नमस्कार साथियो,
गुरुवार की बुलेटिन
एक बार फिर आपके सामने है. फिर वही विषय हैं, फिर वही चर्चाएँ हैं, फिर वही विमर्श
हैं, फिर वैसे ही कुतर्क हैं, फिर वैसी ही समस्याएँ हैं. क्या कभी कुछ बदलेगा?
क्या कभी कुछ सुधरेगा? क्या कभी देशवासी किसी संवेदनशील मुद्दे पर एकमत होंगे? क्या
कभी देशहित को राजनीति के चश्मे से देखना बंद किया जायेगा? बहुत-बहुत सवाल हैं जो
लगातार दिमाग में उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं. इन सवालों के बीच बजाय सुधार के दूसरे
देशों के, विशेष रूप से पश्चिमी देशों के उदाहरण दिए जाने लगते हैं. पश्चिम के
किसी देश में हुई आतंकी घटना के बाद उस देश के द्वारा की गई जवाबी कार्यवाही की हम
सब प्रशंसा करने लगते हैं. हम सब उस देश की, उस देश के नागरिकों की, उस देश के
राजनीतिज्ञों की तारीफ करने में जुट जाते हैं. क्या कभी हमने आतंकी घटना का शिकार
बने ऐसे किसी देश की वास्तविकता को, वहाँ के नागरिकों की मानसिकता को, उधर की
मीडिया की नजर को जानने-समझने का प्रयास किया है?
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यदि अभी हाल
ही में फ़्रांस में हुए आतंकी हमले को देखें तो वहाँ हमला होने के बाद नागरिकों ने
तो संयम का परिचय दिया है साथ ही वहाँ के राजनेताओं ने, राजनैतिक दलों ने भी
पर्याप्त सूझबूझ का परिचय दिया. किसी की भी तरफ से न तो विवादस्पद बयान आये और न
ही अपने राष्ट्राध्यक्ष का इस्तीफ़ा माँगा गया. ऐसी घटना के बाद देश में लागू की गई
इमरजेंसी का भी किसी तरह से विरोध नहीं किया गया. इसके साथ-साथ विशेष बात जो सामने
आई वो ये कि वहाँ की मीडिया ने किसी भी तरह से क्षत-विक्षत शवों की प्रदर्शनी सी
नहीं लगाई, किसी भी तरह की अफवाह को फैलने में सहायक नहीं बनी, किसी एक राजनैतिक
दल अथवा राजनेता के विरुद्ध अपना नजरिया नहीं रखा. यदि एक पल को हम अपने सन्दर्भ
में ऐसी घटनाओं का आकलन करें तो राजनैतिक दलों के, राजनेताओं के विवादस्पद बयान
किस तरह सम्पूर्ण माहौल को प्रभावित कर देते, कहने की जरूरत ही नहीं; नागरिक भी
अपने आपको तुरन्त अलग-अलग गुटों में बाँटकर बयानबाज़ी में सहायक सिद्ध होने लगते
हैं; मीडिया घटना की विभीषिका को और बढ़ा-चढ़ा कर आन्तरिक स्थिति को बिगाड़ने में सहायक
बनने लगती है.
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अभी हाल ही
में मणिशंकर अय्यर द्वारा पाकिस्तान मीडिया में दिए गए बयान के बाद भी देश के
नागरिकों, राजनेताओं, राजनैतिक दलों की ख़ामोशी, विभेद ही ये स्पष्ट करने को
पर्याप्त है कि हम आतंकवाद के मुद्दे पर एकमत क्यों नहीं हो सकते. इसी के साथ ये
भी स्पष्ट है कि जब तक हम नागरिक देशहित के मुद्दे पर, सुरक्षा के मुद्दे पर,
आतंकवाद के मुद्दे पर एकमत नहीं होंगे तब तक जरा-जरा से आतंकी संगठन हमारे देश की
सुरक्षा, शांति में सेंध लगाते रहेंगे, हम नागरिकों को मारते रहेंगे.
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बहरहाल,
इसका इलाज तो खोजना ही होगा पर कैसे, कब. मन में ऐसी ही उथल-पुथल के बीच आज की
बुलेटिन पर भी दृष्टि डालियेगा. शायद कोई हल समझ आये.
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5 टिप्पणियाँ:
सही कहा आपने हम कब दूसरे देशों की तरह संवेदनशील मुद्दो पर एकजुटता का परिचय देकर विश्व में उदाहरण प्रस्तुत करेगें ..सिर्फ कहने भर को नहीं एकजुट होकर ही हम विश्व के सबसे बड़े प्रजातान्त्रिक देश होने पर सार्थक सन्देश दे सकेंगे ....
सार्थक बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!
अपने अंदर झाँकना पड़ेगा ।जब घर से ही राजनीति की शुरुआत करते हैं । कहाँ जा कर सुधरेंगे खुदा जानता होगा । सुंदर प्रस्तुति ।
बहुत सुंदर बुलेटिन.
आभार.
सभी मुद्दों का राजनीतिकरण बंद करना होगा।
बहुत अच्छा बुलिटेन।
सार्थक बुलेटिन ... आभार बंधुवर|
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