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शनिवार, 31 अक्टूबर 2015

डे लाईट सेविंग - ब्लॉग बुलेटिन

अमेरिका में डे लाईट सेविंग आज से शुरू हो जाएगी, मतलब अब भारत (Indian Standard time) और न्यूयॉर्क(Eastern Standard time) के बीच का अंतर साढ़े दस घंटे का हो जाएगा। पिछले रविवार से लंदन पहले ही साढ़े पाँच घंटे पीछे हो गया। वैसे इसका एक अजीब सा अनुभव मैंने किया है, मुंबई में सीप्ज़, हीरानंदानी और माइंडस्पेस जैसी जगहों पर इस समय के अंतर के हिसाब से ट्रैफ़िक जाम लगता है क्योंकि अधिकांश "कारवाले लोग" इसी हिसाब से अपनी शिफ़्ट ऐडजस्ट करते हैं और सब जाम कर देते हैं। 

मित्रों शायद हम लोगों में से कई लोग इस बात को न जानते हों कि एक समय पर भारत में भी अलग अलग समय के जोन थे। बम्बई मानक समय (Bombay standard time, GMT+4:51) और कलकत्ता मानक समय (Calcutta Standard Time, GMT+5:54)। व्यवहारिक तौर पर भारत जैसे देश में दो समय ज़ोन्स का होना थोड़ा मुश्किल था। अशिक्षित देश में इस बात को समझ पाना और कठिन होता कि ट्रेन किस समय कौन से टाइम ज़ोन में चलेगी। लोगों की ट्रेन छूट जाया करती और इससे किसी का लाभ न होता। भारतीय रेलवे के अफ़सरों ने इसका एक ज़बरदस्त उपाय खोजा, उन्होंने भारतीय रेलवे के लिए मद्रास टाइम ज़ोन(Madras Time Zone, UTC+5:21) बना लिया जो इन दोनों कालखंडों के बीच में था। मित्रों धक्के मारके रेल चलती रही लेकिन जल्द ही सरकार हो यह आभास हो गया कि ऐसे काम नहीं चलेगा और इसका कोई दूरगामी परिणाम देखते हुए उपाय सोचना होगा। फिर अंततः भारत सरकार ने बम्बई और मद्रास मानक समयों को समाप्त किया और भारतीय मानक समय( India Standard Time, GMT+5:30) बना दिया। यह भारतीय मानक समय को GMT+5:30 बनाये रखने के लिए केंद्रीय वेधशाला को चेन्नई से मिर्ज़ापुर के पास शंकरगढ़ किले (25.15°N 82.58°E) में स्थित किया गया। 

वैसे फ़िलहाल भारत को भी ग़र्मियों में डे-लाइट सेविंग का इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि भौगोलिक रूप से भारत बहुत विशाल है और ग़र्मियों में हमारे पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों के बीच सूर्योदय और सूर्यास्त का अंतर दो घंटे से अधिक हो जाता है, इसीलिए हमारे पूर्वोत्तर के राज्य बहुत सालों से एक अलग समय ज़ोन की मांग कर रहे हैं। भारत के संविधान के अनुसार राज्य सरकार को अपने कर्मचारियों के लिए उपयुक्त ड्यूटी के घंटे तय करने का अधिकार है सो हमारे पूर्वी राज्य भारतीय मानक समय से अलग चाय बग़ानो के कर्मचारियों के लिए टी गार्डन टाइम ज़ोन (IST+1:00) का पालन कर रहे हैं। हैं न रोचक बात? 

