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मंगलवार, 31 अक्टूबर 2017

जब तक हम अनुभवों से नहीं गुजरते, तब तक सिर्फ रोते हैं !




"जब तक मैं उस आदमी से नहीं मिली थी जिसके पाँव नहीं थे, मैं मेरे पास जूते न होने पे बहुत रोती थी।"हेलेन केलर

जब तक हम अनुभवों से नहीं गुजरते, तब तक सिर्फ रोते हैं, 
अपना दुःख सबसे बड़ा लगता है !
जब तक अपना दुःख सबसे बड़ा लगे, समझो - दर्द को तुमने जिया ही नहीं, उससे रिश्ता बनाया ही नहीं  ... 


सोमवार, 30 अक्टूबर 2017

108वां जन्मदिवस : डॉ. होमी जहाँगीर भाभा - ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिंदी ब्लॉगर्स को मेरा नमस्कार।
डॉ. होमी जहाँगीर भाभा (अंग्रेज़ी: Homi Jehangir Bhabha, जन्म: 30 अक्तूबर, 1909, मुंबई, - मृत्यु: 24 जनवरी, 1966) भारत के एक प्रमुख वैज्ञानिक थे जिन्होंने भारत के परमाणु उर्जा कार्यक्रम की कल्पना की थी। जब होमी जहाँगीर भाभा 29 वर्ष के थे और उपलब्धियों से भरे 13 वर्ष इंग्लैंड में बिता चुके थे। उस समय 'कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय' भौतिक शास्त्र के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ स्थान माना जाता था। वहाँ पर श्री भाभा केवल पढ़ाई ही नहीं बल्कि कार्य भी करने लगे थे। जब अनुसंधान के क्षेत्र में श्री भाभा के उपलब्धियों भरे वर्ष थे तभी स्वदेश लौटने का अवसर उन्हें मिला। श्री भाभा ने अपने वतन भारत में रहकर ही कार्य करने का निर्णय लिया। उनके मन में अपने देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक क्रांति लाने का जुनून था। यह डॉ. भाभा के प्रयासों का ही प्रतिफल है कि आज विश्व के सभी विकसित देशों भारत के नाभिकीय वैज्ञानिकों की प्रतिभा एवं क्षमता का लोहा माना जाता है।




आज डॉ. होमी जहाँगीर भाभा जी के 108वें जन्मदिवस पर हम सब उनके अभूतपूर्व योगदान को याद करते हुए उन्हें शत शत नमन करते हैं। 


~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~










उम्मीद की हथेली !!!


आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।

रविवार, 29 अक्टूबर 2017

कौन जाने !




साँसों में सूरज लेकर चलती हूँ
बंजारन हूँ न 
कब कहाँ रात हो 
कहाँ बसेरा बनाना हो 
कौन जाने !
ज़िन्दगी को गुलाब बनाते हुए
नुकीले काँटों का काजल लगाती हूँ 
कब कहाँ शस्त्र की ज़रूरत हो
कौन जाने !
आँचल में 
लोरी और दुआओं की 
सौगात रखती हूँ 
कब कहाँ सपनों की सीढ़ियाँ बनानी हो 
कौन जाने !



कागज में लिखा चाँद - उम्मीद तो हरी है - blogger


 

शनिवार, 28 अक्टूबर 2017

आज के युवाओं से पर्यावरण हित में एक अनुरोध

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

नगर निगम द्वारा पर्यावरण हित में जारी एक अनुरोध आज के युवाओं से ... 
चाकू से पेड़ पर जानू का नाम गोदने से अच्छा है कि एक पेड़ अपनी जानू के घर के सामने लगाया जाए और रोज पानी देने के बहाने उसे देख भी आएं।

सादर आपका

शुक्रवार, 27 अक्टूबर 2017

देश के सब से बड़े अनशन सत्याग्रही को ब्लॉग बुलेटिन का नमन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

जतिंद्र नाथ दास (27 अक्टूबर 1904 - 13 सितम्बर 1929)
जतिंद्र नाथ दास (27 अक्टूबर 1904 - 13 सितम्बर 1929), उन्हें जतिनदास के नाम से भी जाना जाता है, एक महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी थे | लाहौर जेल में भूख हड़ताल के 63 दिनों के बाद जतिन दास की मौत के सदमे ने पूरे भारत को हिला दिया था | स्वतंत्रता से पहले अनशन या भूख हड़ताल से शहीद होने वाले एकमात्र व्यक्ति जतिन दास हैं... जतिन दास के देश प्रेम और अनशन की पीड़ा का कोई सानी नहीं है |
 
