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बुधवार, 29 मई 2019

माउंट एवरेस्ट पर मानव विजय की ६६ वीं वर्षगांठ - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज २९ मई है ... आज ही के दिन सन १९५३ में दो पर्वतारोहियों, न्यूज़ीलैण्ड के एडमंड हिलेरी (बाद में सर एडमंड) तथा नेपाल के शेरपा तेनज़िंग नोर्गे ने एवरेस्ट शिखर पर विजय प्राप्त की थी |


माउंट एवरेस्ट एशिया में नेपाल और चीन (तिब्बत) की सीमा पर स्थित वृहद हिमालय पर्वत शृंखला का सर्वोच्च शिखर है। यह पृथ्वी का सर्वोच्च स्थल है। माउंट एवरेस्ट को संस्कृत में देवगिरि, तिब्बती में चोमोलुंग्मा, चीनी भाषा (रोमनीकृत) में चु-मु-लांग-मा-फेंग, (पिनयिन) कोमोलांग्मा फेंग, नेपाली में सगरमाथा कहते हैं।

भौतिक विशेषताएँ

हिमालय के दक्षिण-पूर्व, पूर्वोत्तर तथा पश्चिम के तीन बंजर कटक ऊपर उठाते हुए दो शिखरों का निर्माण करते हैं; पहला 8,848 मीटर (एवरेस्ट) और दूसरा 8,748 मीटर (साउथ पीक) ऊँचा शिखर है। इस पर्वत को इसके पूर्वोत्तर पक्ष से, जो तिब्बत के पठार से 3,600 मीटर ऊपर उठता है, सीधे देखा जा सकता है। इससे कुछ मोटे शिखर चांगत्से (उत्तर, 7,560 मीटर), खूंबुत्से (पश्चिमोत्तर, 6,655 मीटर), नुपत्से (दक्षिण-पश्चिम, 7,861 मीटर) तथा ल्होत्से (दक्षिण, 8,501 मीटर) हैं, जो इसके आधार के चारों ओर ऊपर उठते हुए एवरेस्ट को नेपाल की तरफ से आँख से ओझल कर देते हैं। एवरेस्ट शिखर की ओर जाने वाले मार्ग का दो-तिहाई भाग पृथ्वी के वायुमंडल के उस हिस्से में है, जहाँ ऑक्सीजन का स्तर कम है। ऊपरी ढलानों पर ऑक्सीजन की कमी, तेज़ हवाओं तथा अत्यधिक ठंड के कारण किसी प्रकार का वानस्पतिक या प्राणी जीवन सम्भव नहीं है। ग्रीष्मकालीन मानसून (मई से सितम्बर) के दौरान हिमपात होता है। पर्वत के किनारे मुख्य कटक द्वारा एक-दूसरे से अलग हैं। पर्वत की ढलानों पर आधार तक बर्फ़ की चादर बिछी रहती है। शिखर चट्टानों की तरह कठोर बर्फ़ से बना है और उसके ऊपर बर्फ़ की जो परतें जमी हैं, उनकी ऊँचाई वर्ष भर में 1.5 से 2 मीटर तक बढ़ती-घटती रहती है। शिखर की ऊँचाई सितम्बर में सबसे ज़्यादा तथा मई में पश्चिमोत्तर से बहकर आने वाली जाड़े की तेज़ हवा के कारण घटकर सबसे कम रह जाती हैं।

शिखर पर विजय



एवरेस्ट शिखर पर विजय के प्रयास 1920 में तिब्बत की तरफ़ के रास्ते के खुलने के बाद शुरू हुए। पूर्वोत्तर कग़ार की तरफ़ से शिखर पर पहुँचने के लगातार सात प्रयास (1921-38) और दक्षिण-पूर्वी कग़ार की तरफ़ से तीन प्रयास (1951-52) ठंडी-शुष्क तेज़ हवाओं, बीहड़ क्षेत्र तथा अत्यधिक ऊँचाई के कारण विफल रहे।
अन्तत: 1953 में रॉयल जिओग्रैफ़िकल सोसाइटी तथा अल्पाइन क्लब की जौएण्ट हिमालयन कमिटी के प्रयासों से एवरेस्ट पर विजय प्राप्त कर ली गई। इस जीत में पर्वतारोहियों ने खुली तथा बन्द सर्किट ऑक्सीजन प्रणाली, बाहरी वातावरण से अप्रभावित रहने वाले विशेष प्रकार के जूते व पोशाक और छोटे रेडियो उपकरणों का प्रयोग किया था। पर्वतारोहियों के द्वारा इस अभियान मार्ग में आठ शिविर स्थापित किये गए तथा यह मार्ग खुंबू हिमप्रपात व हिमनद, वेस्ट सी. डब्ल्यू. एम. और ल्होत्से से होते हुए 8,000 मीटर की ऊँचाई पर चट्टानी शिखर साउथ कोल तक पहुँचता था। यहाँ से 29 मई 1953 को दो पर्वतारोहियों न्यूज़ीलैण्ड के एडमंड हिलेरी तथा नेपाल के शेरपा तेनज़िंग नोर्गे दक्षिण-पूर्वी कग़ार से बढ़ते हुए दक्षिणी शिखर और फिर चोटी तक पहुँचे। इसके बाद से अब तक लगभग पौने चार हज़ार पर्वतारोहियों ने यह प्रयास किया है, जिनमें 2,436 सफल रहे, 210 की रास्ते में ही मौत हो गई और शेष पर्वतारोहण अधूरा छोड़ कर लौट आए।

और अब तो यह हाल है कि दो दिन पूर्व यह ख़बर आई है कि एवरेस्ट पर 'जाम' की स्थिति उत्पन्न हो गई है, लगभग ४०० पर्वतारोहियों की मौजूदगी के कारण ही यह स्थिति हुई है |ऐसे में ये विचार किया जा रहा है कि क्या कुछ समय के लिए पर्वतारोहियों की एवरेस्ट चढ़ाई परअस्थाई रोक लगा दी जाए|

सादर आपका 
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जय हिन्द !!!

8 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी जानकारी एवरेस्ट पर.
    ब्लॉग भी पढ़ लिए लिंक के बहाने.
    साधुवाद!

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  2. ज्ञानवर्धक. भूमिका के साथ सराहनीय रचनाओं का संकलन है अंक में मेरी रचना सम्मिलित करने के लिए सादर शुक्रिया आपका शिवम् जी।

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  3. सुप्रभात ! पठनीय पोस्ट्स के लिंक्स देता सुंदर बुलेटिन..आभार !

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  4. ब्लॉग बुलेटिन में मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए धन्यवाद |

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  5. बहुत सुंदर बुलेटिन प्रस्तुति मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद शिवम् जी

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  6. ज्ञानवर्धक बुलेटिन...मेरी रचना सम्मिलित करने हेतु धन्यवाद आपका

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