ब्लॉग बुलेटिन का ख़ास संस्करण -
अवलोकन २०१३ ...
कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
तो लीजिये पेश है अवलोकन २०१३ का आठवाँ भाग ...
कभी प्यार किया है शब्दों से
जो जेहन में उभरते हैं
और पन्नों पर उतरने से पहले गुम हो जाते हैं
उन शब्दों से रिश्ता बनाया है
जो नश्तर बन
दिल दिमाग को अपाहिज बना देते हैं ...
इन शब्दों को श्रवण बन कितना भी संजो लो
इन्हें जाने अनजाने मारने के लिए
कई ज़हरी्ले वाण होते हैं
लेकिन शब्द = फिर भी पनपते हैं
क्योंकि उन्हें खुद पर भरोसा होता है ……
जो जेहन में उभरते हैं
और पन्नों पर उतरने से पहले गुम हो जाते हैं
उन शब्दों से रिश्ता बनाया है
जो नश्तर बन
दिल दिमाग को अपाहिज बना देते हैं ...
इन शब्दों को श्रवण बन कितना भी संजो लो
इन्हें जाने अनजाने मारने के लिए
कई ज़हरी्ले वाण होते हैं
लेकिन शब्द = फिर भी पनपते हैं
क्योंकि उन्हें खुद पर भरोसा होता है ……
इंसान जन्म ना ले,शब्द ना जन्म लें - तो न सृष्टि की भूमिका होगी,नहीं जागेगा सत्य और ना ही होगा कोई उत्थान या अवसान =
मन पाए विश्राम जहाँ: कोई है
यह अनंत सृष्टि एक रहस्य का आवरण ओढ़े हुए है, काव्य में यह शक्ति है कि उस रहस्य को उजागर करे
या उसे और भी घना कर दे!
लिखना मेरे लिये सत्य के निकट आने का प्रयास है. (अनीता निहलानी)
कोई है
सुनो ! कोई है
जो प्रतिपल तुम्हारे साथ है
तुम्हें दुलराता हुआ
सहलाता हुआ
आश्वस्त करता हुआ !
कोई है
जो छा जाना चाहता है
तुम्हारी पलकों में प्यार बनकर
तुम्हारे अधरों पर मुस्कान बनकर
तुम्हारे अंतर में
सुगंध बनकर फूटना चाहता है !
कोई है
थमो, दो पल तो रुको
उसे अपना मीत बनाओ
खिलखिलाते झरनों की हँसी बनकर
जो घुमड़ रहा है तुम्हारे भीतर
उजागर होने दो उसे !
कोई है
जो थामता है तुम्हारा हाथ
हर क्षण
वह अपने आप से भी नितांत अपना
बचाता है अंधेरों से ज्योति बन के
समाया है तुम्हारे भीतर
उसे पहचानो
सुनो, कोई है !
निशा मोटघरे,
औरंगाबाद, महाराष्ट्र
यह एक अनोखी, अटूट प्रेम कहानी है।
शायद ही यह आपने कभी सुनी हो।
करोडों साल पहले हुआ था,
धरा का निर्माण,
बने चांद सितारे,
बना आसमान,
मौसम बने अनेक,
बदले धरा ने भी रुप अनेक,
गर्मी मे झुलसती है वह,
बारिश मे होती हैं छटा निराली,
मानो किसी ने ओढी चुनर धानी,
धरा हैं माँ, अति सहनशील,
कर लेती अपने आंचल में,
हर जीव को शामिल,
दूर गगन में बैठा ध्रुव,
देखा करता था,
धरा की हर चितवन,
धरा की नित नयी, मनोहारी चितवन
पर मोहित था वह,
परंतु, दोनो ही ब्रंह्माड के नियमो में
बंधे थे,
ध्रुव ने उत्तर दिशा का स्थान पाया था बडे तप से,
उस पर वह अडिग था,
दोनो के बीच थे अंतरिक्ष के फ़ासले,
फ़िर एक दिन दोनो के बीच संवाद कुछ यो हुआ,
ध्रुव--तुम हो धरा, मैं आसमान का तारा,
धरा--हाँ, नही होगा कभी मिलन हमारा,
ध्रुव--प्रिया हो तुम मेरी, बोलो भेट तुम्हे क्या दु?
