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शनिवार, 6 मई 2017

मेरी रूहानी यात्रा - रंजना भाटिया


मेरे बारे में


रंजना जी की कलम से उनके बारे में

मेरे बारे में मैं क्या लिखूं ?
ज़िन्दगी के बारे में लिखती बस मेरी कलम ,खाना बनाना ,खाना और घूमना कविता करते हुए शौक बाकी बोलेंगे मेरे लिखे हुए लफ़ज़ और आप जो कुछ पढ़ेंगे और फिर कहेंगे:)
ज़िन्दगी का सार सिर्फ इतना
कुछ खट्टी कुछ कडवी सी
यादों का जहन में डोलना
और फिर उन्ही यादों से
हर सांस की गिरह में उलझ कर
वजह सिर्फ जीने की ढूँढना !!
**********************
प्रकाशन --
पत्र पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन दो निजी काव्य संग्रह "कुछ मेरी कलम से ( हिन्द युग्म प्रकाशन ) साया ( अयन प्रकाशन ) साझे काव्य संग्रह पगडण्डीयाँ (का संपादन ) पुष्प पांखुरी। स्त्री हो कर सवाल करती है ,नारी विमर्श ,आदि आने वाले काव्य संग्रह गुलमोहर ( हिन्द युग्म प्रकाशन ) सिर्फ तुम (आगमन )आदि हैं .
दैनिक जागरण ,अमर उजाला ,नवभारत टाइम्स ऑनलाइन भाटिया प्रकाश मासिक पत्रिका, हरी भूमि ,जन्संदेश लखनऊ आदि में लेख कविताओं का प्रकाशन ,हिंदी मिडिया ऑनलाइन ब्लॉग समीक्षा

सम्मान .....
उपलब्धियां :
2007 तरकश स्वर्ण कलम विजेता 
२००९ में वर्ष की सर्व श्रेष्ठ ब्लागर एसोसेशन अवार्ड
२०११ में हिंद युग्म शमशेर अहमद खान बाल साहित्यकार सम्मान
२०१२ में तस्लीम परिकल्पना सम्मान चर्चित महिला ब्लागर 

आइये उनकी एक रचना पढ़ते हुए उन दिनों को याद करें, जब एक नहीं, दो नहीं  ... कई लोगों की उपस्थिति इनके कलम के पास होती थी 

सुनो ज़िन्दगी !!

सुनो ज़िन्दगी !!
तेरी आवाज़ तो ......
यूँ ही, कम पड़ती थी कानों में 
अब तेरे साए" भी दूर हो गए 
इनकी तलाश में 
बैठी हुई
एक बेनूर से
सपनों की किरचे
संभाले हुए ......
हूँ ,इस इंतजार में
अभी कोई पुकरेगा मुझे
और ले चलेगा
कायनात के पास .......
जहाँ गया है सूरज
समुंदर की लहरों पर हो कर सवार
"क्षितिज" से मिलने
और वहीँ शायद खिले हो
लफ्ज़, कुछ मेहरबानी के
जो गुदगुदा के दिल की धडकनों को
पूछेंगे मुझसे
कैसी हो बोलो ?
क्या पहले ही जैसी हो ?

कुछ पहले जैसा नहीं, इस बात का मलाल सबको है तो लौट चलो न उन्हीं दिनों में 

रंजना जी की कलम की ही गुज़ारिश है, 2007 की गलियों से 




नही है दूर कोई मंज़िल आपसे
ज़रा नज़र को उठा कर तो देखिए

रोने के लिए है सारी उमर यहाँ
एक लम्हा हँसी का गुनगुना के देखिए

आएँगे पलट के फिर से ज़माने मासूम इश्क़ के
एक बार बहारो को अपने पास बुला कर तो ज़रा देखिए

राहा कौन सी नही है मुश्किल यहाँ
बस होसला दिल का बढ़ा के देखिए

दिल लगता नही है यहाँ किसी के लगाने से कभी
कभी किसी के प्यार को नज़ारो में बसा के देखिए

जब हो कोई दिल की बात या ही समा उनके इंतज़ार का
मेरी गज़ल के लफ़्ज़ो को गुनगुना के देखिए !!

4 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुन्दर आगाज।

रंजू भाटिया ने कहा…

शुक्रिया रश्मि जी

कविता रावत ने कहा…

मेरी रूहानी यात्रा अंतर्गत रंजना भाटिया जी का परिचय एवं उनकी रचनाएँ पढ़ना अच्छा लगा!
बहुत अच्छी लगी बुलेटिन के नयी पहल!

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

रंजना जी के परिचय और उनकी प्रतिनिधि रचनाओं के लिए आभार!

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