ब्लॉग बुलेटिन का ख़ास संस्करण -
अवलोकन २०१३ ...
कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
तो लीजिये पेश है अवलोकन २०१३ का १९ वाँ भाग ...
यह माया का देश सनेही
इस जग का विश्वास नहीं
इस मरीचिका के मरुवन में
मिटी किसी की प्यास नहीं … आरसी प्रसाद
प्रतिभायें आती रही हैं,आती रहेंगी - प्यास जितनी बढे,जीवन की खोज उतनी दुगुनी ! लेखन प्रतिभाओं के हर घूँट में एक नशा है, कह सकते हो इसे तुम एहसासों की मधुशाला …।
(प्रबोध कुमार गोविल)
यादों की फितरत बहुत अजीब है। किसी को यादें उल्लास से भर देती हैं। किसी को ये दुःख में डुबो भी देती हैं। आखिर यादें हैं क्या?
हमारे मस्तिष्क के स्क्रीन पर, हमारे मन में बैठा ऑपरेटर किसी ऐसी फ़िल्म को, जिसमें हम भी अभिनेता या दर्शक थे, "बैक डेट" से इस तरह चला देता है कि इस दोबारा शुरू हुए बॉक्स ऑफिस कलेक्शन को हम दोनों हाथों से समेटने लग जाते हैं। ये बात अलग है कि इस आमदनी में हमें कभी खोटे सिक्के हाथ आते हैं और कभी नकली नोट। फिर हम मन मसोस कर रह जाते हैं, और हमें इस सत्य का अहसास होता है कि एक टिकट से दो बार फ़िल्म नहीं देखी जा सकती।
आइये, यादों की कुछ विशेषताएं और जानें-
१. उन व्यक्तियों से सम्बंधित यादें हमारे ज़ेहन में ज्यादा अवतरित होती हैं, जिन्हें हम दिल से पसंद करते हैं, अथवा जिनसे हम ज्यादा भयभीत होते हैं।
२. यादें हमारे चेहरे पर ज्यादा उम्रदराज़ होने का भाव लाती हैं, क्योंकि हम "जिए" हुए को दुबारा जीने की छद्म चालाकी जो करते हैं। एक जीवन में किसी क्षण को दो बार या बार- बार जीने की सुविधा मुफ्त में थोड़े ही मिलेगी।
३. जब हम किसी को याद करते हैं, तो सृष्टि अपने बूते भर हलचल उस व्यक्ति के इर्द-गिर्द मचाने की कोशिश ज़रूर करती है, जिसे हम याद कर रहे हैं।
४. हम यादों के द्वारा उस बात या व्यक्ति के प्रति अपना लगाव बढ़ाते हुए प्रतीत होते हैं, जिसे हम याद कर रहे हैं, पर वास्तव में हम लगाव कम कर रहे होते हैं।
५.किसी बात या व्यक्ति को बार-बार याद करके हम अपने दिल के रिकॉर्डिंग सिस्टम को खराब कर लेते हैं।
६.गुज़रे समय को फिर खंगालना हमारी अपने प्रति क्रूरता है। इस से बचने की कोशिश होनी चाहिए।
(प्रवीण)
मित्र मुझे ईश्वर द्रोही, धर्म विरोधी,आदि न जाने क्या क्या कहते हैं, जबकि मैं केवल कुतर्क, अतार्किकता व अवैज्ञानिकता का विरोधी हूँ, अगर आप तार्किक या समझ आने वाली बात कह रहे हैं, मैं भी आपके साथ हूँ, पर, यदि आप अतार्किक बात कह रहे हैं या ऐसा कुछ कह रहे हैं जिसका कोई अर्थ ही नहीं निकलता (जब आप कुतर्क कर रहे हों, अवैज्ञानिक या अतार्किक बातें कह रहे हों तो आपकी बातों से अर्थ नहीं निकलेगा, यह निश्चित है!)तो जहाँ तक मुझसे बन पढ़ेगा मैं आपका विरोध करूँगा,मेरे इस कृत्य के लिये आप मुझे कुछ भी कह सकते हैं। मैं अपने इर्दगिर्द घट रहे मसलों,हालातों व किरदारों पर अपना नजरिया यहाँ लिखता हूँ पर मैं कभी भी अपने ही सही होने का कोई दावा नहीं करता, मैं सही हो भी सकता हूँ और नहीं भी, कभी मैं सही होते हुए भी गलत हो सकता हूँ और कभी गलत होते हुए सही भी, कभी पूरा का पूरा सही भी हो सकता हूँ और कभी पूरा का पूरा गलत भी, कभी आधा अधूरा सही होउंगा तो कभी आधा अधूरा गलत भी, यह सब आपके नजरिये के ऊपर भी निर्भर करता है, पर एक बात जो निश्चित रहेगी वह यह है कि मैं पूरी ईमानदारी से वही लिखूँगा जो मैं सोचता हूँ, पोलिटिकल करेक्टनेस और दुनियादारी कम से कम मेरी ब्लॉगिंग के लिये वजूद नहीं रखते। काम चलाने लायक शिक्षा मैंने भी ली है, बाकी कुछ खास नहीं है अपने बारे में लिखने को...
