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बुधवार, 31 अक्टूबर 2018

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी - लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिन्दी ब्लॉगर्स को नमस्कार।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' को देश को समर्पित कर दिया है. लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की इस प्रतिमा का अनावरण उनकी 143वीं जयंती पर किया गया. यह प्रतिमा 182 मीटर ऊंची है जो कि अमेरिका की 'स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी' से दोगुना ऊंची है.

सरदार पटेल की इस प्रतिमा का निर्माण नोएडा के शिल्पकार पद्मभूषण राम वी सुतार ने किया है. सुतार ने अपने 40 साल के करियर में 50 से अधिक प्रतिमाओं को आकार दिया है. बताया जाता है कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रतिमा में पटेल का चेहरा वैसा ही दिखे जैसे वे असल में दिखते थे सुतार ने उनकी 2000 से अधिक तस्वीरों का अध्ययन किया. सुतार ने उन इतिहासकारों से भी संपर्क किया जिन्होंने पटेल को देखा था. प्रतिमा के अनावरण से पहले पीएम मोदी ने ट्वीट किया, “देश को एकता के सूत्र में पिरोने वाले लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल को उनकी जयंती पर कोटि-कोटि नमन."

(समाचार - हिंदी.न्यूज़18)

आज लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल जी के 143वें जन्म दिवस पर समस्त देश वासी उनके अमूल्य योगदान का स्मरण करते हुए उन्हें शत शत नमन करते हैं। 













आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। जय हिन्द जय भारत।।

मंगलवार, 30 अक्टूबर 2018

राही सरनोबत को जन्मदिन की शुभकामनायें


नमस्कार साथियो,
आज, 30 अक्टूबर का दिन कई प्रसिद्द व्यक्तियों से जुड़ा हुआ है.आज के दिन बंगाल के लोकप्रिय उपन्यासकार सुकुमार राय, महान वैज्ञानिक होमी जहाँगीर भाभा, राजनीतिज्ञ प्रमोद महाजन, इतिहासकार बरुन डे, मध्य प्रदेश के भूतपूर्व राज्यपाल भाई महावीर का जन्म हुआ. इसके साथ-साथ महान चिंतक तथा समाज सुधारक स्वामी दयानंद सरस्वती, साहित्यकार रॉबिन शॉ, अभिनेता विनोद मेहरा, प्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक वी० शांताराम, ग़ज़ल और ठुमरी गायिका बेगम अख़्तर की पुण्यतिथि भी आज ही है. इन सब ख्यातिलब्ध लोगों के बीच एक नाम ऐसा भी है जो अभी हम सबके बीच बहुत चर्चित नहीं हो सका है. ऐसे व्यक्तित्व का नाम है राही सरनोबत. ये देश की महिला पिस्टल निशानेबाज़ हैं. इनका जन्म 30 अक्टूबर 1990 को कोल्हापुर, महाराष्ट्र में हुआ था. 


राही सरनोबत ने सन 2010 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के लिए रजत पदक जीता था. अमेरिका में सन 2011 विश्व कप में कांस्य पदक जीता. लंदन ओलम्पिक 2012 में राही सरनोबत भारत की सबसे कम उम्र की निशानेबाज़ थी. सफलता की सीढियां चढ़ते हुए राही ने सन 2013 को दक्षिण कोरिया के चांगवान में आयोजित अंतरराष्ट्रीय निशानेबाजी खेल परिसंघ विश्व कप प्रतियोगिता की 25 मीटर पिस्टल स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता. इसी के साथ उन्होंने नया विश्व रिकॉर्ड भी बनाया. वह इस विश्व कप में स्वर्ण पदक हासिल करने वाली भारत की पहली महिला निशानेबाज़ बनी. इस पदक के साथ राही राइफल शूटरों के उस एलीट क्लब में शामिल हो गई हैं जिन्होंने भारत के लिए आईएसएसएफ विश्व कप में स्वर्ण पदक जीते हैं. इस क्लब में अंजलि भागवत, गगन नारंग, संजीव राजपूत, राज्यवर्धन सिंह राठौड़, रंजन सोढ़ी और मानवजीत सिंह संधू शामिल हैं. उन्होंने 18वें एशियाई खेलों में 25 मीटर पिस्टल स्पर्धा में भारत को स्वर्ण पदक दिलाया. इसी के साथ वे एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारत की पहली महिला निशानेबाज बन गई हैं. उनका एशियाई खेलों में यह दूसरा पदक है. वर्तमान में राही पुणे में डिप्टी कलेक्टर के रूप में कार्यरत हैं.

