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शनिवार, 5 नवंबर 2016

मीठा मीठा गप्प गप्प और खारा खारा थू थू

रवीश कुमार जब लिखते हैं तो धारा प्रवाह तौर पर बड़ी ही सहजता से न जाने क्या क्या ही लिख जाते हैं। पढ़ने वाला भी एक ही बार पूरा पढ़ने के पहले अर्थ नहीं निकाल पाता कि रवीश हैं किसकी तरफ। दरअसल रवीश कभी भी किसी की तरफ नहीं होते और हर मामले पर खुद ही वकील बनकर खुद ही दलील देते हैं और खुद ही सुनवाई करके खुद ही जज बनकर फैसला भी सुना देते हैं। हमेशा पैनलों में जब सामने वाले के तर्क भारी पड़ते दिखते तो तुरंत मुस्कुराकर या तो बहस का मुद्दा घुमा देते या फिर गंभीर से गंभीर तर्क पर भी चेहरा बनाकर मजाक में टाल देते... यही उनकी खासियत है और यही अब सब समझने भी लगे हैं....

इन्हें हमेशा अपने पसंदीदा मुद्दे पर कटाक्ष करने में मजा आता है लेकिन यह कभी इस बात पर कुछ नहीं कहेंगे की पत्रकारिता की सीमाएं क्या हैं? जब टेलीविजन का पत्रकार देश की सुरक्षा पर खुले तौर पर विरोधी देश की मदद करे तो उस पत्रकार का बहिष्कार न हो? आप स्वयं इस वीडियो को देखें और बताएं कि क्या इस प्रकार की रिपोर्टिंग से सुरक्षा से जुड़ी जानकारी लीक नहीं हो रही है !?


क्या वह अपने चैनल की इस हरकत की ज़िम्मेदारी लेते हैं? अपने प्रोग्राम में आतंकवादियों को "लड़के" बोलेंगे लेकिन शहीद पुलिस के सिपाही को एकदम इग्नोर कर देंगे जिसे सिमी के आतंकियों ने क्रूरता बोतलों की कांच से गलाकाट कर मार दिया - अब क्या हम यह शक न करें कि रवीश कुमार ने उसे प्राइम टाइम में इसलिए जगह नहीं दी क्योंकि वह यादव है और यादव की मुस्लिम आतंकियों द्वारा हत्या की खबर से उत्तर प्रदेश के चुनाव में वोटबैंक की खैरात पर पलने वाले दलों से उनकी कोई सांठ गांठ है? रवीश कुमार की "आआपा" के साथ मित्रता जग जाहिर है और उनका और उनके चैनल का मोदी विरोधी रवैया और पूर्वाग्रह सर चढ़कर नहीं बोल रहा? क्या कभी भी रवीश कुमार इस बारे में बोलेंगे?

क्या वह कभी इस बात पर लिखेंगे की काले धन की दलाली में उनका चैनल फंसा है और वह खुद आदर्शवादी ब्लॉग लिखते हुए सबको ज्ञान बांटते फिर रहे हैं?

क्या कभी वह इस बात का खुलासा करेंगे की उनके चैनल की आखिर क्या मजबूरी है जो वह खुले आम आतंकियों की पैरवी करते हैं? देश की राजधानी में देश के टुकड़े करने के नारे लगाने वालों की वकालत करते हैं? लगभग हर उस चीज़ की पैरवी करते हैं जो देश के बहुसंख्यक समुदाय को तकलीफ देता हो? क्या अपने चैनल के आतंकी समर्थक होने की बात को वह कभी भी मानेंगे?

एक कहावत है न "मीठा मीठा गप्प गप्प और खारा खारा थू थू" सो रवीश कुमार इन मुद्दों पर नहीं बोलेंगे.... वह सिर्फ मीठे मीठे मुद्दों को चुनेंगे और एक तरफा रिपोर्टिंग चालू रखेंगे... अब देश आपको समझ चुका है और आप जैसे डिजाइनर पत्रकारों की हरकतें भी जान चुका है सो एक दिन का बैन तो लग ही चुका है अगर हरकतें न सुधरी तो आपका भगवान ही मालिक है...

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9 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

इस देश के बहुत से लोग पागल हैं। इस देश के बहुत से लोग पागल नहीं हैं । इस देश के बहुत से पागल लोगों को पागल बनाने का ठेका लिये हुऐ हैं । आप किस में हैं और हम किस में हैं आपको भी पता है और हमको भी पता है ।आइये पागल पागल खेलते हैं।

मुकेश पाण्डेय चन्दन ने कहा…

बहुत बढ़िया रवीश का विश्लेषण । बेहतरीन लिंक्स । आभार

yashoda Agrawal ने कहा…

शुभ प्रभात
आभार
सादर

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

आभार !

मृत्युंजय श्रीवास्तव ने कहा…

मेरे ब्लॉग को स्थान देकर सम्मान देने के लिए आभार।

शिवम् मिश्रा ने कहा…

"आप नाहक क्रोधित हो रहे है, ख़बरें देना मिडिया का काम है।"

अब यह बात और है कि खबरें किस को दी जा रही थीं।

बढ़िया बुलेटिन देव बाबु।

कविता रावत ने कहा…

सार्थक चिंतनशील सामयिक बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!

Archana Chaoji ने कहा…

sahee hai :-) khabare to khabare hotee hai ...

meri blog post sabhi ko saath rakhane ki koshish hai ...use yaha sammilit karana matalab -Ham saath-sath hai

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मस्त पोस्ट और अच्छा संकलन ...

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