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शुक्रवार, 31 मई 2019

३१ मई - विश्व तम्बाकू निषेध दिवस - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |


विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर एक लघु कथा
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जिला पुस्तकालय में विश्व तम्बाकू निषेध दिवस की संगोष्ठी में लम्बा चौड़ा भाषण देने के बाद जब ठाकुर साहब मंच से नीचे आये तो चौबे जी बैठे दिख गए ... झट लपक लिए उनकी ओर और तपाक से बोले ... 



"बोलत बोलत मौह थक गओ ... चौबे जी नेक सी कपूरी दियो ।"
थोड़ा कहा है ... आशा है आप बहुत समझेंगे |

सादर आपका

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सुबह की सैर और तम्बाकू पसंद लोग

कविता नशा -- खुशबू

प्रदूषण घटायें - पर्यावरण बचायें

आपदा प्रबंधन !

664-हमारा हिन्दुस्तान

गीत के वटवृक्ष

अगले 5 साल मोदी-2, पूत के पाँव पालने में दिख रहे...

रेणुका सिंह की ताजपोशी कहती है अगस्त तक छत्तीसगढ़ भाजपा में हो सकते हैं आमूलचूल बदलाव

महँगाई

बुद्धिजीवी

साहिर लुधियानवी ....... एक मुलाकात

विकल्प हीनता का गणित -------mangopeople

जनसंख्या पर रोक लगाएं : एक जरूरी सा काव्य संग्रह - डॉ. वर्षा सिंह

देखो संध्या इठलाके आई

प्रेम की तलाश

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अब आज्ञा दीजिए ... 

जय हिन्द !!!

गुरुवार, 30 मई 2019

हिन्दी के पहले समाचार-पत्र 'उदन्त मार्तण्ड' की स्मृति में ब्लॉग बुलेटिन


नमस्कार साथियो,
आज, 30 मई को हिन्दी के पहले समाचार-पत्र उदन्त मार्तण्ड का प्रकाशन आरम्भ हुआ था. पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने सन 1826 में पहले हिन्दी समाचार पत्र का प्रकाशन आरम्भ किया. वे मूल रूप से कानपुर संयुक्त प्रदेश के निवासी थे. उदन्त मार्तण्ड का प्रकाशन कलकत्ता के कोलू टोला नामक मोहल्ले की 37 नंबर आमड़तल्ला गली से से एक साप्ताहिक पत्र के रूप में शुरू हुआ था. उस समय अंग्रेज़ी, फारसी और बांग्ला में तो अनेक पत्र निकल रहे थे किंतु हिन्दी में एक भी पत्र नहीं निकलता था. इसका प्रकाशन एक क्रांतिकारी घटना मानी जा सकती है. 


उदन्त मार्तण्ड का शाब्दिक अर्थ है समाचार-सूर्य. अपने नाम के अनुरूप ही इस समाचार पत्र ने हिन्दी की समाचार दुनिया में कार्य किया. यह पत्र ऐसे समय में प्रकाशित हुआ था जब हिन्दी भाषियों को अपनी भाषा के पत्र की आवश्यकता महसूस हो रही थी. इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए उदन्त मार्तण्ड ने समाज में चल रहे विरोधाभासों एवं अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध आम जन की आवाज़ को उठाने का कार्य किया था. क़ानूनी और आर्थिक कारणों के चलते 19 दिसम्बर 1827 को उदन्त मार्तण्ड का प्रकाशन बंद हो गया. इसके अंतिम अंक में एक नोट प्रकाशित हुआ था जिसमें उसके बंद होने की पीड़ा झलकती है. इसमें कहा गया था,
आज दिवस लौ उग चुक्यों मार्तण्ड उदन्त।
अस्ताचल को जाता है दिनकर दिन अब अंत।।

यह साप्ताहिक पत्र पुस्तकाकार (12x8) छपता था और प्रति मंगलवार को निकलता था. इसके कुल 79 अंक ही प्रकाशित हो पाए थे. वर्तमान में पत्रकारिता एक बड़ा कारोबार बन गया है. इन 193 वर्षों में हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में काफ़ी तेजी आई है. इसके द्वारा साक्षरता बढ़ी भी है. पंचायत स्तर पर राजनीतिक चेतना बढ़ी है. इसके लिए उदन्त मार्तण्ड के योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता है. इस पत्र को हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में मील का पत्थर कहा जाता है. इसके सम्मान में ही प्रतिवर्ष 30 मई को हिन्दी पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है.

