कमी न तुममें थी
न मुझमें थी,
और शायद कमी तुझमें भी थी,
मुझमें भी थी ...
कटु शब्द तुमने भी कहे,
हमने भी कहे,
मेरी नज़रों से तुम गलत थे,
तुम्हारी नज़रों से हम !
बना रहा एक फासला,
न तुम झुके,
न हम -
शिकायतें दूर भी हों तो कैसे ?
आओ, चुपचाप ही सही,
कुछ दूर साथ चलें,
मुमकिन है थकान भरे पल में,
तुम मुझे पानी दो
मैं तुम्हें ...
बिना किसी जीत-हार के,
बातों का एक सिलसिला शुरू हो जाए ।
रश्मि प्रभा
एक ब्लॉग लिंक उठाती हूँ और उसके कुछ कमरों से गुजरती हूँ आपको साथ लेकर, शायद इसी बहाने रुके कदम,फिर चल पड़े -
प्रदीपिका सारस्वत