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सोमवार, 18 जनवरी 2016

मौत का व्यवसायीकरण - ब्लॉग बुलेटिन

मौत का व्यवसायीकरण!!!

चौकिये नहीं जनाब आज हम आपको इसकी ही कथा सुनाने जा रहे है, जरा स्नेह के साथ ध्यानमग्न हो कर सुनियेगा. वरना आप कहेंगे कि न सिर न पैर, किरण से मनाओ खैर .... आपने हमें समझ लिया तो हम महान, न समझा तो भी हम तो है ही महान ... 

तो सुनिए एक है सिले साहब न दरजी न है जी और न सीलन से इनका कोई लेना देना है ये तो इनका सरनेम है जी ....इनके परिवार में इनकी धर्मपत्नी और दो बच्चो के साथ इनके पूज्य पिताजी भी रहते थे|

मिसेज सिले आधुनिक युग की कर्तव्य परायण स्त्री है, सुबह बच्चो के स्कूल रुक्सती और पतिदेव के ऑफिस जाते ही मुहल्ले भर की गोसिप और किट्टी पार्टीज के साथ टीवी धारावाहिकों के प्रति इनका रुझान सराहनीय जनाब. इस बीच बूढ़े ससुर कुछ कहे तो शंभू काका को आवाज लगाना, शंभू बाउजी क्या कह रहे है और साथ ही लम्बी साँस लेते हुए ये कहना कि वैसे ये तो सारा दिन ही कुछ न कुछ कहते ही है, फिर अपनी दिनचर्या में लीन हो जाती...बूढ़े ससुर अकेले कुढ़ते खुद से बतियाते या फिर शंभू से कह अपने दिल की बात हलके हो लेते. 

मिस्टर सिले सरकारी विभाग में अधिकारी पद पर कार्यरत है, सो उनका अपना रुतबा और मिजाज़ है, आत्ममुग्धता से प्रेरित शाम को आते तो बीवी बच्चो के साथ व्यस्त और पिता देखकर राह बेटे की सो जाते....

एक सुबह शंभू काका गए जब उनके कमरे में तो पाया कि आत्मा रूपी जीव मुक्त हुआ और उड़ चला रामपुर की ओर, उन्होंने तुरंत जाके ये सूचना दी साहब और मेम साब को. सुनते ही दोनों पर वज्रपात हो गया वैसे तो सुकून की सांस ली दोनों ने ही चलो पीछा छुटा लेकिन उनके शेडूल के गड़बड़ाने की चिंता ने दोनों के माथे पर शिकन डाल दी, शंभू काका उनके आंतरिक दुःख का आकलन नहीं कर पाए और प्रत्यक्ष रूप में पिता की मृत्यु का शोक समझ इसे रो पड़े.... 

सिले साहब ने तुरंत अपने ऑफिस में फ़ोन किया और क्रिया से लेकर शोक सभा तक की सारी व्यवस्था की जिम्मेदारी का आबंटन कर दिया....शोक सभा के लिए मेरे पास तो नया सूट भी नहीं है, और डिज़ाइनर इतनी जल्दी नया सूट कैसे सिल कर देगा ये सोच कर ही मिसेज सिले की आँख भर आई, और वहां उपस्थित रिश्तेदार इसे उनका पिता के प्रति स्नेह समझ कर बुक्का फाड़ रोने का यत्न करने लगे, सबने उनके ससुर प्रेम की भरे मन से सराहना की|

चित्र गूगल से साभार
खैर साहब क्रियाकर्म और तेहरवी के बाद शोक सभा का आयोजन होना तय हुआ, सिले साब के ऑफिस के सभी जवान और बूढ़े कर्मचारी पूरी सजगता और कर्मठता से कमर कस इस आयोजन के माध्यम से सिले साहब के चहेते बनने की जुगत भिडाने लगे, तो सबने मिलकर सिले साहब की आंतरिक ख़ुशी की खातिर शोक सभा को भजन संध्या में तब्दील कर देने की योजना बनाई, और सिले साब के पास बिसुरी सी सूरत बना पहुचे सब और सम्मिलित स्वर में कहा सर शोक सभा में हम सब आपके पिता की आत्मा की शांति के लिए एक एक भजन गाना चाहते है, सिले साब ने जैसे ही ये बात सुनी उनका ह्रदय भाव विभोर हो गया, इस आयोजन को सफल बनाने का जिम्मा लिया मिस्टर शर्मा ने जो साहब के जूनियर थे, तुरंत मिसेज सलोनी को बुलाया जो हिंदी अनुवादक होने के साथ एक अच्छी कवियत्री और मंच संचालिका भी थी, और बोले मिसेज सलोनी आपको मंच सञ्चालन के साथ पिताजी की आत्मिक शांति हेतु भजन भी गाना है, मिसेज सलोनी थोडा सकपकाई बोली सर इससे पहले मुझे शोक सभा के सञ्चालन का कोई अनुभव नहीं है, तो मिस्टर शर्मा एक मंझे खिलाड़ी की तरह तुरंत बोले अरे उसमे क्या है जी, सिर्फ जोश की जगह थोडा होश से काम लेना है, और विनम्र भाव से चेहरे पर थोड़ी सी उदासी के साथ थोड़े से गम को सजाकर हर एक गायक को आमंत्रित करना है....और सुनिए मेरा नंबर सबसे पहले रख लीजियेगा.....मिसेज सलोनी अपने कोकिल स्वर में बोली सर आप जैसे जिसे बुलाना हो लिस्ट दे दीजियेगा तो वो बोले अरे जैसे तुम्हे सहूलियत हो बुला लेना मंच पर बस इतना ध्यान रखना पहला नंबर मेरा ही होना चाहिए.....मन ही मन कसमसाती मिसेज सलोनी ने मिस्टर शर्मा को दो चार गाली दी और प्रत्यक्ष में मुस्कुरा कर चल दी......शाम को मिस्टर शर्मा का मेसेज आया मिसेज सलोनी मैं अपने गुरूजी के साथ बैठा हूँ अभी आपको मिस कॉल करूँगा आप फ़ोन करना और गुरूजी आपका भजन सुन आपको बताएँगे कि आपका स्केल क्या रहेगा, मिसेज शर्मा अचकचाकर बोली सर रहने दीजिये मैं बिना हारमोनियम के गा लुंगी, मिस्टर शर्मा बोले धत बावरी ऐसा कैसे हो सकता है, भजन का असली आनंद तो तब ही आएगा न जब साथ में साज बजे....और यूँ ननुकुर कर पिताजी की आत्मिक शांति में बाधा मत बनो, मिसेज सलोनी ने मन ही मन कुढ़ते हुए कहा ऐसे दिखा रहा है जैसे खुद का सगा बाप हो, अपने बाप की चाहे सुध न ली हो लेकिन बॉस के पिताजी की आत्मा की शांति की इत्ती चिंता है, जैसे भजन दिल से न गाये गए तो पिताजी को शांति न मिलेगी. खैर शर्मा साहब की मिस्ड कॉल आते ही मिसेज सलोनी ने फ़ोन मिलाया और वहां से शर्मा सर ने गुरूजी को फ़ोन पकडाते हुए कहा जैसे ही गुरूजी कहे शुरू हो जाना गाना.....फिर गुरूजी ने सुनकर सलोनी जी का भजन उनका स्केल बताया और साथ में ये भी ताकीद की वहां मुझे याद दिला देना अपना स्केल ताकि मैं अच्छे से बजा पाऊं ! 