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बुधवार, 29 मई 2019

माउंट एवरेस्ट पर मानव विजय की ६६ वीं वर्षगांठ - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज २९ मई है ... आज ही के दिन सन १९५३ में दो पर्वतारोहियों, न्यूज़ीलैण्ड के एडमंड हिलेरी (बाद में सर एडमंड) तथा नेपाल के शेरपा तेनज़िंग नोर्गे ने एवरेस्ट शिखर पर विजय प्राप्त की थी |


माउंट एवरेस्ट एशिया में नेपाल और चीन (तिब्बत) की सीमा पर स्थित वृहद हिमालय पर्वत शृंखला का सर्वोच्च शिखर है। यह पृथ्वी का सर्वोच्च स्थल है। माउंट एवरेस्ट को संस्कृत में देवगिरि, तिब्बती में चोमोलुंग्मा, चीनी भाषा (रोमनीकृत) में चु-मु-लांग-मा-फेंग, (पिनयिन) कोमोलांग्मा फेंग, नेपाली में सगरमाथा कहते हैं।

भौतिक विशेषताएँ

हिमालय के दक्षिण-पूर्व, पूर्वोत्तर तथा पश्चिम के तीन बंजर कटक ऊपर उठाते हुए दो शिखरों का निर्माण करते हैं; पहला 8,848 मीटर (एवरेस्ट) और दूसरा 8,748 मीटर (साउथ पीक) ऊँचा शिखर है। इस पर्वत को इसके पूर्वोत्तर पक्ष से, जो तिब्बत के पठार से 3,600 मीटर ऊपर उठता है, सीधे देखा जा सकता है। इससे कुछ मोटे शिखर चांगत्से (उत्तर, 7,560 मीटर), खूंबुत्से (पश्चिमोत्तर, 6,655 मीटर), नुपत्से (दक्षिण-पश्चिम, 7,861 मीटर) तथा ल्होत्से (दक्षिण, 8,501 मीटर) हैं, जो इसके आधार के चारों ओर ऊपर उठते हुए एवरेस्ट को नेपाल की तरफ से आँख से ओझल कर देते हैं। एवरेस्ट शिखर की ओर जाने वाले मार्ग का दो-तिहाई भाग पृथ्वी के वायुमंडल के उस हिस्से में है, जहाँ ऑक्सीजन का स्तर कम है। ऊपरी ढलानों पर ऑक्सीजन की कमी, तेज़ हवाओं तथा अत्यधिक ठंड के कारण किसी प्रकार का वानस्पतिक या प्राणी जीवन सम्भव नहीं है। ग्रीष्मकालीन मानसून (मई से सितम्बर) के दौरान हिमपात होता है। पर्वत के किनारे मुख्य कटक द्वारा एक-दूसरे से अलग हैं। पर्वत की ढलानों पर आधार तक बर्फ़ की चादर बिछी रहती है। शिखर चट्टानों की तरह कठोर बर्फ़ से बना है और उसके ऊपर बर्फ़ की जो परतें जमी हैं, उनकी ऊँचाई वर्ष भर में 1.5 से 2 मीटर तक बढ़ती-घटती रहती है। शिखर की ऊँचाई सितम्बर में सबसे ज़्यादा तथा मई में पश्चिमोत्तर से बहकर आने वाली जाड़े की तेज़ हवा के कारण घटकर सबसे कम रह जाती हैं।

शिखर पर विजय



एवरेस्ट शिखर पर विजय के प्रयास 1920 में तिब्बत की तरफ़ के रास्ते के खुलने के बाद शुरू हुए। पूर्वोत्तर कग़ार की तरफ़ से शिखर पर पहुँचने के लगातार सात प्रयास (1921-38) और दक्षिण-पूर्वी कग़ार की तरफ़ से तीन प्रयास (1951-52) ठंडी-शुष्क तेज़ हवाओं, बीहड़ क्षेत्र तथा अत्यधिक ऊँचाई के कारण विफल रहे।
अन्तत: 1953 में रॉयल जिओग्रैफ़िकल सोसाइटी तथा अल्पाइन क्लब की जौएण्ट हिमालयन कमिटी के प्रयासों से एवरेस्ट पर विजय प्राप्त कर ली गई। इस जीत में पर्वतारोहियों ने खुली तथा बन्द सर्किट ऑक्सीजन प्रणाली, बाहरी वातावरण से अप्रभावित रहने वाले विशेष प्रकार के जूते व पोशाक और छोटे रेडियो उपकरणों का प्रयोग किया था। पर्वतारोहियों के द्वारा इस अभियान मार्ग में आठ शिविर स्थापित किये गए तथा यह मार्ग खुंबू हिमप्रपात व हिमनद, वेस्ट सी. डब्ल्यू. एम. और ल्होत्से से होते हुए 8,000 मीटर की ऊँचाई पर चट्टानी शिखर साउथ कोल तक पहुँचता था। यहाँ से 29 मई 1953 को दो पर्वतारोहियों न्यूज़ीलैण्ड के एडमंड हिलेरी तथा नेपाल के शेरपा तेनज़िंग नोर्गे दक्षिण-पूर्वी कग़ार से बढ़ते हुए दक्षिणी शिखर और फिर चोटी तक पहुँचे। इसके बाद से अब तक लगभग पौने चार हज़ार पर्वतारोहियों ने यह प्रयास किया है, जिनमें 2,436 सफल रहे, 210 की रास्ते में ही मौत हो गई और शेष पर्वतारोहण अधूरा छोड़ कर लौट आए।