जाते जाते एक और तथ्य, भारत ने सन बासठ, पैंसठ और बहत्तर की लड़ाई के समय सेना की सुविधा के लिए आंशिक रूप से डे-लाइट सेविंग का प्रयोग किया था।

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आज सरदार पटेल की १४० वीं जयंती के अवसर पर हम सब उनको शत शत नमन करते हैं |
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चुभती हैं कुछ किरिचें 'काँच के शामियाने' की

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर = RAJA Kumarendra Singh Sengar at पुस्तक विमर्श 
“आंचलिक बोली के चुटीलेपन के साथ रोजमर्रा की छोटी-छोटी घटनाओं के ताने-बाने से बुनी इस कथा में हर लड़की कहीं-न-कहीं अपना चेहरा देख पाती है. यही इस उपन्यास की सार्थकता है.” सुधा अरोड़ा द्वारा रश्मि रविजा के पहले उपन्यास ‘काँच के शामियाने’ भूमिका की मानिंद लिखी ये पंक्तियाँ पढ़ने के बाद आँखें समूचे उपन्यास में रोजमर्रा की छोटी-छोटी घटनाओं के ताने-बाने को तलाशती हैं. छोटी-छोटी घटनाओं का ताना-बाना मिलता है मगर इस कदर उलझा कि महज एक परिवार या फिर कहें कि पति-पत्नी के मध्य ही सिमटा नजर आता है. एक समीक्षक की दृष्टि से मेरा मानना है कि कम से कम ऐसे ताने-बाने में कोई भी लड़की अपना चेहरा नहीं देख प... more » 

उम्र चढ़ती रहेगी साल घटते रहेंगे और होती रहेगी गुफ्तगू...

मेरी ज़िन्दगी में मेरी बहनों का हमेशा से एक अलग स्थान रहा है और ख़ास कर के दो बहनों का, मोना और प्रियंका दीदी का जिन्होंने ना सिर्फ मुझे सबसे अच्छे तरीके से समझा है बल्कि मेरे अच्छे बुरे हर तरह की स्थितियों में बिना जजमेंटल हुए मेरा साथ दिया है. मोना जहाँ छोटी है वहीँ प्रियंका दीदी मुझसे बड़ी. दो दिन ख़ास तौर पर मेरे लिए सबसे खूबसूरत दिन होते हैं, एक तीन जून का दिन और दूसरा इकतीस अक्टूबर का दिन. तीन जून मोना का जन्मदिन है तो इकतीस अक्टूबर यानी आज प्रियंका दीदी का जन्मदिन. वैसे तो प्रियंका दीदी को इस बात का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं है कि आज के दिन मैं क्या करने जा रहा हूँ. एक काम जो बहुत दिनों ... more » 

अब डाकघर के बचत खाता धारकों के लिए भी प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना

प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना अब डाकघरों के माध्यम से भी उपलब्ध कराई जा रही है । सभी प्रधान डाकघरों व सीबीएस डाकघरों में इस योजना का लाभ वर्तमान बचत खाता धारक और नए खाता धारक खाता खोलकर उठा सकते हैं। उक्त सम्बन्ध में जानकारी देते हुए राजस्थान पश्चिमी क्षेत्र, जोधपुर के निदेशक डाक सेवाएँ कृष्ण कुमार यादव ने बताया की प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना के तहत प्रति वर्ष 330 रूपये जमा कराना होगा। इसके अंतर्गत किसी भी कारण से धारक की मृत्यु होने पर, उसके परिजनों को 2 लाख रूपये की बीमा राशि मिलने का प्रावधान है। इस योजना को 18 वर्ष से 50 ... more » 

एक डॉक्टर का करवा चौथ :

डॉ टी एस दराल at अंतर्मंथन 
एक डॉक्टर का करवा चौथ : कल चौथ का चाँद था और पार्क में, खूबसूरती का हुजूम था लगा हुआ । कंगन , चूड़ा , पायल , झुमके , हार , नई साड़ियों का रंग था बिखरा हुआ। जिंदगी में ३६४ दिन थे सास के पर , कल बहुओं का रूप था निखरा हुआ। वो तो करती रही प्रसूति सेवा दिन भर , जहाँ नन्हे जीवन से रिश्ता गहरा हुआ। उसने भी देखा और दिखाया व्रताओं को , चाँद जब आसमाँ में छत पर उभरा हुआ। कल फिर हमने उनकी ओर देखा सीधा , बिन छलनी के प्यार फिर सुनहरा हुआ।  

