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शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

प्रतिभाओं की कमी नहीं - अवलोकन २०११ (14) - ब्लॉग बुलेटिन



कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०११ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !

तो लीजिये पेश है अवलोकन २०११ का १४ वां भाग ...
 

"हींग टिंग झट बोल चिंग चिंग पा
खुल जारे ताले झट से फटाक....
काबुलीवाले , चलो यहाँ से भाग निकलें .
ओहो काबुलीवाले ,
बन्द कमरे से निकलो ...
देखो बाहर निकलकर कितने ज्ञानी लोग हैं !
.............. अच्छा काबुलीवाले तेरी झोली में क्या है ?
जादू की कलम , जादू की कलम
इससे लिखें चलो एक कहानी हम !" रुको , रुको हम बाद में लिखेंगे , अभी देखें कि जादू की कलम से औरों ने क्या लिखा है ...
धर्मेन्द्र कुमार सिंह http://www.dkspoet.in/2011/11/blog-post_24.html
"कविता लिखना
जैसे चाय बनाना
कभी चायपत्ती ज्यादा हो जाती है
कभी चीनी, कभी पानी, कभी दूध
कभी तुलसी की पत्तियाँ डालना भूल जाता हूँ
कभी इलायची, कभी अदरक
मगर अच्छी बात ये है
कि ज्यादातर लोग भूल चुके हैं
कि चाय में तुलसी की पत्तियाँ
अदरक और इलायची भी पड़ते हैं " अपरोक्ष कुछ भी नहीं कहा है कवि ने ... कविता बिल्कुल चाय जैसी . अदरक , इलायची तो बाद में - पहले तो पत्तियाँ अलग अलग - गोल दानेदार , लम्बी हरी पत्ती... पानी, दूध , शक्कर का सही अनुपात ....... पर पसंद अपनी अपनी . है न ?

ए काबुलीवाले भरते जाओ अपनी झोली में ये कलम .... तुम आराम से बैठो , मैं ढूंढ कर चुपके से रखती हूँ ...
सुना काबुलीवाले , अमृता का मकान बिक गया ... मैं तो बड़ा रोई ... अंजू ने लिखा है इसमें http://anjuananya.blogspot.com/2011/11/blog-post_15.html
"साहित्य जगत में खलबली है ,सवालों की बारिशें हैं , हर नजर इमरोज़ की मोहब्बत पर सवाल करने को आतुर है..???????????.. पर इमरोज़ किससे साँझा करे..? और क्यूँ करे ?जब ये मकान घर बना ,सवाल तब भी उठे थे... दर्द तब भी मिला था,पर हौंसला था....आज मकान (घर नहीं)बिका तो फिर वही सवाल ...." सवाल उठाना बहुत आसान होता है , और जब कोई जवाब न दे तो अनुमान के घोड़े दौड़ाना इंसानी फितरत है . बचना चाहोगे तो चुप रहोगे , पर अनुमान से कोई नहीं बचा है .... लगाने दो अनुमान !

फिर भी एकांत में दिल घबराये तो प्रतिभा कटियार की सुनो http://pratibhakatiyar.blogspot.com/2011/10/blog-post.html
"चीखो दोस्त
जितनी तेजी से तुम चीख सकते हो
इतनी तेज की गले की नसें
फटकर बहार निकल आयें
और तुम्हारी आवाज
दुनिया का हर कोना हिला दे." ख़ामोशी इतनी भी अच्छी नहीं कि सामनेवाला तुम्हें गुनहगार ही सिद्ध कर दे और तुम घुटते रहो और दिमाग की नसें फट जाएँ . उदाहरण बनने के लिए कभी कभी चीखना भी होता है .........

पता है काबुलीवाले , आलस बुरी बला है ... पर आजकल तो ब्रह्ममुहूर्त का समय ही बदल गया . भले सूरज अपने समय से निकले , पर उठने का समय , सोने का समय - सब बदल गया है .
गुंज झाझारिया की सुनो http://lekhikagunj.blogspot.com/2011/11/blog-post_28.html
"आज सुबह मैंने पूछा आलस्य से,
" भाई, तुम क्यूँ मुझे इतना सताते हो?
हर समय बिन बुलाये मेहमान के जैसे आस-पास
मंडराते हो!
मुझे नहीं पसंद है यूँ तुम्हारा आना,
तुम्हारे आने से ही तो मेरे काम अधूरे रह जाते हैं!
मेरे नाम न कमाने की,
धन न पाने की एक-मात्र वजह तुम ही हो!" पर आलस्य भी ज़रूरी है , ऐसा आलस्य भी कहता है - !!!