आज उनके जन्मदिवस पर बुलेटिन परिवार की तरफ से शुभकामनायें.

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सोमवार, 29 अक्टूबर 2018

मार्कीट में नया - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

एक बार एक बच्चे के जन्म पे उसके सारे रिश्तेदार अस्पताल में थे। तभी नर्स बाहर आई और बोली, "माँ बच्चा दोनों ठीक है।" फिर नर्स ने बच्चा उसके पिता को दिया।

बच्चे के पिता ने अपनी बहन को दिया।

बहन ने अपने पति को दिया।

उसने नानी को दिया।

नानी ने नाना को दिया।

नाना ने बच्चे को चाचा को दिया।

चाचा ने चाची को दिया।

चाची ने बच्चे को दादी को दिया और दादी ने दादा को दिया।

तभी बच्चे ने घबराकर पूछा, "दादा जी ये आप लोग क्या कर रहे हो?"

दादा जी बोले, "बेटा ये सब Whatsapp रोग से ग्रस्त हैं, तू मार्कीट में नया है ना, इसलिये तुझे "Forward" कर रहे हैं।


सादर आपका
शिवम् मिश्रा 
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मन मेरा तुमको चाहता है

कहानी

कभी तो समझोगे......!!!

क्यों हमारे गीत गाए ... क्या हुआ ...

चेला ने गुरूजी के सर पर रॉड मार दिया

वार्निंग

हममें हमको बस...'तुम' दे दो

करवा चौथ

व्याकुल मन कि पुकार.........

श्रद्धा का एक दीप जलने दो - डॉ शरद सिंह

काश सारे डॉ रामेश्वर की तरह हो जाएं...खुशदीप

वर्षा का गीत - डॉ. वर्षा सिंह

माजुली का सौन्दर्य

कहीं गंगा किनारे बैठ कर , रसखान सा लिखना -सतीश सक्सेना

468.बिगड़ता अंदाज

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अब आज्ञा दीजिए ... 

जय हिन्द !!!

रविवार, 28 अक्टूबर 2018

रुके रुके से कदम ... रुक के बार बार चले

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

सवाल यह है कि ... 





चीटिंयां गुज़रते वक़्त एक दूसरे के पास रुक कर क्या बात करती हैं!?

सादर आपका 

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बकना जरूरी है ‘उलूक’ के लिये पढ़ ना पढ़ बस क्या लिखा है ये मत पूछ

सुशील कुमार जोशी at उलूक टाइम्स

क्या तुम .........


पटाखे

देवेन्द्र पाण्डेय at बेचैन आत्मा

बच्चों को क्या सिखाएँ जिससे बुढ़ापे में वृद्धाश्रम न जाना पड़े


मुरमुरा फ्रीटर्स

shikha varshney at भुक्खड़ घाट

अनकहे दो द्वार .....

निवेदिता श्रीवास्तव at झरोख़ा

शरद का चंद्रमा


संघर्षरत

Rajiv at Viyogikavi

#MeToo अभियान: जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई!!!


आज और कल

Meena Bhardwaj at मंथन

पथ के आकर्षण

purushottam kumar sinha at कविता "जीवन कलश"

जग दुख का आगार है(कुंडलियाँ)