मैं
मस्त हूँ
खुश
और
संतुष्ट भी
अपने
मैं
ही
रहने में
मैं
कभी
ख्यालों में
तक नहीं
होना चाहता
तुम
या
किसी
और सा
मैं
जो
मैं
बना
खुद ही
मेरा
मैं
बनना
मेरा ही
जागृत
निर्णय था
मैं
ही हूँ
जिम्मेदार
अपने
मैं
होने का
और
इस कारण हुई
हर जीत
और
हरेक हार का
मैं
नहीं चाहता
दौड़ना
तुम्हारे
या
तुम जैसे
कई औरों के
साथ
किसी भी
दौड़ में
मैं
दौड़ता हूँ
खुद के साथ
स्वयं
चुनकर
अपनी दौड़
दौड़
का समय
और
दौड़ने का
मैदान भी
मैं
हमेशा
खुद को
नापता हूँ
खुद की ही
नजरों से
अपने
ही
पैमानों पर
मैं
मानता हूँ
कि
तुम्हारे
या किसी और
के पास
मुझे नापने
का पैमाना
और
नजर नहीं
मैं
अपने
मैं बनने
के लिये
अपने
परिवार
के सिवा
किसी का
कृतज्ञ या
कर्जदार नहीं
मैं
मानता हूँ
कि मेरा
मैं
रहना
नहीं जुड़ा
किसी के
भी स्वीकार
या
अस्वीकार से
मैं
मैं ही रहूँगा
तुम्हारे
मुझ को
कुछ कुछ
या
बहुत कुछ
कहने के
बाद भी
मैं
जानता हूँ
कि
फिर भी
तुम
आँकोगे मुझे
लगाओगे
अनुमान
मेरी हैसियत
और वजूद का
मैं
हमेशा की
तरह ही
कर दूँगा
दरकिनार
तुम्हारी
इस
अनधिकार
चेष्टा को
मैं
मैं
ही रहूँगा
पर यह
पूछंगा जरूर
कि क्या
तुम्हें वाकई
यकीन था
कि मेरे
मैं
ही रहने
के अलावा
कोई दूसरा
परिणाम
संभव था ?
(अरुण चन्द्र रॉय )
1.
मृत्यु
स्वयं मोक्ष है
वह गंगा तट पर हो
या हो
किसी स्टेशन प्लेटफार्म पर
भगदड़ में
अनगिनत पैरों के नीचे
कुचलकर
मिलता है मोक्ष
अवाम को
2.
मोक्ष की चिंता
उन्हें नहीं होती
जिनके लिए
खाली होते हैं
रास्ते/प्लेटफार्म/हवाई अड्डे/गंगा का घाट भी
3.
मोक्ष के लिए
जरुरी है करना
पाप
जितना अधिक पाप
मोक्ष का आडम्बर उतना ही अधिक
4.
मोक्ष का
होता है उत्सव
पूर्व नियोजित
सुनियोजित
5.
मोक्ष भी
एक किस्म का
बाज़ार ही
हम सब
उसके ग्राहक
13 टिप्पणियाँ:
umda links .........
वाह मैं ही ब्रह्म हूँ :)
वाह उत्तम नही सर्वोत्तम लिंक्स शुक्रिया
शानदार रचनायें
बहुत बढ़िया लिंक्स....
यादें हमारे चेहरे पर ज्यादा उम्रदराज़ होने का भाव लाती हैं, क्योंकि हम "जिए" हुए को दुबारा जीने की छद्म चालाकी जो करते हैं। एक जीवन में किसी क्षण को दो बार या बार- बार जीने की सुविधा मुफ्त में थोड़े ही मिलेगी।
यादों का एक नया पहलु जाना.....
आभार
अनु
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
बहुत सुन्दर संकलन...शुक्रिया !
.
.
.
आभार आपका...
...
सभी रचनाएँ एक से बढ़ कर एक है ... जय हो |
बहुत से ब्लोगर्स को एक साथ पढ़ना ॥सुखद अहसास
ब्लोगर्स में यूं ही सेतु बन कर अपने कार्य को निरंतर करते रहिए ....आभार
मैं और मोक्ष शानदार रचनाएं हैं । सुन्दर संकलन ।
बेहतरीन रचनाएँ चुनी दी आपने | बेहद शानदार प्रस्तुति - जय हो मंगलमय हो | हर हर महादेव |
यादें, मैं और मोक्ष... जीवन के विविध आयाम. सुन्दर अभिव्यक्ति.
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