बात बात में भी भाई शिवम मिश्रा जी ने इस ब्लॉग बुलेटिन की रूप रेखा तैयार कर दी । उनके श्रम और कटिबद्धता से समृद्ध होता ये धीरे धीरे पाठकों के बीच पैठ बना ही रहा था कि इसे सरस्वती पुत्री आदरणीय रश्मि प्रभा जी ने २१ भागों की अपनी एक सहेजनीय श्रंखला के स्नेह से आशीष दिया । पिछले इक्कीस दिनों में साल भर की चुनिंदा पोस्टों को अपने शब्दों के जादू में पिरो कर रश्मि प्रभा जी इस बुलेटिन को पाठकों के असीम स्नेह का पात्र बना दिया । आज वर्ष की आखिरी और वर्ष की पहली रात है । तो आइए देखते हैं आज के बुलेटिन में पोस्टों की झलकियां । कल बात करेंगे ब्लॉग बुलेटिन के कल की बात
दिनांक १-१-२०१२
नए वर्ष की नयी सुबह ..नया सूरज नयी रौशनी ..
यों तो आज भी रोज़ की तरह ही एक सुबह है ,पर नजरिया बदल गया है ...बायीं और लिखी जाने वाली दिनांक आज नए वर्ष का इशारा कर रही है..आज स्वागत कर रही है उन ३६५ दिनों के नए साल का ..
चलिए नए सूरज से नयी ऊर्जा ले और एक दुसरे को विनम्रता से बोलें..
सुप्रभात .....नव वर्ष मंगलमय हो ..
चुप रहिये वे कुछ बोलने जा रहे हैं …..
चुप रहिए
वे कुछ बोलने जा रहे हैं
उपलब्धियों को वे
तौलने जा रहे हैं
भाइयों और बहनों
हमारा देश स्मूथली 'रन' कर रहा है
देखते नहीं कितनी आसानी से अपना काम
'गन' कर रहा है
हमें आप पर गर्व है, कि आप हमेशा 'गुरु' बने रह पाए!
मेरे 'गुरु' श्री त्रिलोकी नाथ द्विवे आज की पोस्ट हमारे 'गुरु' श्री त्रिलोकी नाथ जी द्विवेदी पर है, जो पूर्व में एक सहायता प्राप्त विद्यालय में अध्यापक रहें हैं। बाद में नायब तहसीलदार में चयन के बाद प्रोन्नति उपरान्त आज अपने प्रशासनिक पद से सेवा-निवृत्ति प्राप्त कर रहे हैं। राजस्व प्रशासनिक जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए भी अपने स्वभाव, मूल्यों और सिद्धांतों से परे कभी नहीं हटे। जाहिर है जैसा पराभव का काल आज है, उसमे इन पदों में रह कर स्वयं की 'गुरुता' बचाए रखना भी बहुत बड़ा कार्य है। इस अवसर पर जल्दबाजी में ही सही यह समर्पण पोस्ट आप सब के समक्ष प्रस्तुत है। जीवन के उनके साथ बिठाये उन पलों को याद करना बहुत आसान है, क्योंकि बहुत कुछ कहे बगैर आचरण से भी सीखा जा सकता है और मेरे गुरु का आचरण और चरित्र ही मेरा असल 'गुरु' कहा जा सकता है।
क्या कार्टूनिस्ट नहीं कर सकता भ्रष्टाचार का विरोध ??
कार्टूनिस्ट असीम के कार्टूनों की गूंज गुरूवार को राज्यसभा में भी सुनाई दी और सांसद Ram Kripal Yadav ने आपत्ति जताई कि संसद को ट्वाइलेट बताकर कार्टूनिस्ट Aseem ने देश की कथित सर्वोच्च संस्था पर निशाना साधा है. मजेदार बात तो यह है कि उसी सदन में आरजेडी के सांसद राजनीति प्रसाद ने अपनी राजनीति को चमकाने के लिये लोकपाल बिल की कापी फाड़कर फेक दी और हंगामा मचा दिया. मैं पूछता हूं कि क्या इसे देश के सवोच्च सदन का अपमान नहीं कहा जाएगा?