और अब तो यह हाल है कि दो दिन पूर्व यह ख़बर आई है कि एवरेस्ट पर 'जाम' की स्थिति उत्पन्न हो गई है, लगभग ४०० पर्वतारोहियों की मौजूदगी के कारण ही यह स्थिति हुई है |ऐसे में ये विचार किया जा रहा है कि क्या कुछ समय के लिए पर्वतारोहियों की एवरेस्ट चढ़ाई परअस्थाई रोक लगा दी जाए|

सादर आपका 
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जात तो पूछो साधू की -----mangopeople

कोचिंग सेंटर

डॉ पायल तड़वी का गुनाह क्या था..?

नजफ़ खां का मकबरा

सोशल मीडिया

कनकपुष्प

अंत ही आरंभ है

उसको खबर सभी की

मिट्टी

भारत महिमा - जयशंकर प्रसाद

स्पीड ब्रेकर

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अब  आज्ञा दीजिए ... 

जय हिन्द !!!

मंगलवार, 28 मई 2019

नमन आज़ादी के दीवाने वीर सावरकर को : ब्लॉग बुलेटिन


नमस्कार साथियो,
अंग्रेज़ी सत्ता के विरुद्ध भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को नासिक के भगूर गाँव में हुआ था. वे बीसवीं शताब्दी के सबसे बड़े हिन्दूवादी थे. उन्हें हिन्दू शब्द से बेहद लगाव था. वे कहते थे कि उन्हें स्वातन्त्रय वीर की जगह हिन्दू संगठक कहा जाए. उन्होंने जीवन भर हिन्दू, हिन्दी, हिन्दुस्तान के लिए कार्य किया. उनको अखिल भारत हिन्दू महासभा का छह बार राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया.
उन्हें आजीवन काला पानी की दोहरी सज़ा मिली थी. वे सन 1911 से सन 1921 तक अंडमान की सेल्यूलर जेल में रहे. सन 1921 में स्वदेश लौटने के बाद उन्हें फिर कला पानी की सजा सुनाई गई. सन 1937 में उन्हें मुक्त कर दिया गया था. उन्होंने सन 1947 में भारत विभाजन का विरोध किया. बाद में सन 1948 में महात्मा गांधी की हत्या में उनका हाथ होने का संदेह किया गया. अपने देशप्रेम के ज़ज्बे के चलते वे किसी आरोप से घबराये नहीं और कालांतर में अदालत ने उन्हें तमाम आरोपों से बरी किया. 

उनकी मृत्यु 26 फ़रवरी 1966 में मुम्बई में हुई. उनके निधन पर तत्कालीन भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया. उनके ही सम्मान में पोर्ट ब्लेयर के हवाई अड्डे का नाम वीर सावरकर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा रखा गया.


आइये इसके साथ-साथ वीर सावरकर के बारे में कुछ तथ्य जान लें, शायद आपको भी जानकारी हो.

> वे भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने लंदन में अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांतिकारी आंदोलन संगठित किया था.
> वे भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सन् 1905 के बंग-भंग के बाद सन् 1906 में 'स्वदेशी' का नारा देकर विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी.
> वे भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्हें अपने विचारों और अंग्रेजी साम्राज्य के प्रति शपथ ने लेने के कारण बैरिस्टर की डिग्री खोई.
> वे पहले भारतीय थे जिन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की.
> वे भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सन् 1857 की लड़ाई को भारत का स्वाधीनता संग्राम बताया और लगभग एक हज़ार पृष्ठों का इतिहास लिखा.
> वे दुनिया के एकमात्र लेखक हैं जिनकी किताब को प्रकाशित होने के पहले ही ब्रिटिश सरकारों ने प्रतिबंधित कर दिया था.
> वे दुनिया के पहले राजनीतिक कैदी थे, जिनका मामला हेग के अंतराष्ट्रीय न्यायालय में चला था.
> वे पहले भारतीय राजनीतिक कैदी थे, जिन्होंने एक अछूत को मंदिर का पुजारी बनाया था.
> उन्होंने ही पहला भारतीय झंडा बनाया था, जिसे जर्मनी में 1907 की अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम कामा ने फहराया था.
> वे एकमात्र व्यक्ति रहे जिन्हें दो बार कालापानी की सजा हुई.
> वे पहले कवि थे, जिन्होंने काग़ज़-कलम के बिना जेल की दीवारों पर पत्थर के टुकड़ों से कवितायें लिखीं. कहा जाता है उन्होंने अपनी रची दस हज़ार से भी अधिक पंक्तियों को प्राचीन वैदिक साधना के अनुरूप वर्षों स्मृति में सुरक्षित रखा, जब तक वे देशवासियों तक नहीं पहुँची.
> वे प्रथम क्रान्तिकारी थे, जिन पर स्वतंत्र भारत की सरकार ने झूठा मुकदमा चलाया और बाद में निर्दोष साबित होने पर माफी मांगी.


