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सोमवार, 7 अगस्त 2017

आज है रक्षा बंधन बहनों के ख्वाब भाइयों के ख्वाब




बर्थडे (असली) एक दिन, चिल्ड्रेन्स डे,  ... खुशियों के, आज़ादी के, प्यार के, जन्मोत्सव के, 
सुख-दुःख सभी के एक ख़ास दिन तय होते हैं 
उत्सव मनाने का, जताने का, विशेष बनाने का एक दिन चुना गया है 
आज है रक्षा बंधन 
बहनों के ख्वाब 
भाइयों के ख्वाब  ... साथ रहने की तो बात ही अलग है, लेकिन दूर होने पर राखी भेजना, राखी को प्यार से कलाई पर बाँधना इस स्नेहिल बंधन को एक मजबूत माध्यम देता है। 

मुमकिन है 
"शायद वो सावन भी आए, जो पहला सा रंग न लाए
बहन पराए देश बसी हो, अगर वो तुम तक पहुँच न पाए
याद का दीपक जलाना"


....भैया...
इस तुरतफुरत संदेशो के युग में
जब चिट्ठियाँ विलुप्त हो गई हैं
लिफाफे में भेजी राखियो के संग
तुम्हें हर साल एक खत तो अवश्य लिखा
जिसमें यादों के ककहरे पढ़े
रौशनी के झूले झूले...
बहुत स्निद्घ सा है ये त्यौहार
भावनाओं का गुबार ले कर आता है..
अनुभूतियाँ ही तो हम स्त्रियों का नैसर्गिक गुण है
और भाई इन भावों की पहली लड़ी हैं
पर सब के सब भाव कलमबद्ध कहाँ हो पाते हैं..
तो क्या लिखूं इस बार ख़त में
ये कि भैया तुम्हारी आवाज़ एक सुकूँ है
मेरे झुमके झिलमिलाते हैं इसे सुन कर
चाह यही कि हर दिन इसे सुनूँ
कि तुम पुकारते रहा करो..
या ये कि भैया तुम्हारी छवि सांत्वना है
आते रहा करो
बुलाते रहा करो
कि शापित है तुम्हारी बहन
बिना बुलाये नही आ पाती..
अनजान नही हूँ मैं
पता है वक्त सख्त है
सँकरी गलियों से गुजरता है
तुम भी बंधे हो जिंदगी के पल्लों से
उलझे हो जिन्दगी के पचड़ों में..
परंतु तुम्हारी जिंदगी के इतर ही
तुम्हारी ज़िन्दगी हूँ मैं..
कभी कभी पीछे लौटा करो
वो हँसी ठिठोली
यादों की खट्टी मीठी गोली
जिंदगी के लिए आवश्यक है..
कि सुख दुख के संगी हैं हम
इस जन्म से
उस जन्म तक..
आँचल भर दुआएँ
और फलक भर खुशी भेजी है
राखी के डोरे संग
समेट लेना..



Sadhana Vaid

सभी मित्रों व पाठकों को रक्षा बंधन के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं !
है बैठा सुबह से मेरी छत पे कागा

न चूड़ी न कंगन
न सिक्कों की खन खन
न गोटे की साड़ी
न पायल की छन छन !
न गहना न गुरिया
न चूनर न लहँगा
न देना मुझे कोई
उपहार महँगा !
मुझे चाहिए बस
दुआओं का तोहफा
मुरव्वत का तोहफा
मुहब्बत का तोहफा !
मुझे चाहिये एक
तुमसे ये वादा
निभाना उसे चाहे
हो कोई बाधा !
रहोगे सदा वृक्ष
की छाँह बन कर
जियोगे सदा दीप
की ज्योति बन कर !
रखोगे सदा नेह
का हाथ सिर पर
चले आओगे एक
आवाज़ सुन कर !
है बैठा सुबह से
मेरी छत पे कागा
तुम्हें खींच लायेगा
राखी का धागा !
खड़ी द्वार पर हूँ
हैं पथ पर निगाहें
चले आओ भैया
मैं तकती हूँ राहें !
प्रभु आज तुमसे है
इतनी सी विनती
हों भैया की झोली में
खुशियाँ अनगिनती !


