आत्मा आत्मा से मिली
पूछा क्यूँ तुम शरीर से निकली
क्या ऊब गई थी जीने से
या उम्र हो गई थी पूरी ?
आत्मा ने थकी निगाहें उठाई
कहा - अभी तो मेरी शादी हुई थी
सपनों की दहलीज पर पायल की छनक .... बजा नहीं सकी
कोई कहानी सखी को सुना न सकी
यह ऐसा,वह ऐसा
अरे तुम बोलती क्यूँ नहीं
ओह कितना बोलती है !!!!
मेरे शरीर में सन्नाटा बिखर गया …
किससे कहूँ, कैसे कहूँ, कितना कहूँ का प्रश्न गहराता गया
कुछ वक़्त की ओट में माँ से कहा
पिता से कहा -
सीख और परेशानी मिली,
"अब तो वही घर है
फिर समाज क्या कहेगा !"
कुछ चुप हुई
फिर भाई-बहनों से कहा
जवाब मिला -
"सब घर में ऐसा होता है
निभाना पड़ता है
दोस्तों को पता चलेगा तो मेरी हँसी उड़ाई जाएगी ...."
मैं और चुप हुई !
एक दिन घबराकर पड़ोस का दरवाजा खटखटाया
.... सुना,
"कारण क्या है ?
जो भी हो, हमें इस पचड़े से दूर रखो" ....
खामोश हो गई !
खामोश शरीर ने कल बेटी को जन्म दिया
इतने बड़े गुनाह की सजा मिली
अब मैं आत्मा, वह रही वो आत्मा, जो मेरी बेटी बनी
....
पहली आत्मा सिहरी
बोली,
ओह, तो यह चीत्कार धरती से तुम्हारे माता-पिता की है
"मेरी बेटी, कुछ तो बताया होता !"
पडोसी भी बौद्धिक दिख रहे हैं
"हमें पता होता तो देखते
आह, बेचारी !"
अच्छा हुआ, तुम मुक्त हुई शरीर से …………
9 टिप्पणियाँ:
बहुत सुंदर कविता । सुंदर सूत्रों के साथ प्रस्तुत सुंदर बुलेटिन ।
एक पूरे युग का सच ....एक पूरी ज़िन्दगी की पीड़ा ...इसमें समाहित है ....:(
बहुत सुंदर
धन्यवाद रश्मि जी
बहुत सा दर्द ...और मुक्त हुई ..
ओह, तो यह चीत्कार धरती से तुम्हारे माता-पिता की है
"मेरी बेटी, कुछ तो बताया होता !"
पडोसी भी बौद्धिक दिख रहे हैं
"हमें पता होता तो देखते
आह, बेचारी !"
अच्छा हुआ, तुम मुक्त हुई शरीर से …
कडवा सच। पर कहना तो होगा ही।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति के साथ सार्थक बुलेटिन प्रस्तुति
पठनीय सूत्रों की खबर देता ब्लॉग बुलेटिन..आभार !
मर्मस्पर्शी कविता
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