जतिंद्र नाथ दास का जन्म कोलकाता में हुआ था, वह बंगाल में एक क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन समिति में शामिल हो गए | जतिंद्र बाबू  ने 1921 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भी भाग लिया था ! नवम्बर 1925 में कोलकाता में विद्यासागर कॉलेज में बी.ए. का अध्ययन कर रहे जतिन दास को राजनीतिक गतिविधियों के लिए गिरफ्तार किया गया था और मिमेनसिंह सेंट्रल जेल में कैद किया गया था ... वहाँ  वो राजनीतिक कैदियों से दुर्व्यवहार के खिलाफ भूख हड़ताल पर चले गए, 20 दिनों के बाद जब जेल अधीक्षक ने माफी मांगी तो जतिन दास ने अनशन का त्याग किया था | जब उनसे भारत के अन्य भागों में क्रांतिकारियों द्वारा संपर्क किया गया तो पहले तो उन्होने मना कर दिया फिर वह सरदार भगत सिंह के समझाने पर उनके संगठन लिए बम बनाने और क्रांतिकारी आंदोलन में भाग लेने पर सहमत हुए | 14 जून 1929 को उन्हें क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए गिरफ्तार किया गया था और लाहौर षडयंत्र केस के तहत लाहौर जेल में कैद किया गया था |
 
लाहौर जेल में, जतिन दास ने अन्य क्रांतिकारी सेनानियों के साथ भूख हड़ताल शुरू कर दी, भारतीय कैदियों और विचाराधीन कैदियों के लिए समानता की मांग की, भारतीय कैदियों के लिए वहां सब दुखदायी था - जेल प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराई गई वर्दियां कई कई दिनों तक नहीं धुलती थी, रसोई क्षेत्र और भोजन पर चूहे और तिलचट्टों का कब्जा रहता था, कोई भी पठनीय सामग्री जैसे अखबार या कोई कागज आदि नहीं प्रदान किया गया था, जबकि एक ही जेल में अंग्रेजी कैदियों की हालत विपरीत थी ... क़ैद मे होते हुये भी उनको सब सुख सुविधा दी गई थी !
 
जेल में जतिन दास और उनके साथियों की भूख हड़ताल अवैध नजरबंदियों के खिलाफ प्रतिरोध में एक महत्वपूर्ण कदम था ... यह यादगार भूख हड़ताल 13 जुलाई 1929 को शुरू हुई और 63 दिनों तक चली| जेल अधिकारीयों ने जबरन जतिन दास और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को खिलाने की कोशिश की, उन्हें मारा पीटा गया और उन्हें पीने के पानी के सिवाय कुछ भी नहीं दिया गया वो भी तब जब इस भूख हड़ताल को तोड़ने के उन के सारे प्रयास विफल हो गए, जतिन दास ने पिछले 63 दिनों से कुछ नहीं खाया था ऊपर से बार बार जबरन खिलाने पिलाने की अनेकों कोशिशों के कारण वो और कमज़ोर हो गए थे | इन सब का नतीजा यह हुआ कि भारत माँ के यह वीर सपूत 13 सितंबर 1929 को शहीद हो गए पर अँग्रेज़ो के खिलाफ उनकी 63 दिन लंबी भूख हड़ताल आखरी दम तक अटूट रही !
 
उनके पार्थिव शरीर को रेल द्वारा लाहौर से कोलकाता के लिए ले जाया गया... हजारों लोगों इस सच्चे शहीद को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए रास्ते के स्टेशनो की तरफ दौड़ पड़े ... बताते है कि उनके अंतिम संस्कार के समय कोलकाता में दो मील लंबा जुलूस अंतिम संस्कार स्थल तक उनके पार्थिव शरीर के साथ साथ ,'जतिन दास अमर रहे' ... 'इंकलाब ज़िंदाबाद' , के नारे लगते हुये चला !

 
आज अमर शहीद जतिन नाथ दास जी की ११३ वीं जयंती के अवसर पर ब्लॉग बुलेटिन टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से हम सब उनको शत शत नमन करते है !

इंकलाब ज़िंदाबाद !!!
 
