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शनिवार, 20 मई 2017

मेरी रूहानी यात्रा - P. C. Rampuria (ताऊ) के संग




ब्लॉग के जमाने से इनको पढ़ा, लेकिन एक सच्ची बात कि फेसबुक पर इनसे टिप्पणी के जरिये बात हुई - बात होने से निःसंदेह पढ़ने की उत्कंठा तीव्र होती है।  इसलिए मैं मानती हूँ कि ब्लॉग एक किताब है, सहेजी गई डायरी और फेसबुक एक रंगमंच 


ताऊ रामपुरिया (को नहीं जानत है ब्लॉग जगत में  ... ) 
कहते हैं, 
अब अपने बारे में क्या कहूँ ? मूल रुप से हरियाणा का रहने वाला हूँ ! लेखन मेरा पेशा नही है ! थोडा बहुत गाँव की भाषा में सोच लेता हूँ , कुछ पुरानी और वर्तमान घटनाओं को अपने आतंरिक सोच की भाषा हरयाणवी में लिखने की कोशीश करता हूँ ! वैसे जिंदगी को हल्के फुल्के अंदाज मे लेने वालों से अच्छी पटती है | गम तो यो ही बहुत हैं | हंसो और हंसाओं , यही अपना ध्येय वाक्य है | हमारे यहाँ एक पान की दूकान पर तख्ती टंगी है , जिसे हम रोज देखते हैं ! उस पर लिखा है : कृपया यहाँ ज्ञान ना बांटे , यहाँ सभी ज्ञानी हैं ! बस इसे पढ़ कर हमें अपनी औकात याद आ जाती है ! और हम अपने पायजामे में ही रहते हैं ! एवं किसी को भी हमारा अमूल्य ज्ञान प्रदान नही करते हैं ! ब्लागिंग का मेरा उद्देश्य चंद उन जिंदा दिल लोगों से संवाद का एक तरीका है जिनकी याद मात्र से रोम रोम खुशी से भर जाता है ! और ऐसे लोगो की उपस्थिति मुझे ऐसी लगती है जैसे ईश्वर ही मेरे पास चल कर आ गया हो ! आप यहाँ आए , मेरे बारे में जानकारी ली ! इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ !

26 मई 2013 के इस समाचार को अवश्य पढ़िए, फिर आगे बढिये -

चलिए, उनके कलम घर की सैर करें,

"मेरा हमसाया"


आंगन रेस्टोरेंट मे
एक शेर और खरगोश 
एक साथ दाखिल हुये 
उनको देखते ही वेटरों के
होश उडे , पांव थर्राए 
जहां खडे थे वहीं जड हो गये
आखिर मैनेजर हिम्मत करके आया
पूछा, क्या सेवा कर सकता हूं ???

खरगोश ने की फरमाइश
चार अंडे का आमलेट, काफ़ी 
और थोडा ये और वो ले आओ 
अब मेनेजर कुछ सकपकाया 
शेर की तरफ चेहरा घुमाया फ़िर पूछा 
आपके मित्र के लिये?
इस पर खरगोश ने फ़रमाया
तुम भी क्या आदमी हो यार?
अगर मित्र होता भूख से हकलाया.. 
तो मैं यहां बैठा होता क्या ऐसे मस्ताया
या तो मित्र के पेट मे होता
या होता कहीं ख़ुद को जा  छुपाया 



मित्र का पेट भरा है....
इसीलिये दो दिन है मेरा हमसाया.....

(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)