Jayanti Prasad Sharma at मन के वातायन

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

शनिवार, 27 अक्टूबर 2018

जतीन्द्रनाथ दास और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिन्दी ब्लॉगर्स को नमस्कार। 
जतीन्द्रनाथ दास (अंग्रेज़ी: Jatindranath Das; जन्म- 27 अक्टूबर, 1904, कलकत्ता, ब्रिटिश भारत; मृत्यु- 13 सितम्बर, 1929, लाहौर, पाकिस्तान) भारत के प्रसिद्ध क्रान्तिकारियों में से एक थे, जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए जेल में अपने प्राण त्याग दिए और शहादत पाई। इन्हें 'जतिन दास' के नाम से भी जाना जाता है, जबकि संगी साथी इन्हें प्यार से 'जतिन दा' कहा करते थे। जतीन्द्रनाथ दास 'कांग्रेस सेवादल' में सुभाषचन्द्र बोस के सहायक थे। भगत सिंह से भेंट होने के बाद ये बम बनाने के लिए आगरा आ गये थे। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने जो बम केन्द्रीय असेम्बली में फेंके थे, वे इन्हीं के द्वारा बनाये गए थे। जेल में क्रान्तिकारियों के साथ राजबन्दियों के समान व्यवहार न होने के कारण क्रान्तिकारियों ने 13 जुलाई, 1929 से अनशन आरम्भ कर दिया। जतीन्द्रनाथ भी इसमें सम्मिलित हुए। अनशन के 63वें दिन जेल में ही इनका देहान्त हो गया।



आज महान क्रान्तिकारी जतीन्द्रनाथ दास जी के 114वें जन्म दिवस पर हम सब उनका स्मरण करते हुए उन्हें शत शत नमन करते हैं। 

~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~














आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।। 

शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2018

"सेब या घोडा?"- लाख टके के प्रसन है भैया !!

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

बहुत समय पहले एक नगर में एक राजा था। एक दिन उसने एक सर्वे करने का सोचा, जिससे कि यह पता चल सके कि उसके राज्य के लोगों की घर गृहस्थि पति से चलती है या पत्नी से।

उसने एक ईनाम रखा कि "जिसके घर में पति का हुक्म चलता हो उसे मनपसंद घोडा़ ईनाम में मिलेगा और जिसके घर में पत्नि की सरकार हो वह एक सेब ले जाए।"

एक के बाद एक सभी नगरजन सेब उठाकर जाने लगे। राजा को चिंता होने लगी कि क्या मेरे राज्य में सभी सेब वाले ही हैं?

इतने में एक लम्बी-लम्बी मूछों वाला, मोटा तगडा़ और लाल-लाल आखों वाला जवान आया और बोला, "राजा जी मेरे घर में मेरा ही हुक्म चलता है! लाओ घोडा़ मुझे दीजिये!"
राजा खुश हो गए और कहा, "जा अपना मनपसंद घोडा़ ले जा।"

जवान काला घोडा़ लेकर रवाना हो गया। घर गया और फिर थोडी़ देर में दरबार में वापिस लौट आया।

राजा: क्या हुआ? वापिस क्यों आये हो?

आदमी: महाराज, घरवाली कहती है काला रंग अशुभ होता है, सफेद रंग शांति का प्रतीक होता है तो आप मुझे सफेद रंग का घोडा़ दीजिये!

राजा: घोडा़ रख और सेब लेकर निकल।

इसी तरह रात हो गई दरबार खाली हो गया लोग सेब लेकर चले गए।

आधी रात को महामंत्री ने राजा के कमरे का दरवाजा खटखटाया!

राजा: बोलो महामंत्री कैसे आना हुआ?

महामंत्री: महाराज आपने सेब और घोडा़ ईनाम में रखा, इसकी जगह एक मण अनाज या सोना रखा होता तो लोग कुछ दिन खा सकते थे या जेवर बना सकते थे।

राजा: मुझे तो ईनाम में यही रखना था लेकिन महारानी ने कहा कि सेब और घोडा़ ही ठीक है इसलिए वही रखा।

महामंत्री: महाराज आपके लिए सेब काट दूँ!

राजा को हँसी आ गई और पूछा, "यह सवाल तुम दरबार में या कल सुबह भी पूछ सकते थे। तो आधी रात को क्यों आये?"

महामंत्री: मेरी धर्मपत्नी ने कहा अभी जाओ और पूछ के आओ सच्ची घटना का पता चले।

राजा (बात काटकर): महामंत्री जी, सेब आप खुद ले लोगे या घर भेज दिया जाए।

शिक्षा: समाज चाहे कितना भी पुरुष प्रधान हो लेकिन संसार स्त्रीप्रधान है! 

सादर आपका

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रावण द्वारा अपहरण से पहले ही सीता जी गायब

इंटरनेट और इंट्रानेट क्या है? इनमे क्या अंतर है?

कमलेश श्रीवास्तव की ग़ज़लें

चीज़ स्टिक.