Ashish Tiwari
मिल कर करें अभिनन्दन ...2012 का
मैं भविष्य से वर्तमान बन,
तुम्हारी दहलीज़ पे
आ गया हूं
मेरी कांधे पे एक झोली है
विश्वास की
उसमें 365 दिन हैं
उसका पहला दिन
जब निकलेगा
तब मेरा नाम लेकर
सूर्य की किरणें
तुम्हारा अभिनन्दन करेंगी
तारीखें बदलेंगी
दिन नये आते जाएंगे
छोटा सा यह एक झरोखा , पेश है साल का लेखा-जोखा
जनता के अन्नाने का साल, कांग्रेस के भन्नाने का साल |
टीम अन्ना का का जन लोकपाल, हर कीमत पर रोकपाल |
भ्रष्टाचार के खिलाफ जिसने ताना टेंट, संघ का कहलाए एजेंट |
यू पी के चार टुकड़े, बहिनजी ने रोए दुखड़े |
बहुजन हिताय, करोड़ों का पार्क बनवाए |
सर्वजन सुखाय, खुद की मूरत पर माला चढ़ाए |
मेरी मेहमान खाने की अलमारी में
मेरी मेहमान खाने कीअलमारी मेंकई किताबें करीने सेसजी हैंकुछ तन्मयता सेपढी गयीजान पहचान वालों के बीचउनकी चर्चा की गयीकुछ के कुछ प्रष्ठ हीकई ऐसी भी हैंजिन्हें खोल करदेखा भी नहींकुछ सालों सेकुछ महीनों सेअलमारी कीशोभा बढ़ा रही हैं
ये दुनिया तो सिर्फ मुहब्बत
आने वाले कल का स्वागत, बीते कल से सीख लिया
नहीं किसी से कोई अदावत, बीते कल से सीख लिया
भेद यहाँ पर ऊँच नीच का, और आपस में झगड़े हैं
ये दुनिया तो सिर्फ मुहब्बत, बीते कल से सीख लिया
हंगामे होते, होने दो, इन्सां तो सच बोलेंगे
सच कहने की करो इनायत, बीते कल से सीख लिया
कविता के पन्नों मे नया साल: जेनिफ़र स्वीनी
अभी जब एक साल से दूसरे साल तक सत्ता-हस्तांतरण का वक्त नजदीक आता जा रहा है।ऐसे मे गुनगुनी धूप मे बैठ कर चाय की चुस्कियों के संग गुजर गये साल पर आत्मचिंतन करना सबसे स्वाभाविक और आरामदायक काम होता है। खैर, नया कैलेंडर टांगने से पहले पुराने हो गये इस कैलेंडर पर लगी तमाम उम्मीदों, खुशी, भरोसे, डर, आशंकाओं, कसमों की चिप्पियाँ साल के कुल जमा-हासिल की एक बानगी होती हैं। गुजरते साल के ऐसे ही हासिलों और आने वाले साल से बावस्ता उम्मीदों की इबारत को कविता के चश्मे से परखने की कोशिश हम भी करते हैं। सो आइये अगले कुछ दिनों मे देखते हैं कि कोई कवि वक्त के इस मुकाम को कितनी अलहदा नजरों से परख पाता है। इस सिलसिले मे सबसे पहले पेश है जेनिफ़र स्वीनी की एक अंग्रेजी कविता का हिंदी मे तर्जुमा। अमेरिका की इस युवा कवियत्री को कम उम्र मे ही कई अवार्ड्स से नवाजा जा चुका है। उनके कविता संकलन ’हाउ टु लीव ऑन ब्रेड एंड म्यूजिक’ (पेरुगिया प्रेस) की इस कविता मे जिंदगी की कुल गणित के टुकड़े बिखरे से नजर आते हैं।
बीत गये साल के लिये चंद कतरनें
मैने पाया है कि
औसतन विषम संख्या वाले साल
ज्यादा बेहतर रहे हैं मेरे लिये
मै उस दौर मे हूँ जहाँ मुझे हर मिलने वाला
लगता है उस जैसा
जिसे मै पहले से जानती हूँ
नए साल की शुभकामनाएँ और फैंसी ड्रेस
आजकल भोपाल में हूँ, एक्जाम्स हो गए है, और छुट्टियाँ चल रही है. 7th Jan’12 को मेरा रिजल्ट आने वाला है.पिछले दिनों हमारे स्कूल में फैंसी ड्रेस कॉम्पिटिशन था. जिसका थीम “फ्रूट एंड वेजिटेबल” था.और पता है मैं क्या बन कर गयी थी ? आप खुद ही देखियेमैंगो…. मेरा फेवरिट फ्रूट
चंद रोज़ और मेरी जान...
