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शुक्रवार, 30 नवंबर 2018

सूचना - ब्लॉग बुलेटिन पर अवलोकन 2018

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

11 महीने बीत गए 2018 के , 12 वां महीना मुस्कुराएगा कल से, और शुरू होगा बुलेटिन का वार्षिक अवलोकन ।
जी हाँ, जैसा कि आपको ज्ञात है, रश्मि प्रभा जी वर्ष 2011 से हर वर्ष के आखिरी महीने में चुने गए ब्लॉगों से एक चुनिंदा पोस्ट हमारे बीच पुनः लाती हैं... गत वर्षों के भांति इस वर्ष भी ब्लॉग बुलेटिन पर वर्ष 2018 की चुनिन्दा ब्लॉग पोस्टों का अवलोकन होगा, जिस का आरंभ शनिवार, दिनांक १ दिसम्बर २०१८ से होगा |

तो कल से हम यह विशेष यात्रा करेंगे ... आप होंगे न हमारे साथ इस सफ़र में !?

सादर आपका
शिवम् मिश्रा 

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अन्नदाता

समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण की दुर्दशा

दिल से इक आवाज़ आई

चल पड़ी है गाड़ी आजकल उनके प्यार की

जन्मदिन

दुनिया न माने

आवाज शमा की

कोई ज़िन्दा शख़्स नहीं मिलता ..

ठहरा मन विश्वास

माँ

बहादुर लड़की

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अब आज्ञा दीजिए ... 

जय हिन्द !!!

गुरुवार, 29 नवंबर 2018

ज़ज्बे और समर्पण का नाम मैरी कॉम : ब्लॉग बुलेटिन


नमस्कार साथियो,
मैंगते चंग्नेइजैंग मैरी कॉम (एम०सी०मैरी कॉम) यह नाम आज किसी परिचय का मोहताज़ नहीं है. एक ऐसी महिला, जिसका जन्म 1 मार्च 1983 को हुआ और समूचा विश्व आज उन्हें मैरी कॉम के नाम से जानता है, एक भारतीय महिला मुक्केबाज हैं. उन्होंने 24 नवंबर 2018 को नई दिल्ली में आयोजित 10 वीं एआईबीए महिला विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में 6 विश्व चैंपियनशिप जीतने वाली पहली महिला बनकर इतिहास रचा. इसके साथ सुखद तथ्य यह भी है कि वे जुड़वाँ बच्चों की माँ भी हैं.


वे अब तक दस राष्ट्रीय खिताब जीत चुकी हैं. उन्होंने पहली बार नेशनल वुमन्स बॉक्सिंग चैंपियनशिप वर्ष 2001 में जीती. इसके साथ-साथ 2012 के लंदन ओलम्पिक में उन्होंने काँस्य पदक जीता. एशियाई खेल 2010 में काँस्य तथा 2014 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक हासिल किया. बॉक्सिंग में देश का नाम रोशन करने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2003 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से तथा वर्ष 2006 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया. वर्ष 2009 में उन्हें भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया. मध्यप्रदेश के ग्वालियर में वर्ष 2018 में उनको वीरांगना सम्मान से विभूषित किया गया.
मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में एक गरीब किसान के परिवार जन्मी मैरी कॉम की प्राथमिक शिक्षा लोकटक क्रिश्चियन मॉडल स्कूल और सेंट हेवियर स्कूल से पूरी हुई. बाद में उन्होंने स्कूल छोड़ दिया और राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय से परीक्षा दी. उनके मन में बॉक्सिंग के प्रति आकर्षण सन सन 1999 में उस समय उत्पन्न हुआ जब उन्होंने खुमान लम्पक स्पो‌र्ट्स कॉम्प्लेक्स में कुछ लड़कियों को बॉक्सिंग रिंग में लड़कों के साथ बॉक्सिंग करते देखा. उनके जीवन पर एक फिल्म भी बनी जिसका प्रदर्शन सन 2014 में हुआ. इस फिल्म में उनकी भूमिका प्रियंका चोपड़ा ने निभाई.