सादर आपका
 
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किस्सों वाली गली है ये - गंगाशरण सिंह

सरकार की प्रथम जबाबदेही जनता के प्रति है लोकसेवकों के प्रति नहीं

बालश्रम पर निबंध

मिर्ज़ापुर

ये उन दिनों की बात है --------- mangopeople

ओ माय गॉड...इस इक्किसवी सदी में भी किराए पर मिलती हैं बीवियां!!!

यमक और रूपक अलंकार

पुस्तक चर्चा: आख़िरी चट्टान तक

कैसी ज़िन्दगी? ....डॉ. जेन्नी शबनम

वारकरी संप्रदाय की उत्पत्ति के आधार और इनका वैशिष्ट्य

एक खूबसूरत रेलवे स्टेशन, काठगोदाम

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

गुरुवार, 26 अक्टूबर 2017

गणेश शंकर विद्यार्थी और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिन्दी ब्लॉगर्स को मेरा सादर नमस्कार।
गणेश शंकर विद्यार्थी (अंग्रेज़ी: Ganesh shankar Vidyarthi; जन्म- 26 अक्टूबर, 1890, प्रयाग; मृत्यु- 25 मार्च, 1931) एक निडर और निष्पक्ष पत्रकार तो थे ही, इसके साथ ही वे एक समाज-सेवी, स्वतंत्रता सेनानी और कुशल राजनीतिज्ञ भी थे। भारत के 'स्वाधीनता संग्राम' में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा था। अपनी बेबाकी और अलग अंदाज से दूसरों के मुँह पर ताला लगाना एक बेहद मुश्किल काम होता है। कलम की ताकत हमेशा से ही तलवार से अधिक रही है और ऐसे कई पत्रकार हैं, जिन्होंने अपनी कलम से सत्ता तक की राह बदल दी। गणेशशंकर विद्यार्थी भी ऐसे ही पत्रकार थे, जिन्होंने अपनी कलम की ताकत से अंग्रेज़ी शासन की नींव हिला दी थी। गणेशशंकर विद्यार्थी एक ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, जो कलम और वाणी के साथ-साथ महात्मा गांधी के अहिंसक समर्थकों और क्रांतिकारियों को समान रूप से देश की आज़ादी में सक्रिय सहयोग प्रदान करते रहे।



आज गणेश शंकर विद्यार्थी जी के 127वें जन्म दिवस पर हम सब उन्हें स्मरण करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।


~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~
















आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।

बुधवार, 25 अक्टूबर 2017

ठुमरी साम्राज्ञी गिरिजा देवी को ब्लॉग बुलेटिन का नमन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

प्रख्यात शास्त्रीय गायिका गिरिजा देवी का मंगलवार की रात कोलकाता के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वह 88 वर्ष की थीं। वह पिछले कुछ दिनों से बीमार थीं। सुबह करीब 11.30 बजे छाती में दर्द की शिकायत पर उन्हें तुरंत बीएम बिरला हार्ट रिसर्च सेंटर ले जाया गया और सीसीयू में भर्ती किया गया। वहां इलाज के दौरान रात करीब 8.55 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।

गिरिजा देवी का जन्म आठ मई, 1929 को कला और संस्कृति की प्राचीन नगरी वाराणसी (तत्कालीन बनारस) में हुआ था। उनके पिता रामदेव राय जमींदार थे। उन्होंने पांच वर्ष की आयु में ही गिरिजा देवी के लिए संगीत की शिक्षा की व्यवस्था कर दी थी। गिरिजा देवी के प्रारंभिक संगीत गुरु पंडित सरयू प्रसाद मिश्र थे। नौ वर्ष की आयु में पंडित श्रीचंद्र मिश्र से उन्होंने संगीत की विभिन्न शैलियों की शिक्षा प्राप्त की। इस अल्प आयु में ही एक हिन्दी फिल्म याद रहे में उन्होंने अभिनय भी किया था।

संगीत यात्रा
1949 में आकाशवाणी से अपने गायन का प्रदर्शन करने के बाद उन्होंने 1951 में बिहार के आरा में आयोजित एक संगीत सम्मेलन में गायन प्रस्तुत किया। इसके बाद उनकी अनवरत संगीत यात्र शुरू हुई, जो जारी रही। उन्होंने स्वयं को केवल मंच-प्रदर्शन तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि संगीत के शैक्षणिक और शोध कार्यो में भी अपना योगदान किया।

संगीत के सफर में मिले फनकार
अपने जीवन वृत्तांत में ठुमरी साम्राज्ञी लिखती हैं कि...

