पिछले साल गुजरात की बारिश ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये. मगर गर्मी से
राहत भी मिली. एक शाम हम लोग अपने घर की बालकनी में बैठे सड़क का नज़ारा देख रहे थे.
रिमझिम बरसता पानी और सड़क पर कमर तक पानी का जमाव. लोग अपनी स्कूटी पर पानी में
तैरते हुये भाग रहे थे. तभी हमने देखा कि गायों का एक झुण्ड सामने वाले रास्ते से
आया और पानी से बचने के लिये कोई आसरा खोजने लगा.
थोड़ी दूर पर एक मकान के सामने बने टिन के शेड के नीचे जगह भी थी और
वहाँ बारिश का पानी भी नहीं गिर रहा था. सारी गायें उसी ओर लपक लीं. इसी भागदौड़
में गाय का एक बछड़ा पीछे रह गया और अपने झुण्ड से अलग हो गया. जैसे ही उसे अपने
अकेलेपन का एहसास हुआ, उसने ज़ोर से आवाज़ लगाई, “माँsssss!!” और ताज्जुब की बात यह थी कि शेड तक पहुँच चुकी गायों ने वो पुकार
सुनी और तुरत पलटकर तीन चार गायें उस बछड़े तक पहुँचीं.
और इसके बाद जो दृश्य दिखाई दिया उसे देखकर बस हाथ उठाकर उस परमात्मा का धन्यवाद करने का जी चाहा. चारो गायों ने उस बछड़े को दो-दो की कतार में घेर लिया और सड़क पर बहते हुये पानी के बहाव से सम्भालती हुई उस शेड तक ले गयीं. बछड़े की आँखों से घबराहट ग़ायब हो चुकी थी और शेड में पहुँचते ही बाकी की गायें उसे घेरकर उसका हाल पूछने लगी थीं. चार माँओं के उस बेटे ने पता नहीं अपने शौर्य की कौन सी दास्तान सुनाई, लेकिन मुझे माता के इस स्वरूप को देखकर परमात्मा के साक्षात दर्शन हुए.
एक बछड़ा और उसकी चार-चार माएँ. यह सिफत ईश्वर ने सिर्फ उसी शख्स को
बख्शी है जिसे माँ कहते हैं. किसी का भी बच्चा पड़ोस में रोये तो कोई भी माँ चैन से
नहीं सो पाती. मातृ दिवस पर तमाम माताओं को मेरा नमन.
ऑफिस में समाचार पत्र “राजस्थान पत्रिका” के परिशिष्ट में एक बड़ी
सुन्दर कविता और एक बहुत ही सुन्दर कॉलम दिखाई दिया.
कविता कवि जगदीश व्योम की:
माँ कबीर की साखी जैसी, तुलसी की चौपाई सी,
माँ मीरा की पदावलि सी, माँ है ललित रूबाई सी,
माँ वेदों की मूल चेतना, माँ गीता की वाणी सी,
माँ त्रिपिटक के सिद्ध सूक्त सी, लोकोत्तर कल्याणी सी,
माँ द्वारे की तुलसी जैसी, माँ बरगद की छाया सी,
माँ कविता की सहज वेदना, महाकाव्य की काया-सी!!
अब वो सुन्दर सा कॉलम जो कहता है कि माँ को अपनी
संतान के विषय में सब पता होता है. लेकिन संतान को कितना पता होता है अपनी माँ के
बारे में. आप बताइये और आनन्द लीजिये कुछ चुनी हुई पुरानी पोस्ट्स का, जिनमें माँ
के अनगिनत रूप दिखाई देंगे आपको.
आपकी माँ का नाम आपकी
माँ की ऊँचाई और वज़न
माँ का पसन्दीदा रंग माँ
का पसन्दीदा खाना
माँ हमेशा कहती है माँ
सबसे अच्छा पकाती है
माँ हँसती है, जब ख़ाली
समय में क्या करती है
माँ को वाक़ई पसन्द है माँ
से प्यार करता/करती हूँ क्योंकि
जवाब
दीजिये और मेरी ओर से “मातृ दिवस” पर माँ तुझे सलाम...!!
- सलिल वर्मा
और एक रूप यह भी माँ से विदा लेने का
16 टिप्पणियाँ:
वंदे मातरम! माँ को नमन…!
सदके आपकी पारखी नज़र के! “माँ” पर एकाग्र, चुन-चुन कर लायी गयी पोस्टों का यह संकलन तो एक शोध ग्रंथ बन गया। संग्रहणीय...!
आज के बेजोड़ ब्लॉग बुलेटिन का लिंक मैंने अपने फेसबुक पेज पर भी शेयर किया है...
जब तक पूरा पढ़ नहीं लिया - चैन नहीं पड़ा !
बहुत सुन्दर पोस्ट सलिल भाई, मन भीग गया पढक़र,
कहते है जो जितने हमारे क़रीब होता है हम उनसे उतने ही अनजान होते चले जाते है लेकिन माँ हमारे बारे सब जानती है दुर रहकर भी, मै अपने माँ से बहुत प्यार करती हूँ क्योंकि माँ ही सबसे प्रथम सिखाती है प्रेम करना, मै आपकी पारखी नजरों की कायल हूँ आपकी इस बुलेटिन मे मेरी रचना को शामिल किया है मै आभारी हूँ आपकी !
लाजबाब सुंदर लिंक प्रस्तुति ...! आभार
RECENT POST आम बस तुम आम हो
बहुत बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति
बढ़िया लिंक्स व प्रस्तुति , बुलेटिन को धन्यवाद !
I.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
जिस घटना का ज़िक्र मैंने बुलेटिन में किया है उसे बहुत दिनों से ब्लॉग पर लिखना चाहता था. लेकिन बस टलता चला गया किसी न किसी कारण से. आज मातृ दिवस के अवसर पर, सोचा कि माँ सिर्फ वही नहीं होती है जिसने हमें जन्म दिया. धरती माम और प्रकृति माँ को तो हम भूले ही रहते हैं. और ऐसे में गुजरात में गऊ माता का सम्मान देख ऐसा लगा कि "माँ" का विस्तार कितना अपार है!
इस बुलेटिन को आप लोगों ने सराहा, यही विश्व की तमाम माताओं के प्रति सम्मान है! नतमस्तक हूँ सभी माताओं के समक्ष!!
आपके अनुभवों के पुष्प हमेशा एक नई सुगन्ध देते हैं । इसी तरह रचनाओं का चयन भी । यही कारण है कि सभी पोस्ट पढ डालीं हैं ।
वंदे मातरम !!
आपके पारखी नज़र की दाद देते हैं। सुंदर अनुभव और अति सुंदर कविता बहुत ही अचछी लगी। अब जाते हैं पोस्टों पर भी जो उम्मीद से भी अच्छी होंगी।
ममता से सराबोर संकलन, आभार।
गौमाता से गंगामाई तक ममता का सतरंगी इन्द्रधनुष देखने को मिला। आभार!
बहुत ही सुंदर संकलन, आभार.
रामराम.
सब बहती भावनाओ की इस नदी को सागर बन छुपा लिया खुद में।
पवित्र संकलन शिवम् सर।
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