वीर सावरकर को उनकी जन्म जयंती पर सादर नमन करते हुए आज की बुलेटिन प्रस्तुत है.

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सोमवार, 27 मई 2019

तीसरा शहादत दिवस - हवलदार हंगपन दादा और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिंदी ब्लॉगर्स को नमस्कार।
हवलदार हंगपन दादा
हवलदार हंगपन दादा (अंग्रेज़ी: Hangpan Dada, जन्म- 2 अक्टूबर, 1979, अरुणाचल प्रदेश; शहादत- 27 मई, 2016, जम्मू और कश्मीर) भारतीय सेना के जांबाज सैनिकों में से एक थे, जिन्होंने आतंकवादियों के साथ लड़ते हुए शहादत प्राप्त की। वे 27 मई, 2016 को उत्तरी कश्मीर के शमसाबाड़ी में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हुए। वीरगति प्राप्त करने से पूर्व उन्होंने चार हथियारबंद आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया। इस शौर्य के लिए 15 अगस्त, 2016 को उन्हें मरणोपरांत 'अशोक चक्र' से सम्मानित किया गया। 'अशोक चक्र' शांतिकाल में दिया जाने वाला भारत का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है।


आज हम सब अशोक चक्र विजेता हवलदार हंगपन दादा के तीसरे सर्वोच शहादत दिवस पर उनका स्मरण करते हुए उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। जय हिंद। जय भारत।।

~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~ 













आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।

रविवार, 26 मई 2019

लिपस्टिक के दाग - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

एक प्रिंसिपल को उसके स्कूल की कुछ लड़कियों ने परेशान कर रखा था!

वे लड़कियां अपने होटों पर लिपस्टिक लगाती थी और बाथरूम में जाकर वहां लगे शीशे पर अपने होटों के निशान छोड़ देती!

उसे ये पता ही नहीं चलता था कि ऎसी हरकत कौन सी लड़कियां करती है एक दिन उसने सभी लड़कियों को इकट्ठे होने को कहा और उन्हें सीधी चेतावनी दे दी की! अगर दोपहर तक वे लड़कियां जो बाथरूम के शीशे पर लिपस्टिक के दाग लगाती हैं प्रिंसिपल के ऑफिस में आकर स्वीकार कर ले की ये हरकत उनकी है तो मैं सभी लड़कियों को स्कूल से निकाल दूंगा! डर के मारे वे लड़कियां इकट्ठी हो कर प्रिंसिपल के ऑफिस में पहुँच गयी, वहां प्रिंसिपल और स्कूल की सफाई करने वाले उनका इन्तजार कर रहे थे!

प्रिंसिपल ने गुस्से होते हुए कहा तुम जानती हो सफाई करने वालों के लिए रोज शीशे को साफ़ करना एक समस्या बन गई थी, तुम को तो पता भी नहीं कि इन लोगों को ये 'वैक्सी लिपस्टिक' मिटाने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है

आओ, तुम्हें बाथरूम में चलकर दिखाते हैं चलो एक एक कर के पहले वहां अपने होटों के निशान लगाओ सभी लड़कियां चुपचाप गई और वापिस आ गयी!

प्रिंसिपल ने सफाई वाले को इशारा किया कि साफ़ करे, सफाई वाले ने एक ब्रुश उठाया और उसे टॉयलेट में डुबोया और उससे शीशा साफ़ करने लगा!

वह उस स्कूल में लड़कियों की शरारत का आखिरी दिन था उसके बाद शीशे पर कभी भी लिपस्टिक के दाग नहीं दिखे!