बुलेटिन परिवार की तरफ से मैरी कॉम को उनकी उपलब्धि पर शुभकामनाओं सहित सुखद, स्वस्थ जीवन की मंगलकामना.

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बुधवार, 28 नवंबर 2018

भालजी पेंढारकर और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिंदी ब्लॉगर्स को नमस्कार।
भालजी पेंढारकर
भालजी पेंढारकर (अंग्रेज़ी: Bhalji Pendharkar, जन्म: 1898 – मृत्यु: 28 नवम्बर, 1994) प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता-निर्देशक और पटकथा लेखक थे। इन्हें सन् 1991 में सिनेमा के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इनका पूरा नाम 'भालचंद्र गोपाल पेंढारकर' था।

भालचंद्र गोपाल पेंढारकर ने मराठी फ़िल्मों को जिस तरह संवारा वह अद्भुत है। भारत का पहला देसी कैमरा बनाने वाले बाबूराव ने 1925 में बनाई गई भारत की पहली प्रयोगवादी फ़िल्म ‘सावकारी पाश’ को 1936 में आवाज दी। ‘सिंहगढ़’ की शूटिंग के लिए उन्होंने पहली बार रिफलेक्टर का इस्तेमाल किया। पेंढारकर पुणे के सिनेमाघर में गेटकीपर थे। 1927 में ‘वंदे मातरम आश्रम’ बनाने की वजह से गिरफ्तार हुए पेंढारकर ने 88 साल की उम्र में अपनी आखिरी फ़िल्म ‘शाबाश सुनवाई’ बनाई।


आज भालजी पेंढारकर जी की 24वीं पुण्यतिथि पर हिंदी ब्लॉग जगत और हमारी ब्लॉग बुलेटिन टीम उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~
















आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।। 

मंगलवार, 27 नवंबर 2018

हिन्दी में हालावाद के प्रणेता को श्रद्धांजलि अर्पित करती ब्लॉग बुलेटिन


बैर कराते मंदिर-मस्जिद मेल कराती मधुशाला, जैसा अंदाज मधुशाला के माध्यम से देने वाले हरिवंश राय बच्चन का आज, 27 नवम्बर 1907 को इलाहाबाद में जन्म हुआ था. इनको बचपन में बच्चन अर्थात बच्चा या संतान कहकर पुकारा जाता था, बाद में वे इसी बच्चन नाम से प्रसिद्द हुए. सन 1926 में वे जब 19 वर्ष के थे तब उनका 14 वर्षीय श्यामा से हुआ. दुर्भाग्य से सन 1936 में श्यामा का निधन टी०बी० के कारण हो गया. इसके पाँच साल बाद बच्चन का विवाह पंजाब की तेजी सूरी से हुआ जो स्वयं में रंगमंच तथा गायन से जुड़ी हुई थीं. अमिताभ और अजिताभ इन्हीं के पुत्र हैं. 


हरिवंश राय बच्चन ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में एम०ए० और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पी-एच०डी० की उपाधि प्राप्त की. अंग्रेज़ी कवि यीट्स पर लिखा उनका शोध प्रबन्ध काफ़ी प्रशंसित हुआ.  वे अनेक वर्षों तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी विभाग में प्राध्यापक रहे. बाद में सन 1955 में वह विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ होकर दिल्ली चले गये. उनका पहला काव्य संग्रह सन 1935 में प्रकाशित मधुशाला को भले माना जाता हो किन्तु इससे पहले उनका तेरा हार प्रकाशित हो चुका था. मधुशाला के प्रकाशन से बच्चन नाम साहित्य जगत पर छा गया. मधुशाला के बाद मधुबाला और मधुकलश के लगभग एकसाथ शीघ्र ही सामने आने पर इसे हिन्दी का हालावाद कहा गया. उनकी कृति दो चट्टानें को सन 1968 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार तथा एफ्रो एशियाई सम्मेलन के कमल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. बिड़ला फाउन्डेशन ने उनकी आत्मकथा के लिये उन्हें सरस्वती सम्मान प्रदान किया था. उनको भारत सरकार द्वारा सन 1976 में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. उनका निधन 18 जनवरी 2003 को हुआ.

