प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम |
प्रणाम |
वो हम भारतीयों का बस नहीं चलता वरना टूथपेस्ट की तरह;
गैस सिलेंडर को तोड़ मरोड़ के बची कूची गैस भी निकाल लें।
गैस सिलेंडर को तोड़ मरोड़ के बची कूची गैस भी निकाल लें।
सादर आपका
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नामकरण
चाँद और बारिश
जिंदगी - मुक्तक
नवम्बर ड्राफ़्ट्स
आन
समाजवाद और धर्म - व्लादिमीर इल्चीच लेनिन
और जो बदल गया
पुरुष/स्त्री
ब्लैक फ्राइडे, अजीब से नाम वाला एक खरीददारी दिवस
सावधान पार्थ! सर संधान करो
कभी धनक सी उतरती थी उन निगाहों में
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अब आज्ञा दीजिए ...
जय हिन्द !!!
किसने कहा कि टूथपेस्ट की तरह गैस का आख़री ग्राम तक नहीं निकला जा सकता?
जवाब देंहटाएंहमारे एक मित्र थे. गैस का सिलेंडर जब गैस के चूल्हे में काम करना बंद कर देता था तो वो उसको चूल्हे से अलग कर के गरम पानी के एक बड़े भगौने में आधे घंटे के लिए रख देते थे और यकीन मानिए, उनका यही सिलेंडर कम से कम दो-चार घंटे और अपनी सेवाएँ दे देता था.
बहुत अच्छी रचनाएँ है सारी । उम्दा बुलेटिन।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन बुलेटिन
जवाब देंहटाएंसादर..
उम्दा बुलेटिन |मेरी रचना की लिंक शामिल करने के लिए धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआप सब का बहुत बहुत आभार |
जवाब देंहटाएंअनवरत को स्थान देने के लिए आभार!
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