Subscribe:

Ads 468x60px

कुल पेज दृश्य

रविवार, 25 मार्च 2012

ब्लॉग की सैर - 6



अब इस अंतिम यात्रा के लिए
उसका कांधा
इतना

बांधो तो सब लाजमी है .... मिले न मिले कौन देखता है , तर्पण हो न हो - मुक्त तो हो ही जाते हैं . मृत्यु क्या है ? साँसों का रूक जाना , सबकुछ शिथिल ... फिर उसके बाद का सच कौन जानता है . सोच प्रबल हो तो मृत चेहरे दिखने लगते हैं , अन्यथा सब मुक्त है . ब्राह्मन को दो न दो , जो गया सो गया . जो बीत गयी वह बात जाके भी नहीं जाती , तो जो अपना चला गया वह यादों के साथ रहता है . आप जब तक हैं , वह है - फिर पूर्ण विराम !
मैंने अपने नाना नानी को नहीं देखा , दादा दादी को नहीं देखा और उनका ज़िक्र भी कुछ ख़ास नहीं रहा , तो कई बार बताने के बाद भी उनके नाम मुझे याद नहीं रहते ... यूँ ही क्रम ख़त्म होता है ! फिर जिसने उम्रभर सोचा नहीं , उससे उम्मीद ?! प्रश्न का सीधा उत्तर है , आप अपनी सोच से मुक्त नहीं हुए , व्यर्थ की उम्मीदों से आप परे नहीं .
क्या घर क्या परदेस ! मृत्यु कहाँ , कब , किस तरह आएगी - हम आप वो .... कोई नहीं जानता . पर चिंता में घुलता जाता है . १२ दिनों का कार्य प्रयोजन हो या आर्य समाजी रीति से , श्रद्धा है तो सब ठीक है , वरना सब बकवास है सब बकवास .

मेरे हिस्से की धूप: रिश्ते सरस

"नए चेहरे -
नए लोग-
नए नाम-
लेकिन घूम फिरकर वही सम्बन्ध,
जो चेहरों पर चिपक गए हैं
हमारे बर्ताव बन गए हैं -
फिर ऐसे संबंधों को
जीता रखने में
सबके योगदान का हिसाब क्यों?
वह तो स्वार्थ पर निर्भर है,
जो जंगली घास की तरह,
हर जगह फूट पड़ता है.
माँ भी तो बच्चे से मुआवजा मांगती है
कुंती ने भी कुछ ऐसा ही किया था...
फिर यह तो सम्बोधान्मात्र हैं .
पर हाँ ....
अपने ही जाये यह सम्बन्ध
कुछ क्षण तो देते हैं ..
जिनकी बुनियाद पर --
फिर नए सम्बन्ध जन्म ले लेते हैं."

"अक्सर सोचती रही हूँ अपनी मात पर
क्यूँ हर दोस्त मुझको दगा दे जाता है,
इतनी ज़ालिम क्यूँ हो गई है ये दुनिया
क्यूँ दोस्त दुश्मनों सा घात दे जाता है !

कौन बदल सका है कब अपना नसीब
ग़र ख़ुदा मिले भी तो अचरज क्या है,
किसी शबरी को मिलता नहीं अब राम
आह... प्रेम की वो सीरत जाने क्या है !

क़ीमत दे कर खरीद पाती ग़र कोई पल
जान दे दूँ कुछ और बेशकीमती नहीं हैं,
दे दे सुकून की एक सांस मेरे अल्लाह...
चाहे आख़िरी हीं हो कोई ग़म नहीं है !

मालुम नहीं कब तक है जीना यूँ बेसबब
या रब मुक़र्रर अब आख़िरी तारीख कर,
''शब'' आज़ार रंज दुनिया का दूर हो कैसे
ऐ ख़ुदा फ़ना हो जाऊं दुआ मेरी अता कर !

