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बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

देश-सेवा ही ईश्वर-सेवा है - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज २६ फरवरी है - आज भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता वीर सावरकर जी की ४८ वीं पुण्यतिथि है | 
विनायक दामोदर सावरकर ( जन्म: २८ मई १८८३ - मृत्यु: २६ फरवरी १९६६) भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। उन्हें प्रायः वीर सावरकर के नाम से सम्बोधित किया जाता है। हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा (हिन्दुत्व) को विकसित करने का बहुत बडा श्रेय सावरकर को जाता है। वे न केवल स्वाधीनता-संग्राम के एक तेजस्वी सेनानी थे अपितु महान क्रान्तिकारी, चिन्तक, सिद्धहस्त लेखक, कवि, ओजस्वी वक्ता तथा दूरदर्शी राजनेता भी थे। वे एक ऐसे इतिहासकार भी हैं जिन्होंने हिन्दू राष्ट्र की विजय के इतिहास को प्रामाणिक ढँग से लिपिबद्ध किया है। उन्होंने १८५७ के प्रथम स्वातंत्र्य समर का सनसनीखेज व खोजपूर्ण इतिहास लिखकर ब्रिटिश शासन को हिला कर रख दिया था।

सावरकर एक प्रख्यात समाज सुधारक थे। उनका दृढ़ विश्वास था, कि सामाजिक एवं सार्वजनिक सुधार बराबरी का महत्त्व रखते हैं व एक दूसरे के पूरक हैं। उनके समय में समाज बहुत सी कुरीतियों और बेड़ियों के बंधनों में जकड़ा हुआ था। इस कारण हिन्दू समाज बहुत ही दुर्बल हो गया था। अपने भाषणों, लेखों व कृत्यों से इन्होंने समाज सुधार के निरंतर प्रयास किए। हालांकि यह भी सत्य है, कि सावरकर ने सामाजिक कार्यों में तब ध्यान लगाया, जब उन्हें राजनीतिक कलापों से निषेध कर दिया गया था। किंतु उनका समाज सुधार जीवन पर्यन्त चला। उनके सामाजिक उत्थान कार्यक्रम ना केवल हिन्दुओं के लिए बल्कि राष्ट्र को समर्पित होते थे। १९२४ से १९३७ का समय इनके जीवन का समाज सुधार को समर्पित काल रहा।

सावरकर के अनुसार हिन्दू समाज सात बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। ।
  • स्पर्शबंदी: निम्न जातियों का स्पर्श तक निषेध, अस्पृश्यता
  • रोटीबंदी: निम्न जातियों के साथ खानपान निषेध
  • बेटीबंदी: खास जातियों के संग विवाह संबंध निषेध
  • व्यवसायबंदी: कुछ निश्चित व्यवसाय निषेध
  • सिंधुबंदी: सागरपार यात्रा, व्यवसाय निषेध
  • वेदोक्तबंदी: वेद के कर्मकाण्डों का एक वर्ग को निषेध
  • शुद्धिबंदी: किसी को वापस हिन्दूकरण पर निषेध
अंडमान की सेल्यूलर जेल में रहते हुए उन्होंने बंदियों को शिक्षित करने का काम तो किया ही, साथ ही साथ वहां हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु काफी प्रयास किया। सावरकरजी हिंदू समाज में प्रचलित जाति-भेद एवं छुआछूत के घोर विरोधी थे। बंबई का पतितपावन मंदिर इसका जीवंत उदाहरण है, जो हिन्दू धर्म की प्रत्येक जाति के लोगों के लिए समान रूप से खुला है।। पिछले सौ वर्षों में इन बंधनों से किसी हद तक मुक्ति सावरकर के ही अथक प्रयासों का परिणाम है|
 

ब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से हम वीर सावरकर जी को उनकी ४८ वीं पुण्यतिथि पर शत शत नमन करते है |
सादर आपका 
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!! 

7 टिप्पणियाँ:

दीपक बाबा ने कहा…

वीर सवारकर के जीवन और बलिदान को शत शत नमन

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वीर सवारकर को कोटिश नमन । बहुत कुछ है आज के बुलेटिन में सुंदर ।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

समाज की यह जकड़न धीरे धीरे ही जायेगी। सुन्दर और पठनीय सूत्र, आभार।

Asha Lata Saxena ने कहा…

सुप्रभात ,
वीर सावरकर जी को शत शत नमन |उनके बारे जानकारी देता लेख बहुत शानदार |
सुन्दर सूत्र संयोजन |
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

आभार,
अच्छे लिंक्स

शिवम् मिश्रा ने कहा…

आप सब का बहुत बहुत आभार |

Http://meraapnasapna.blogspot.com ने कहा…

मेरी रचना शामिल करने के लिये बहुत-२ आभार सर !!
खेद हैं देरी के लिये.…
एक्चुअली मुझे आज ही पता चला सो :-)

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