ब्लॉग बुलेटिन का ख़ास संस्करण -
अवलोकन २०१३ ...
कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
तो लीजिये पेश है अवलोकन २०१३ का दसवाँ भाग ...
नाराज़गी तब तक ही रहती है ज़िंदा
जब तक वो शख्स है ज़िंदा
जिससे हम नाराज़ हो जाते हैं
खत्म हो जाती है नाराज़गी
ज़िंदा हो जाती है अहमियत
बस उसके जाते ही ....
(कमल किशोर जैन)
कितनी आसानी से कह दिया था मैंने
कि निभा लूँगा मैं तुम्हारे बिना,
अब याद भी नहीं करूँगा तुम्हे
मगर तुम हर पल याद आते हो
जब किसी कठिन क्षण में
नहीं होता है कोई सहारा
जब नहीं समझ पाता हूँ
दुनियादारी के दांव पेच
जब याद आते है वो पल
जो नसीब हुए थे सिर्फ तुम्हारी वजह से
एक तुम्हारे ही भरोसे तो चल पड़ता था
कहीं भी, कभी भी
जब कोई गलती करने से पहले कुछ सोचना नहीं पड़ता था
मालूम था, की हर गलती सुधारने क
तुम साथ ही हो..
यहीं कहीं.. मेरे साथ.. मेरे पास
मगर अब जब तुम नहीं हो
तुम्हारी याद हर पल आती है..
पापा.. काश तुम यूँ नहीं गए होते
तो मैं आज भी मैं ही होता..
यूँ इतना बदल नहीं गया होता.
मैं हर पल यही कोशिश करता हूँ
की बन सकू तुम्हारे जैसा
जबकि मैं ये भी जानता हूँ की
ये मुमकिन ही नहीं.. कभी नहीं
पापा.. तुम जैसे बस तुम्ही थे..
कोई और नहीं..
उत्तर के बियाबान में बस सिर्फ तुम्हारी तलाश है
शब्दों की यात्रा में, शब्दों के अनगिनत यात्री मिलते हैं, शब्दों के आदान प्रदान से भावनाओं काअनजाना रिश्ता बनता है - गर शब्दों के असली मोती भावनाओं की आँच से तपे हैं तो यकीनन गुलमर्ग यहीं है...सिहरते मन को शब्दों से तुम सजाओ, हम भी सजाएँ, यात्रा को सार्थक करें..
(रश्मि प्रभा.)
आँचल की गांठ से
चाभियों का गुच्छा हटा
हर दिन
तुम एक भ्रम बाँध लिया करती
सोने से पहले
सबकी आँखें पोछती
थके शरीर के थके पोरों के बीच
भ्रम की पट्टी बाँध …
हमारे सपनों को विश्वास देती
. !!!
अब जब भ्रम टूटा है
सत्य का विकृत स्वरुप उभरा है
तब …
एथेंस का सत्यार्थी बनने का साहस
तुम्हारे कमज़ोर शरीर के सबल अस्तित्व में
पूर्णतः विलीन हो चुका है !
तुम सच कहा करती थी -
अगर हर बात से पर्दा हटा दिया जाये
तो जीना मुश्किल हो जाये ….
तुम्हारे होते सच को उजागर करने की
सच कहने-सुनने की
एक जिद सी थी
अब - एक प्रश्न है कुम्हलाया सा
कि सच को पाकर होगाभी क्या !!!
कांपते शरीर में
न जाने कितनी बार
कितने सत्य को तुमने आत्मसात किया
दुह्स्वप्नों के शमशान में भयभीत घूमती रही
और मोह में बैठी
हमारे चमत्कृत कुछ करगुजरने की कहानियाँ सुनती गई
जो कभी घटित नहीं होना था …
तुम्हारा सामर्थ्य ही मछली की आँखें थीं
जो हमें अर्जुन बनाती
तुम्हारी मुस्कान - हमारा कवच भी होतीं
और हमारे मनोरथ की सारथि भी
… अब तो न युद्ध है
न प्रेम
है - तो एक सन्नाटा
जिसे मैं तुमसे मिली विरासत की खूबियों से
तोड़ने का प्रयास करती हूँ
….