आज उनके जन्मदिन पर बुलेटिन परिवार की ओर से सादर श्रद्धांजलि अर्पित है.

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सोमवार, 26 नवंबर 2018

विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिंदी ब्लॉगर्स को नमस्कार। 
विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस (अंग्रेज़ी: World Environment Protection Day) प्रतिवर्ष '26 नवम्बर' को मनाया जाता है। यह दिवस पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने एवं लोगों को जागरूक करने के सन्दर्भ में सकारात्मक कदम उठाने के लिए मनाते हैं। यह दिवस 'संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम' (यूएनईपी) के द्वारा आयोजित किया जाता है। पिछले करीब तीन दशकों से ऐसा महसूस किया जा रहा है कि वैश्विक स्तर पर वर्तमान में सबसे बड़ी समस्या पर्यावरण से जुड़ी हुई है। इस सन्दर्भ में ध्यान देने वाली बात है कि करीब दस वैश्विक पर्यावरण संधियाँ और करीब सौ के आस-पास क्षेत्रीय और द्विपक्षीय वार्ताएं एवं समझौते संपन्न किये गाये हैं। ये सभी सम्मलेन रिओ डी जेनेरियो में किये गए। पृथ्वी सम्मलेन जो कि 1992 के संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण और विकास कार्यक्रम के आलोक में किये गए हैं। रिओ डी जेनेरियो में किया गया सम्मलेन अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण से जुड़े सम्मेलनों एवं नीतियों के सन्दर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण विन्दु था।



~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~














आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।। 

रविवार, 25 नवंबर 2018

हम घर से बहुत दूर निकल आये !















जब घर से पहचान हुई 
संबोधनों की समझ हुई
तो कभी लगा स्वर्ग है
तो कभी पिंजड़े सा एहसास हुआ ।
सीख एक हद तक अच्छी लगती है,
वह भी सबके बीच नहीं,
ऐसे में मन उदण्ड हुआ
विरोध के स्वर पनपे,
लेकिन जब भी,
जहाँ भी,
जैसे भी - औंधे मुँह गिरे,
घर की याद आई,
सबके बीच दी गई सीख का अर्थ समझ में आया,
जबरदस्त डांट में कितनी सुरक्षा थी,
इसका भान हुआ ।
घर क्या होता है,
रिश्ते क्या होते हैं,
ये जब तक जाना और माना,
हम घर से बहुत दूर निकल आये !

प्रेम ने मुझे
शालीनता सिखाई
खुद से बेहतर बात करना
प्रेम के कारण सीख पाया मैं
प्रेम ने मुझे आदर करना सिखाया
और बिना बात अड़ने की खराब आदत
प्रेम के कारण ही छोड़ पाया मै
प्रेम के कारण मै सीख पाया
हंसी और आंसू में बुनियादी भेद
वरना मुद्दत तक
हंसते हुए लोग मुझे लगते थे रोते हुए
और हंसी आती थी किसी के रोने पर
प्रेम मुझे बदलने नही आया था
प्रेम मुझे ये बताने आया था कि
मनुष्य अपने चयन से अकेला हो सकता है
या फिर कमजोरियों के कारण
वरना
ईश्वर ने नही बनाया मनुष्य को
मात्र खुद के लिए
उस पर हक होता है
किसी और का भी
कितनी अवधि के लिए?
ये बात नही बताई
किसी प्रेमी युगल ने मुझे
अनुभव के साक्षात्कार के बाद भी
शायद
यही बात बताने प्रेम आया था जीवन में
और बताकर चला गया
अपनी कूट भाषा में।