सादर आपका 

शनिवार, 25 मई 2019

स्व.रासबिहारी बोस जी की १३३ वीं जयंती - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
भारत के महान क्रान्तिकारी एवं स्वतंत्रता-संग्राम-नेता : रासबिहारी बोस

रासबिहारी बोस (बांग्ला: রাসবিহারী বসু, जन्म:२५ मई, १८८६ - मृत्यु: २१ जनवरी, १९४५) भारत के एक क्रान्तिकारी नेता थे जिन्होने ब्रिटिश राज के विरुद्ध गदर षडयंत्र एवं आजाद हिन्द फौज के संगठन का कार्य किया। इन्होंने न केवल भारत में कई क्रान्तिकारी गतिविधियों का संचालन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, अपितु विदेश में रहकर भी वह भारत को स्वतन्त्रता दिलाने के प्रयास में आजीवन लगे रहे। दिल्ली में तत्कालीन वायसराय लार्ड चार्ल्स हार्डिंग पर बम फेंकने की योजना बनाने, गदर की साजिश रचने और बाद में जापान जाकर इंडियन इंडिपेंडेस लीग और आजाद हिंद फौज की स्थापना करने में रासबिहारी बोस की महत्वपूर्ण भूमिका रही। यद्यपि देश को स्वतन्त्र कराने के लिये किये गये उनके ये प्रयास सफल नहीं हो पाये, तथापि स्वतन्त्रता संग्राम में उनकी भूमिका का महत्व बहुत ऊँचा है।


निधन 
भारत को ब्रिटिश शासन की गुलामी से मुक्ति दिलाने की जी-तोड़ मेहनत करते हुए किन्तु इसकी आस लिये हुए २१ जनवरी, १९४५ को इनका निधन हो गया। उनके निधन से कुछ समय पहले जापानी सरकार ने उन्हें आर्डर आफ द राइजिंग सन के सम्मान से अलंकृत भी किया था।
आज स्व॰ श्री रासबिहारी बोस जी की १३३ वीं जयंती के अवसर पर  ब्लॉग बुलेटिन टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से हम सब उनको शत शत नमन करते है !
सादर आपका
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दुर्घटना से बचाव भला ---------mangopeople

हे! ईश्वर

३६०.गाँव पर कविता

बोनसाई

गांधीजी का छल

सूरत हादसा ...भावभीनी श्रद्धांजलि... वे अभी बच्चे ही तो थे - डॉ शरद सिंह

भाजपा की जीत पर

संसृति की मादकता

जब परिचित लोगों में ज़्यादा संख्या मरे हुओं की हो जाती है

भारत में उद्देश्यहीन विपक्ष का कोई भविष्य नहीं -सतीश सक्सेना

मोदी 2.0

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अब आज्ञा दीजिए ... 

जय हिन्द !!!

शुक्रवार, 24 मई 2019

123वीं जयंती - करतार सिंह सराभा और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिंदी ब्लॉगर्स को नमस्कार। 
करतार सिंह सराभा
करतार सिंह सराभा (अंग्रेज़ी: Kartar Singh Sarabha, जन्म- 24 मई, 1896, लुधियाना; मृत्यु- 16 नवम्बर, 1915) भारत के प्रसिद्ध क्रान्तिकारियों में से एक थे। उन्हें अपने शौर्य, साहस, त्याग एवं बलिदान के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा। महाभारत के युद्ध में जिस प्रकार वीर अभिमन्यु ने किशोरावस्था में ही कर्तव्य का पालन करते हुए मृत्यु का आलिंगन किया था, उसी प्रकार सराभा ने भी अभिमन्यु की भाँति केवल उन्नीस वर्ष की आयु में ही हँसते-हँसते देश के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया। उनके शौर्य एवं बलिदान की मार्मिक गाथा आज भी भारतीयों को प्रेरणा देती है और देती रहेगी। यदि आज के युवक सराभा के बताये हुए मार्ग पर चलें, तो न केवल अपना, अपितु देश का मस्तक भी ऊँचा कर सकते हैं।


आज हम महान क्रांतिकारी करतार सिंह सराभा जी की 123वीं जयंती पर उनका स्मरण करते हुए उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। सादर।।

~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~ 













आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।

गुरुवार, 23 मई 2019

पक्ष-विपक्ष दोनों के लिए राजनीति का नया दौर शुरू - ब्लॉग बुलेटिन


नमस्कार साथियो,
आज समूचा देश लोकसभा चुनाव परिणामों को जानने की चाह में किसी न किसी रूप में मीडिया से जुड़ा हुआ है. अभी तक जिस तरह से रुझान आये हैं, उनसे स्थिति एकदम साफ़ हो चुकी है. भाजपा की, NDA की धमाकेदार वापसी दिख रही है. विपक्ष और महागठबंधन जैसी स्थितियों को मतदाताओं ने नकारा है. यदि इन रुझानों, जो जल्द ही अंतिम परिणाम के रूप में भी पहचाने जायेंगे, को पूर्वाग्रहरहित होकर देखा जाये तो इस बार मतदाताओं ने निवर्तमान केंद्र सरकार के कार्यों पर भरोसा जताते हुए उसे एक अवसर और दिया है. इसके साथ ही उसने विगत लम्बे समय से चले आ रहे विपक्ष के तमाम आरोपों को एकतरह से खारिज भी किया है. 