यह किसकी आत्महत्या है- देवेश की कविता

Ashok Kumar Pandey at असुविधा.... 
देवेश कविता लिख तो कई सालों से रहा है लेकिन अपने बेहद चुप्पे स्वभाव के कारण प्रकाश में अब तक नहीं आ सका. आज जब प्रतिबद्धता साहित्य में एक अयोग्यता में तब्दील होती जा रही है तो उसकी कवितायें एक ज़िद की तरह असफलता को अंगीकार करती हुई आती है. उसकी काव्यभाषा हमारे समय के कई दूसरे कवियों की तरह सीधे अस्सी के दशक की परम्परा से जुड़ती है और संवेदना शोषण के प्रतिकार की हिंदी की प्रतिबद्ध परम्परा से. इस कविता में उसने विदर्भ के गाँवों की जो विश्वसनीय और विदारक तस्वीर खींची है वह इस विषय पर लिखी कविताओं के बीच एक साझा करते हुए भी एकदम अलग है. इस मित्र और युवा कवि का स्वागत असुविधा पर. जल्द ही उस... more » 

नाटक नहीं, संवाद का प्रयास कीजिए

lokendra singh at अपना पंचू
क थित बढ़ती असहिष्णुता के विरोध में साहित्यकारों की सम्मान वापसी की मुहिम में अब कलाकार, इतिहासकार और वैज्ञानिक भी शामिल हो गए हैं। पद्म भूषण सम्मान लौटाने की घोषणा करने वाले वैज्ञानिक पुष्पमित्र भार्गव ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर आरोप लगाया है कि वे भारत को हिन्दू धार्मिक तानाशाह बनाना चाहते हैं। यह बात अलग है कि उनके पास ऐसी कोई दलील नहीं है, जिससे वह अपने आरोप को साबित कर सकें। उन्होंने भी साहित्यकारों के रटे-रटाए आरोपों को ही दोहराया है। प्रधानमंत्री की चुप्पी पर सवाल उठाने वाले साहित्यकारों, इतिहासकारों, कलाकारों और वैज्ञानिकों ने सरकार से संवाद करने के लिए कितने प्रयास ... more » 

सरदार पटेल की १४० वीं जयंती

शिवम् मिश्रा at बुरा भला 
*परिचय* *सरदार वल्लभ भाई पटेल* (गुजराती: સરદાર વલ્લભભાઈ પટેલ ; 31 अक्टूबर, 1875 - 15 दिसम्बर, 1950) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी एवं स्वतन्त्र भारत के प्रथम गृहमंत्री थे। सरदार पटेल बर्फ से ढंके एक ज्वालामुखी थे। वे नवीन भारत के निर्माता थे। राष्ट्रीय एकता के बेजोड़ शिल्पी थे। वास्तव में वे भारतीय जनमानस अर्थात किसान की आत्मा थे। भारत की स्वतंत्रता संग्राम मे उनका महत्वपूर्ण योगदान है। भारत की आजादी के बाद वे प्रथम गृह मंत्री और उपप्रधानमंत्री बने। उन्हे भारत का '*लौह पुरूष'* भी कहा जाता है। *जीवन परिचय* पटेल का जन्म नडियाद, गुजरात में एक पाटीदार कृषक परिवार में हुआ था। वे झ... more » 

औरत : तेरी कहानी (8 )