#करवा चौथ

इच्छाएँ

करवाचौथ पर्व पुनीत प्रेम का

हर क्षण बदलता जीवन

हमको तो दीवाली की सफाई मार गई ---

अभयारण्य की देख भाल करने के लिए जरुरी है, जीवट, धैर्य व साहस

अतिथि तुम कब जाओगे?

आज कुछ हड्डी की बात थोड़ा चड्डी की बात कुछ कबड्डी की बात

इंतज़ार

फ़िल्म - 'बधाई हो'

साईकिल पर कोंकण यात्रा भाग ४: मलकापूर- आंबा घाट- लांजा- राजापूर (९४ किमी)

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

गुरुवार, 25 अक्टूबर 2018

विसंगतियों के फ्लॉप शो को उल्टा-पुल्टा करके चले गए जसपाल भट्टी


नमस्कार साथियो,
आपाधापी के उस दौर में जबकि इन्सान हँसना भूल सा गया है, हास्य के नाम पर फूहड़ता दिखाई जा रही है, व्यंग्य के नाम पर व्यक्तिगत आक्षेप लगाये जा रहे हैं ऐसे समय में स्वस्थ, स्वच्छ कार्यक्रमों द्वारा हंसाने का काम जसपाल भट्टी द्वारा किया गया. उन्होंने अपने कॉलेज के दिनों से ही अपने नुक्कड़ नाटक नॉनसेंस क्लब से भ्रष्टाचार और नेताओं का बहुत ही मनोरम अंदाज़ में मज़ाक बनाना शुरू किया था. वे सिर्फ हास्य कलाकार नहीं थे बल्कि जीवन की विसंगतियों पर चुटीली टिप्पणियां करने वाले गंभीर व्यंग्यकार थे. उन्होंने महंगाई, भ्रष्टाचार, नेताओं के पाखंड सहित अनेक मामलों पर कार्यक्रमों का निर्माण किया. उनके लोकप्रिय होने की वजह थी वे मध्यम वर्ग के मुद्दों को बहुत ही दिलचस्प अंदाज़ में उठाते थे. दूरदर्शन पर उनके कार्यक्रम फ़्लॉप शो और उल्टा−पुल्टा तो बेहद चर्चित हुए थे. बाद में उन्होंने और उनकी पत्नी सविता ने टीवी के रियलिटी शो नच बलिये में भी भाग लिया था. यहाँ भी उन्होंने अपने नृत्य एवं हास्य के ज़रिये दर्शकों का स्वस्थ मनोरंजन किया था. 


3 मार्च 1955 को अमृतसर में जन्मे जसपाल भट्टी ने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रिकल इंजीनियर की उपाधि प्राप्त की. टेलीविजन में अपने कार्यक्रम प्रस्तुत करने से पूर्व वह चंडीगढ़ से प्रकाशित द ट्रिब्यून में कार्टूनिस्ट थे. उन्होंने पंजाब पुलिस पर करारा व्यंग्य करते हुए माहौल ठीक है का निर्देशन किया था. उनका यह पहला निर्देशन बहुत चर्चित रहा. छोटे परदे पर लगातार सक्रिय रहने वाले जसपाल भट्टी ने कई फिल्मों में भी अभिनय किया. उनकी अंतिम फ़िल्म पॉवर कट है जो पंजाब में लगातार की जाने वाली बिजली कटौती पर आधारित है. वे अपनी इसी फ़िल्म के प्रमोशन के लिए भठिंडा से जालंधर अपनी टीम के साथ जा रहे थे. रास्ते में शाहकोट के पास 25 अक्टूबर 2012 को तड़के लगभग तीन बजे एक सड़क हादसे में 57 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया.

आज उनकी पुण्यतिथि पर बुलेटिन परिवार की तरफ से विनम्र श्रद्धांजलि सहित आज की बुलेटिन प्रस्तुत है.

