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गुरुवार, 28 जनवरी 2016

बदल रहे लोकतंत्र के मायने - ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार मित्रो,
देश की गणतांत्रिक व्यवस्था के छः दशक से अधिक व्यतीत हो जाने के बाद भी बहुतायत लोगों में गणतंत्र के मायने विकसित नहीं हो सके हैं. हममें से बहुतों के लिए आज भी गणतंत्र का, लोकतंत्र का अर्थ उन्मुक्त स्वतंत्रता ही है, जहाँ सिर्फ अधिकारों की चर्चा होती है, दायित्वों और कर्तव्यों की नहीं. किसी समय अब्राहम लिंकन ने लोकतंत्र की परिभाषा देते हुए, शासन का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा था कि ‘लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा’ शासन को प्रमाणिक माना जाता है. सैद्धांतिक रूप से ऐसा मानना, समझना अत्यंत सुखद प्रतीत होता है किन्तु व्यावहारिक रूप में ऐसा स्वरूप देखने को मिलता नहीं है. गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रभक्ति जागती है, लोकतंत्र के प्रति दायित्व-बोध जागता है किन्तु तिथि व्यतीत होते ही ऐसी भावना शनैः-शनैः तिरोहित होने लगती है. इसके मूल में एक तरफ जहाँ नागरिकों की सुसुप्तावस्था दिखती है वहीं दूसरी तरफ नीति-निर्धारकों द्वारा भी पर्याप्त ध्यान न देना दिखाई देता है.

इतने वर्षों के बाद भी जनमानस में लोकतान्त्रिक व्यवस्था के प्रति आदरभाव विकसित होता नहीं दिखता है. जनप्रतिनिधियों ने समय गुजरने के साथ-साथ स्वार्थसिद्धि में अपने आपको संलिप्त कर लिया तो जनता ने भी खुद को व्यवस्था में दोष निकालने वाला मान लिया. शीर्ष स्तर से लेकर तृणमूल स्तर तक व्यवस्था के प्रति जागरूकता न दिखना, सुधारवादी रवैये के स्थान पर दोषारोपण करना, देशहित से ज्यादा निजीहितों को वरीयता देना आदि सामान्य व्यवहार हो गया है. इसी सोच के चलते लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए, शासन के लिए दी गई परिभाषा ‘OF the people, BUY the people, FOR the people’ में भी व्यापक परिवर्तन नजर आने लगा है. अब इसका स्थान OFF the people, BUY the people, FAR the people’ ने ले लिया है. समय बदल रहा है, परिभाषायें बदल रही हैं, व्यवस्थायें बदल रही हैं और ऐसे परिवर्तनकाल में हमें संक्रमणकाल को लाने से बचना होगा.

आइये परिवर्तन के सकारात्मक परिणाम सामने आयें, ऐसा प्रयास करते हुए, ऐसा विचार करते हुए आज की बुलेटिन का आनंद उठायें. शेष अगली बुलेटिन में.

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6 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

तंत्रलोक ज्यादा समझ में आता है । सुन्दर प्रस्तुति ।

कविता रावत ने कहा…

लोक तो गायब है बस तंत्र ही देखने को मिलता है ...
बहुत सुन्दर सार्थक बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सच कहा आपने, लोकतन्त्र की यही व्याख्या हो गयी है, सुन्दर सूत्र।

farruq ने कहा…

हमने अापका ब्‍लॉग अपने ब्‍लाग संकलक ब्‍लॉग मेट्रो पर सुसज्जित है। आपसे अनुरोध है कि एक बार पधार कर मागदर्शन करें।

जो भी ब्‍लॉगर साथी अपने ब्‍लॉग को हमारे ब्‍लॉग संकलक में जोडना चाहता है वो यहॉ क्लिक करें

Wasu ने कहा…

beautiful work my dear friends..................!!!!!

शिवम् मिश्रा ने कहा…

"शासन के लिए दी गई परिभाषा ‘OF the people, BUY the people, FOR the people’ में भी व्यापक परिवर्तन नजर आने लगा है. अब इसका स्थान ‘OFF the people, BUY the people, FAR the people’ ने ले लिया है."

गज़ब ... राजा साहब ... गज़ब !!!

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