जा रहा है बचपन आ रहा पचपन ....
सुबह सुबह अच्छी खासी नींद लगी थी की बच्चों का शोरगुल सुना तो नींद खुल गई . कमरे से बाहर निकल कर देखा की परिवार के बच्चे कह रहे थे आज इकतीस दिसंबर है और कल एक जनवरी है अच्छी खासी पार्टी का जुगाड़ होगा . केक तो कटवा के रहेंगें चाहे कुछ भी हो अपने दादा (परिवार के बच्चे अब मुझे दादा संबोधित करते हैं) अब पचपन की और जा रहे हैं . पचपन की बात सुनकर मेरे तो कान खड़े हो गए और मुझसे रहा न गया .
मुस्कुराकर मैंने बच्चों से पूछा - क्या बात है क्या पार्टी सार्टी का जुगाड़ हो रहा है . एक छोटा सी बालिका जिससे रहा न गया तड से बोली - ताऊ कल आपकी जेब काटने की तैयारी चल रही है कल आपका एक जनवरी जन्मदिन जो है . कल एक जनवरी को मेरा जन्मदिन है . ५४ वर्ष की आयु पूर्ण कर मैं पचपनवे वर्ष में प्रवेश कर रहा हूँ . जितना उल्लास और उमंगें बचपन में जन्मदिन को लेकर रहता था अब वैसा उत्साह जन्मदिन मनाने के लिए नहीं रहता हैं .
गरीबी रेखा से ही तय होगा भोजन के अधिकार का फैसला
इस कानून से देश में खाद्य असुरक्षा बढ़ेगी
दूसरी और आखिरी किस्त
यह विधेयक खाद्य सुरक्षा के दायरे को बढ़ाने के बजाय कई मामलों में और सीमित कर देता है. इसमें खाद्य सुरक्षा के लाभार्थियों को ‘प्राथमिकता’ और ‘सामान्य’ के दो खांचों में बांटा गया है जो वास्तव में पहले से मौजूद बी.पी.एल और ए.पी.एल श्रेणियों के ही नए नाम हैं.
विधेयक में प्राथमिकता श्रेणी में शामिल लाभार्थियों में प्रत्येक व्यक्ति को सस्ते दर (दो रूपये किलो गेहूं और तीन रूपये किलो चावल) पर सात किलो अनाज मिलेगा जबकि सामान्य श्रेणी में शामिल प्रत्येक लाभार्थी को अनाज के न्यूनतम समर्थन मूल्य की आधी कीमत (मौजूदा कीमतों के आधार पर ६.५० रूपये किलो गेहूं और ५.५० रूपये किलो चावल) पर तीन किलो अनाज मिलेगा.
