बरगद होने की तमन्ना में आग को भी बेअसर कर दिया
पर अंततः यही है,
"तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो?
तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया?"
.........
हर दिन हँसते-बोलते सत्य का भय साथ चलता है
"खाली हाथ अाए थे
अौर खाली हाथ जाना है
जो अाज तुम्हारा है,
कल अौर किसी का था,
कल किसी अौर का होगा"
6 टिप्पणियाँ:
कम किंतु चुनिंदा चिट्ठों से सजा बुलेटिन। पूरे चिट्ठों के साथ न्याय कर पायेंगे।
आभार।
बढ़िया चुनिंदा लिंक्स-सह बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!
बढ़िया बुलेटिन दीदी ... आभार |
सुंदर बुलेटिन ।
बेहतरीन और पठनीय प्रस्तुतियाँ।
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