धरा तो माँ, और हर माँ की भाँति उसने
अपने बच्चो का हित ही सोचा,
ध्रुव ने धरा के मनोभावो को पहचाना,
वचन दिया उसने धरा को,
"तुम्हारे बच्चो को आजन्म दिशाज्ञान कराऊंगा,"
समुद्री नाविक, मुसाफ़िर,
अंधेरी रातो में जब रास्ता भटक जायेंगे,
उत्तर दिशा में मैं उन्हे नजर आऊगा,
उत्तर दिशा का ज्ञान होने पर,
वे अपनी आगे की यात्रा निर्धारित करेंगे,
तभी से उत्तर दिशा का चमकता ध्रुव तारा,
धरा को दिया हुआ अपना वचन निभा रहा है,
उसका धरा के प्रति यह अटूट प्रेम,
हमेशा मानव कल्याण के लिये रहेगा
यह प्रेम एक मिसाल है, कि
"प्रेम देने का नाम होता है, लेने का नहीं"
singhramakant67@gmail.com *********+919827883541******** *******
आज फिर जीने की तमन्ना है************** आज फिर मरने का इरादा है.
(रमाकांत सिंह)
कोई हमें कहां ले जायेगा?
ले भी गया तो क्या पायेगा?
कुछ ही पलों में वो हमसे
परेशान हैरान हो जायेगा
बिना मुस्कुराये हमें वापस
अकेला राह पर छोड़ जायेगा
उपर उछालोगे तो बालक
आँखें मींचकर गाना ही गायेगा?
सोचते हो पानी गिरेगा तो?
शानू दौड़कर छाता ही लायेगा?
हम जीते हैं रोज इसी धूप में
और बिखर जाती है छाँव कब?
जीवन के आपाधापी में बस
यही रंग पल पल आयेगा
माँ रोज कहानी सुनाती है
बेटा आज चंदामामा आयेगा
माँ की इसी कहानी में उम्मीदें हैं,नींद में सपने हैं - थोड़ी देर के लिए पारियां दिख ही जाती हैं और हारा हुआ आदमी कवि बन जाता है :)
12 टिप्पणियाँ:
जीवन के आपाधापी में बस
यही रंग पल पल आयेगा
माँ रोज कहानी सुनाती है
बेटा आज चंदामामा आयेगा .... क्या बात है, चयन एवं प्रस्तुति लाजवाब
आभार आपका
आपका हृदय से आभार आपने मेरी रचना को महान लेखको और कवियो के मध्य स्थान दिया
प्रणाम स्वीकारे
रचनाओं की आपकी परख, चयन एवँ प्रस्तुतिकरण अनुपम होता है रश्मिप्रभा जी ! एक से बढ़ कर एक दुर्लभ एवँ बेशकीमती मोती आप ब्लॉग सागर की अतल गहराइयों से ढूँढ निकालती हैं और सबके साथ उन्हें साँझा भी करती हैं आपको अनेकानेक धन्यवाद ! हर रचना बेमिसाल है !
मधेपुरा टुडे की ओर से बहुत-बहुत आभार..
आँठवा मील का पत्थर
हर तरीके से बहुत सुंदर !
जय हो ... बेहद उम्दा तरीके से यह सफर चल रहा है ... यह सिलसिला यूं ही बना रहे ... जय हो दीदी !
ब्लॉग बुलेटिन की सफलता की कामना करते हुए हृदय से आभार !
हमेशा कि तरह रिच पोस्ट....शानदार...!!!!!
शानदार चयन ………आभार
- सुबह की प्रार्थना जैसी पवित्रता है इस रचना में .....
कोई है जो हमारा अपना है
नितांत अपना .......
- उफ्फ्फ ....कितनी सरल और सुंदर कथा है धरा और ध्रुव की ...मन को भिगोती हुई
- " जीवन के आपाधापी में बस
यही रंग पल पल आयेगा
माँ रोज कहानी सुनाती है
बेटा आज चंदामामा आयेगा".........उम्मीद जब तक है तब तक साँस में जीवन वरन साँस क्या है ...शरीर को चलाने वाली मात्र एक प्रक्रिया
........रश्मि जी शुक्रिया
रोचक प्रस्तुति...
Dr Rama Dwivedi..
बहुत सुन्दर संकलन … बहुत-बहुत बधाई...
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