गुज़रे हैं लाख बार इसी कहकशां से हम
ये बेरहम साल भी गुज़र गया आख़िर। मनीष पिछले दस दिनों से कहते रहे, हाथी निकल गया है, दुम भी निकल जाएगी। वाकई हाथी जैसा ही था ये साल - मंथर चाल, मदमस्त जिसपर किसी का वश ना हो। वश यूं भी लम्हों, दिनों, सालों पर किसका होता है? जाने ये चित्रगुप्त महाराज किस देश में बैठते हैं और मालूम नहीं कैसी कलम हाथों में है उनके कि नियति की लिखाई हर रोज़ हैरान कर देनेवाली होती है। मिलेंगे कभी तो पूछुंगी, थकते नहीं? ज़रूरी है शख्स-शख्स की सांस-सांस के लिए कुछ नया लिख दिया जाए?
2011 में चित्रगुप्त का काम थोड़ा आसान कर दिया, अपने करम की कुछ लिखाई अपने हाथों से भी हुई। अब जब जायज़ा लेने बैठी हूं तो कटे-फटे, उलझे हर्फों में हिज्जों की एक हज़ार अशुद्धियां दिखाई देने लगी हैं। कोई अक्षर सही नहीं लगता, कोई वाक्य सीधा नहीं पड़ता। लेकिन मैं एक ज़िद्दी, अड़ियल और घमंडी किस्म की लड़की हूं। महाराज चित्रगुप्त से माफ़ी मांगते हुए अपनी लिखाई और उसकी गलतियों से ली गई सीख यहां दुहरा रही हूं, प्वाइंट बाई प्वाइंट।
अलविदा ब्लाग तीसरा खंबा ...
इस माह के प्रारंभ में भारतीय न्याय प्रणाली के क्षेत्र में एक अधिवक्ता के रूप में अपनी सेवाएँ प्रदान करते हुए मुझे 33 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। जब मैं ने इस क्षेत्र में कदम रखा था तो सोचा था कि अपने आस पास हो रहे अन्याय को कुछ तो कम करने में मेरा योगदान होगा। इस तरह मैं ने एक ऐसी आजीविका का चुनाव किया था जिस में मुझे लोगों को न्याय प्राप्त करने में सहयोग करना था। बहुत बाद में मैं समझ पाया लोगों को न्याय प्राप्त करने में मदद करना तो समाज का दायित्व होना चाहिए उसे भी इस व्यवस्था पेशा बना दिया है। बिना दाम के अपने हिस्से का न्याय प्राप्त करना दुष्कर ही नही असंभव है। निश्चित ही इस व्यवस्था को न्यापूर्ण नहीं कहा जा सकता।
मेरे बाप पहले आप( लक्ष्य का बाल हट )
काम बाद में, पहले मैं सुनूंगा गाने (लक्ष्य का हट)
प्रातः जब मैं लेप पर मेल वगैरह चैक कर रहा था तो मेरा 1वर्ष 9 माह का बच्चा लक्ष्य भी उठ खड़ा हुआ और लगा अपनी जिद दिखाने कभी लेपटॉप पर कोई की दबाता कभी कोई की कभी हैड फोन को लेकर भागता कभी कुछ करता मैने म्यूजिक चलाया और लक्ष्य के कानो पर हैडफोन रख दिया बस फिर क्या था झुमने लगा मैने फिर से मेरा काम शुरू कर दिया अब तो लेप का मालीक लक्ष्य बन बैठा आरे मेरा हाथ लेप टॉप पर से हटाने लगा कि अब आप दुर हटो उँह उँह करके इशारा करने लगा कि अब आप परे हट जाओ मुझे ही गाने सुनने दो सिफ अब तो मैं ही काम में लूंगा इस लेपटॉप को तो, काम बाद में पहले गाने और जमा लिया अपना पूरा अधिकार इस लेप पर में क्या करता
यों है ज़रुरी, ग़ज़ल हो पूरी !