______________________

आज़ार - दुखी
अता- प्रदान करना/ पुरस्कार देना
______________________"

आधा सच...: लगता है बहक गए हैं श्री श्री ...महेंद्र श्रीवास्तव

"दरअसल श्री श्री की इसमें कोई गल्ती नहीं है, वो हवा में उड़ते रहते हैं और हवा में उड़ने वालों के बीच ही उनका दाना पानी चलता रहता है। कभी कभार वो गांव में जाते हैं तो वह देश के लिए खबर बन जाती है। मुझे तो लगता है कि सरकारी स्कूलों को बंद करने का जो सुझाव श्रीश्री ने दिया है, वो ऐसे ही नहीं, बल्कि इसके पीछे एक बहुत बड़ी साजिश है। पहला तो ये कि सरकारी स्कूल बंद हो जाएंगे तो जाहिर है प्राईवेट स्कूलों की मांग बढेगी, ऐसे में उनके पैसे वाले चेलों की चांदी हो जाएगी, जगह जगह स्कूल खुलने लगेंगे और मनमानी लूट खसोट होगी। दूसरा ये कि बड़े लोगों के बीच जब श्री श्री जाते हैं तो लोग अपने बच्चों को उनके सामने कर देते हैं कि इसे भी सुधारो। अब श्रीश्री के हाथ में जादू की छड़ी तो है नहीं। लेकिन उन्हें लगता है कि अगर सरकारी स्कूलों को बंद करा दिया जाए, तो गरीब का बच्चा पढेगा ही नहीं, जाहिर है फिर तो नौकरी इन्हीं बड़े लोगों के बच्चों के हाथ आएगी।"

"देह की सीमा से परे
बन जाना चाहती हूँ
एक ख्याल
एक एहसास ,
जो होते हुए भी नज़र न आये
हाथों से छुआ न जाए
आगोश में लिया न जाए
फिर भी
रोम - रोम पुलकित कर जाए
हर क्षण
आत्मा को तुम्हारी
विभोर कर जाए

वक्त की सीमा से परे
बन जाना चाहती हूँ वो लम्हा
जो समय की रफ़्तार तोड़
ठहर जाए
एक - एक गोशा जिसका
जी भर जी लेने तक
जो मुट्ठी से
फिसलने न पाए

तड़पना चाहती हूँ
दिन - रात
सीने में
एक खलिश बन
समेट लेना चाहती हूँ
बेचैनियों का हुजूम
और फिर
सुकून की हसरत में
लम्हा लम्हा
बिखर जाना चाहती हूँ

बूँद नहीं
उसका गीलापन बन
दिल की सूखी ज़मीन को
भीतर तक सरसाना
हवा की छुअन बन
मन के तारों को
झनझना
चाहती हूँ गीत की रागिनी बन
होंठों पे बिखर - बिखर जाना

जिस्म
और जिस्म से जुड़े
हर बंधन को तोड़
अनंत तक ..........असीम बन जाना
चाहती हूँ
बस........................................................
यही चाहत "

"मैं वाकिफ हूँ इस बात से
कि,मेरे साथ
बड़ा कठिन है निबाह पाना
साथ चल पाना,प्यार कर पाना .

तुम जानते हो कई बार
मैं बिना किसी कारण
तुम्हें कटघरे में खडा कर देती हूँ
इतना धकेलती हूँ कि..
तुम्हारे पास जीतने का कोई चारा नहीं बचता
तुम हारते नहीं हो
बस,मेरा दिल रखने को
हार मान लेते हो .
सोचते हो कि ..
आखिर कहाँ ,कब,कौन सी गलती तुमसे हुई
जिसके लिए मैंने ऐसा किया ...