इस परिणाम के बाद दोनों पक्षों के लिए राजनीति का नया ट्रेंड शुरू होने वाला है. अभी तक भाजपा को साम्प्रदायिक, हिन्दू ध्रुवीकरण के रूप में ही प्रचारित किया जाता रहा है किन्तु इन चुनावों परिणामों के बाद इससे बहुत हद तक मुक्ति मिलेगी. ऐसे में केंद्र की भाजपा को अपनी वर्तमान ईमानदारी वाली, कार्य करने वाली सरकार की छवि को और निखारना होगा. महज मोदी के नाम पर टिके रहने की प्रवृत्ति से उसके सभी जनप्रतिनिधियों को बाहर आना होगा. 


इसी तरह विपक्ष को भी विचार करना होगा कि हर बार महज ईवीएम के नाम पर, राफेल, नोटबंदी अथवा किसी अन्य मुद्दे के नाम पर शोर मचाकर सरकार को कटघरे में खड़ा नहीं किया जा सकता है. महज जाति के नाम पर लामबंदी करके मतदाताओं को लुभाया नहीं जा सकता है. मुफ्तखोरी के नाम पर मतदाताओं को आकर्षित नहीं किया जा सकता है. अब आम मतदाता भी तकनीकी रूप से अपडेट है. उसके हाथ में भी तकनीक होने से उसको भी पल-पल की जानकारी मिल रही है. उसे भी सही, गलत का आभास हो रहा है. ऐसे में विपक्ष को आने वाले समय के लिए सशक्त बनने के लिए, केंद्र सरकार के कार्यों की पारदर्शिता को बनाये रखने के लिए उसे जनता के बीच जाकर काम करना होगा. सरकार की छवि को झूठे आरोपों के द्वारा धूमिल करने की कोशिशों के बजाय खुद अपनी छवि को सशक्त, मजबूत, स्वच्छ करना होगा.

फ़िलहाल, अंतिम परिणामों का सभी को इंतजार है. सभी को शुभकामनायें कि आने वाले समय के देश और सशक्त हो, मजबूत हो, सुरक्षित हो.

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बुधवार, 22 मई 2019

EVM पर निशाना किस लिए - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

EVM कभी हैक नहीं हो सकता, ये बात सबसे ज़्यादा बेहतर ख़ुद राजनीतिक पार्टियाँ और ... ये नेता भी जानते हैंEVM से चुनाव की प्रक्रिया एकदम फ़ुल प्रूफ़ है, इसमें हैकिंग या इन्हें बदले जाने की सम्भावना पूरी तरह से नगण्य है। सबसे पहले चुनाव की प्रक्रिया शुरू होती है मतदान दल को चुनाव सामग्री के अलॉट्मेंट से, चुनाव सामग्री यानि EVM उसकी कंट्रोल यूनिट और अन्य रेजिस्टर एवं चेक लिस्ट... हर EVM की एक यूनीक आईडी होती है, जो EVM में इलेक्ट्रानिक्ली और मतदान दल को मैन्यूअली बताई जाती है।
मतदान वाले दिन सुबह मतदान शुरू होने के 75 मिनिट पहले एक मॉक पोल कंडक्ट कराना ज़रूरी होता है,
और उस मॉक पोल में राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधि की उपस्थिति भी ज़रूरी होती है, ख़ुद राजनैतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों के सामने मॉक पोल में हर उम्मीदवार को बराबर बराबर संख्या में वोट दिए जाते हैं, जिनकी गिनती उन्हें उनके सामने मशीन से करके दिखाई जाती है। फिर मशीन का डेटा क्लीयर करके उसे 0 पर सेट किया जाता है, जिसके बाद मशीन को सील कर दिया जाता है, जिस स्ट्रिप से मशीन को सील किया जाता है ... उसके ऊपर राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ता या प्रतिनिधियों के हस्ताक्षर अनिवार्य रूप से लिए जाते हैं, जिन्हें वो काउंटिंग के समय वो मैच करा सकते हैं।
इस बीच अगर मशीन को खोला जाए तो वो स्ट्रिप फट जाएगी, उस स्ट्रिप को इस तरह से चिपकाया जाता है कि उसे खोलना सम्भव ही नहीं है। चिपकाने के बाद उस पर लाख से चपरा लगाकर पेक किया जाता है।
अब तो VVPAT भी आ गया है, आप ख़ुद चेक कर सकते हैं कि आपने किसको वोट दिया, और आपका वोट उसी को गया या नहीं ...चुनाव आयोग ने रैंडम्ली हर विधानसभा से 5 बूथों की VVPAT की गिनती का प्रावधान रखा है, धाँधली तो ख़ैर हो ही नहीं सकती लेकिन क्रॉस चेकिंग एकदम प्रॉपर हो जाएगी इससे।
चुनाव सम्पन्न होने के बाद EVM को स्ट्रोंग रूम में रखा जाता है जिसके बाहर पुलिस के अलावा सशस्त्र बलों की निगरानी होती है, वहाँ पूरे समय CCTV कैमरा रिकॉर्डिंग होती है और ख़ुद राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को भी उस पर निगरानी रखने की पर्मिशन होती है।
एहतियातन प्रशासन ने अधिकांश जवानों पर स्ट्रॉंग रूम को सिर्फ़ गेट या दरवाज़े से बंद नहीं किया, बल्कि एक पूरी काँक्रीट की दीवार खड़ी करवा दी है जिसे उसी दिन सुबह तोड़ कर खोला जाएगा।अब ऐसे में ये जो भी लोग EVM की हैकिंग या उसे बदले जाने का हल्ला मचा रहे हैं उन्हें उनकी हार निश्चित दिख रही है, इन पर अफ़वाह फैलाने और देश में जान बूझकर अराजकता फैलाने के आरोप में क़ानूनी कार्यवाही होनी चाहिए।
याद रखिए, ये पूरी चुनावी प्रक्रिया एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें देश भर में कम से कम पचास लाख या उससे भी ज़्यादा सरकारी कर्मचारी दिन रात लगातार कई दिनों तक एकदम ईमानदारी से अपनी ड्यूटी निभाते हैं,
कितने लोग कितने दिन तक खाना नहीं खाते, सिर्फ़ चाय समोसे पर बिना नहाए धोए अनवरत काम करते हैं तब जाकर ये चुनाव सम्पन्न होते हैं, और ये नेता अपनी हार की बेज्जती से बचने के लिए सबको बेईमान बता देते हैं।
EVM से होने वाले चुनाव इस देश 135 करोड़ लोगों और इस देश के लोकतंत्र की सफलता हैं, हमें इस प्रक्रिया पर गर्व होना चाहिए|
 