्एक गँवई सा सपना है ........
गली के भाई बहिन मिलकर
लाल पीली झंडियाँ बनायें .....
गली की नालियों को
कनातों से ढंक कर महफ़िल बने 
कोई कुर्सी वुरसी न हो
दरी पै बैठ जायें सब
पत्तलों में पंचमेल मिठाई परोसी जाय
सकोरों में साग रायता ......
काशीफल यानी कौले का साग पत्तलों पे हो
कुल्हड़ में पानी
बस हो जाये ज्यौनार चाचियाँ भाभियों के हाथों सजकर बन्नो
जयमाला डाले लजाती हुई
सादा कपडों में व्यस्त से माता पिता
कर दें कन्यादान
या ले आयें बहू विदा कराके ....!
मेकअप की चिन्ता किये बिना
रोये बेटी लिपट लिपट कर माँ से
बिना फ़िल्मी हुए .....
हो जाये ये थीम शादी .....!
काश ! ये कड़की लौटा दे
मेरा सपना .......
ख़ास महानगर कहलाने वाले
इन कंकरीट के जंगलों में ......!

बहुत अच्छी तरह जानता हूँ
कि कोई रस्ता, घर की ओर नहीं जाता !
एक छलावा है फ़क़त...
जो हम ख़ुद से ख़ुद को दिया करते हैं।
जगहें शांत नहीं होतीं
बेचैनियाँ दफ़्न होना चाहती हैं बस !!
हर बेचैनी,
विश्राम करने का बहाना ढूँढती है...
और हम ;
उसे घर का नाम दे दिया करते हैं।
कम्बल ओढ़ कर
अपना चेहरा छिपाता लाचार बाप
एक बेबस से भी ज़्यादा बेबस माँ
और अतीत से अनजान जवान बेटा !
लेकिन घर....
घर कहाँ ?
यक़ीन मानो मेरा
कभी भी
कोई रस्ता ;
घर की ओर नहीं जाता !
 



शनिवार, 24 नवंबर 2018

सब से तेज़ - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

एक बार कक्षा छठी में चार बालकों को परीक्षा मे समान अंक मिले, अब प्रश्न खडा हुआ कि किसे प्रथम रैंक दिया जाये। स्कूल प्रबन्धन ने तय किया कि प्राचार्य चारों से एक सवाल पूछेंगे, जो बच्चा उसका सबसे सटीक जवाब देगा उसे प्रथम घोषित किया जायेगा।

चित्र गूगल से साभार
चारों बच्चे हाजिर हुए, प्राचार्य ने सवाल पूछा, "दुनिया में सबसे तेज क्या होता है?"

पहले बच्चे ने कहा, "मुझे लगता है 'विचार' सबसे तेज होता है, क्योंकि दिमाग में कोई भी विचार तेजी से आता है, इससे तेज कोई नहीं।"

प्राचार्य ने कहा, "ठीक है, बिलकुल सही जवाब है।"

दूसरे बच्चे ने कहा, "मुझे लगता है 'पलक झपकना' सबसे तेज होता है, हमें पता भी नहीं चलता और पलकें झपक जाती हैं और अक्सर कहा जाता है, 'पलक झपकते' कार्य हो गया।

प्राचार्य बोले, "बहुत खूब, बच्चे दिमाग लगा रहे हैं।"

तीसरे बच्चे ने कहा, "मैं समझता हूँ 'बिजली', क्योंकि मेरे यहाँ गैरेज, जो कि सौ फ़ुट दूर है, में जब बत्ती जलानी होती है, हम घर में एक बटन दबाते हैं, और तत्काल वहाँ रोशनी हो जाती है,तो मुझे लगता है 'बिजली' सबसे तेज होती है।"

अब बारी आई चौथे बच्चे की। सभी लोग ध्यान से सुन रहे थे, क्योंकि लगभग सभी तेज बातों का उल्लेख तीनो बच्चे पहले ही कर चुके थे।

चौथे बच्चे ने कहा, "सबसे तेज होते हैं 'दस्त'।

सभी चौंके, प्राचार्य ने कहा, "साबित करो कैसे?"

