प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
अध्यापक कक्षा में रामायण के इतिहास के बारे में बता रहे थे।
अध्यापक: बच्चों रामचंद्र ने समुन्द्र पर पुल बनाने का निर्णय लिया।
पप्पू: सर मैं कुछ कहना चाहता हूँ।
अध्यापक: कहो बेटा।
पप्पू: रामचन्द्र का पुल बनाने का निर्णय गलत था।
अध्यापक: कैसे?
पप्पू: सर उनके पास हनुमान थे जो उड़कर लंका जा सकते थे तो उनको पुल बनाने की कोई जरुरत ही नही थी।
अध्यापक: हनुमान ही तो उड़ना जानते थे बाकी रीछ और वानर तो नही उड़ते थे।
पप्पू: सर वो हनुमान की पीठ पर बैठकर जा सकते थे। जब हनुमान पूरा पहाड़ उठाकर ले जा सकते थे तो वानर सेना को भी तो उठाकर ले जा सकते थे।
अध्यापक: भगवान की लीला पर सवाल नही उठाया करते।
पप्पू: वैसे सर एक उपाय और था।
अध्यापक: क्या?
पप्पू: सर हनुमान अपने आकार को कितना भी छोटा बड़ा कर सकते थे जैसे सुरसा के मुँह से निकलने के लिए छोटे हो गए थे और सूर्य को मुँह में देते समय सूर्य से बड़े तो वो अपने आकार को भी तो समुन्द्र की चौड़ाई से बड़ा कर सकते थे और समुन्द्र के ऊपर लेट जाते। सारे बंदर हनुमान जी की पीठ से गुजरकर लंका पहुँच जाते और रामचंद्र को भी समुन्द्र की अनुनय विनय करने की जरुरत नही पड़ती। वैसे सर एक बात और पूछूँ?
अध्यापक: पूछो।
पप्पू: सर सुना है समुन्द्र पर पुल बनाते समय वानरों ने पत्थर पर राम राम लिखा था जिससे पत्थर पानी पर तैरने लगे थे।
अध्यापक: हाँ तो ये सही है।
पप्पू: सवाल ये है बन्दर भालुओं को पढ़ना लिखना किसने सिखाया था?
अध्यापक: हरामखोर बंद कर अपनी बकवास और मुर्गा बन जा।
तो साहब ... यह तो रही पप्पू की बात अब चलते है आज की बुलेटिन की ओर ...
सादर आपका
शिवम् मिश्रा
अध्यापक: बच्चों रामचंद्र ने समुन्द्र पर पुल बनाने का निर्णय लिया।
पप्पू: सर मैं कुछ कहना चाहता हूँ।
अध्यापक: कहो बेटा।
पप्पू: रामचन्द्र का पुल बनाने का निर्णय गलत था।
अध्यापक: कैसे?
पप्पू: सर उनके पास हनुमान थे जो उड़कर लंका जा सकते थे तो उनको पुल बनाने की कोई जरुरत ही नही थी।
अध्यापक: हनुमान ही तो उड़ना जानते थे बाकी रीछ और वानर तो नही उड़ते थे।
पप्पू: सर वो हनुमान की पीठ पर बैठकर जा सकते थे। जब हनुमान पूरा पहाड़ उठाकर ले जा सकते थे तो वानर सेना को भी तो उठाकर ले जा सकते थे।
अध्यापक: भगवान की लीला पर सवाल नही उठाया करते।
पप्पू: वैसे सर एक उपाय और था।
अध्यापक: क्या?
पप्पू: सर हनुमान अपने आकार को कितना भी छोटा बड़ा कर सकते थे जैसे सुरसा के मुँह से निकलने के लिए छोटे हो गए थे और सूर्य को मुँह में देते समय सूर्य से बड़े तो वो अपने आकार को भी तो समुन्द्र की चौड़ाई से बड़ा कर सकते थे और समुन्द्र के ऊपर लेट जाते। सारे बंदर हनुमान जी की पीठ से गुजरकर लंका पहुँच जाते और रामचंद्र को भी समुन्द्र की अनुनय विनय करने की जरुरत नही पड़ती। वैसे सर एक बात और पूछूँ?
अध्यापक: पूछो।
पप्पू: सर सुना है समुन्द्र पर पुल बनाते समय वानरों ने पत्थर पर राम राम लिखा था जिससे पत्थर पानी पर तैरने लगे थे।
अध्यापक: हाँ तो ये सही है।
पप्पू: सवाल ये है बन्दर भालुओं को पढ़ना लिखना किसने सिखाया था?
अध्यापक: हरामखोर बंद कर अपनी बकवास और मुर्गा बन जा।
तो साहब ... यह तो रही पप्पू की बात अब चलते है आज की बुलेटिन की ओर ...
सादर आपका
शिवम् मिश्रा
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अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की व्यावहारिक परख
कांव कांव
पुरस्कार, देश की चिंता और विरोध का सैलाब ...
डॉ. कौशलेन्द्रम at बस्तर की अभिव्यक्ति -जैसे कोई झरना....मैं छत्तीसगढ हूं, मेरे नाम में आंकड़े जरूर "36" के हैं पर..............................
गगन शर्मा, कुछ अलग सा at कुछ अलग साछद्म धर्मनिरपेक्षतावादी बुद्धिजीवियों की अवसरवादी भावुकता और बिहार का विधानसभा चुनाव
ब्रजकिशोर सिंह at ब्रज की दुनिया
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!
9 टिप्पणियाँ:
पप्पू की बात में दम है :)
सुंदर प्रस्तुति ।
जय हो !
जय हो !
जय हो !
सुन्दर चर्चा ..... आभार आप सभी का | मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन की प्रतीक्षा |
http://hindikavitamanch.blogspot.in/
http://kahaniyadilse.blogspot.in/
Sabit hua pappu hoshiyar hote hain, kuch log unhen murga jaroor bans dete hain!
बहुत बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!
आप सब का बहुत बहुत आभार |
इसीलिए कहते हैं एक ही लाठी से सबको नहीं हांकना चाहिए............................. पप्पू-पप्पू में फर्क होता है
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