सच कहूँ,तो तुम गलत नहीं होते हो
गलत ...मैं होती हूँ.
क्यूंकि,
मैं समझ नहीं पा रही
गले नहीं उतार पा रही ...सीधी -सिंपल सी यह बात
कि तुमसा बेहतरीन इंसान ...
मुझमें ऐसा क्या देखता है?
मुझे भला क्यूँ इतना चाहता है ?
एक अनजाना सा डर मुझे घेर लेता है
ये डर ही सब ऊलजलूल कहलाता ,करवाता है
यह डर...
कि ,तुम कहीं भूल तो नहीं जाओगे मुझे
कमियां जान कर छोड़ तो नहीं दोगे मुझे
मैं कुछ छिपा नहीं रही,अपनी गलती से न भाग रही
कोई बहाना भी नहीं बना रही
बस,इतना कह रही...
कि ,जब मुझे समझ पाना कठिन होता है
मेरी थाह पाना बहुत मुश्किल होता है
उस वक्त...उन क्षणों में
जिनमें ,तुम्हें कुछ कहना चाहती हूँ पर बता नहीं पाती
जो बोलना चाहती हूँ वो जतला नहीं पाती
तब ....ही...
मैं तुम्हें सबसे ज्यादा प्यार करती हूँ
तुम्हारे बिन जीवन की कल्पना नहीं कर पाती हूँ.

कोई मुझे इतनी शिद्दत से कैसे चाह सकता है ..
यह सवाल रात-दिन परेशान करता है ,आजकल .
सोचती हूँ ,कोहरे की चादर में लिपटी किसी सुबह
इस प्रश्न को किसी गहरी घाटी में फेंक आऊँ
जिससे दोबारा ये मन की झील में हलचल न मचाये
क्यूंकि,पता तो है ,मुझे
जैसी हूँ...सारी खूबियों -खामियों के साथ
मुझे चाहते हो तुम ...हमेशा चाहोगे
चाहोगे न...?"

मुकेश पाण्डेय "चन्दन": कुदरत का अद्भुत इंजीनियर : बया

"आज मैं एक बहुत ही कुशल इंजीनियर पक्षी से आपको रु-ब-रु करने वाला हूँ । आपने कई बार पेड़ो से लटके हुए गोल-मटोल घोंसले देखे होंगे ? इन घोंसलों को देख कर कभी कोई जिज्ञासा हुई होगी , कि किसने बनाये ये सुन्दर घोंसले ? किस की है कमाल की कारीगरी ?ये घोंसले अक्सर कंटीले वृक्षों पर या खजूर प्रजाति के वृक्षों पर ऐसी जगह पर होते है , जहाँ आसानी से अन्य जीव नही पहुँच पाते है । वैसे ये कमाल की कारीगरी भारत की दूसरी सबसे छोटी चिड़िया बया (विविंग बर्ड )की है। इन घोंसलों का निर्माण ये नन्ही (मात्र १५ से० मी० ) सी चिड़िया तिनको और घास से करती है । इन घोंसलों की सबसे बड़ी विशेषता ये है , कि कितनी भी बारिश हो इन घोंसलों में एक बूँद पानी भी नही जाता । इनकी इंजीनियरिंग का लोहा वैज्ञानिक भी मानते है , क्योंकि जीव वैज्ञानिको और इंजीनियरों द्वारा बहुत प्रयास करने के बाद भी इस तरह के घोंसले तैयार नही हो पाए । वैज्ञानिको के पास तो तमाम तरह के उपकरण होते है , मगर यह नन्ही सी चिड़िया सिर्फ अपनी छोटी सी चोंच की बदौलत बिना किसी उपकरण , बिना गोंद के सिर्फ तिनको और घास से इतना सुन्दर, मजबूत और वाटर प्रूफ घोंसला बनाती है ।ये सुन्दर सा घोंसला नर बया मादा बया को आकर्षित करने को बनता है। मादा बया सबसे सुन्दर घोंसले आकर्षित होती है , फिर घोंसले को बनाने वाले नर के साथ समागम करती है । कुछ समय बाद इसी घोंसले में मादा बया अंडे देती है।यह दो से चार सफ़ेद रंग के अंडे देती है । अंडे से निकले बच्चे जब बड़े हो जाते है , तो नर बया अपने बनाये घोंसले को नष्ट कर देता है ।बया पक्षी बड़े ही सामाजिक होते है , ये अक्सर झुण्ड में रहते है ।

