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मंगलवार, 5 जनवरी 2016

कुछ दूर साथ चलो




मुमकिन ही नहीं किसी को समझना, समझाना 
क्षणिक समझ,समझाने की बात और है 
सबकी सोच के परिधान अलग हैं 
कोई अमीर है कोई गरीब 
कोई गरीब होकर भी अमीर 
कोई अमीर होकर गरीब 
रहन-सहन अलग,
चाह अलग 
परिस्थिति,परिणाम अलग 
..... 
मुमकिन बनाने की जद्दोजहद से बाहर निकलकर 
कुछ दूर साथ चलो - 
यही बहुत है 


4 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

समझ भी समझती है समझने को । बहुत सुंदर प्रस्तुति ।

कविता रावत ने कहा…

बहुत बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति
आभार!

Neeraj Neer ने कहा…

आभार काव्यसुधा की रचनाओं को शामिल करने के लिए ....

शिवम् मिश्रा ने कहा…

सफर मे साथ जरूरी है |

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