अच्छा लगता है पेड़ों से
भागती हवाओं से बातें करना
उन्हें गीत सुनाना
यूँ लगता है कोई अपना है !
वह अपना
जिसके साथ सबकुछ खुला खुला सा है
न किसी बात से परहेज
न कोई रुकावट
बिना सीखे न जाने कितने गीत
होठों से गुजर जाते हैं
…
अच्छा लगता है
बचपन के बागीचे में दौड़ना
रंगबिरंगी तितलियाँ पकड़ना
रजनीगंधा से उसकी खुशबू का राज जानना
हरसिंगार को हथेलियों में भरकर
उसकी विनम्रता से एकाकार होना
…
अच्छा लगता है जब कोई लिखता है, कोई पढता है … जिन्हें भूल गए हो उनको मैं लेकर आई हूँ,
ये वही जगह है दोस्तों, जहाँ हम पढ़ते थे, फिर किसी को सुनाते थे … अगली रचना का इंतज़ार करते थे। लिखकर भूल जाना भला कोई बात हुई !!!
अपने आपसे एकाकार होना ही हम भूल चुके हैं,
जवाब देंहटाएंबचपन को याद करना भूल चुके हैं...
++
लिंक के सहारे शेष पोस्ट अभी पढ़ी जाएँगी... कविता मन को भा गई.. :)
सुन्दर प्रस्तुति
डर भी पनपने लगा है
जवाब देंहटाएंकहीं पेड़ पौंधों हवा को
भी ना भा जाये वो सब
जो चल रहा है बाहर और अंदर ।
सुंदर प्रस्तुति ।
बहुत बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार!
यह सिलसिला चलता रहे ... :)
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंSarahneey prastuti.....
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