सबको पता है कि यहाँ जो भी है, एक से बढ़कर एक है 


ताऊ की तरफ़ तैं  आज सबेरे की  रामराम. भाई ताऊ का एक घणा पक्का दोस्त था गोटू सुनार. इन दोनुआं म्ह पक्की दांत काटी दोस्ती थी. और दोनू के दोनूं ही शातिर ठग थे. ताऊ के कारनामें तो आप जानते ही हो. पर गोटू सुनार उससे भी दो हाथ आगे था.
इन दोनो की एक विशेषता और थी कि दोस्ती के बावजूद भी एक दुसरे को  ठगने का कोई भी मौका नही छोडते थे. इसके बावजूद भी उनकी दोस्ती मे कोई दरार कभी नही आई.
अब एक दिन गोटू सुनार के छोरे का ब्याह था. सुनार ने ताऊ को उसके यहां आने का न्योता दिया. ताऊ शादी मे पहुंचा. सब कार्यक्रमों मे शामिल हुआ .  दहेज मे सभी सामान आया जो कि सभी शादियों मे आता है. पर एक सोने का बडा सा थाल भी दहेज मे आया था और उस पर ताऊ की नियत खराब हो गई थी. पर ताऊ को कोई मौका हाथ नही लगा इसको पार करने का.
कुछ दिन बाद लगता है गोटू की किस्मत खराब होगी जो उसने ताऊ को फ़िर बुलावा भेजा और ताऊ आ धमका. ताऊ के आते ही दोनों दोस्त हुक्का गुडगुडाते हुये गप्पें मारने लगे. रात को सुनार ने ताऊ को उसी सोने के थाल मे खाना खिलाया. बस ताऊ के दिमाग मे तो स्कीम दौडने लगी.
उधर गोटू सुनार भी समझ गया कि ताऊ की नियत खराब हो गई है और किसी भी तरह थाल को बचाना है. पर ताऊ जैसे ठग से वो भी घबराता था. खैर उसने अपना इन्तजाम कर लिया. और दोनो की खटिया बिल्कुल पास पास लगा दी और दोनो सो गये,
थोडी देर मे ताऊ नकली खर्राटे लेने लगा. ये देख कर गोटू सुनार भी सो गया.
ताऊ ने देखा कि सुनार खर्राटे ले रहा है तो उसने सुनार की खटिया के उपर एक छींका बंधा देखा और उसमे वही सोने का थाल रखा था और पानी से पूरा लबालब भरा हुआ. ताऊ समझ गया कि सुनार की चालाकी है ये.

खैर ताऊ भी ताऊ था.  ताऊ चुपचाप ऊठा, और हुक्के की नलकी निकाल लाया. उस नलकी को धीरे से उस सोने के थाल के पानी मे डाला और चुपचाप सारा पानी खींच कर पी गया. फ़िर उस थाल को ऊठाया और सीधे गांव के बाहर तालाब मे कमर तक पानी मे घुस गया और वहां सोने के थाल को  गाड कर वापस आकर चुपचाप अपनी खाट पर सो गया.
अब रात के दुसरे प्रहर मे गोटू सुनार की आंख खुली और उसकी नजर छींके पर गई तो उसके होश ऊड गये. ताऊ बगल की चारपाई पर सो रहा है और थाल गायब है.
धीरे २ उसने पूरे कमरे को छान मारा. और ताऊ की चतुराई पर दंग रह गया कि आखिर इसने बिना पानी गिराये थाळ को पार कैसे किया ? पर उसकी अक्ल मे ये गुथ्थी नही सुलझी. आखिर वो भी ताऊ के सामने हार मान गया.
पर सुनार दिमाग लडाता रहा कि ये सब कैसे हुआ ? अचानक उसका हाथ ताऊ के शरीर से लग गया. उसने टटोल कर देखा तो ताऊ का शरीर कमर के नीचे ठंडा था और कमर के उपर गर्म.
सुनार सारा माजरा समझ गया और चुपके से ऊठकर उस तालाब तक गया और सोने का  थाल उसमे से निकाल लाया. वापस आकर चुप चाप सो गया.
सुबह हुई, सुनार ऊठ कर हुक्का भर लाया, इतनी देर मे ताऊ भी ऊठ गया. 
सुनार - ताऊ राम राम ! कहो रात कैसी गुजरी ? नींद तो ठीक से आई ? 
ताऊ - अरे यार गोटू, जैसा मेरा घर वैसा तेरा घर ! भाई घणी बधकी ( बढिया) नींद आई.मैं तो रात को सोया तो अब नींद खुली है,
हुका पीके ताऊ बोला - भाई गोटू इब मैं जाऊंगा मेरे गांव,   घर और खेतां का घणा काम पडया सै. 
सुनार बोला - ताऊ इब थोडी देर डटज्या ! खाना वाना खाकै चले जाणा. मैं थारी भाभी तैं बोलकै जल्दी खाणा बनवाता हूं. मुस्कराते हुये सुनार बोला.
दोनों तालाब पर जाकर फ़्रेश हौ   कै नहा धौकै आगये तब तक खाना तैयार था. सुनार ने अब फ़िर से ताऊ को सोने उसी थाल मे खाना परोसा. ताऊ परेशान ! जैसे तैसे खाना खाया और आखिर पूछ ही बैठा कि गोटू भाई तुम्हारे पास ऐसे कितने सोने के थाल हैं ?
सुनार बोला - बस एक ही है  ताऊ. 
ताऊ आश्चर्य से बोला - पर वो तो मैं.......! और ताऊ विस्मय से बोला - ये कैसे हो सकता है ?

