घर तेरा हो
या मेरा
छूट जाना है एक दिन
हम गुम हो जायेंगे
या तुम
गुम हो ही जाना है !
पहले जो गुम हुए
तो लगा -
यह क्या माज़रा है
फिर एक यम की कहानी सुनी
जाना -
स्वर्ग,नरक जाना होता है
फिर जीते जी देखा स्वर्ग-नरक
बदलते शहर
बदलते किराये के घर
पडोसी के अन्यमनस्क रूप
नज़र भी नहीं मुड़ी
किसी किस्म के रिश्ते की आवश्यकता नहीं
हम भी हो गए अन्यमनस्क
चुप कमरा
चुप दीवारें
ऐसा भला घर होता है !!!
कुछ नहीं जाना है साथ
तेरा महल तेरा नहीं रहेगा
मेरा छोटा सा
सिमटा सिमटा घर मेरा नहीं रहेगा
फिर काहे की
कैसी अन्यमनस्कता ?
जीने की कोशिश करो
.......... बड़ा दम है इस जीने में …
5 टिप्पणियाँ:
शुभ प्रभात दीदी
अच्छा लगा ये सांध्य दैनिक
और आपकी रचना भी पसंद आई
एक सही सच की दास्तां
...
घर तेरा हो
या मेरा
छूट जाना है एक दिन
हम गुम हो जायेंगे
या तुम
गुम हो ही जाना है !
सादर
सुन्दर लिंकों से सजी बुलेटिन |
बढ़िया नपी-तुली बुलेटिन प्रस्तुति
आभार!
बढ़िया बुलेटिन दीदी |
बढ़िया बुलेटिन सुंदर कविता ।
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