भ्रातृत्व और अपनत्व के भाव से सकल संसार ही अनुप्राणीत है ! हृदय के उद्गार हर उस रिश्ते के लिए जिसकी प्रेरणा इन शब्दों की आत्मा है :-
भावों से परिपूर्ण
भाव रूप में ही
एक धागा भेजा है...
जीवन के
कई सांझ-सवेरों के अनुगूंज को-
शब्दों में सहेजा है !!
इन्ही शब्द विम्बों में
अपनी राखी...
पा लेना भैया !
हमारी दूरी
पाट ली जाएगी...
चल पड़ी है जो..
भावों की नैया !
अविचल चलते
राहों पर
कवच शुभकामनाओं का...
तेरे भीतर विराजते
शिव ही तो स्वयं है..
तेरे खेवैया !
सबकुछ शुद्ध अटल है तो
पहुंचेगा ज़रूर तुम तक...
इतना कहते हुए
अब तो आँखों से...
बह चली है गंगा मैया !
अब विराम देती हूँ
अपनी वाणी को...
सहेज लेना
जो इस अकिंचन ने भेजा है !
जीवन के
कई सांझ-सवेरों के अनुगूंज को-
शब्दों में सहेजा है !!

रक्षाबंधन विशेष ..
भाई :- तुझे उपहार में क्या चाहिए ..
बहन :- बस एक बचन चाहिए ..
भाई :- कैसा बचन .. ??
बहन :- कभी भी माँ बाप को वृद्ध आश्रम छोड़कर नही आएगा ..
भाई :- तु भी वचन दे। अपने सास-ससुर को उनके लडके से दूर नही करेगी...???..


राखी के दिन मैं हमेशा, नई ड्रेस पहन कर दोनों हाथों में मेहंदी लगा कर, भगवानजी को- भाई को-पापा को-मम्मी को-गाड़ी को राखी बांधती थी। भाई को मेरी राखी नज़र का डोरा लगती थी, कि मुझसे बंधवा लेगा जिस भी चीज़ के, वो सुरक्षित रहेगी, इसलिए वो अपनी मोटर-बाइक, पेन, घर के दरवाजे सब पर मुझसे राखी बंधवाता था, और उस दिन के लिए स्पेशल कैमरे में रील डलवाते थे, जब दादा-दादी थे, तब उन्हें भी मैं राखी बांधती थी। उस दिन ये महसूस होता था कि देखो कितनी वेल्यू है, मैं ना होती तो इन्हें नज़र से कौन बचाता। ये बहन की सुरक्षा वाली बात बहुत बाद में पता चली तब मन ने नहीं स्वीकारा। मुझे तो आज भी यही लगता है, मेरी राखी उन्हें बरकत देती और सुरक्षित रखती है। रक्षबन्धन इसलिए भी पसंद क्योंकि भरपूर हाथ खुलता था पापा का।


3 टिप्पणियाँ:

अनुपमा पाठक ने कहा…

"शायद वो सावन भी आए, जो पहला सा रंग न लाए
बहन पराए देश बसी हो, अगर वो तुम तक पहुँच न पाए
याद का दीपक जलाना"

यादों के दीप से ही सालों से रोशन है अपनी दुनिया! :)
आभार!

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

शुभकामनाएं राखी पर्व पर। सुन्दर बुलेटिन।

Sadhana Vaid ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत चयन एवं संकलन ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार रश्मिप्रभा जी ! सबकी स्मृति मंजूषा को समृद्ध करता हुआ यह पावन दिन भी बीता होगा यही आशा करती हूँ ! हार्दिक शुभकामनाएं !

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