Subscribe:

Ads 468x60px

कुल पेज दृश्य

सोमवार, 25 नवंबर 2013

प्रतिभाओं की कमी नहीं 2013 (17)

ब्लॉग बुलेटिन का ख़ास संस्करण -

अवलोकन २०१३ ...

कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !

तो लीजिये पेश है अवलोकन २०१३ का १७ वाँ भाग ...


जितनी आसानी से कोई कहानी कही जाती है
उतने आसान न रास्ते होते हैं
न मन की स्थिति ...
अंत एक दर्शन है
जीवन की साँसों का
रिश्तों का
विश्वास का, प्यार का ...........
एक अद्भुत रहस्य अंत से आरम्भ होता है
अद्वैत के प्रस्फुटित मंत्रोचार में
जो सूर्योदय की प्रत्येक किरण की परिक्रमा में है
और ख़त्म नहीं होती  … 

ख्याबो को बना कर मंजिल ...बातो से सफर तय करती हूँ ..अपनों में खुद को ढूंढती हूँ ....
खुद की तलाश करती हूँ ... .. बहुत सफर तय किया ...अभी मंजिल तक जाना हैं बाकि...
जब वो मिल जाएगी तो ...विराम की सोचेंगे 
(अंजु (अनु ) चौधरी)

कब और कैसे,
एक लम्बा सा मौन 
पसर चुका है हम दोनों के बीच 
ये मौन बहुत शोर करता है
और कर देता है बेचैन इस मन को 
तुम्हारी सोच की संकरी गली से 
गुज़रने के बाद 
मैं देर तक खुद के अन्धकार में 
भटकती हूँ 
और सोचती हूँ,ये मौन कहाँ से आता है ?

कब और कैसे,
कभी ना खत्म होने वाला 
तेरे और मेरे बीच 
बातों और विवादों का ऐसा मकड जाल 
जो अब टकराव की सीमा तक 
आ कर थम गया है,
और मैं ये भी जानती हूँ 
जिस दिन ये टकराव हुआ 
उस दिन हम दोनों की दिशाएँ
बदल जाएँगी 
तुम  दूर चले जाओगे और बसा लोगे 
अपनी एक नयी दुनिया 
क्यों कि मैं जानती हूँ कि 
खुद के जीवन में
पथराए आँचल से,
पर्वतों के शिखर तक मौन उड़ते है 
जिस से इस जीवन में    
उग आती हैं वीरानियाँ इतनी 
जिसे जितना काटो, वो ओर  
फैलने लगती है,नागफणी सी 
क्योंकि  
ये जिंदगी की धूप भी 
अजीब होती है, नहीं चाहिए तभी 
करीब होती है और 
रात की चांदनी में जब भी 
सोना चाहो 
वो तब ओर भी कोसो दूर 
महसूस होती है
इस लिए तो,
कब  और कैसे,
मैं,खुद को धकेल कर अलग करती हूँ,
और देर तक खुद के अन्धकार में 
भटकती हूँ 
और सोचती हूँ,
कब और कैसे,
ये मौन कहाँ से आता है ?


--ख्यालों की बेलगाम उड़ान...कभी लेख, कभी विचार, कभी वार्तालाप और कभी कविता के माध्यम से......
हाथ में लेकर कलम मैं हालेदिल कहता गया
काव्य का निर्झर उमड़ता आप ही बहता गया.
(समीर लाल की उड़न तश्तरी... जबलपुर से कनाडा तक...सरर्रर्रर्र...)

एक अंगारा उठाया था कर्तव्यों का
जलती हुई जिन्दगी की आग से,
हथेली में रख फोड़ा उसे
फिर बिखेर दिया जमीन पर...
अपनी ही राह में, जिस पर चलना था मुझे
टुकड़े टुकड़े दहकती साँसों के साथ और
जल उठी पूरी धरा इन पैरों के तले...
चलता रहा मैं जुनूनी आवाज़ लगाता
या हुसैन या अली की!!!
ज्यूँ कि उठाया हो ताजिया मर्यादाओं का
पीटता मैं अपनी छाती मगर
तलवे अहसासते उस जलन में गुदगुदी
तेरी नियामतों की,
आँख मुस्कराने के लिए बहा देती
दो बूँद आँसूं..
ले लो तुम उन्हें
चरणामृत समझ
अँजुरी में अपनी
और उतार लो कंठ से
कह उठूँ मैं तुम्हें
हे नीलकंठ मेरे!!
-सोच है इस बार
कि अब ये प्रीत अमर हो जाये मेरी!!


आम आदमी होने का सुख 
**************************
जीवन के कंटीले जंगलों से तिनका तिनका सुख 
बटोरने में ना जाने कितनी बार उंगलियों से खून 
रिसा है,संघर्ष से तलाशे गये इन सुखों को जी भर
के देख भी नहीं पाये थे कि अपनेपन को जीवित 
रखने के लिये इन सुखों को अपनों में बांटना पड़ा 
आदमी के भीतर पल रहे पारदर्शी आदमी का यही
सच है,और आम आदमी होने का सुख भी--------
दौर पतझर का सही---उम्मीद तो हरी है----------- 
(ज्योति खरे)

 माँ 
                                जब तुम याद करती हो
                                मुझे हिचकी आती है
                                पीठ पर लदा
                                जीत का सामान
                                हिल जाता है----

                                 विजय पथ पर
                                 चलने में
                                 तकलीफ होती है----
                                 
                                 माँ
                                 मैं बहुत जल्दी आऊंगा
                                 तब खिलाना
                                 दूध भात
                                 पहना देना गेंदे की माला
                                 पर रोना नहीं
                                 क्योंकि
                                 तुम बहुत रोती हो                   
                                 सुख में भी
                                 दुःख में भी-------

10 टिप्पणियाँ:

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma ने कहा…

उम्दा भाव अभिव्यक्तिया सभी की

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

Sundar parichay!!

vandana gupta ने कहा…

shandar prastuti

Jyoti khare ने कहा…

उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर

Saras ने कहा…

हमेशा कि तरह उत्कृष्ट ...!!!

शिवम् मिश्रा ने कहा…

हमेशा की तरह ... बेहद उम्दा तरीके से सब को सँजोया है आपने |

rajendra sharma ने कहा…

achchaa sanklan

Unknown ने कहा…

Hum apne blog ko yahan kaise add karwaiye, kripya hamein bataiye

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम को दिल से आभार

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

बेहद शानदार प्रस्तुति - जय हो मंगलमय हो | हर हर महादेव |

एक टिप्पणी भेजें

बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!

लेखागार