बस जी फिर वो शुभ घडी भी आन पहुची जब मिस्टर सिले के बाउजी की आत्मा को शांति मिले इस ध्येय को पूरा करना था, सबने जी जान से पूरी श्रद्धा के साथ भजन गाये और फिर रात में वाट्स एप ग्रुप में मिस्टर सिले यानी बिग बॉस ने प्रत्येक कर्मचारी को उनके भावो और श्रद्धा के लिए नंबर दिए यानी इसका गायन एकदम बेकार था फलां का गायन मध्यम दर्जे का रहा और फलां ने ऐसा उम्दा गाया कि बाउजी की आत्मा धन्य हो ली........और इस तरह से सिले साहब के बाउजी की आत्मा मुक्त होकर कृतार्थ हो ली. सिले साहब और मिसेज सिले का रुतबा बरक़रार रहा, अपने नंबर बना ही लिए किसी दूसरे मंच पर आधुनिक युग के प्रतिष्ठित नागरिक कहलाने के लिए ... 

.........दिल्ली से खुराफाती किरण आर्य अपने खरे खरे तीखे अंदाज़ में...

अब चलते है आज की बुलेटिन की ओर ...

वन, वनवासी और विस्थापित

खालीपन ,अम्बर -सा है

छपने के लिए बटरिंग न की है, न करूंगा

जिन्दगी गुलाब सी बनाओ साथियो

वियोग

सार्थक अर्थ

जब इश्क़ तुम्हे हो जायेगा

पुरुष सोच अपवित्र न कि नारी शरीर

याद-ए-मकर संक्रान्ति

कुछ झलकियाँ पुस्तक मेले की

बसंत की याद में

9 टिप्पणियाँ:

Vikram Pratap Singh ने कहा…

Umda.

कविता रावत ने कहा…

भजन का असली आनंद तो तब ही आएगा न जब साथ में साज बजे....और यूँ ननुकुर कर पिताजी की आत्मिक शांति में बाधा मत बनो, मिसेज सलोनी ने मन ही मन कुढ़ते हुए कहा ऐसे दिखा रहा है जैसे खुद का सगा बाप हो, अपने बाप की चाहे सुध न ली हो लेकिन बॉस के पिताजी की आत्मा की शांति की इत्ती चिंता है, जैसे भजन दिल से न गाये गए तो पिताजी को शांति न मिलेगी.... सरकारी खानापूर्ति के तरह ही रिश्तों को निभाने का चलन आजकल कुछ ज्यादा ही चल पड़ा है ..बहुत दुखद स्थिति बनते जा रही है यह ...
सार्थक चिंतनशील बुलेटिन प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट शामिल करने हेतु आभार .

सुनीता अग्रवाल "नेह" ने कहा…

बेहतरीन लिंक संयोजन :)

yashoda Agrawal ने कहा…

सच में आनन्दित हुई
उपरोक्त कथा का मंचन भी हुआ था एक माह पहले
जिला गरियाबंन्द, छत्तीसगढ़ में

और चुनिन्दा रचनाए भी लाजवाब है
सादर

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति । मान लिया :)

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कुछ पढ़ ली हैं, कुछ पढ़नी हैं।

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

शानदार लिंक पढवाये आपने. मेरा लिंक शामिल करने के लिये आभार.

Dr. pratibha sowaty ने कहा…

आभार / ' खालीपन अम्बर -सा है ' की link शामिल करने के लिए :)

शिवम् मिश्रा ने कहा…

आज के सामाजिक परिवेश का बढ़िया चित्रण किया आपने ... आभार इस बुलेटिन प्रस्तुति के लिए |

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