चे कैसे पैदा होते हैं, इसके जवाब में उसे चावल खा लेने से बच्चा होने की परिभाषाएं समझाई जा रही थीं…हालांकि `ज्योंही स्कूल की छुट्टी होती तो उसके गली के गुरु सक्रिय हो जाते’।
जानते हैं जानते हैं आप कविता ढूंढ रहे हैं न , तो लीजीए मारकंडेय दवे जी की ये रचना देखिए
मुर्दों से जिंदगी अब ,मांगते हो क्यूं भला ,
सोये हैं चैन से , सताते हो क्यूं भला
कॉपीराईट ताला है इसलिए पूरी रचना पोस्ट पर ही जाकर बांचें
प्रमोद भाई , यानि प्रमोद तांबट , मेरे पसंदीदा व्यंग्य लेखकों में से एक हैं , उनके चुटीले व्यंग्य आज की व्यवस्था पर एक आम आदमी का दृष्टिकोण बडे ही कमाल के अंदाज़ में रखते हैं , आज देखिए
//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
कल रात तो भयंकर नींद आई। अल्लसुबह उठे तो देखा अभी भयंकर अंधेरा है, घूमने निकलना भयंकर झंझट का काम है। आजकल शहर भर में आवारा कुत्ते भयंकर तादात में हो गए हैं, भयंकर काटने को दौड़ते हैं। मैं तो चद्दर ओढ़कर फिर भयंकर नींद में गाफिल हो गया।
फिर जब उठा तो सूरज भयंकर सर के ऊपर आ चुका था। घरवाली ने भयंकर चिल्लाचोट शुरु कर दी। हाथ-मुँह धोने बाथरूम गया तो देखा कि आज फिर पानी भयंकर गंदा आया है। मुंसीपाल्टी पर भयंकर गुस्सा आया, सुबह-सुबह भयंकर गालियाँ मुँह से निकल पड़ीं। मुँह धोया, चाय पीने बैठा। चाय भयंकर कड़वी थी। घरवाली से थोड़ा दूध डालने का निवेदन किया तो वह फिर भयंकर चिल्लाने लगी कि दूध भयंकर महँगा हो गया है, पानी डाल लो।
अखबार पढने बैठा, भयंकर विज्ञापनों से भरा हुआ था। भयंकर भ्रष्टाचार, चोरी-चकारी, भयंकर कत्ल, भयंकर राजनैतिक उठापठक से पूरा अखबार भयंकर पटा पड़ा था। कई जगह भयंकर बाढ़ आई थी, कहीं-कहीं भयंकर सूखा पड़ा था। पेट्रोल-डीज़ल के दामों में भयंकर बढ़ोत्तरी हो गई थी। सब्ज़ियाँ दाल-दलहनों के दाम भयंकर आसमान पर चढ़ गए थे। इस देश की हालत भयंकर खराब हो गई है। गरीबों का जीना भयंकर मुश्किल हो गया है।
यूं तो सेंटिमेंट्स का अपना एक अलग ही मनोविज्ञान है किंतु अगर सेंटिमेंटस संडे को उभर उभर के छलक छलक के बाहर आएं तो तो मैखाने तक पहुंच ही जाते हैं
जैसा कि हो जाया करता है अक्सर, शुक्रवार की रात कुछ ज़ियादा हो गई । मेरा मतलब शराब से नहीं बल्कि रात से है । बहुत धीमे-धीमे दो कप पिए होंगे साके के । महज़ ग्यारह फ़ीसद अल्कोहलिक मिकदार वाली जापानी साके , अंग्रेज़ी कहाने वाली हिंदुस्तानी शराबों के आगे काफ़ी माइल्ड सौदा है लेकिन किशोर, फिर रफ़ी और फिर कोई समझ से परे के परदेसी सुर सुनते हुए तीन-साढ़े तीन बज गए और दोस्त के घर पर ही लंबलेट हो गए ।
ज़लज़ले अक्सर आते हैं यहाँ । अभी सुबह भी पूरी इमारत थर्राई । लेकिन शनिवार सुबह नींद तोड़ने वाला वो ज़लज़ला ज़मीनी नहीं आसमानी था । एक के बाद एक फ़ाइटर प्लेन्स की जाने कितनी स्क्वॉड्रन्स । कान - फ़ा़डू शोर और काँपती हुई खिड़कियाँ , दरवाज़े ।जब शोर थमा तो मैंने कुछ चुनींदा गालियाँ हवा में उछालीं मग़र अब नींद कहाँ ... ।
आज अरविंद मिश्र जी भी अपने भावों को ,पिरो लाए हैं एक अतुकांत कविता के रूप में
युगांतर की प्रतीक्षा में ...
फूलों की वादियाँ
बुलाती हैं मुझे बार बार
खिंचता उनके मोहपाश में
पहुंचता हूँ जब उनके पास
तो अचानक वे ओढ़ लेती हैं
बर्फानी चादरें,
फूलों की घाटी तब्दील
होती जाती है बर्फानी वादियों में
और मैं हतप्रभ बर्फ की ढेर को
अपनी उँगलियों से
कुरेदता हूँ इस चाह में कि
नीचे दबे उन मोहक फूलों का
दीदार हो सके
और अब एक लाईना पेशे खिदमत है सरकार
कोरे कागज़ : जाने क्या क्या कह जाते हैं अक्सर
मेरा लिखा रह जाएगा :और जाने क्या क्या कह जाएगा
कांटा : अक्सर फ़ूल के करीब रहता है
तुमने उसे कहीं देखा है क्या : अब इस बात का भी कोई लेखा है क्या
हर ख्वाहिश पे दम निकले :हाय कितना भी निकले , कम निकले
उसे बचपन में सपने देखने की बीमारी थी : और जवानी में सपने को पूरा करने की ज़िद
फ़ोकस न लूज़ करो ,मि मल्टी टास्कर : उडन जी बतलाएं , ई बात खासकर
बंटवारे का विलेख पंजीकृत होना आवश्यक है : ओकील साहब बोले हैं तो कंपलसरी है
'मैसूर के शेर' के नाम से मशहूर और कई बार अंग्रेजों को धूल चटा देने वाले टीपू सुल्तान राकेट के अविष्कारक तथा कुशल योजनाकार भी थे।
उन्होंने अपने शासनकाल में कई सड़कों का निर्माण कराया और सिंचाई व्यवस्था के भी पुख्ता इंतजाम किए। टीपू ने एक बांध की नींव भी रखी थी। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने टीपू सुल्तान को राकेट का अविष्कारक बताया था। [देवनहल्ली वर्तमान में कर्नाटक का कोलर जिला] में 20 नवम्बर 1750 को जन्मे टीपू सुल्तान हैदर अली के पहले पुत्र थे।
तो आज के लिए बस इतना ही …खबरी बाबू चले और पोस्टें बांचने के लिए