जब तक हम होते हैं , हमें लगता है - हमारे बगैर ये काम नहीं हो सकता , पर जीवन कहीं भी ठहरता नहीं है - हाँ चाहो न चाहो , चलना होता है, चलना आ जाता है .
" मेरी माँ
जीती रही इसी भरम मैं ;
कि उसके बिना ,
बच्चे रह न सकेंगे
अब वो नहीं है |
अब मैं जी रही हूँ
इसी भरम मैं |" सच पूछो तो माँ का यह भरम नहीं , माँ को खुद पर विश्वास होता है अपने बच्चों के सुख को लेकर ...

कम शब्दों में भी कोई कितना कुछ कह जाता है न काबुलीवाले , यह भी एक कला है -
विभा रानी श्रीवास्तव http://vranishrivastava.blogspot.com/2011/10/blog-post.html
"जिन्दगी में कई बार ऐसे अनुभवों से गुजरना पड़ता हैं जो बाद में मृगतृष्णा ही साबित होता हैं…. " सच , कई बार रास्ते गुमशुदा ही रह जाते हैं ...

काबुलीवाले अब सबकुछ समेटो और चलो - कुछ और कलम तलाशें...


रश्मि प्रभा   

22 टिप्पणियाँ:

सदा ने कहा…

रचनाओं को सजीव करने की कला आपको बखूबी आती है तभी तो हर रचना कह रही है कितना कुछ आपके शब्‍दों में ...अवलोकन का यह भाग और बेहतरीन रचनाओं का संगम ...जिसके लिए आपका आभार ।

शिवम् मिश्रा ने कहा…

आज 'काबुलीवाले' ने अपनी झोली खूब खोली ... जय हो दीदी ...

Sadhana Vaid ने कहा…

कितने सुन्दर लिंक संजोये हैं आपने ! सारी रचनाएं अनुपम एवं अप्रतिम हैं ! आपका आभार एवं धन्यवाद !

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

har baar ki tarah ek baar fir:))))
bahut khubsurat post!

गुंज झाझारिया ने कहा…

रश्मि दीदी...सहृदय धन्यवाद मेरे विचारो को स्थान देने हेतु!
सच में यह मंच बहुत सुन्दर लगा..
पहली बार ही आना हुआ है यहाँ...
अब अक्सर होगा!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अद्भुत अन्दाज..

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

"काबुली वाला आया काबुली वाला "
बहुत ही बढ़िया गीत से शुरूवात करने का श्रिये आपको ही जाता हैं रश्मिजी ...
धरमेंदर जी की चाय में तो मज़ा आ गया ....प्रतिभाजी को पढना हमेशा से अच्छा लगता हैं गूंज जी और ममता वाजपई की कविताए भी जानदार लगी ,पहली बार इन्हें पढ़ा हैं ..

‘सज्जन’ धर्मेन्द्र ने कहा…

बड़ा अनूठा अंदाज है प्रस्तुति का, बधाई स्वीकार करें

संध्या शर्मा ने कहा…

बहुत अच्छा और अनोखा अंदाज है प्रस्तुति का... शुभकामनायें

Maheshwari kaneri ने कहा…

सभी रचनाए अनूठे अंदाज में प्रस्तुत करने के लिए आभार....

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

सभी को पढ़ना बहुत अच्छा लगा विशेषकर धर्मेन्द्र जी और गुंजन जी को।


सादर

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुंदर लिंक्स पढने को मिले...आभार

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

अलग ही अंदाज है आपका.... बढ़िया सूत्र संकलित हैं....
सादर बधाई दी..

vandana gupta ने कहा…

बहुत सुन्दर लिंक्स संजोये हैं…………पढवाने के लिये आभार्।

Archana Chaoji ने कहा…

मै भी आपके साथ चल रही हूँ, काबुलीवाले की उँगली थामे ....

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

कमाल!!

मनोज कुमार ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कमाल...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आज कुछ नए सूत्र मिले.. आभार

Asha Lata Saxena ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन बहुत अच्छा लगा |कई कवितायेँ पुनः पढने को मिल रहीं हैं |
बहुत अच्छा प्रयास |
आशा

Anju ने कहा…

बहुत सुंदर ..लिंक्स...आभार
मेरी रचना को ब्लॉग बुलेटिन में लेने के लिए भी शुक्रिया ....

Pratibha Katiyar ने कहा…

bahut sundar. shukriya!

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