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मंगलवार, 22 अगस्त 2017

झूठमूठ के आदर्श हताश कर जाते हैं !




हताशा भरी बातें शायद हौसला दे भी जाए
झूठमूठ के आदर्श हताश कर जाते हैं !
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शिशुपाल वध , माघ और मैं...... - डायरी के पन्ने - blogger

जानेमन क्या कमाल करती हो
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चूल्हे से सिलवट पर जाओ
चौखट पर दाने डाले हैं बीन के लाओ
जाओ चमका दो कलछुल का काला हिस्सा
घिसो पीसो बारीक काम का हो तुम किस्सा
आटे में मोयन डालो
बक्से में नीम डाल दो
धूप धूप गेहूं सुखवाओ
छांव छांव परिवार बचाओ
हाँ बचने से याद आ गया
तुम बचना मत
खप जाना पूरी की पूरी
घर आँगन की तुम हो धुरी
बैठो मत परदे झूले से लटक रहे हैं
तान दो उसको
दूध भगोना खुरच खुरच कर बांटो सबको
जावन के जीतनी तुम बचना
उतने से सब बच जायेंगे
घर परिवार तुम्हारा
तुम घर की महारानी
मिटटी के गगरे में जैसे ठंढा पानी
वैसे ही भर जाओ तुम भी
रात आखिरी बत्ती के बुझ जाते
तुम जल जाती हो
माला फेरो छाती से साडी खिस्काओ
सांस सांस सिसकी रोको या फूट पड़ो तुम
दीवारो पर लिखी इबारत ऐतिहासिक है
बदल नही पाओगी कुछ भी
सोचो फिर चावल में कितना पानी होगा
आटे में तुम नमक बनो
बेटा ही जनना
तुम देवी रानी महारानी कल्याणी हो
औरत हो औरत ही रहना
कभी नही इंसा तुम बनना
जाओ चूल्हे सिलबट्टे पर अपनी किस्मत लिखो
जलो मरो या तुम खप जाओ
चिठ्ठी भी बेरंग तुम्हारी
कोई नही छुड़ाने वाला
अपने हिस्से के पिंजरे में दाना छीटों
जाओ चौखट तक जाओ
चिड़िया के दाने से सपने पड़े हुए हैं
चुन कर ले आओ
आओ चूल्हे पर खौलो खेलो पक जाओ ..
औरत हो सपनों के सूखे कण्डे से आग जलाओ
कथा कहानी कविता में लिखी जाओगी ......

कैसे लूँ विदा - रेल हादसा - Sudhinama - blogger


3 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

अपनी खुद की सोच को छोड़ लगता है बाकी सब आदर्श का सागर है चारों ओर । डुबकी लगायें और आदर्श हो जायें । :) सुन्दर प्रस्तुति।

Sadhana Vaid ने कहा…

कमाल की प्रस्तुति रश्मि प्रभा जी ! मुझे भी सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से आभार !

कविता रावत ने कहा…

बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति ...

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