कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०११ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
तो लीजिये पेश है अवलोकन २०११ का १७ वां भाग ...
आँखों में एक नशा होता है , नशा ख्यालों का , नशा उसे जीने का .... कतरा कतरा उतरता जाता है सीने में , सुलगता जाता है ! यह आग ही ऐसी होती है कि इसकी तपिश से हर कोई गुजरना चाहता है ....... सर चढ़कर बोलता है ये नशा
"उठा है वो गुबार कि अपने वजूद के पांव उखड़ जाएं, चढ़ा है वो बुखार कि तेरे ही जिस्म को पिघला कर फिर अशर्फी में ढ़ल जाए। ऐ मलिका-ए-नील... खोल अपने आंचल कि प्यास का मारा मैं तेरी रूह तक पहुँच जां दे सकूं। हटा वो परदा कि मेरे अंदर का सन्नाटा तेरे रानाईयों में जज्ब हो जाए। " इश्क का बुखार चढ़ता है तो चढ़ता ही जाता है ...
कहीं इश्क कहीं ज़िन्दगी के दाव पेंच - शतरंज की बिसात और स्थिति !
"थक गया मैं पूरी ज़िन्दगी शतरंज खेलते ...
मेरे सारे सैनिक खोटे निकले" बचपन जब मासूमियत के बिस्तरे पर ख्वाब देखता है तो क्षणांश को भी यह ख्याल नहीं आता कि न सिकंदर रहेंगे न रहेगा अपने होने का सुकून , होगी सिर्फ थकान और हर खेल से विरक्त मन !
ख़्वाबों की उड़ान बड़ी ऊँची , बड़ी ज़बरदस्त होती है .... एक सूरज की कौन कहे , ख़्वाबों में उभरे कई सूरज हथेलियों में रहते हैं - इस उड़ान के आगे बुद्धि भी हैरां होती है -
"ख्वाब परिंदों की तरह होते हैं
छूना चाहो तो ये उड़ जाते हैं
और फिर हाथ नहीं आते हैं ..." एक तो ज़िन्दगी की रफ़्तार , उस पर ख्वाब - कई बार ठेस लगती है, जाने अनजाने - रिसता है खून या रिसता है मन , कौन जाने !
"आ जिंदगी तू आज मेरा कर हिसाब कर
या हर जबाब दे, या मुझे लाजबाब कर " प्रश्न ज़िन्दगी से भी है , उसके जवाब का भी इंतज़ार है ... इंतज़ार है वो कुछ ऐसा कह जाए कि अपना आप लाजवाब हो जाए ...
11 टिप्पणियाँ:
सभी रचनाएं एक से बढ़कर एक हैं सभी को बधाई आपका बहुत-बहुत आभार ..।
"ख्वाब परिंदों की तरह होते हैं
छूना चाहो तो ये उड़ जाते हैं
और फिर हाथ नहीं आते हैं ..."बधाई
बहूत सुंदर रचनाएं....आभार
खूबसूरत लिंक्स और पोस्टें । रश्मि जी का आभार इस पारखी नज़र और श्रम के लिए ।
बहुत बढ़िया संकलन ब्लोग्स का ..
लाजवाब खोज है आपकी रश्मि जी ! सभी लिंक्स बेमिसाल हैं ! बहुत सुन्दर !
bahut badiya links ke sath sundar bulletin prastuti hetu aabhar..
जय हो रश्मि दीदी ... बेहद उम्दा चल रहा है यह सफ़र अवलोकन २०११ का ... जय हो !
"आ जिंदगी तू आज मेरा कर हिसाब कर
या हर जबाब दे, या मुझे लाजबाब कर "
इन पंक्तियों का सौन्दर्य, तर्क और माधूर्य अभिभूत किये हुए है जबसे इसे पढ़ा है... यहाँ आनंद जी की इन पंक्तियों का ज़िक्र करने के लिए आभार!
इस श्रृंखला के रूप में श्रमसाध्य कार्य करने हेतु आप कोटि कोटि आभार और अनंत बधाइयाँ!!!
bahut khoobsoorat links ....
बढिया लिंक्स।
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