रविवार का दिन, वैसे भी हफ्ते की थकान उतारने और फिर से खुद को रिचार्ज करने के लिए होता है। आज कुछ प्रेरक कथाओं की चर्चा करते हैं..
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एक बार एक साधु अपने शिष्यों के साथ तपस्या के लिए जा रहे थे, रास्ते में अपने शिष्यों से ज्ञान, ध्यान, ब्रम्हचर्य और एकाग्रता की बातें कर रहे थे। सभी शिष्य गुरु के साथ चलते जा रहे थे और इन शिक्षाओं को ग्रहण कर रहे थे। कई दिनों तक चलने के पश्चात उन्हें एक शांत नदी का किनारा मिला और सभी ने वहाँ विश्राम के लिए डेरा डाल दिया। उस नदी के किनारे कोई गाँव था और उस गाँव की किसी स्त्री को नदी पार करनी थी। उस स्त्री ने साधु महाराज से नदी पार करने के लिए सहायता मांगी, और साधु ने उसे सहारा देकर नदी पार करा दिया। इसके बाद साधु अपने चेलों के साथ आगे बढे और काफी समय के पश्चात साधू को ज्ञात हुआ कि उनके एक प्रिय चेले का व्यवहार थोड़ा बदल सा गया है, उन्होंने प्रेम से उसकी इस अवस्था के बारे में पूछा। चेला तो जैसे भरा बैठा था, बोला आप स्वयं ब्रम्हचर्य की बात करते हैं और स्त्री का स्पर्श करने में आपको ज़रा भी लज्जा न हुई।
साधू महाराज उसकी बात प्रेम पूर्वक सुनते रहे फिर बोले, हे वत्स, उस स्त्री को तो मैं नदी किनारे की छोड़ आया था तुम क्यों उसे बोझ की तरह दिन भर अपनी पीठ पर लादे लादे घूम रहे हो। चेला समझ गया की उससे भूल हो गयी है और उसने मर्म जान लिया की सेवा भाव सभी धर्मों से ऊपर है, उसकी कोई तुलना नहीं।
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मित्रों एक और कथा सुनाता हूँ,
एक बार महान राजा अशोक को जंगल में एक चरवाहा मिला, उस चरवाहे को चिंतन भाव से बांसुरी बजता देख, सम्राट उसके पास गए और उसका परिचय पूछा। साथ ही यह भी पूछा की आखिर तुम इतने आनंदित क्यों हो, ऐसा जान पड़ता है मानो तुम किसी राज्य के राजा के अधिपति हो, उस चरवाहे ने कहा की मैं किसी राज्य का अधिपति नहीं और मेरे पास कुछ भी नहीं है। मेरे पास मात्र संतोष है और यही मेरी संपत्ति है।
सुनकर सम्राट अशोक को भान हो गया की सम्राट होना और संतोषी होना दो अलग अलग चीज़ें हैं।
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अब चलिए आज के बुलेटिन की ओर.………………
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आशा है आपको आज का बुलेटिन पसंद आया होगा, जल्द ही फिर मिलेंगे बुलेटिन के एक नए अंक में, तब तक के लिए सभी को नमस्कार।
-आपका देव