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बुधवार, 24 अक्टूबर 2018

विश्व पोलियो दिवस और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिंदी ब्लॉगर्स को नमस्कार। 
विश्व पोलियो दिवस
विश्व पोलियो दिवस प्रत्येक वर्ष '24 अक्टूबर' को मनाया जाता है। इस दिवस को मनाये जाने का मुख्य उद्देश्य पोलियो जैसी बीमारी के विषय में लोगों में जागरूकता फैलाना है। पोलियो एक संक्रामक बीमारी है, जो पूरे शरीर को प्रभावित करती है। इस बीमारी का शिकार अधिकांशत: बच्चे होते हैं। पोलियो को 'पोलियोमाइलाइटिस' या 'शिशु अंगघात' भी कहा जाता है। यह ऐसी बीमारी है, जिससे कई राष्ट्र बुरी तरह से प्रभावित हो चुके हैं। हालांकि विश्व के अधिकतर देशों से पोलियो का खात्मा पूरी तरह से हो चुका है, लेकिन अभी भी विश्व के कई देशों से यह बीमारी जड़ से खत्म नहीं हो पायी है।



~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~















आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।

सोमवार, 22 अक्टूबर 2018

145वीं जयंती - स्वामी रामतीर्थ और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिंदी ब्लॉगर्स को नमस्कार।
स्वामी रामतीर्थ
स्वामी रामतीर्थ (अंग्रेज़ी: Swami Rama Tirtha, जन्म: 22 अक्टूबर, 1873 - मृत्यु: 17 अक्टूबर, 1906[1]) एक हिन्दू धार्मिक नेता थे, जो अत्यधिक व्यक्तिगत और काव्यात्मक ढंग के व्यावहारिक वेदांत को पढ़ाने के लिए विख्यात थे। रामतीर्थ वेदांत की जीती जागती मूर्ति थे। उनका मूल नाम 'तीरथ राम' था। वह मनुष्य के दैवी स्वरूप के वर्णन के लिए सामान्य अनुभवों का प्रयोग करते थे। रामतीर्थ के लिए हर प्रत्यक्ष वस्तु ईश्वर का प्रतिबिंब थी। अपने छोटे से जीवनकाल में उन्होंने एक महान् समाज सुधारक, एक ओजस्वी वक्ता, एक श्रेष्ठ लेखक, एक तेजोमय संन्यासी और एक उच्च राष्ट्रवादी का दर्जा पाया। स्वामी रामतीर्थ जिसने अपने असाधारण कार्यों से पूरे विश्व में अपने नाम का डंका बजाया। मात्र 32 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने प्राण त्यागे, लेकिन इस अल्पायु में उनके खाते में जुड़ी अनेक असाधारण उपलब्धियां यह साबित करती हैं कि अनुकरणीय जीवन जीने के लिए लम्बी आयु नहीं, ऊँची इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है।

आज स्वामी रामतीर्थ जी की 145वीं जयंती पर हम सब उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। सादर।।

~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~














आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।। 

रविवार, 21 अक्टूबर 2018

विरोधाभास - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

एक आदमी में हम देखते हैं कि वह चोर भी है, बेईमान भी है, फिर भी सफल हो रहा है।
तो हमें बड़ी अड़चन होती है कि क्या मामला है?
क्या भगवान चोरों और बेईमानों को सफल करता है? और एक आदमी को हम देखते हैं कि ईमानदार है, चोर भी नहीं है और असफल हो रहा है और जहां जाता है, तो ऐसे आदमी कहते हैं, सोना छुओ तो मिट्टी हो जाता है; कहीं भी हाथ लगाओ, असफलता हाथ लगती है। क्या मामला है?
मामला इस वजह से है, क्योंकि प्रत्येक आदमी अच्छे और बुरे का जोड़ है। जो आदमी चोर है, बेईमान है वह सफल हो रहा है, क्योंकि सफलता के लिए जिन अच्छे कर्मों का होना आवश्यक है साहस, दांव, असुरक्षा में उतरना, जोखिम–वे उसमें हैं; जिसको हम कहते हैं, ईमानदार आदमी और अच्छा आदमी असफल हो रहा है। न जोखिम, न दांव, न साहस, वह घर बैठकर सिर्फ अच्छे रहकर सफल होने की कोशिश कर रहे हैं। वह बुरा आदमी दौड़ रहा है। अच्छा आदमी बैठा है। वह बुरा आदमी पहुंच जायेगा। दौड़ रहा है, कुछ कर रहा है, और ये दोनों मिश्रित हैं।
हर आदमी एक मिश्रण है, इसलिए इस जगत में इतने विरोधाभास दिखायी पड़ते हैं। अगर कोई बुरा आदमी भी सफल हो रहा है और किसी तरह का सुख पा रहा है तो उसका अर्थ है कि उसके पास कुछ अच्छे कर्मों की सम्पदा है। और अगर कोई अच्छा आदमी भी दुख पा रहा है तो जान लेना, उसके पास बुरे कर्मों की सम्पदा है।

महावीर वाणी, भाग-२, प्रवचन#३३ ओशो

सादर आपका
शिवम् मिश्रा 

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साईकिल पर कोंकण यात्रा भाग ३: सातारा- कराड- मलकापूर (११४ किमी)

शाश्वत गुनाहगार ‘कॉमन मैन’ और सदा-निष्पाप वी. आई. पी.

