घर क्यूँ छोड़ दिया ?
कहानी सच्ची होगी, कैसे मानोगे ?
फिर भी …
बस - इतना जानो कि यही सबके हित में था
आदतें उसकी नहीं बदलती
आदतें मेरी नहीं बदलती
और समझौते के वर्ष
कम नहीं थे
बच्चों की आदतें न बिगड़ जाएँ
बेहतर था दो किनारों में घर को बाँट देना
लहरों की तरह बच्चों के विकास के लिए
....
अब देखो सौंदर्य भी है
सीप भी, मोती भी
यदि उनकी प्रकृति से खिलवाड़ किया
तो सुनामी भी
सफ़ेद घर: मछली, मकड़ी और पीपल
एक प्रयास: तुम्हें पाने और खोने के बीच
Hathkadh । हथकढ़: लश्कर ए बातिल
pragyan-vigyan: कौन हो तुम? सत्य या आभास
कम ही सही, यात्रा जारी रहे
5 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर व सार्थक बुलेटिन ……आभार दी
लाजवाब और बेहतरीन बुलेटिन... :)
बहुत बढ़िया लिंक्स-सह-बुलेटिन प्रस्तुति
आभार!
बेहतर था दो किनारों में घर को बाँट देना
लहरों की तरह बच्चों के विकास के लिए ...सच कहा !
सुंदर लिंक्स..उम्दा प्रस्तुति !
हिन्दी दिवस की असीम शुभकामना!
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