पड़े रहते हैं कई शेर कि कभी सुधारेंगे, कि कभी करेंगे ग़ज़ल पूरी। कभी हो जातीं हैं तो कभी रह जातीं हैं, होने को। फिर कभी लगता है कि एक-एक अकेला ही दमदार है तो उतार क्यों नहीं देते मैदान में! संकोच भी होता है इस तरह सोचते मगर क्या करें कि जो सोचा उसे कैसे झुठला दें, क्यों सेंसर कर दें!? तो लीजिए फिर....
हथेली पर कोई गर जान रक्खे
तो मुमकिन है कभी ईमान रक्खे 13-11-2010
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पहले रस्ता रोकेंगे फिर राह बनाना सिखलाएंगे
जीते-जी मारेंगे तुझको और फिर जीना सिखलाएंगे 24-11-2010
*
सारी दुनिया में नहीं है सच से भी सच्ची जगह
मैं यहीं पर ठीक हूं हां, जाओ तुम अच्छी जगह 16-07-2010
फलसफा
लबों पर इलज़ाम लगे हैं, खामोश रह जाने के लिए
मुजरिम अल्फ़ाज भी हैं, साथ न निभाने के लिए
है कहाँ मुमकिन बयान-ए-बेकरारी
ये फलसफा तो है बस समझ जाने के लिए
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सुशील कुमार
26 दिसम्बर, 2011
दिल्ली
ठूंठ
अकेला खड़ा है वह,दूर से ही दिखता है,एक ठूंठ की तरह,आसमान को ताकता,एक ठूंठ की तरह,कभी आबाद था,लोग कहते हैं,कभी मुस्कुराया करता था,
लोग कहते हैं,प्यार के सपने देखे थे |
नैनों की भाषा
कभी किसी की याद में पलकें मेरी भीग जाती हैं
तो कभी ख़ुशी के मारे ये बिना वजह भर आती हैं
ना जाने ये आँखें क्या कहना चाहती हैं...
जो देख ले कोई प्यारभरी नज़र से
शर्म से ये झुक जाती हैं
जागती आँखों से ही कितने, ख्वाब ये देख जाती हैं
ना जाने ये आँखें क्या कहना चाहती हैं...
एक्स्पोज़्ड:प्रशांत एंड स्तुति
भगवान कभी कभी बड़ा अन्याय करते हैं.पता ही नहीं चलता की किस गलती की सजा दे रहे हैं वो..अब देखिये न..इसे आप गलती ही कहियेगा न की भगवान ने जिंदगी में कुछ दो चार ऐसे लोगों से मिलाया जो हमेशा मेरे पीछे हाथ-पैर धो के पड़े रहते हैं..हमेशा मुझे सताते रहते है..कभी कभी तो बड़ा दिल करता है की ऐसे लोगों की किसी को सुपारी देकर इनका हाथ-पावं तुड़वा दिया जाए जिससे की कुछ अक्ल आये इन्हें.कुल मिलाकर देखूं तो ऐसे मेरे पांच दोस्त हैं जो हर एंगल से नालायक हैं.लेकिन जिन दो खास महानुभाव ने मुझे ये पोस्ट लिखने को मजबूर किया वो हैं...श्री श्री प्रशांत प्रियदर्शी जी और श्रीमती स्तुति पाण्डेय जी.
मैंने जिंदगी में अब तक जितनी बड़ी बड़ी गलतियाँ की हैं उनमे इन दोनों से दोस्ती करने की गलती भी शामिल है...लेकिन मुझे लगता है की इनसे दोस्ती करने में मेरी कुछ खास ज्यादा गलती नहीं थी..दोस्ती करने के वक्त ये बड़े मासूम और भोले से थे..तभी तो इनसे मैंने दोस्ती की..लेकिन जैसे जैसे दिन बीतते गए, इन दोनों के मासूम चेहरे के पीछे छिपे शैतान के दर्शन भी होने लगे.कभी कभी तो मुझे ये शक होता है की शायद ये दोनों ने अपने शैतानी चेहरे को छिपा कर एक शरीफ चेहरे का मुखौटा लगा लिया था.