मेरा ये कॉलेज का आखरी साल था . मैंने संगीत महाविद्यालय से भी गायन विभाग में स्नातक की पदवी ले ली थी . छोटे मोटे इवेंट में मुझे बतौर कलाकार बुलाया जाता था . इस दौरान मेरे कॉलेज में एक बहुत ही बड़े रिआलिटी शो में हिस्सा लेने के लिए इवेंट हुआ . और मेरा सिलेक्शन तय होने की खबर मुझे आज ही मिली थी . दीदी के कारण मैं कुछ भी नहीं बोली . पापा दूसरी सुबह उठे और आँगनमे एक ठन्डे पानी की पूरी बाल्दी खुद पर उंडेल ली। जोर से बोले मेरी बेटी आज से मेरे लिए मर गयी है और इस घर के लिए भी .... मेरे केवल एक ही बेटी है . अगर कोई बड़ी से रिश्ता रखेगा तो उसे भी इस घर से बहार जाना पड़ेगा . घर के माह... more » 

जाग जाओ देश मिलकर है बचाना

Rekha Joshi at Ocean of Bliss 
जाग जाओ देश मिलकर है बचाना नींद में सोये हुओं को है जगाना … साँस दुश्मन को मिटा कर आज लेंगे साथ मिलकर है बुराई को मिटाना … मिट गये है देश पर लाखो सिपाही आज कुर्बानी ज़माने को बताना … देश के दुश्मन छिपें घर आज अपने पाठ उनको ढूँढ कर अब है पढ़ाना … प्यार से मिलकर रहें आपस सदा हम आज मिलकर देश को आगे बढ़ाना रेखा जोशी  

शे’र कहता शेर सा हुंकार कर

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ at अंदाज़े ग़ाफ़िल 
आज तू तीरे नज़र का वार कर नीमकश बिल्कुल न, दिल के पार कर रस्मे उल्फ़त तो निभा जालिम ज़रा कुछ सितम दिल पर मेरे दिलदार कर आज जीने का हुनर है सीखना ज़िन्दगी से जीत कर या हार कर अब शराबे लब नहीं अब ज़ह्र दे मुझपे इतना सा करम तू यार कर नफ़्रतों से ख़ुश है तो जी भर करे मैं कहाँ कहता हूँ मुझको प्यार कर है यही ग़ाफ़िल का अंदाज़े बयाँ शे’र कहता शेर सा हुंकार कर -‘ग़ाफ़िल’

कहाँ खोजूँ तुम्हें ...

Upasna Siag at नयी उड़ान + 
तुम्हें सोचा तो सोचा, देखूं एक बार तुम्हें। लेकिन जाने कहाँ छुप गए हो तुम तो कहीं ! फिर देखूं तो कहाँ देखूं , कहाँ खोजूँ तुम्हें । बिखरा तो है बेशक़ तुम्हारा वजूद, यहाँ-वहां। मूर्त रूप चाहूँ देखना तुम्हें, फिर कहाँ देखूँ ! खोजना जो चाहा चाँद में तुम्हें। सोचा मैंने चाँद को तुम भी तो देखते होंगे। तुम चाँद में भी नहीं थे लेकिन, क्यूंकि अमावस की रात सी तकदीर है मेरी। 

शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2015

परमाणु शक्ति राष्ट्र, करवा का व्रत और ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

