हम खुद से डरते हैं
खुद से भागते हैं
और जब तक यह होता है
कोई किनारा नहीं मिलता ! ..... तो जीतना होगा अपने डर से, अपने खालीपन से, …
सोचना होगा कि रुक जाने से न हम खुश रहते हैं, न लोग। परिवर्तन में ही नयापन है।
ब्लॉग जगत में लिखी पढी जा रही पोस्टों , उनमें दर्ज़ की जा रही टिप्पणियां ,बहस ,विमर्श ..सबको समेट कर तैयार है बुलेटिन ... ब्लॉग बुलेटिन ...
4 टिप्पणियाँ:
चलना /चलते रहना नए पुराने रास्तों पर ही जिंदगी है …
आभार !
शुभ सेध्या बड़ी दीदी
सतरंगी बुलेटिन
बूँद का एहसास ही भीगा हुआ होता है
संजय जी की रचना भा गई
सादर
सुंदर और बहुत दिनों से इंतजार भी हो रहा था ।
सोचना होगा कि रुक जाने से न हम खुश रहते हैं, न लोग। sahmat hoon ....jivan ki katu sacchai ....
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