कृष्ण,पितामह,कर्ण,अर्जुन,विदुर ….
सबकी मनोदशा चक्रव्यूह में अवाक है
प्रश्नों का गांडीव हमने नीचे रख दिया है
क्योंकि ……
अब कहीं कोई प्रश्न शेष नहीं रहा
उत्तर के बियाबान में हमें सिर्फ तुम्हारी तलाश है !!!
कभी सुकून मिला तो दिल गुनगुनाया..या कभी दर्द हुआ तो मन कसमसाया...और जो दिल में आया उसको ढाल दिया शब्दों में....अनजाने ही बन गयी कविता..
(अनुलता राज नायर. )
तुम्हारी स्मृतियाँ पल रही हैं
मेरे मन की
घनी अमराई में |
कुछ उम्मीद भरी बातें अक्सर
झाँकने लगतीं है
जैसे
बूढ़े पीपल की कोटर से झांकते हों
काली कोयल के बच्चे !!
इन स्मृतियाँ ने यात्रा की है
नंगे पांव
मौसम दर मौसम
सूखे से सावन तक
बचपन से यौवन तक |
और कुछ स्मृतियाँ तुम्हारी
छिपी हैं कहीं भीतर
और आपस में स्नेहिल संवाद करती हैं,
जैसे हम छिपते थे दरख्तों के पीछे
अपने सपनों की अदला बदली करने को |
तुम नहीं
पर स्मृतियाँ अब भी मेरे साथ हैं
वे नहीं गयीं तेरे साथ शहर !!
मुझे स्मरण है अब भी तेरी हर बात,
तेरा प्रेम,तेरी हंसी,तेरी ठिठोली
और जामुन के बहाने से,
खिलाई थी तूने जो निम्बोली !!
अब तक जुबां पर
जस का तस रक्खा है
वो कड़वा स्वाद
अतीत की स्मृतियों का !!
अतीत !!! वर्त्तमान पलक झपकते अतीत बन जाता है, और उसका स्वाद -कभी मीठा,कभी कसैला,कभी आंसुओं से भीगा वर्त्तमान से जुड़ता रहता है - बिना अतीत के वर्त्तमान कहाँ होता है !!!
14 टिप्पणियाँ:
बहुत उम्दा .................अनु और रश्मि जी आपको बहुत पढ़ा और बहुत कुछ सीखा .कम जैन जी की कविता बहुत उम्दा
सुंदर संयोजन
बहुत सुंदर एक से बढ़कर एक !
सत्य वचन ... बिना अतीत ... वर्तमान संभव नहीं ... बिना वर्तमान भविष्य |
आज की पोस्ट तो बहुत ही भायी दी :-)
अपने आप को यहाँ देख कर आनंदित हूँ !! आभारी हूँ कि आपने मुझे इस लायक समझा......
सादर
अनु
बिल्कुल सही बात है, प्रतिभाओं की तो बिल्कुल कमी नहीं।
अच्छा संकलन किया है आपने..
बहुत उत्कृष्ट रचनाएँ...
सुन्दर अवलोकन।।
sundar snkalan.........
बहुत ही अनुपम रचनायें रश्मिप्रभा जी ! हर शब्द आँखों के सामने से गुज़र कर मन मस्तिष्क को प्रभावित और चेतना को प्रेरित करता सा प्रतीत होता है ! आभार आपका इन्हें सबसे साझा करने के लिये !
सुंदर
khoobsoorat sanklan.
स्मृतियों के आँगन में ....
है - तो एक सन्नाटा
जिसे मैं तुमसे मिली विरासत की खूबियों से
तोड़ने का प्रयास करती हूँ
….
अच्छा लगा पढ़कर ... एक बार फिर से
Dr Rama Dwivedi....
बहुत सुन्दर संकलन … बहुत-बहुत बधाई।
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