डा. होमी जहांगीर भाभा (१९०९-१९६६)
डा. होमी जहांगीर भाभा (30 अक्टूबर, 1909 - 24 जनवरी, 1966) भारत के एक प्रमुख वैज्ञानिक और स्वप्नदृष्टा थे जिन्होंने भारत के परमाणु उर्जा कार्यक्रम की कल्पना की थी। उन्होने मुट्ठी भर वैज्ञानिकों की सहायता से मार्च 1944 में नाभिकीय उर्जा पर अनुसन्धान आरम्भ किया। उन्होंने नाभिकीय विज्ञान में तब कार्य आरम्भ किया जब अविछिन्न शृंखला अभिक्रिया का ज्ञान नहीं के बराबर था और नाभिकीय उर्जा से विद्युत उत्पादन की कल्पना को कोई मानने को तैयार नहीं था। उन्हें 'आर्किटेक्ट ऑफ इंडियन एटॉमिक एनर्जी प्रोग्राम' भी कहा जाता है। भाभा का जन्म मुम्बई के एक सभ्रांत पारसी परिवार में हुआ था। उनकी कीर्ति सारे संसार में फैली। भारत वापस आने पर उन्होंने अपने अनुसंधान को आगे बढ़ाया। भारत को परमाणु शक्ति बनाने के मिशन में प्रथम पग के तौर पर उन्होंने 1945 में मूलभूत विज्ञान में उत्कृष्टता के केंद्र टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआइएफआर) की स्थापना की। डा. भाभा एक कुशल वैज्ञानिक और प्रतिबद्ध इंजीनियर होने के साथ-साथ एक समर्पित वास्तुशिल्पी, सतर्क नियोजक, एवं निपुण कार्यकारी थे। वे ललित कला व संगीत के उत्कृष्ट प्रेमी तथा लोकोपकारी थे। 1947 में भारत सरकार द्वारा गठित परमाणु ऊर्जा आयोग के प्रथम अध्यक्ष नियुक्त हुए। १९५३ में जेनेवा में अनुष्ठित विश्व परमाणुविक वैज्ञानिकों के महासम्मेलन में उन्होंने सभापतित्व किया। भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के जनक का २४ जनवरी सन १९६६ को एक विमान दुर्घटना में निधन हो गया था। और अधिक जानकारी के लिए आगे पढ़ें

भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के जनक डा. होमी जहांगीर भाभा की १०६ वीं जयंती के अवसर पर ब्लॉग बुलेटिन टीम और पूरे हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से हम सब उनको शत शत नमन करते हैं |

सादर आपका
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करवाचौथ, करवा के गडुवे और सींके

करवा चौथ के बहाने...

लघुकथा-कितना भूसा कितने मोती

करवा चौथ के पावन-पर्व पर

रविन्‍द्रनाथ टैगोर की कहानी - काबुलीवाला

मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव क्यों?

मणियों की घाटी "मनिकरण"

करवा चौथ का चाँद

हाँ मै व्रत रखती हूँ..

दो सहेलियां !!!

प्रयाग के घाट

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आप सभी को करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनाएं !!!

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!! 

गुरुवार, 29 अक्टूबर 2015

राजनैतिक प्रवक्ता बनते जा रहे हैं हम - ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार साथियो,
विवादों भरे माहौल में एक और बुलेटिन के साथ उपस्थित हैं. समझ नहीं आ रहा है कि हम सब किस दिशा में जा रहे हैं? किस तरह का समाज बनाना चाहते हैं? देश, काल, परिस्थितियों के चलते हम सब हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन आदि-आदि धर्मावलम्बी के रूप में पहले से ही पहचाने जा रहे थे, पर अब लगने लगा है जैसे राजनैतिक दलों के प्रवक्ताओं के रूप में भी पहचान धारण करने लगे हैं. किसी भी धर्म, मजहब का होने के बाद भी हम इंसानियत को बनाये हुए थे, अपने इंसान को जीवित बनाये हुए थे मगर शनैः-शनैः इस पहचान को हम पीछे छोड़ते जा रहे हैं. देश में कोई भी घटना घटती है और हम सब अपने आपको अलग-अलग राजनैतिक खाँचों में बाँटकर उस पर चर्चा करना शुरू कर देते हैं. कभी किसी के बयान पर, कभी किसी कार्यक्रम पर, कभी किसी की गिरफ़्तारी पर, कभी किसी हादसे पर. ऐसा लगता है जैसे कि सब कुछ किसी न किसी राजनीति के तहत किया जा रहा है, ऐसा लगने लगता है जैसे किसी सम्बंधित घटना पर हम बयान नहीं देंगे तो देश को वास्तविकता पता ही नहीं चलेगी. इस चक्कर में कई बार हम आपसी संबंधों में खटास पैदा कर ले रहे हैं. आपसी रिश्तों में नकारात्मकता भर ले रहे हैं.

