प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
स्पीकर बोला , ” अरे! क्या हुआ , आप सभी खाली हाथ क्यों हैं ? क्या किसी को अपने नाम वाला गुब्बारा नहीं मिला ?” "नहीं ! हमने बहुत ढूंढा पर हमेशा किसी और के नाम का ही गुब्बारा हाथ आया”, एक पार्टिसिपेंट कुछ मायूस होते हुए बोला।
“कोई बात नहीं , आप लोग एक बार फिर कमरे में जाइये , पर इस बार जिसे जो भी गुब्बारा मिले उसे अपने हाथ में ले और उस व्यक्ति का नाम पुकारे जिसका नाम उसपर लिखा हुआ है।“, स्पीकर ने निर्दश दिया।
एक बार फिर सभी पार्टिसिपेंट्स कमरे में गए, पर इस बार सब शांत थे , और - कमरे में किसी तरह की अफरा- तफरी नहीं मची हुई थी। सभी ने एक दुसरे को उनके नाम के गुब्बारे दिए और तीन मिनट में ही बाहर निकले आये। स्पीकर ने गम्भीर होते हुए कहा ,” बिलकुल यही चीज हमारे जीवन में भी हो रही है। हर कोई अपने लिए ही जी रहा है , उसे इससे कोई मतलब नहीं कि वह किस तरह औरों की मदद कर सकता है , वह तो बस पागलों की तरह अपनी ही खुशियाँ ढूंढ रहा है , पर बहुत ढूंढने के बाद भी उसे कुछ नहीं मिलता ,दोस्तों हमारी ख़ुशी दूसरों की ख़ुशी में छिपी हुई है।
Moral of the Story: जब तुम औरों को उनकी खुशियाँ देना सीख जाओगे तो अपने आप ही तुम्हे तुम्हारी खुशियाँ मिल जाएँगी।
सादर आपका
शिवम् मिश्रा
प्रणाम |
आज नीलिमा शर्मा जी की फेसबुक प्रोफ़ाइल पर एक बेहद सार्थक स्टेटस पढ़ने को मिला तो सोचा आप सब को भी पढ़वाया जाये ... तो लीजिये पढ़िये |
एक बार पचास लोगों का ग्रुप किसी सेमीनार में हिस्सा ले रहा था। सेमीनार
शुरू हुए अभी कुछ ही मिनट बीते थे कि- स्पीकर अचानक ही रुका और सभी
पार्टिसिपेंट्स को गुब्बारे देते हुए बोला , ”आप सभी को गुब्बारे पर इस
मार्कर से अपना नाम लिखना है।” सभी ने ऐसा ही किया। अब गुब्बारों को एक
दुसरे कमरे में रख दिया गया।
स्पीकर ने अब सभी को एक साथ कमरे में
जाकर पांच मिनट के अंदर अपना नाम वाला गुब्बारा ढूंढने के लिए कहा। सारे
पार्टिसिपेंट्स तेजी से रूम में घुसे और पागलों की तरह अपना नाम वाला
गुब्बारा ढूंढने लगे। पर इस अफरा-तफरी में
किसी को भी अपने नाम वाला गुब्बारा नहीं मिल पा रहा था… 5 पांच मिनट बाद
सभी को बाहर बुला लिया गया।
स्पीकर बोला , ” अरे! क्या हुआ , आप सभी खाली हाथ क्यों हैं ? क्या किसी को अपने नाम वाला गुब्बारा नहीं मिला ?” "नहीं ! हमने बहुत ढूंढा पर हमेशा किसी और के नाम का ही गुब्बारा हाथ आया”, एक पार्टिसिपेंट कुछ मायूस होते हुए बोला।
“कोई बात नहीं , आप लोग एक बार फिर कमरे में जाइये , पर इस बार जिसे जो भी गुब्बारा मिले उसे अपने हाथ में ले और उस व्यक्ति का नाम पुकारे जिसका नाम उसपर लिखा हुआ है।“, स्पीकर ने निर्दश दिया।
एक बार फिर सभी पार्टिसिपेंट्स कमरे में गए, पर इस बार सब शांत थे , और - कमरे में किसी तरह की अफरा- तफरी नहीं मची हुई थी। सभी ने एक दुसरे को उनके नाम के गुब्बारे दिए और तीन मिनट में ही बाहर निकले आये। स्पीकर ने गम्भीर होते हुए कहा ,” बिलकुल यही चीज हमारे जीवन में भी हो रही है। हर कोई अपने लिए ही जी रहा है , उसे इससे कोई मतलब नहीं कि वह किस तरह औरों की मदद कर सकता है , वह तो बस पागलों की तरह अपनी ही खुशियाँ ढूंढ रहा है , पर बहुत ढूंढने के बाद भी उसे कुछ नहीं मिलता ,दोस्तों हमारी ख़ुशी दूसरों की ख़ुशी में छिपी हुई है।
Moral of the Story: जब तुम औरों को उनकी खुशियाँ देना सीख जाओगे तो अपने आप ही तुम्हे तुम्हारी खुशियाँ मिल जाएँगी।
सादर आपका
शिवम् मिश्रा
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सम्मान श्रध्दा और आस्था
rajendra sharma at चिंतन(chintan)माँ तुझे सलाम ! (14)
रेखा श्रीवास्तव at मेरा सरोकारकौन सिखाता है इन्हें!!
anamika singh at क्षणकहाँ से लाएँ नुक्स !
संतोष त्रिवेदी at टेढ़ी उँगलीआदतन मजबूर !!!!
प्रीती बाजपेयी at कोना खाली आँगन का ......कुछ बिखरे बिखरे ..... हम.....
prritiy----sneh at .... PRRITIY .... प्रीति ....फ़ेसबुक पर केवल बेसिर-पैर की बातें …..
अजय कुमार झा at फ़ेसबुक .....चेहरों के अफ़सानेमेरी हकीकत...
Mahesh Barmate at माही....मुट्ठी में आकाश है .....
Sriram Roy at poetry by sriram
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!
9 टिप्पणियाँ:
अच्छे लिंक्स के साथ खुशियों का असली पैगाम :)
बढ़िया प्रस्तुति व लिंक्स , शिवम भाई व बुलेटिन को धन्यवाद !
I.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
सुंदर कहानी सीख भी बहुत काम की। सूत्रों पर जाते हैं और पढते हैं।
सुन्दर सयोजन, प्रसन्नता हुई पढ़ कर ...धन्यवाद हमारी रचना को शामिल करने क लिए|
पढ़ते हैं जाकर।
धन्यवाद, शिवम जी !
आभार शिवम् भाई।
आप सब का बहुत बहुत आभार ।
bahut achhi shuruat ke saath sunder links diye gaye hain. inmein meripanktiyon ko sthan dene ke liye dhanywad.
shubhkamnayen
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