सुनार बोला - ताऊ पहले तू बता फ़िर मैं बताता हूं . अब मैं कोई रामदयाल कुम्हार तो हूं नही . मैं हूं गोटू सुनार . और तेरे से कमजोर इन कामों मे नही पडूंगा. फ़िर दोनो ने अपनी अपनी कारस्तानी सुनाई. और दोनो एक दुसरे की बडाई करने लगे.
अचानक ताऊ के दिमाग मे एक आईडिया आगया और वो सुनार से बोला कि - यार हम दोनो ही मंजे  हुये ठग हैं. अगर हम दोनो मिल जाये तो कोई लम्बा हाथ मार सकते हैं . और मेरी निगाह मे एक शिकार भी है.
सुनार भी कडका और पका शातिर  था सो बोला - ताऊ जल्दी बता शिकार का पता , बस समझ  ले अपना joint venture शुरु.
और ताऊ ने उसको बताया कि सेठ के पास बहुत तगडा माल है, सो एक हाथ मार देते हैं. मेरा पुराना हिसाब किताब भी चुकता हो जायेगा.
और इस प्रकार इन दो शातिरों का joint venture शुरु हो गया 
इब खूंटे पै पढो :- 

ताऊ घणा परेशान था.  ताऊ ने राज भाटिया जी को फ़ोन लगा कर कुछ मदद करने 
को कहा. पहले तो भाटिया जी ने मना कर दिया. 

पर आप जानते ही हो कि ताऊ भी नम्बर एक का स्कीमबाज है सो उसने भाटिया 
जी को ऐसी स्कीम समझाई कि भाटिया जी ने तुरंत ५ लाख रुपये ताऊ को ट्रांसफ़र करवा दिये. 

अब ताऊ ने जो स्कीम भाटिया जी को बताई थी उसका हिसाब उनसे लग नही रहा 
था. ताऊ की बताई स्कीम आज तक किसी को समझ नही आई तो भाटिया जी को 
क्या समझ आने वाली थी? 

ताऊ ने यह कह कर रुपये ट्रांसफ़र करवाये थे कि ५ रुपया सैकडा प्रतिमाह का ब्याज 
और मुनाफ़े का चालीस टका और नुक्सान मेरा. पर हिसाब बारह महिने बाद करूंगा. 

अब भाटिया जी हिसाब लगा रहे थे कि ५ रुपये सैकडे से २५ हजार महिना का तो ब्याज का मिलेगा, फ़िर मुनाफ़ा अलग. जब पूरा नही जोड पाये तो उन्होने समीरलाल जी 
को फ़ोन लगा पूछा.  

भाटिया जी :- अजी समीर जी रामराम. कैसे हैं? 
समीर जी :- रामराम जी भाटिया साहब, सब ईश्वर की कृपा है. आप सुनाईये, आज 
कैसे याद कर लिया? 
भाटिया जी :- अजी एक हिसाब जुडवाना था. थोडा बडा हिसाब है, अगर आपको समय 
हो तो यह बताईये कि मैने ५ लाख रुपया ५ रुपये सैकडे प्रतिमाह से ताऊ को बारह महिने के लिये उधार दिये है तो मुझे कुल वापस कितने रुपये मिलेंगे? 

समीर जी :- अजी भाटिया जी ! आपको कुछ भी नही मिलेगा. 
भाटिया जी :- क्यों ? आप क्या गणित का हिसाब नही जानते? मैने तो सुना है आप 
बहुत पहुंचे हुये CA  हैं? 

समीर जी : अजी भाटिया साहब मैं तो गणित जानता हूं पर लगता है आप ताऊ को 
नही जानते? इतनी बडी रकम देने के पहले हिसाब पूछना चाहिये था ना ?  


ब्लॉग के बीते दिनों की ओर लौटिए, आज भी वहाँ वक़्त गुलज़ार है - बस आपका इंतज़ार है :)

3 टिप्पणियाँ:

yashoda Agrawal ने कहा…

वाह..
जहे नसीब
आभार दीदी
अच्छी बुलेटिन
सादर नमन

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत आभार आपका ब्लाग के सुनहरी दिनों को याद करने के लिये. अब तो बस उम्मीद ही बाकी है कि कब वो दिन लौटेंगे.
आपकी कोशीश प्रसंशनीय है जो इस मंदी के दिनों में भी आपका प्रयास चालू है. बहुत बहुत शुभकामनाएं.
रामराम

कौशल लाल ने कहा…

बहुत बढ़िया...

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