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गुरुवार, 12 नवंबर 2015

गोवर्धन पूजन की हार्दिक शुभकामनाएं - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। इस बार गोवर्धन पूजा का पर्व 12 नवम्बर 2015, गुरुवार, यानि कि आज है।

पूजन विधि

गोवर्धन पूजा का पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। इस दिन सुबह शरीर पर तेल की मालिश करके स्नान करना चाहिए। फिर घर के द्वार पर गोबर से गोवर्धन बनाएं। गोबर का अन्नकूट बनाकर उसके समीप विराजमान श्रीकृष्ण के सम्मुख गाय तथा ग्वाल-बालों, इंद्र, वरुण, अग्नि और बलि का पूजन षोडशोपचार द्वारा करें।
 
ऐसे बनता है अन्नकूट
 
अन्नकूट बनाने के लिए कई तरह की सब्जियां, दूध और मावे से बने मिष्ठान और चावल का प्रयोग किया जाता है। अन्नकूट में ऋतु संबंधी अन्न-फल-सब्जियों और फलों का प्रसाद बनाया जाता है। गोवर्धन पूजा में भगवान कृष्ण के साथ धरती पर अन्न उपजाने में मदद करने वाले सभी देवों जैसे, इन्द्र, अग्नि, वृक्ष और जल देवता की भी आराधना की जाती है। गोवर्धन पूजा में इन्द्र की पूजा इसलिए होती है क्योंकि अभिमान चूर होने के बाद इन्द्र ने श्री कृष्ण ने क्षमा मांगी और श्री कृष्ण ने आशीर्वाद स्वरूप गोवर्धन पूजा में इन्द्र की पूजा को भी मान्यता दे दी।
विभिन्न प्रकार के पकवानों व मिष्ठानों का भोग लगाकर पहाड़ की आकृति तैयार करें और उनके मध्य श्रीकृष्ण की मूर्ति रख दें। पूजन के पश्चात कथा सुनें। प्रसाद रूप में दही व चीनी का मिश्रण सब में बांट दें। फिर पुरोहित को भोजन करवाकर उसे दान-दक्षिणा से प्रसन्न करें।
 
इसलिए करते हैं गोवर्धन पर्वत की पूजा
 
एक समय की बात है भगवान श्रीकृष्ण अपने सखाओं, गोप-ग्वालों के साथ गाएं चराते हुए गोवर्धन पर्वत की तराई में जा पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि नाच-गाकर खुशियां मनाई जा रही हैं। जब श्रीकृष्ण ने इसका कारण पूछा तो गोपियों ने कहा कि आज मेघ व देवों के स्वामी इंद्र का पूजन होगा। पूजन से प्रसन्न होकर वे वर्षा करते हैं, जिससे अन्न पैदा होता है तथा ब्रजवासियों का भरण-पोषण होता है। तब श्रीकृष्ण बोले- इंद्र में क्या शक्ति है? उससे अधिक शक्तिशाली तो हमारा गोवर्धन पर्वत है। इसी के कारण वर्षा होती है। हमें इंद्र से भी बलवान गोवर्धन की ही पूजा करना चाहिए।
तब सभी श्रीकृष्ण की बात मानकर गोवर्धन की पूजा करने लगे। यह बात जाकर नारद ने इंद्र को बता दी। यह सुनकर इंद्र को बहुत क्रोध आया। इंद्र ने मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर प्रलय मूसलाधार बारिश करें। बारिश से भयभीत होकर सभी गोप-ग्वाले श्रीकृष्ण की शरण में गए और रक्षा की प्रार्थना करने लगे। गोप-गोपियों की पुकार सुनकर श्रीकृष्ण बोले- तुम सब गोवर्धन-पर्वत की शरण में चलो। वह सब की रक्षा करेंगे। सब गोप-ग्वाले पशुधन सहित गोवर्धन की तराई में आ गए। श्रीकृष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्ठिका अंगुली पर उठाकर छाते-सा तान दिया।
गोप-ग्वाले सात दिन तक उसी की छाया में रहकर अतिवृष्टि से बच गए। सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर एक जल की एक बूंद भी नहीं पड़ीा। यह चमत्कार देखकर ब्रह्माजी द्वारा श्रीकृष्णावतार की बात जान कर इंद्र देव अपनी मूर्खता पर पश्चाताप करते हुए कृष्ण से क्षमायाचना करने लगे। श्रीकृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन को नीचे रखा और ब्रजवासियों से कहा कि अब तुम प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाया करो। तभी से यह पर्व के रूप में प्रचलित है।
 