बच्चा बोला, "कल मुझे दस्त हो गए थे, रात के दो बजे की बात है, जब तक कि मैं कुछ 'विचार' कर पाता, या 'पलक झपकाता' या 'बिजली' का स्विच दबाता, दस्त अपना 'काम' कर चुका था।

कहने की जरूरत नहीं कि इस असाधारण सोच वाले बालक को ही प्रथम घोषित किया गया।

सादर आपका
शिवम् मिश्रा

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बेपर्दा रूहें

डर - एक माइक्रो फिक्शन

सूखा पेड़

३३४. पिंजरा

25 वर्ष: संग मद्धम-मद्धम

गुमगश्ता रुमानियत

बाजार

२१ वीं सदी में भी पाषाण युग की तरह आदिमानव बनकर रहना कितना उचित है ! एक सवाल, एक विचार --

नौजवान मेरे देश का......

"रूमानी हो जाएँ "

जिन्दगी...

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अब आज्ञा दीजिये ... 

जय हिन्द !!!

शुक्रवार, 23 नवंबर 2018

गुरुवार, 22 नवंबर 2018

एहसासों के दीप जलाना, अच्छा है पर कभी-कभी - ब्लॉग बुलेटिन


नमस्कार दोस्तो,
एक स्व-रचित रचना के साथ आज की बुलेटिन. आशा है कि दोनों पसंद आयेंगे आपको.
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एहसासों के दीप जलाना, अच्छा है पर कभी-कभी
बीते लम्हे याद दिलाना, अच्छा है पर कभी-कभी.

शब्द तुम्हारे जादू जैसे, सम्मोहित कर जाते हैं,
दिल को बातों से बहलाना, अच्छा है पर कभी-कभी.

चाँद सितारे, फ़ूल और कलियाँ, तुमको घेरे रहते हैं,
हमें छोड़ सबसे मिल आना, अच्छा है पर कभी-कभी.

जो पल गुज़रे संग में तेरे, यादें बन कर महक रहे,
यादों में आँखें भर आना, अच्छा है पर कभी-कभी.


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बुधवार, 21 नवंबर 2018

विश्व दूरदर्शन दिवस और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिंदी ब्लॉगर्स को नमस्कार।
विश्व दूरदर्शन दिवस

विश्व दूरदर्शन दिवस (अंग्रेज़ी: World Television Day) प्रत्येक वर्ष '21 नवम्बर' को मनाया जाता है। दूरदर्शन (टेलीविज़न) के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1996 में इस दिवस को मनाये जाने पुष्टि की गई थी। यह विभिन्न प्रमुख आर्थिक और सामाजिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हुए पूरे विश्व के ज्ञान में वृद्धि करने में मदद करता है। वर्तमान में यह मीडिया की सबसे प्रमुख ताकत के रूप में उभरा है। यूनेस्को ने टेलीविज़न को संचार और सूचना के एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में पहचाना है। साथ ही यह भी माना है कि इस माध्यम ने व्यापक स्तर पर लोगों के बीच ज्ञान के प्रवाहमान को बरकरार रखा है।


~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~ 

सुषमा ना तो मोदी है ना ही योगी


भारत नें मोबाईल गेम की संभावनाएं

अब अपने एंड्रायड मोबाइल फ़ोन को बनाएँ हैंड हैल्ड हिंदी ओसीआर!

बेलूर का चन्न केशव मंदिर : होयसल राजाओं की अनुपम कृति

ग्रीक राजदूत का खम्बा

मेहनत का कोई विकल्प नहीं -सतीश सक्सेना

सफेद संगमरमर में ढला ताज :)

तेरे नेह में....श्वेता सिन्हा

मैं खड़ी हूँ आज भी उस मोड़ पर

बधाई हो गुफा के दरवाजे खोल लेने के लिये अलीबाबा को सिम सिम वाली सिम सम्भाल कर रखें जल्दी ही फिर से काम आयेगी


आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।

मंगलवार, 20 नवंबर 2018

जीवन का लक्ष्य साधो




बड़े शहर, 
ऊँचे घरों के भीतर
अब नहीं कुनमुनाती सुबह की किरणें,
मोटे पर्दों से उन्हें भीतर आने की इजाज़त नहीं ।
सुबह की किरणें आज भी 
छोटे घरों की खुली खिड़कियों से छनकर,
घर के कोने कोने में,
लक्ष्मी की तरह अपने पदचिन्ह बनाती है,
और बच्चों के सर पर 
गुनगुनी हथेलियाँ रख कहती है,
फिर होगी रात,
फिर सोना और देखना सपने,
अभी तो उठो
और जीवन का लक्ष्य साधो ।

 
तुम्हारे साथ चलते हुए
चुनूँगी मैं वो सीधे रास्ते
जिसपर बेशक़ हों हजार-हजार गड्ढे
चाहे हो ऊंची-नीची , ऊबड़-खाबड़
और पथरीली सड़क ..
मैं चल लूँगी , तुम्हारा हाथ थामकर
बिना डरे , बिना रुके
उन सभी दुर्गम रास्तों पर जो सीधे हों
कि !
मैं डरती हूँ उन मोड़ों से
जहाँ से अक्सर मुड़ जाया करती हैं
दो ज़िंदगियाँ ....अलग-अलग रास्तों पर !!!

ए - जज्बाएं - दिल गर मैं चाहूं
हर चीज मुकाबिल आ जाए
दो ग़ाम चलूं मंजिल की तरफ
और सामने मंजिल आ जाए
इस जज्बा -ए - दिल के बारे में
एक मशविरा तुमको देती हूं
ए शमां भड़ककर गुल होना
जब रंग पे महफ़िल आ जाए
नहीं जानते शमां को भड़ककर गुल होने में क्या मजा आया होगा, यह तो वही जाने ----- हम तो बस इतना जानते हैं कि जिन राहों पर शमां हमें छोड़ गई थी, हम अब भी उन्हीं रास्तों पर खड़े हैं ----- लगता है वो शमां अचानक से आकर फिर मेरी राहों को रोशन करेगी और हौले से आकर कहेगी -------"पगली ---!! मैं कहीं गई थोड़े ही थी--- मैं तो यहीं थी , तुम्हारे पास" -

सोमवार, 19 नवंबर 2018

महान स्वतंत्रता सेनानी महारानी लक्ष्मी बाई और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिंदी ब्लॉगर्स को नमस्कार।
रानी लक्ष्मीबाई
रानी लक्ष्मीबाई (अंग्रेज़ी: Rani Lakshmibai, जन्म- 19 नवंबर, 1828, वाराणसी; मृत्यु- 17 जून, 1858) मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी और 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना थीं। बलिदानों की धरती भारत में ऐसे-ऐसे वीरों ने जन्म लिया है, जिन्होंने अपने रक्त से देश प्रेम की अमिट गाथाएं लिखीं। यहाँ की ललनाएं भी इस कार्य में कभी किसी से पीछे नहीं रहीं, उन्हीं में से एक का नाम है- झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई। उन्होंने न केवल भारत की बल्कि विश्व की महिलाओं को गौरवान्वित किया। उनका जीवन स्वयं में वीरोचित गुणों से भरपूर, अमर देशभक्ति और बलिदान की एक अनुपम गाथा है।

रानी लक्ष्मीबाई मराठा शासित झांसी की रानी और भारत की स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम वनिता थीं। भारत को दासता से मुक्त करने के लिए सन् 1857 में बहुत बड़ा प्रयास हुआ। यह प्रयास इतिहास में भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम या सिपाही स्वतंत्रता संग्राम कहलाता है।

अंग्रेज़ों के विरुद्ध रणयज्ञ में अपने प्राणों की आहुति देने वाले योद्धाओं में वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई का नाम सर्वोपरी माना जाता है। 1857 में उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम का सूत्रपात किया था। अपने शौर्य से उन्होंने अंग्रेज़ों के दाँत खट्टे कर दिए थे।

अंग्रेज़ों की शक्ति का सामना करने के लिए उन्होंने नये सिरे से सेना का संगठन किया और सुदृढ़ मोर्चाबंदी करके अपने सैन्य कौशल का परिचय दिया था।