सादर आपका
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EVM पर समग्र

लिख रहे कैसी कहानी मुल्क में

सांसारिक चमत्कार की खोज के लिए

रहस्यमयी गलीचे

करोड़ों-करोड़ों मत गिनने में वक़्त तो लगता है

गलीचा

भारत में लोकतंत्र का भविष्य

उसने मुझे अच्छा कहा!

'आधुनिक भारतीय समाज' के जनक - राजा राममोहन राय की २४७ वीं जयंती

तमसो मा ज्योतिर्गमय

दास्ताँ एक नष्ट सभ्यता की

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अब आज्ञा दीजिए ...

जय हिन्द !!!

मंगलवार, 21 मई 2019

निगेटिव में डंडा घुसा कर उसे पॉजिटिव बनायें : ब्लॉग बुलेटिन


नमस्कार साथियो,
चुनाव के दौर से देश निकल कर परिणामों की आस के दौर में चला गया है. बहुत से लोगों को अभी से दौरा पड़ने लगे हैं. अभी तक कुछ लोग ईवीएम का हैक किया जाना चिल्लाते दिखते थे,, वे अब उसके बदले जाने की बात करने लगे हैं. ऊहापोह के इस दौर में नकारात्मकता लगभग सभी पर हावी है. इस नकारात्मकता से वही निकल सकता है, जो डंडे का प्रयोग करना जानता हो. हँसिये नहीं, सही कह रहे हैं. न मानें तो हम बताए देते हैं कि कैसे डंडे का उपयोग करते हुए नकारात्मकता को दूर किया जा सकता है. अपने आपस छाई निगेटिव स्थिति को कैसे पॉजिटिव किया जा सकता है. गौर से पढ़िएगा.

जीवन में जब भी निगेटिव (-) महसूस हो तो
उसमें एक डंडा (।) घुसा कर उसे पॉज़िटिव (+) बना दो.
डंडा घुसाना ज़रूरी होता है, पॉज़िटिव होने के लिए. यहाँ तय आपको करना है कि आपकी नकारात्मकता को दूर करने में आपका कौन सा डंडा काम आएगा. घूमने, फोटोग्राफी करने, गीत-संगीत में डूब जाने, अपने अन्य शौक पूरा करने आदि के अपने पसंदीदा डंडे के साथ-साथ आपसी विश्वास, सद्भाव, मित्रता आदि का उपयोग करके आप निगेटिव को पॉजिटिव बना सकते हैं.

ध्यान रखियेगा, ये चुनाव देश का भविष्य तय करते हैं, नेताओं की स्थिति का निर्धारण करते हैं, सरकार चलाने वालों का निर्वाचन करते हैं न कि हम सबके आपसी रिश्तों, संबंधों, व्यवहार, बर्ताव का निर्धारण करते हैं, न ही निर्वाचन करते हैं. हमें अपने व्यवहार से, अपने कार्य से ही सकारात्मकता को बनाये रखना है.


आइये, इसी सकारात्मकता के साथ अपने मन का डंडा उठाते हुए आज की बुलेटिन का आनंद लेते हैं.