क्या सीखें
 
श्रीकृष्ण ने इस घटना के माध्यम से बताया है कि भ्रष्टाचार बढ़ाने में दो पक्षों का हाथ होता है। एक जो कर्तव्यों के पालन के लिए अनुचित लाभ की मांग करता है, दूसरा वह पक्ष जो ऐसी मांगों पर बिना विचार और विरोध के लाभ पहुंचाने का काम करता है। इंद्र मेघों का राजा है, लेकिन पानी बरसाना उसका कर्तव्य है। इसके लिए उसकी पूजा की जाए या उसके लिए यज्ञ किए जाएं, आवश्यक नहीं है। अनुचित मांगों पर विरोध जरूरी है। जो लोग किसी अधिकारी या जनप्रतिनिधि को उसके कर्तव्य की पूर्ति के लिए रिश्वत देते हैं तो वे भी भ्रष्टाचार फैलाने के दोषी हैं।
 
गोवर्धन पूजा का महत्व
 
हमारे कृषि प्रधान देश में गोवर्धन पूजा जैसे प्रेरणाप्रद पर्व की अत्यंत आवश्यकता है। इसके पीछे एक महान संदेश पृथ्वी और गाय दोनों की उन्नति तथा विकास की ओर ध्यान देना और उनके संवर्धन के लिए सदा प्रयत्नशील होना छिपा है। अन्नकूट का महोत्सव भी गोवर्धन पूजा के  दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को ही मनाया जाता है। यह ब्रजवासियों का मुख्य त्योहार है।
अन्नकूट या गोवर्धन पूजा का पर्व यूं तो अति प्राचीनकाल से मनाया जाता रहा है, लेकिन आज जो विधान मौजूद है वह भगवान श्रीकृष्ण के इस धरा पर अवतरित होने के बाद द्वापर युग से आरंभ हुआ है। उस समय जहां वर्षा के देवता इंद्र की ही उस दिन पूजा की जाती थी, वहीं अब गोवर्धन पूजा भी प्रचलन में आ गई है। धर्मग्रंथों में इस दिन इंद्र, वरुण, अग्नि आदि देवताओं की पूजा करने का उल्लेख मिलता है।
उल्लेखनीय है कि ये पूजन पशुधन व अन्न आदि के भंडार के लिए किया जाता है। बालखिल्य ऋषि का कहना है कि अन्नकूट और गोवर्धन उत्सव श्रीविष्णु भगवान की प्रसन्नता के लिए मनाना चाहिए। इन पर्वों से गायों का कल्याण होता है, पुत्र, पौत्रादि संततियां प्राप्त होती हैं, ऐश्वर्य और सुख प्राप्त होता है। कार्तिक के महीने में जो कुछ भी जप, होम, अर्चन किया जाता है, इन सबकी फल प्राप्ति हेतु गोवर्धन पूजन अवश्य करना चाहिए।
 
ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से आप सभी को गोवर्धन पूजन के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं|
 
सादर आपका
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147. दीवाली (2015)

जयदीप शेखर at कभी-कभार 
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अब आज्ञा दीजिये ...
 
जय हिन्द !!! 

6 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति । 'NAAC कथा' को स्थान देने के लिये 'उलूक' का आभार ।

गोपेश मोहन जैसवाल ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन में 'पिताजी का फिल्म-प्रेम' प्रकाशित करने के लिए धन्यवाद. आप सबको भैया दूज की बधाई.

Arun sathi ने कहा…

सराहनीय

कविता रावत ने कहा…

बहुत बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!
भैया दूज की हार्दिक शुभकामनायें!

शिवम् मिश्रा ने कहा…

आप सब का बहुत बहुत आभार |

Admin ने कहा…

शि‍वम जी, बुलेटिन के माध्यम से अच्छी जानकारी मिली। बुलेटिन में लजीज खाना को शामिल करने का शुक्रिया।

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