हम सभी को वास्तविकता को पहचानना होगा, राजनीति करने वालों की मंशा को पहचानना होगा. राष्ट्रीय स्तर पर जो लोग सत्तासीन होने के लिए आपस में कटुतापूर्ण बयानबाजियाँ करते दिखते हैं वे आपस में गलबहियाँ करते भी नजर आते हैं. एक-दूसरे को देख लेने के स्तर तक की धमकी देने वाले बड़े आदर के साथ उन्हें अपने घर-परिवार के शादी-समारोहों में बुलाते देखे जाते हैं. लगातार बुराई करते रहने वाले भी अपने विरोधी के साथ गठबंधन कर सत्ता-सुख उठाने से भी नहीं चूकते हैं. यदि हम इन राजनैतिक दलों के प्रवक्ता बने रहने का दम्भ भरते हैं तो इन्हीं की हरकतों से कुछ सीखते क्यों नहीं? क्यों अपने विरोध को विचारों तक ही सीमित नहीं रख पाते? क्यों आपस में सिर्फ मतभेद ही नहीं रख पाते? क्यों उन्हें मनभेद तक ले आते हैं? क्यों वैचारिक विभेद के चलते रिश्तों को बिगाड़ लेते हैं?

चलिए, विचार करियेगा इस पर और साथ में विचार करियेगा आज की बुलेटिन पर. देश में ऐसा बहुत कुछ चल रहा है जो विचारणीय है.

आभार सहित आज की बुलेटिन...

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बुधवार, 28 अक्टूबर 2015

ब्लॉग बुलेटिन - राजेंद्र यादव जी की पुण्यतिथि

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।


राजेंद्र यादव (जन्म: 28 अगस्त 1929 - मृत्यु: 28 अक्टूबर 2013हिन्दी साहित्य की सुप्रसिद्ध पत्रिकाहंस के सम्पादक और लोकप्रिय उपन्यासकार थे। राजेंद्र यादव ने 1951 ई. में आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिन्दी) की परीक्षा प्रथम श्रेणी, प्रथम स्थान के साथ उत्तीर्ण की। जिस दौर में हिन्दी की साहित्यिक पत्रिकाएं अकाल मौत का शिकार हो रही थीं, उस दौर में भी हंस का लगातार प्रकाशन राजेंद्र यादव की वजह से ही संभव हो पाया। उपन्यासकहानीकविता और आलोचना सहित साहित्य की तमाम विधाओं पर उनकी समान पकड़ थी। ( जानकारी स्त्रोत : http://bharatdiscovery.org/india/राजेंद्र_यादव )

आज हिन्दी ब्लॉग जगत और हमारी ब्लॉग बुलेटिन टीम हिन्दी साहित्य के महान साहित्यकार राजेंद्र यादव जी को स्मरण करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर   .........














आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे, शुभरात्रि। सादर  … अभिनन्दन।।

मंगलवार, 27 अक्टूबर 2015

भूले रास्तों का पता - 6




ज़िन्दगी की कतरनें
एक फूल एक पन्ना एक चूड़ी एक पत्ता 
कुछ इश्क़ कुछ समझौते 
कुछ टूटा सा दिल 
… 
हरी चूड़ियों का शौक आसमान में खनकता था 
अब अच्छी चूड़ियाँ नहीं मिलती 
हरी-पीली  की क्या बात !

