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सुरेन्द्रनाथ बनर्जी (जन्म- 10 नवम्बर, 1848 कलकत्ता; मृत्यु- 6 अगस्त, 1925 बैरकपुर,कलकत्ता) प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी थे, जो कांग्रेस
के दो बार अध्यक्ष चुने गए। उन्हें 1905 का 'बंगाल का निर्माता' भी जाता
है। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय समिति की स्थापना की, जो प्रारंभिक दौर के
भारतीय राजनीतिक संगठनों में से एक था और बाद में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता बन गए।
जीवन परिचय
जन्म और परिवार
सुरेन्द्र नाथ बनर्जी का जन्म 10 नवम्बर 1848 को बंगाल के कोलकाता
शहर में, एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के
पिता का नाम डॉ. दुर्गा चरण बैनर्जी था और वह अपने पिता की गहरी उदार और
प्रगतिशील सोच से बहुत प्रभावित थे। सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी ने पैरेन्टल
ऐकेडेमिक इंस्टीट्यूशन और हिन्दू कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की थी। कलकत्ता विश्वविद्यालय
से स्नातक होने के बाद, उन्होंने रोमेश चन्द्र दत्त और बिहारी लाल गुप्ता
के साथ भारतीय सिविल सर्विस परीक्षाओं को पूरा करने के लिए 1868
में इंग्लैंड की यात्रा की। 1868 ई. में वे स्नातक बने, वे उदारवादी
विचारधारा के महत्वपूर्ण नेता थे। 1868 में उन्होंने इण्डियन सिविल
सर्विसेज परीक्षा उतीर्ण की। इसके पूर्व 1867 ई. में सत्येन्द्रनाथ टैगोर
आई.सी.एस. बनने वाले पहले भारतीय बन चुके थे। 1877 में सिलहट के सहायक
दण्डाधिकारी के पद पर उनकी नियुक्त हुई परन्तु शीघ्र ही सरकार ने उन्हे इस
पद से बर्खास्त कर दिया।
जातीय भेद-भाव
सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने स्नातक होने के बाद इण्डियन सिविल सर्विस (भारतीय
प्रशासनिक सेवा) में प्रवेश के लिए इंग्लैण्ड में आवेदन किया। उस समय इस
सेवा में सिर्फ़ एक हिन्दू
था। बनर्जी को इस आधार पर शामिल नहीं किया गया कि उन्होंने अपनी आयु ग़लत
बताई थी। जातीय आधार पर भेद-भाव किये जाने का आरोप लगाते हुए बनर्जी ने
अपनी अपील में यह तर्क प्रस्तुत किया कि हिन्दू रीति के अनुसार उन्होंने
अपनी आयु गर्भधारण के समय से जोड़ी थी, न कि जन्म के समय से और वह जीत गए।
बनर्जी को सिलहट (अब बांग्लादेश) में नियुक्त किया गया, लेकिन क्रियान्वयन
सम्बन्धी अनियमितताओं के आरोप में उन्हें 1874
में भारी विवाद तथा विरोध के बीच हटा दिया गया। उन्होंने तब बैरिस्टर के
रूप में अपना नाम दर्ज़ कराने का प्रयास किया, किन्तु उसके लिए उन्हें
अनुमति देने से इनकार कर दिया गया, क्योंकि वे इण्डियन सिविल सर्विस
(भारतीय प्रशासनिक सेवा) से बर्ख़ास्त किये गये थे। उनके लिए यह एक क़रारी
चोट थी और उन्होंने महसूस किया कि एक भारतीय होने के नाते उन्हें यह सब
भुगतना पड़ रहा है।
आज उन की १६८ वीं जयंती पर ब्लॉग बुलेटिन टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से स्व ॰ श्री सुरेन्द्र नाथ बनर्जी को शत शत नमन और विनम्र श्रद्धांजलि !
सादर आपका
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खुद की सोच ही एक वजूका हो जाये खेत के बीच खड़ा हुआ तो फिर किसी और को क्या समझ में आये एक वजूका सोच से बड़ा होता है
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8 टिप्पणियाँ:
बंगाल के निर्माता से लेकर 'उलूक' के 'खुद की सोच ही एक वजूका हो जाये खेत के बीच खड़ा हुआ तो फिर किसी और को क्या समझ में आये एक वजूका सोच से बड़ा होता है' से होते हुऐ हर पति के फिरते हुए दिनों की चर्चा को समेटे हुए एक सुन्दर बुलेटिन प्र्स्तुति के लिये आभार शिवम जी । :)
achchhe links thank you ..
Aabhar Shivam ji.
बेहतरीन लिंकों से सजी बुलेटिन ! शिवम् जी, आज के बुलेटिन में मेरी रचना को शामिल करने के लिए शुक्रिया।
बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति ..आभार!
सुरेन्द्र नाथ बनर्जी जी को सादर श्रद्धांजलि !
सुरेन्द्रनाथ बनर्जी जी के बारे में जानकारी देने के लिए शुक्रिया | बुलेटिन जानदार
हमेशा की तरह शानदार बुलेटिन.
देरी के लिए खेद है, सुंदर सूत्रों से सजा बुलेटिन..मुझे शामिल करने के लिए आभार !
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