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गुरुवार, 13 नवंबर 2014

कुछ ख़ास है तो हम हैं आप हैं :)



आज - कुछ ख़ास है, सोचिये, कुछ याद आया  .... ? यदि हमने कुछ दिया है तो याद तो होना ही चाहिए - हाँ हाँ आज हमारे ब्लॉग बुलेटिन की सालगिरह है।  एक वर्ष फिर देखते देखते गुजर गया, बहुत कुछ छूट गया, फिर भी पहचान तो पहचान है।  इसी पहचान का एक स्वर्णिम हस्ताक्षर आज के नाम 


.... औरतें भागती गाड़ियों से तेज भागती है 
तेजी से पीछे की ओर भाग रहे पेड़ 
इनके छूट रहे सपनें हैं 
धुंधलाते से पास बुलाते से सर झुका पीछे चले जाते से 
ये हाथ नही बढाती पकड़ने के लिए 
आँखों में भर लेती है जितने समा सकें उतने 


घर से चिट्ठियाँ नहीं आतीं
जब – तब एस. एम. एस. आते हैं
जो कंपनी के अनचाहे एस.एम.एसों. में खो जाते हैं
और कुछ दिनों में गायब हो जाते हैं



परिंदे को आसमां बुलाए
उड़ जा दरख़्त बेगाने हुए
पत्ता पत्ता भी खुदगर्ज़ हुए
उड़ना होगा आज़ादी के लिए 


साधना का प्रात और वह ज्ञान की तपती दुपहरी,
निर्णयों की साँझ प्रेरित, संयमों के अडिग प्रहरी ।
आज रजनी मधुर स्वर में कर रही मधुमाय गुञ्जन ।
प्रेम-प्लावित हो गया मन ।। १।।

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  1. वो हँसते हुये कहता है मुझसे
    अच्छा…तो तुम्हें लगता है तुम तलाश लोगी मुझे?
    शहर के इस कोलाहल में…
    गाड़ियों, लोगों और मशीनों के इस विशाल औरकेस्ट्रा में
    तुम छीज कर अलग कर दोगी मेरी आवाज
    बचपन में दादी से सीखी थी क्या चूड़ा फटकना?
  2. ये जीना भी कोई जीना है लल्लू !: "अलार्म क्लॉक"

  3. नींदों के भीतर
    एक ख़्वाबों की दुनिया है जहाँ
    जो चाहो वो होता है
    जहाँ ज़िंदा होती हैं चाहें
    जहाँ घर होता है

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