चाय से करते हैं रास्ता तय - वहाँ तक जाने का, जहाँ भावनाओं के बीच बहुत कुछ अपना लगता था  … 




सोमवार, 26 अक्टूबर 2015

भूले रास्तों का पता - 5




न सत्य मिटता है,न परम्परा खत्म होती है - बीज कहीं न कहीं रहता है,
अंकुरित हो फैलता है  … ब्लॉग का अंकुरण आज भी है, प्रस्फुटित टहनियाँ, स्वादिष्ट फल फेसबुक, ट्विटर तक फैले हुए हैं  … जड़ों से नाता बना रहे, इसलिए -



रविवार, 25 अक्टूबर 2015

भूले रास्तों का पता - 4





 अच्छा लगता है पेड़ों से 
भागती हवाओं से बातें करना 
उन्हें गीत सुनाना 
यूँ लगता है कोई अपना है !
वह अपना 
जिसके साथ सबकुछ खुला खुला सा है 
न किसी बात से परहेज 
न कोई रुकावट 
बिना सीखे न जाने कितने गीत 
होठों से गुजर जाते हैं 
… 
अच्छा लगता है 
बचपन के बागीचे में दौड़ना 
रंगबिरंगी तितलियाँ पकड़ना 
रजनीगंधा से उसकी खुशबू का राज जानना 
हरसिंगार को हथेलियों में भरकर 
उसकी विनम्रता से एकाकार होना 
… 

अच्छा लगता है जब कोई लिखता है, कोई पढता है  … जिन्हें भूल गए हो उनको मैं लेकर आई हूँ, 
ये वही जगह है दोस्तों, जहाँ हम पढ़ते थे, फिर किसी को सुनाते थे  … अगली रचना का इंतज़ार करते थे।  लिखकर भूल जाना भला कोई बात हुई !!!




गुरुवार, 22 अक्टूबर 2015

सब को दशहरे की हार्दिक शुभकामनायें

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

"जरूरी है अपने ज़ेहन में 'राम' को ज़िन्दा रखना;
सिर्फ़ पुतले जलाने से कभी 'रावण' नहीं मरते।"


ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से आप सब को दशहरे की हार्दिक शुभकामनायें !!
सादर आपका 
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दशहरे पर कुछ कार्टून

दरिंदों के हवाले...

मैं फिर कविता बन जाऊं...

डाक टिकटों पर भी रावण

निराला के राम और साहित्यकारों का फुल वॉशआउट

अमर शहीद अशफाक उल्ला खाँ की ११५ वीं जयंती

प्रतीक बुराई का

कहाँ है राम

दशहरा-भुलाये नहीं भूलता.........

साइकिल पर कमल

रावण का ही एक अंश अपने भीतर जगाओ

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

बुधवार, 21 अक्टूबर 2015

ब्लॉग बुलेटिन - आजाद हिन्द फौज का 72वां स्थापना दिवस

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।

आज़ाद हिन्द फौज का स्थापना दिवस 21 अक्टूबर को मनाया जाता है। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी ने सशक्त क्रान्ति द्वारा भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 21 अक्टूबर, 1943 को 'आज़ाद हिन्द सरकार' की स्थापना की तथा 'आज़ाद हिन्द फ़ौज' का गठन किया इस संगठन के प्रतीक चिह्न पर एक झंडे पर दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना था। आज आजाद हिन्द फौज के 72वें स्थापना दिवस पर हम सब इस महान फौज के बहादुर और देशभक्त सिपाहियों को याद करते हुए शत शत नमन करते हैं। जय हिन्द। जय भारत।।

अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर   .........















आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे, शुभरात्रि। सादर  … अभिनन्दन।।  

मंगलवार, 20 अक्टूबर 2015

चलो वहाँ तुमको लेकर चलें




भावनाओं से भरा 
एक शीशे का प्याला 
हाथों से छूटकर गिरा 
और ब्लॉग लिखने लगा  … 

चलो वहाँ तुमको लेकर चलें  … यह आरम्भ है, इनके अतिरिक्त कितने ब्लॉग हैं - 



बारूद के ढेर में खोया बचपन - अपनी, उनकी, सबकी ...

हम अपनी छवि में कैद हैं « अजित गुप्ता का कोना

स्पंदन SPANDAN: हे नारी तू हड़प्पा है.

मेरा सरोकार: मानव अमर होने वाला है!