एक गुनगुनी सुबह

कहाँ कमी रह गई

शेक्सपियर सही कहे थे कि नाम में क्या धरा है?

नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ !

गठबंधन

मिर्च का धुआँ लगा जोर से छींक नाक कान आँख जरूरी है करना जमाने के हिसाब की अब ठीक

रावण -- एक विचार ...

मुनिया की रंगोली

आर्ज़ी हुक़ूमत-ए-आज़ाद हिन्द का ७५ वां स्थापना दिवस

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2018

बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व 'विजयादशमी' - ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिंदी ब्लॉगर्स को सादर नमस्कार।

Related image

सभी देशवासियों को ब्लॉग बुलेटिन परिवार की ओर से बुराई पर अच्छाई के जीत के उत्सव 'विजयादशमी' की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।


~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~ 















आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।। 

मंगलवार, 16 अक्टूबर 2018

ख़ुद को सुरक्षित करो



पूजा, अर्थात विश्वास,श्रद्धा ।
मात्र हाथ जोड़ने से,
बेबात की अफ़रातफ़री से,
शक्ति का उपहास होता है ।
मौन स्मित रखो,
हर क्षण संकल्प उठाओ,
जौहरी की तरह ख़ुद को तराशो,
फ़िर माँ की आंखों में काजल भरकर,
ख़ुद को सुरक्षित करो,
शंखनाद के साथ माँ के आगमन का उल्लास मनाओ ...