प्लोसिउस फिलिप्नस नाम से वैज्ञानिक जगत में जानी जाने वाली यह नन्ही चिड़िया मुख्यतः दक्षिण एशिया क्षेत्र में पाई जाती है । अलग अलग भाषाओ में इसे अलग अलग नाम से जाना जाता है । जैसे -बया और सोन-चिरी (हिंदी क्षेत्र में ), बया चिड़िया (उर्दू में ), सुघरी (गुजराती में ), सुगरण (मराठी में ), बबुई (बंगला में ) और विविंग बर्ड (अंग्रेजी में )। देखने में यह चिड़िया जंगली गौरैया जैसी लगती है . यह नन्ही सी चिड़िया शाकाहारी होती है , यह पौधों से या खेत में गिरे हुए दानो को खाती है । इसे चावल के दाने बहुत पसंद है। घास में फुदकना भी इसे बहुत पसंद है। वैसे ये घरो में भी चक्कर लगाती हुई चहकती रहती है ।इसकी चहचाहट चिट-चिट .........ची ची की ध्वनि जैसी होती है . इसमें कोई दो मत नही है , कि बया बहुत ही बुद्धिमान और चालक पक्षी है । कई जगह इसका मनुष्यों द्वारा उपयोग किया जाता है । ये आसानी से मनुष्यों द्वारा प्रशिक्षित की जा सकती है । कई जगह फुटपाथ पर कुछ ज्योत्षी तोते की तरह इसका प्रयोग ज्योतिष कार्ड उठवाने में करते है । यह छोटे सिक्को को भी बड़ी आसानी से उठा कर अपने मालिक को दे देती है । इतिहास में इसका प्रयोग अकबर के समय से मिलता है। इसका कुछ शासको ने जासूसी में भी प्रयोग किया है । तो मित्रो, ये थी भारत की दूसरी सबसे छोटी चिड़िया से नन्ही सी मुलाकात , कैसी लगी ?"

अपनी चाहतें , अपनी हदें , अपनी उड़ान ....... एहसासों के गार्डेन में यदि खुशबू है तो कुछ अनपन्पे पौधे भी ..... चलेंगे बारी बारी

14 टिप्पणियाँ:

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

waah rang biranga.....

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

इस बुलेटिन के माध्यम से कुछ नये (अच्छे) ब्लॉग को पढ़ने का अवसर मिला।

शिवम् मिश्रा ने कहा…

बिलकुल चलेंगे रश्मि दी ... जैसा कि आपने कहा ... बारी बारी ...

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

हमारी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत शुक्रिया रश्मि दी.

लिंक्स देखती हूँ बारी-बारी...

सादर.
अनु

कबीर कुटी - कमलेश कुमार दीवान ने कहा…

aapka blog achcha hai .yah bilkul sahi hai ..jo beet gai so baat gai .

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बड़े प्यारे रंग..

vandana gupta ने कहा…

बहुत सुन्दर लिन्क संयोजन्।

Saras ने कहा…

रश्मिजी मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार !

रविकर ने कहा…

दमदार प्रस्तुति ।

मुकेश पाण्डेय चन्दन ने कहा…

rashmi ji meri post ko sthan dene ke liye bahut bahut dhanyawaad . baki link bhi bahut shandar hai .

Anupama Tripathi ने कहा…

बढ़िया ब्लोग्स चयन ....
बढ़िया बुलेटिन.

वाणी गीत ने कहा…

कई बेहतरीन ब्लॉग्स से मिलना हुआ ...पढ़ते हैं बारी -बारी.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आज की सार्थक सैर .... सुंदर प्रस्तुति

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बुलेटिन में मेरी पुरानी रचना को स्थान देने के लिए ह्रदय से आभार रश्मि जी.

एक टिप्पणी भेजें

बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!

लेखागार