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रविवार, 17 जनवरी 2016

अंततः



बरगद होने की तमन्ना में आग को भी बेअसर कर दिया 
पर अंततः यही है, 
"तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? 
तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया?"
......... 
हर दिन हँसते-बोलते सत्य का भय साथ चलता है 
"खाली हाथ अाए थे 
अौर खाली हाथ जाना है  
जो अाज तुम्हारा है, 
कल अौर किसी का था, 
कल किसी अौर का होगा"


6 टिप्पणियाँ:

Asha Joglekar ने कहा…

कम किंतु चुनिंदा चिट्ठों से सजा बुलेटिन। पूरे चिट्ठों के साथ न्याय कर पायेंगे।

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

आभार।

कविता रावत ने कहा…

बढ़िया चुनिंदा लिंक्स-सह बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!

शिवम् मिश्रा ने कहा…

बढ़िया बुलेटिन दीदी ... आभार |

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुंदर बुलेटिन ।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बेहतरीन और पठनीय प्रस्तुतियाँ।

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