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रविवार, 15 नवंबर 2015

आज़ाद भारत में गुलाम.. ब्लॉग बुलेटिन

आज़ाद भारत में गुलाम? एयरकंडीशन रूम में बैठकर और टैब पर उँगलियाँ फिराते हुए देश दुनिया की चिंता करने वाले लोगों को यह बहुत अटपटा लगे लेकिन आज के भारत की एक बहुत बड़ी सच्चाई है यह। अगर हाल ही में हुए सर्वे को सच माना जाए तो यह आंकड़े चिंता जनक हैं। विश्व की कुल शोषित, कुपोषित और बंधुआ मजदूरों में से सबसे अधिक भारत में हैं। ह्यूमन ट्रैफिकिंग में भी हम बहुत बुरे हालातों पर हैं। कई राज्य जहाँ लिंग अनुपात निराशा जनक स्थिति में है वहां पर दुसरे राज्यों से अपहरण और ह्यूमन ट्रैफिकिंग का शिकार कई नाबालिग आज भी बंधुआ मजदूर के समान जीवन जीते को बाध्य हैं। हद्द तो तब है जब सामाजिक तौर पर उसे जायज ठहराने वाले लोग भी हैं। आइये इन आंकड़ों पर गौर करते हैं, भारत में करीब 1.43 करोड़ लोग जबरदस्ती शादी या यौन शोषण के काम में लगाए जाने या गुलामी कराए जाने के शिकार हुए हैं। भारत के बारे में सामने आए ये आंकड़े वैश्विक स्तर पर भी बहुत हैरान करने वाले हैं। विश्व की गुलाम आबादी 3.58 करोड़ है। इसमें से 2.35 करोड़ (65.8 प्रतिशत) एशिया से ही है। पाकिस्तान का हाल भी भी कमोबेश भारत जैसा ही है। कुल गुलाम आबादी के 45 प्रतिशत भारत-पाक में ही हैं। सोमवार को घोषित विश्व गुलामी सूची-14 के मुताबिक, भारत में गुलाम आबादी या श्रमिक जनसंख्या की चुनौतियां विशाल हैं। 125 करोड़ आबादी होने के कारण यहां हर प्रकार की अवैध गुलामी बढ़ रही है, जिसमें सेक्स ट्रैफिकिंग, बाल श्रम, जबरन विवाह जैसी गंभीर गतिविधियां भी शामिल हैं। गरीब तबके और निचले वर्ग के लोगों को आसानी से इसमें इस्तेमाल किया जा रहा है।

कुछ चार्ट्स देखकर इसको समझने का प्रयास करते हैं: 




इनसे लड़ने के लिए एक सामजिक चेतना की आवश्यकता है, एक ऐसा आंदोलन जिसके द्वारा ह्यूमन ट्रैफिकिंग को रोक जाए। लोग इतने जागरूक बनें जो सतर्क रहे और सामजिक संस्थाओं और पुलिस के साथ मिलकर काम कर सकें। यदि हम और आप कहीं भी कोई अत्याचार होता देखें तो उसे मौन रहकर स्वीकार न करें, प्रतिकार करें और उसका विरोध करें।  

आइये अब आज के ब्लॉग बुलेटिन की ओर चलते हैं...  

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आज का बुलेटिन अंक यहीं तक, कल फिर मिलेंगे एक नए अंक के साथ। 

धन्यवाद आपका, 





6 टिप्पणियाँ:

Rishabh Shukla ने कहा…

सुन्दर बुलेटिन .............

मेरी नयी रचना पर आपके सुझावों का स्वागत है |

http://hindikavitamanch.blogspot.in/2015/11/mitti-ke-diye.html

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुंदर बुलेटिन देव जी । ज्वलंत और चिंतनीय मुद्दा उठाने के लिये साधुवाद ।

प्रहलाद राय व्यास एडवोकेट ने कहा…

गुलाम भारत का चित्रण मार्मिक ,यथार्थ,संवेदनशीलता पैदा करने वाला है।मेरे विचार भी prahladvyas.blogspot.com पे पढ़िए

yashoda Agrawal ने कहा…

यहां आकर ही यथार्थ से अवगत हुई
आभार..
समस्याओं का सामने आना
और हल उस समस्या का नहीं सोच पाना
भी शायद गुलामी का ही संकेत है
अच्छी रचनाएँ भी पढ़वाई आपने देव जी
पुनः आभार

कौशल लाल ने कहा…

सुन्दर बुलेटिन....

शिवम् मिश्रा ने कहा…

विचारणीय बुलेटिन प्रस्तुति ... देव बाबू |

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