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मंगलवार, 1 नवंबर 2016

जीवन के यक्ष प्रश्न - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

एक बार एक संत ने अपने दो भक्तों को बुलाया और कहा, "आप को यहाँ से पचास कोस जाना है!!"

एक भक्त को एक बोरी खाने के समान से भर कर दी और कहा, "जो लायक मिले उसे देते जाना!!"

और एक को ख़ाली बोरी दी उससे कहा, "रास्ते मे जो उसे अच्छा मिले उसे बोरी मे भर कर ले जाए!!"

दोनो निकल पड़े जिसके कंधे पर समान था वो धीरे चल पा रहा था ख़ाली बोरी वाला भक्त आराम से जा रहा था

थोड़ी दूर उसको एक सोने की ईंट मिली उसने उसे बोरी मे डाल लिया थोड़ी दूर चला फिर ईंट मिली उसे भी उठा लिया जैसे जैसे चलता गया उसे सोना मिलता गया और वो बोरी मे भरता हुआ चल रहा था और बोरी का वज़न बड़ता गया| उसका चलना मुश्किल होता गया और साँस भी चढ़ने लग गई एक एक क़दम मुश्किल होता गया|

दूसरा भक्त जैसे जैसे चलता गया रास्ते मै जो भी मिलता उसको बोरी मे से खाने का कुछ समान दे देता गया धीरे धीरे बोरी का वज़न कम होता गया और उसका चलना आसान होता गया।

जो बाँटता गया उसका मंज़िल तक पहुँचना आसान होता गया|

जो ईकठा करता रहा वो रास्ते मे ही दम तोड़ गया|

दिल से सोचना हमने जीवन मे क्या बाँटा और क्या इकट्ठा किया हम मंज़िल तक कैसे पहुँच पाएँगे ।

जिन्दगी का कडवा सच...आप को 60 साल की उम्र के बाद कोई यह नहीं पूछेंगा कि आप का बैंक बैलेन्स कितना है या आप के पास कितनी गाड़ियाँ हैं....

दो ही प्रश्न पूछे जाएंगे ...

1- आप का स्वास्थ्य कैसा है ?

और

2-आप के बच्चे क्या करते हैं ?

तो क्यूँ न जीवन को अभी से इन दो सवालों के लिए तैयार किया जाये !!

सादर आपका

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

यादें यूरोप कीः दिल्ली से वियना!

फिल्म निर्माण की प्रक्रिया

मुठभेड़ प्रश्नों की जवाब हो जाये कोई कुछ पूछ भी ना पाये

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भवसागर और इससे तरने का मतलब तथा मनुष्य जीवन की आवश्यकता

एक पैग़ाम वीर जवानों के नाम

मिटटी के दिये 

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 
अब आज्ञा दीजिये ... 

जय हिन्द !!!

9 टिप्पणियाँ:

Parul kanani ने कहा…

Thank yu for sharing my post.. I m thankful to yu

कविता रावत ने कहा…

सच है हमारी असली दौलत स्वास्थ्य और बच्चे हैं
बहुत सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार !

RITU BANSAL ने कहा…

आपका आभार ,मेरी कविता 'मैं शीशा हूँ " को शामिल करने के लिए ..

Amrita Tanmay ने कहा…

गहन सजगता से ही दोनों सवालों के लिए तैयार हुआ जा सकता है । सुंदर बुलेटिन ।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सटीक बात ।

पता नहीं कितनी
कितनी ईंटे
जरूरी
गैर जरूरी
उठाते हुऐ
चलते चले
जाते है
शव यात्राओं
में शामिल हो
लौट कर भी
आ जाते हैं
प्र्श्न जिंदगी की
प्राथमिकताओं
के बस
छोड़ कर ही
बाकी सारी जिंदगी
एक जिंदगी के
हिसाब को छोड़
जोड़ने घटाने में
ही रह जाते हैं ।

आज की सुन्दर प्र्स्तुति में 'उलूक' के सूत्र 'मुठभेड़ प्रश्नों की जवाब हो जाये कोई कुछ पूछ भी ना पाये' को भी स्थान देने के लिये आभार शिवम जी ।

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

इन दो प्रश्नों के अलावा हम लोग ये भी पूछते हैं, लाइट आ रही या नहीं?
++
वैसे सार्थक सवाल उठाया है. काश कि हम लोग अतीत को सिर पर लादे न घूमें, भविष्य के लिए अकुलायें नहीं.... बस वर्तमान का आनंद लें.....
काश...!!!

Unknown ने कहा…

बिलकुल सही कहा है

Unknown ने कहा…

बिलकुल सही कहा है

Sudha Devrani ने कहा…

सत्य वचन।
बहुत खूब

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