मित्रों, आज भाभा की पुण्य तिथि है। चौबीस जनवरी 1966 को एक बड़े ही संदेहास्पद तरीके से विमान हादसे में भाभा की मृत्यु हुई। मुझे आज़ाद भारत की कुछ घटनाएं जैसे कि भाभा, शास्त्रीजी की मृत्यु उनके साक्ष्य और भारत सरकार के रवैये पर कभी विश्वास नहीं होता और मुझे लगता है कहीं न कहीं कोई राजनैतिक साजिश है यह सभी। नेताजी के दस्तावेज सामने आना और उनपर नेहरू की स्थिति का साफ़ होना इस संदेह को और मजबूती देता है। कल से पहले तक मुझे नहीं पता था कि देश में राजनैतिक जासूस आयोग भी था, सर्वोच्च सत्ता ने कैसे अपने राजनैतिक विरोधियों पर जांच किये होंगे और क्या क्या हुआ होगा यह सब सोचने की ही बात है।
बहरहाल आज आइये बात करते हैं भाभा की मृत्यु के सम्बंधित कुछ साक्ष्यों पर, जिन्हे मैंने कुछ गूगल करके और कुछ भारत सरकार के आर्काइव को खंगालकर निकाला है।
भाभा की मृत्यु जिस एयर इंडिया फ्लाइट 101 में हुई थी वह मुंबई से लंदन (दिल्ली, बेरुत और जेनेवा होने हुए) की उड़ान पर था। कंचनजंघा नामके इस शेड्यूलड जहाज में कई अन्य अधिकारी भी थे, जब यह जहाज जेनेवा के रास्ते में था तब कंट्रोलर ने विमान से उसकी ऊंचाई बनाये रखने को कहा, उसे यह भी बताया गया की ऊंचाई बनाये रखो क्योंकि आगे पांच मील दूर मोंट ब्लेंक पर्वत है और पायलट ने इस सन्देश को एकनॉलेज किया। लेकिन यह जहाज के बारे में खबर आई की वह 15585 फ़ीट की ऊंचाई पर दुर्घटनाग्रस्त हुआ और सभी 11 विमान के दल और 106 यात्री मारे गए, यह दुर्घटना आज भी सबसे खतरनाक दुर्घटनाओं की सूची में पांचवे नंबर पर है। यहाँ तक तो सब ठीक दिख रहा है लेकिन यहीं से एक कहानी की शुरुआत हुई, अमेरिकी जांच एजेंसी (सीआईए) के अधिकारी रॉवर्ट करौली से ग्रेगोरी डगलस नामक पत्रकार ने लगभग चार साल तक की बातचीत के बाद जो लिखा उसे देखने पर असली साजिश समझ में आएगी। आइये आपको समझाने की कोशिश करते हैं, करौली ने कहा की प्लेन के कार्गो सेक्शन में एक बम प्लांट किया गया था और उसका टाइमर ठीक उसी समय का था जब विमान ऐल्प्स पर्वत श्रृंखला पार कर रहा हो। यह कदम भारत सरकार और अमेरिकी सरकार की मिलीजुली कार्यवाही का नतीजा थी यह मुझे नहीं पता और न ही मैं उसमे जाऊँगा लेकिन यह भारत के परमाणु कार्यक्रम की रीढ़ तोड़ने का एक बड़ा कारक तो बना ही। करौली ने यहाँ तक कहा की वर्ष 1965 में पाकिस्तानी हार के बाद अमेरिका चिंतित था की भारत रूस के साथ मिलकर दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी महाशक्ति बन जायेगा और इससे उसके मित्र राष्ट्र पाकिस्तान के लिए और इस क्षेत्र में अमेरिकी गतिविधियों पर नियंत्रण लग जायेगा। करौली ने भाभा के साथ हुई साजिश और शास्त्रीजी के साथ हुई साजिश में आपसी सम्बन्ध और सीआईए के रोल पर भी ऊँगली उठाई थी। 11 जनवरी को शास्त्रीजी का ताशकंद में दिल का दौरा पड़ना जबकि भारत सरकार का जांच न करना और यह मान लेना की मृत्यु स्वाभाविक थी जबकि प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि शास्त्रीजी के गले और शरीर में विष पीने के बाद का नीलापन था। ठीक उसके तरह दिन बाद भाभा के साथ हुई साजिश इस आरोप में संदेह बढ़ाती है। शायद इसमें इंदिरा गाँधी का कोई रोल हो, या शायद न भी हो लेकिन शास्त्रीजी की मृत्यु से फायदा किसको था यह हम सभी जानते हैं।
नेहरू नीति से इतर परमाणु कार्यक्रम चलाने वाले भाभा को नेहरू पसंद नहीं करते थे और यही कारण था कि कांग्रेस ने कभी भाभा को भारत रत्न के योग्य नहीं समझा। नेहरू को जिस नोबेल के कीड़े ने काट खाया था वह एक बहुत बड़ी वजह थी उनकी इस सोच के लिए।
बहरहाल आज के दिन भारत के सच्चे सपूत और परमाणु कार्यक्रम के जनक भाभा को पूरे बुलेटिन परिवार और ब्लॉग जगत की ओर से नमन, आप भारत रत्न से श्रेष्ठ हैं और हमारे नायक हैं।
जय हिन्द
अब आज के बुलेटिन की ओर चलिए:
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आज के बुलेटिन में इतना ही, कल फिर मिलेंगे एक नए अंक में