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मंगलवार, 23 अक्टूबर 2018

मोह के धागे




मोह के कच्चे,
छोटे धागे ,
बिखरे पड़े थे,
पैरों के धागे ...
उलझते गए,
उलझते गए,
और मैं उनको संजोती गई ! ...

5 टिप्‍पणियां:

  1. संजोते चलिये। आमीन। सुन्दर प्रस्तुति।

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  2. सेतु चयन अच्छा ही कहा जाएगा यद्यपि पोलियो पर दी गई जानकारी आधी अधूरी और बासी थी। कई पोस्ट बहुत अच्छी थीं शरद पूर्णिमा पर खासकर। बच्चन जी की कविता भी सबरीमाला के संदर्भ में प्रासंगिक कही जायेगी। हमें आपने पचाया ,खपाया बुलाया इसके लिए तहे दिल से आपका शुक्रिया।

    वीरुभाई ,कैन्टन (मिशिगन )
    veeruji05.blogspot.com
    nanhemunne.blogspot.com
    veerubhai1947.blogspot.com

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बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!