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एक कथा के अनुसार महाराष्ट्र और कर्नाटक की सीमा पर एक गांव है जहाँ देवी येलम्मा का वास है । इस गाँव में एक परम्परा है कि गंदगी से ही सही बचपन में यदि किसी लड़की के बालों में जटा पड़ जाती है वह यल्लमा देवी को सौंप दी जाती है अर्थात वह देवदासी हो जाती है , वह गांव की संपत्ति होती है और उसे जीवन भर विवाह का अधिकार नही होता । ऐसे में यौन शोषण तो आम बात है । उसी तरह संक्रमण वश यदि किसी लड़के को पेशाब में खून आ जाता है तो उसे भी एलम्मा की संपत्ति माना जाता है । ऐसे पुरुष को जीवन भर स्त्री के वेश में रहना होता है । स्त्री तो देवदासी या जोगतिन के रूप में पूरे गांव की दासी होती है । जीवन भर भिक्षा से इनका निर्वाह होता है । यह कविता ऐसी ही एक जोगतिन की व्यथा कथा है : - शरद कोकास
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जोगतिन
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तेरे चरण स्पर्श करने वाले भक्तों ने
कल रात मेरे शरीर पर स्पर्श किया था माँ
जाने कितने बिच्छू
जाने कितने साँप
कितनी छिपकलियां
मेरे शरीर पर रेंग गए
मैं नींद में नहीं थी माँ
मैं चीखना चाहती थी
मैं सोई नहीं थी माँ
मेरे मुँह में भी जबान थी
लेकिन सामर्थ्य का हाथ
मेरे मुँह पर था
घंटिया नहीं बजी माँ तेरे मंदिर की
जयकारे नहीं सुनाई दिए
ढोल ताशे नगाड़े भी नहीं बजे
मेरे कानों में गूँजती रही
एक पुरुष की आवाज
चुपचाप पड़ी रह
तू माँ की सेवा में है
हम माँ के पुजारी हैं
और तू माँ की है
तो तू हमारी है
मेरी हर रात ऐसी ही होती है माँ
बस मेरी सुबह
तेरे भक्तों की सुबह से
अलग होती है
प्रभाती नहीं गाई जाती
मेरी देहरी पर
न बजता है कोई मंगलगान
हर सुबह
मैं रात में टूटी हुई अपनी हड्डियों को जोड़ती हूं
अपने आँसुओं से
कुएं पर लज्जा की हवाओं में
अर्धनग्न अपने जिस्म पर
पानी उंडेलते हुए
मैं धो डालना चाहती हूं
रात के वे तमाम लिजलिजे स्पर्श
जो मेरी देह पर नहीं बल्कि मेरी आत्मा पर
दरिंदों के नाखूनों के निशान छोड़ गए थे
मैं धोना चाहती हूँ वे घाव
जिनमें समाज की इन सड़ी गली परंपराओं का मवाद दिखाई देता है
मैं नोच कर फेंक देना चाहती हूं
देवी की भक्ति के नाम पर
पैदा की गई
नियमों की उन बजबजाती इल्लियों को
जो मेरा ही नही इस समाज का जिस्म धीरे धीरे खा रही हैं
बहुत कोशिश करती हूँ माँ
कि मैं तेरे भक्तों द्वारा दिया गया
पवित्रता का विशेषण
धारण कर सकूँ
हर सुबह जैविक विवशताएँ मुझे थमा देती हैं एक कटोरा
जिसमें दिन भर
अपने पेट के गड्ढे को भरने के लिए
मैं अन्न जमा करती हूं
रात के अंधेरे में ही नहीं
दिन के उजाले में भी
वस्त्रों से ढके हुए मेरे निजी अंग
जाने कितनी बदतमीज़ियाँ बर्दाश्त करते हैं
विवशताएँ मेरे कानों में उंडेलती हैं
पिघले सीसे की तरह कुछ बोल
दिन में पुरुषों की छेड़खानी से
और रात में हवस से बचते हुए
माँ मैं तेरी पुजारन कहाती हूँ
माँ तू तो सब देखती होगी ना
शायद सोचती भी होगी
मुझे तो तेरी सेवा के लिए रखा गया था
मुझे कहाँ पता था माँ
कि तेरी सेवा तेरे भक्तों की सेवा है
मुझे नहीं पता था माँ
बचपन में सर पर धूल मिट्टी उठाते हुए
जाने कब मेरे बालों में
वह गंदगी समा गई
और उन से जटा बनने लगी
मुझे नहीं पता था माँ यह नियम किसने बनाए हैं
मुझे नहीं पता था माँ
सचमुच मुझे कुछ नहीं पता था
मगर तू तो सब जानती है माँ
तू रेणुका तू एलम्मा
तू जगत जननी
तू पाप हारिणी
तू दुख विनाशिनी
तू तो देवी है माँ ।
तू जानती है
एक दिन मेरी कमर धरती की ओर झुक जाएगी
और तेरे मंदिर के कलश
आसमान की ओर बढ़ जायेंगे
सूख जाएगा मेरी जांघों पर बहता रक्त
बस इतना बता दे
क्या कभी तेरे खप्पर में
इकठ्ठा होगा
इन भक्त आततायियों का रक्त ?

 

सोमवार, 15 अक्टूबर 2018

कात्यायनी माँ




हर वर्ष माँ आती हैं,
निरुद्देश्य कभी नहीं,
हमेशा उदेश्य की ऊर्जा से परिपूर्ण। 
घट में रखे जल से वह अपनी प्यास बुझाती हैं,
मायके की दहलीज़ से,
अपना श्रृंगार करती हैं,
सार्थक संकल्पों को आशीष देती हैं,
क्षत विक्षत स्वाभिमान को एकत्रित कर,
फिर एक मूरत गढ़ती हैं,
हवन के धुंधलके में,
प्राण संचार करती हैं,
विदाई के खोइंछे से एक एक दाना पीछे लौटाती हैं 
देती हैं विश्वास,
फिर से मायके आने का  ... 