महान स्वतंत्रता सेनानी महारानी लक्ष्मी बाई जी की 190वीं जयंती पर हम बस उनका स्मरण करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। सादर।।

~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~ 














आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।। 

रविवार, 18 नवंबर 2018

दोस्तों का प्यार - ब्लॉग बुलेटिन


नमस्कार दोस्तो,
आज एक कविता, स्व-रचित दोस्तों के नाम समर्पित....
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मुझ पर दोस्तों का प्यार,
यूँ ही उधार रहने दो।
बड़ा हसीन है ये कर्ज़,
मुझे कर्ज़दार रहने दो।

वो आँखें छलकती थीं,
ग़म में ख़ुशी में मेरे लिए।
उन आँखों में सदा,
प्यार बेशुमार रहने दो।

मौसम लाख बदलते रहें,
आएँ भले बसंत-पतझड़।
मेरे यार को जीवन भर,
यूँ ही सदाबहार रहने दो।

महज़ दोस्ती नहीं ये,
बगिया है विश्वास की।
प्यार, स्नेह के फूलों से,
इसे गुलज़ार रहने दो।

वो मस्ती, वो शरारतें,
न तुम भूलो, न हम भूलें।
उम्र बढ़ती है ख़ूब बढ़े,
जवाँ ये किरदार रहने दो।


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शनिवार, 17 नवंबर 2018

पंजाब केसरी को समर्पित १७ नवम्बर - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

लाला लाजपत राय ( जन्म: 28 जनवरी 1865 - मृत्यु: 17 नवम्बर 1928)
लाला लाजपत राय (अंग्रेजी: Lala Lajpat Rai, पंजाबी: ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ, जन्म: 28 जनवरी 1865 - मृत्यु: 17 नवम्बर 1928) भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। इन्हें पंजाब केसरी भी कहा जाता है। इन्होंने पंजाब नैशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कम्पनी की स्थापना भी की थी। ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गरम दल के तीन प्रमुख नेताओं लाल-बाल-पाल में से एक थे। सन् 1928 में इन्होंने साइमन कमीशन के विरुद्ध एक प्रदर्शन में हिस्सा लिया, जिसके दौरान हुए लाठी-चार्ज में ये बुरी तरह से घायल हो गये और अन्तत: १७ नवम्बर सन् १९२८ को इनकी महान आत्मा ने पार्थिव देह त्याग दी।
 
लालाजी की मौत का बदला
लाला जी की मृत्यु से सारा देश उत्तेजित हो उठा और चंद्रशेखर आज़ाद, भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों ने लालाजी की मौत का बदला लेने का निर्णय किया । इन जाँबाज देशभक्तों ने लालाजी की मौत के ठीक एक महीने बाद अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली और 17 दिसंबर 1928 को ब्रिटिश पुलिस के अफ़सर सांडर्स को गोली से उड़ा दिया। लालाजी की मौत के बदले सांडर्स की हत्या के मामले में ही राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह को फाँसी की सज़ा सुनाई गई।
 
 
ब्लॉग बुलेटिन टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से शेर ए पंजाब स्व॰ लाला लाजपत राय जी को ९० वीं  पुण्यतिथि पर सादर नमन | 

सादर आपका

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593. लौट जाऊँगी...

अनायास ही गुम हो जाते हैंं...श्वेता सिन्हा

दो प्रस्तावना

फूलों की घाटी #3- गोविन्द घाट से घांघरिया

बूढ़ा हुआ अशोक

ज़िन्दगी में गुजरे..!!

चातुष्वर्णय दायरे के क्षैतिज विभाजन

महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी का निधन

मन अतिथि

यौवन गुलाबी फूलों का सेहरा तो बुढ़ापा कांटों का ताज होता है

मत पूछ इस जिंदगी में इन आँखों ने क्या मंजर देखा...

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अब आज्ञा दीजिए ... 

जय हिन्द !!!