एक चेहरा अनाम
रहा मेरे एकांत में
और जिंदगी दर्द से वक़्त निकाल जी लेती रही !
सब पूछते रहे राज
और मैं देखती रही एक अक्स
जो हर वक़्त मेरे साथ होता …
जब दिल घबराया
उसने कहा - 'मैं हूँ ना'
जब खिलखिलाई
वह मुझे अपलक देखता रहा
जब थकान हुई
उसने सर सहलाया
जो भी बनाया
उसने कहा - 'क्या बनाती हो !'
जब अँधेरा छाया
वह सूरज बन गया
…
मैं उसे जब चाहे जिस नाम से पुकार लूँ
वह सुन लेता है
पर बेहतर है वह रहे अनाम
प्यार - नाम नहीं माँगता कभी !!!
हाँ तो बुलेटिन के सारे दिग्गज छुट्टी में है , पर मैं हूँ ना' लिंक्स के शानदार बुलेटिन के साथ …
कोई शक़ ?
अब कुछ पीछे चलें बंधू? कुछ पीछे के लिंक्स
12 टिप्पणियाँ:
बेहतरीन लिंक्स प्रस्तुति...!
लिंक्स लेने पूर्व जानकारी देने का कष्ट करे ,ताकि आभार व्यक्त कर सकू,,,!
.........एक पॉडकास्ट की लिंक छूट गयी दी - मैं हूँ न!.......और आप तो हैं ही
धीरेन्द्र जी
वह मेरे लिए थोडा मुश्किल है, कोशिश करती हूँ - पर नहीं हो पाता
तुम तो ही अर्चना चाव जी
सुन्दर और पठनीय सूत्र..
सिर्फ अहसास है ये रूह से महसूस करो ,प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो । गुलज़ार जी ने इस विषय में कितनी खूबसूरत और सच्ची बात कही है । रश्मि जी आपकी कविता भी बहुत सच्ची और अच्छी है । प्रेम को किसी रिश्ते का नाम देना जरूरी नही ।
मुझे तो अपने लिए आपका @मैं हूँ ना *
थोड़ी स्वार्थी हूँ ।
,बेहतरीन प्रस्तुति...!
दीदी, आपकी तमाम कविताओं में आज इस नज़्म की सादगी ने मन मोह लिया.. और सचमुच दिल से आभार मेरी इस पोस्ट को शामिल करने के लिये. वह कहानी मेरी बहन अर्चना के लिए थी और उसने उसका पॉडकास्ट भी किया था!!
हम तो है ही ना ! :)
बहुत बढ़िया !
वाह ! आप आयी बुलेटिन भी आया पर बर्फबारी के बाद बिजली नेआने में देर कर दी यहाँ
उल्लूक ने फिर भी देख लिया उजाले में है "बहुत भला होता है भले के लिये ही भला कर रहा होता है" आभार !
@धीरेंद्र जी ऐसे ही सहयोग बनाए रहिए ... शायद कभी न कभी वो दिन आ ही जाएगा जिस दिन आप की शिकायतों का पुलिंदा खाली हो जाएगा | ब्लॉग बुलेटिन की शुरुआत से ही बिना मुद्दों के मुद्दे उठा उठा कर आप एक सार्थक विपक्ष की तरह अपना धर्म निबाह रहे है ... साधुवाद |
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