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सोमवार, 20 मई 2019

119वां जन्मदिवस - सुमित्रानंदन पंत जी और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिंदी ब्लॉगर्स को नमस्कार। 
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सुमित्रानंदन पंत (अंग्रेज़ी: Sumitranandan Pant, जन्म: 20 मई 1900; मृत्यु: 28 दिसंबर, 1977) हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार स्तंभों में से एक हैं। सुमित्रानंदन पंत नये युग के प्रवर्तक के रूप में आधुनिक हिन्दी साहित्य में उदित हुए। सुमित्रानंदन पंत ऐसे साहित्यकारों में गिने जाते हैं, जिनका प्रकृति चित्रण समकालीन कवियों में सबसे बेहतरीन था। आकर्षक व्यक्तित्व के धनी सुमित्रानंदन पंत के बारे में साहित्यकार राजेन्द्र यादव कहते हैं कि 'पंत अंग्रेज़ी के रूमानी कवियों जैसी वेशभूषा में रहकर प्रकृति केन्द्रित साहित्य लिखते थे।' जन्म के महज छह घंटे के भीतर उन्होंने अपनी माँ को खो दिया। पंत लोगों से बहुत जल्द प्रभावित हो जाते थे। पंत ने महात्मा गाँधी और कार्ल मार्क्‍स से प्रभावित होकर उन पर रचनाएँ लिख डालीं। हिंदी साहित्य के विलियम वर्ड्सवर्थ कहे जाने वाले इस कवि ने महानायक अमिताभ बच्चन को ‘अमिताभ’ नाम दिया था। पद्मभूषण, ज्ञानपीठ पुरस्कार और साहित्य अकादमी पुरस्कारों से नवाजे जा चुके पंत की रचनाओं में समाज के यथार्थ के साथ-साथ प्रकृति और मनुष्य की सत्ता के बीच टकराव भी होता था। हरिवंश राय ‘बच्चन’ और श्री अरविंदो के साथ उनकी ज़िंदगी के अच्छे दिन गुजरे। आधी सदी से भी अधिक लंबे उनके रचनाकाल में आधुनिक हिंदी कविता का एक पूरा युग समाया हुआ है।


आज सुमित्रानंदन पंत जी के 119वें जन्मदिवस पर हम सभी उनको शत शत नमन करते हैं। सादर।।

~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~ 












आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।। 

रविवार, 19 मई 2019

चयन हमारा




मिली तो थी हमें स्वतंत्रता,
लेकिन हमें
किसी न किसी तरह 
पिंजड़े में रहना भाया !
उसकी तीलियों पर चोंच मारते हुए
हम खुद को पराक्रमी मानने लगे,
और वहम पाल लिया
कि हमारे अंदर स्वतंत्रता की चाह है
... !
लेकिन,
पिजड़े से बाहर निकलकर
कोई उड़ने की चाह नहीं होती,
हम कोई नया पिंजड़ा तलाशने लगते हैं,
आकाशीय विस्तार 
हमें भूलभुलैया सा प्रतीत होता है,
और हम रोने लगते हैं 
क़िस्मत का रोना
कभी नहीं समझना चाहते
कि जाने-अनजाने 
पिंजड़े का चयन हमारा ही है
अन्यथा,
धरती और आकाश 
हमेशा हमारे सहयात्री होते हैं ...

 
तू कभी ख़ुद के बराबर इधर नहीं आता
मैं भी आता हूं मगर टूटकर नहीं आता
तवील रात, बड़े दिन, पहाड़ सी शामें
अलावा चैन के कुछ मुख़्तसर नहीं आता
तू सोचता है कभी भूल जाएगा मुझको
मैं जानता हूं तुझे यह हुनर नहीं आता
घर से रूठे हुए हमलोग वहां तक आए
जहां से लौट के कोई भी घर नहीं आता
अपने कमरे में ये मासूमियत कहां होती
रोज़ खिड़की पे परिन्दा अगर नहीं आता
यहां से आप जहां जाएं, जिधर हम जाएं
किसी भी राह में कोई शजर नहीं आता

दौड़ती,भागती,
हाथ से छूटती उम्र के व्यस्ततम पलों में,
अचानक आता है तुम्हारा ज़िक्र...!
और मैं हो जाती हूँ 20 साल की युवती।
मन में उठती है इच्छा,
"काश ! तुम फिर से आ जाते ज़िन्दगी में,
अपनी सारी दीवानगी के साथ "
और इस तपते कमरे के चारों ओर
लग जाती है यकबयक खस की टाट।
और उससे हो कर आने लगते हैं,
सुगन्धित ठंढे छीटे।
तमाम सफेद षडयन्त्रों के बीच,
तुम्हारी याद का काला साया...
आह !
कितनी स्वच्छ है ये मलिनता।