आज - कुछ ख़ास है, सोचिये, कुछ याद आया .... ? यदि हमने कुछ दिया है तो याद तो होना ही चाहिए - हाँ हाँ आज हमारे ब्लॉग बुलेटिन की सालगिरह है। एक वर्ष फिर देखते देखते गुजर गया, बहुत कुछ छूट गया, फिर भी पहचान तो पहचान है। इसी पहचान का एक स्वर्णिम हस्ताक्षर आज के नाम
.... औरतें भागती गाड़ियों से तेज भागती है
तेजी से पीछे की ओर भाग रहे पेड़
इनके छूट रहे सपनें हैं
धुंधलाते से पास बुलाते से सर झुका पीछे चले जाते से
ये हाथ नही बढाती पकड़ने के लिए
आँखों में भर लेती है जितने समा सकें उतने
घर से चिट्ठियाँ नहीं आतीं
जब – तब एस. एम. एस. आते हैं
जो कंपनी के अनचाहे एस.एम.एसों. में खो जाते हैं
और कुछ दिनों में गायब हो जाते हैं
परिंदे को आसमां बुलाए
उड़ जा दरख़्त बेगाने हुए
पत्ता पत्ता भी खुदगर्ज़ हुए
उड़ना होगा आज़ादी के लिए
साधना का प्रात और वह ज्ञान की तपती दुपहरी,
निर्णयों की साँझ प्रेरित, संयमों के अडिग प्रहरी ।
आज रजनी मधुर स्वर में कर रही मधुमाय गुञ्जन ।
प्रेम-प्लावित हो गया मन ।। १।।
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