यूँ ही बैठे बैठे खयाल आया....
रावण के दस सिरों ने ही,
उसका बेडा गर्क करवाया।
'गर एक ही सिर की मानता सलाह,
तो बुराई का न बनाया जाता उसे ,
क्लास वन ठेकेदार इस तरह।
एक एक काम के लिए,
दस जनो की सलाह लेने की
भारी कीमत चुकानी पड़ी बेचारे को।
ले लो भैया।..अब तो,
शिक्षा रावण से ही ले लो।
एक काम करने के लिए ...
दस लोगों की सलाह लेने,
कभी घर से मत निकलो।

हमारे पास बेशक हाथ में हाथ थामने की,
साथ- संग बिताने की धरोहर न थी
पर लम्हे जो पीछे
बीत गए ऊँची हंसी में,
वहीँ तो हमारी खिली खिली चाहत रखी थी.
एकाकीपन की तान साधे हैं वे ही लम्हे
जिनमे हमारी हंसी के स्वर
खो गए कहीं
अब दर्दीला सन्नाटा गूंजता है वहाँ
एकाकी... अपनी ही ध्वनि सुनने जैसा
लापता हुई 'हम' वाली सरगम
निरर्थक शब्द बचे
'मैं' और 'तुम'
आपस में झगड़ लेना था इस से बेहतर कि
मैं ही करूँ सवाल, मैं ही तलाशूँ जवाब
सुनो,
मैं उठाऊं इस अनचाही पीड़ा को या
तुम सहेजो चाहत के बेअन्त दर्द,
इस अनंत पीड़ा के रिसते रक्त दोष से
न तुम बचोगे, न शुद्ध रह पाएंगे हम
चाहो तो कर लेना मेरे नाम की
एक परिक्रमा, रोज ढलती हुई संध्या में
मेरी तरह,
इसी से खोज पाओगे
तुम प्रीत के वे भूले और अबूझ स्वर
हाँ, तब तुम बेदाग़ नया प्रेम संगीत रचना। 

कुछ नाम रेत पर भी लिखे जाते हैं
पर नही होती मयस्सर उन्हें उम्र कोई
फिर भी उनकी छाप एक बारगी
छू जाती हैं रूह की पाकीजगी सी
फलक पर सबका नाम हो मुमकिन नही हैं ........

ईश्वर अपने क़लम से
कभी किसी की तक़दीर
अच्छी या बुरी नहीं लिखते
वो बनाना हमारे हाथ में है

हमारी किताबें रद्दी में बेचीं गई तब हम खुरदुरा आँगन बुहार रहे थे .....
जब हमने अपनी जिन्दगी का पहला सपना देखा
हम अबोध लडकियाँ थे
हम पूरे छत को अपने फ्रोक के साथ गोल गोल घुमा देते 
छत धुंधलाता फिर धम्म से गिर पड़ता
हमारी खिलखिलाहटें कोयले की चूल्हे की चिंगारी सी
हमारे सपने जरा फ़िल्मी होते पर हम सपने में भी अपनी छातियों पर दुपट्टा कसी लडकियाँ ही होते
हम पन्द्रह साल के थे और दबी जुबान से बातें करते
हम बड़ी बहनों से बड़े होने का गूढ़ अर्थ आँखे झपकाकर समझते
जो न समझ पाते उसके चिपक कर सो जाते उसका बड़ा होना हमारी धमनियों में बहता
हम आसान सी दिखने वाली लडकियाँ थे
जो कॉपियों में दिन रात देखे सपनों को उकेरती और सिरहाने छुपा लेती
हमारे कंधो पर चमकीले गोटे का पल्लू था ठीक तब जब हमनें "सुरंगमा 'तुम्हारे लिए 'गुनाहों का देवता 'जैसे उपन्यास की नाइकाए हमारे आँख के डोरे लाल कर गई
जब आलिंगन शब्द पढ़ते ही हमारी कनपटी तप गई थी
हम किसी और घर के दिवार पर अपने हाथ का छापा बना रहे थे
छ्मकने और छन से टूटने वाले सपने भी खालिस लड्किनुमा थे
टूटने जुड़ने बहकने दहकने भूलने बिसरने की सीढियाँ चढ़ते हमनें नाख़ून पर रंग सा बचाए रखा वो सपना
हम ढंग की औरत बनने की प्रक्रिया में आज भी
घुमा देना चाहते हैं छत को गोल गोल
हम तडप कर पढना चाहते हैं आलिंगन
हम और और गूढ़ अर्थ जानना चाहते है
बड़ी बहन सी उस करवट पीठ की जिन्दगी से
चिपक कर
कुछ लेना देना कुछ घुलना मिलना चाहते है
मीठे शरबत में निचुड़े निम्बू सा चुटकी भर खारे नमक का स्वाद भर सपना
हम जीना चाहते थे .....हम जीना चाहते हैं शायद...