"मैंने पूरे भारत में यात्रा की और रास्ते में मुझे पं. रविशंकर, अली अकबर और अन्य महान समकालीन कलाकारों का साथ मिला। वे सभी मेरे अच्छे दोस्त बनते गए। हमने एक-दूसरे के साथ अपने संगीत को साझा किया। मैंने अपने जीवन के सबसे दर्दनाक क्षणों में से एक का सामना किया, मैंने अपना पति खो दिया। उस बिंदु तक मुझे अपने दम पर जीवन का प्रबंधन कभी नहीं करना पड़ता था। यहां तक कि साधारण चीजें, जैसे बिलों का भुगतान मेरी जिम्मेदारी नहीं थी। अचानक यह जि़म्मेदारियां मेरी थीं, मैंने प्रदर्शन रोक दिया। साल बीत गए, लेकिन मेरे दोस्तों और प्रशंसकों ने मुङो इस तरह से पीड़ित नहीं देखा। उन्होंने मुङो प्रदर्शन करने को किसी तरह आश्वस्त किया। तब मंच पर वापस आई और फिर मैंने गायन में कविता व गीतों के महत्व को समझने के लिए खुद को समर्पित किया। रस, भावना की अभिव्यक्ति, मेरी रचनाओं का प्राथमिक ध्यान बन गया। मैंने प्यार के विभिन्न रूपों को अपने कठिन परिश्रम से गायिकी के रूप में प्रस्तुत किया। कृष्ण की कहानियों पर आधारित मेरी ठुमरी मेरे अभ्यास का केंद्र बिंदु बन गया। मैंने ठुमरी गायन के पूरे रंग को बदलने का फैसला किया। ठुमरी को एक माध्यम के रूप में सोचा था, जिससे मैं खुद को अभिव्यक्त कर सकती हूं। प्रेम, लालसा और भक्ति की भावनाएं ठुमरी का एक अभिन्न हिस्सा हैं और मैंने सोचा कि सही प्रकार के संगीत के साथ, मैं गीत को जीवित कर सकती हूं। यह संभव है कि गानों को एक भौतिक रूप दिया जाए।"

ब्लॉग बुलेटिन टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से ठुमरी साम्राज्ञी गिरिजा देवी जी को शत शत नमन और हार्दिक श्रद्धांजलि |

सादर आपका 

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संगीत-साम्राज्ञी विदुषी गिरिजा देवी की स्मृतियों को सादर नमन

अद्भुत शिल्प और दशावतार मंदिर देवगढ़

ज़िद्दी / जूली अग्रवाल

प्रेम स्मारक में विशेष मजहबी क्रिया

शुभकामनाओं का व्हाट्सएप्पीकरण

नेमप्लेट

दरिया जिधर बह निकले वही उसका रास्ता होता है

प्रलोभन

भटकती है वह यूँ ही कस्तूरी मृग सी

साहब यह पागलपन नहीं जूनून है !

मां की रसोई मां की तरह एक ही होती है!

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

मंगलवार, 24 अक्टूबर 2017

1850वीं ब्लॉग बुलेटिन - आर. के. लक्ष्मण

सभी हिन्दी ब्लॉगर्स को सादर नमस्कार।
आर. के. लक्ष्मण
रासीपुरम कृष्णस्वामी लक्ष्मण (अंग्रेज़ी: R. K. Laxman, जन्म- 24 अक्टूबर, 1921; मृत्यु: 26 जनवरी, 2015) को भारत के एक प्रमुख व्यंग-चित्रकार के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त है। अपने कार्टूनों के ज़रिए आर. के. लक्ष्मण ने एक आम आदमी को एक व्यापक स्थान दिया और उसके जीवन की मायूसी, अँधेरे, उजाले, ख़ुशी और ग़म को शब्दों और रेखाओं की मदद से समाज के सामने रखा। असाधारण व्यक्तित्व के धनी आर. के. लक्ष्मण ने वक़्त की नब्ज को पहचान कर देश, समाज और स्थितियों की अक्कासी की। लक्ष्मण के कार्टूनों की दुनिया व्यापक है और इसमें समाज का चेहरा तो दिखता ही है, साथ ही भारतीय राजनीति में होने वाले बदलाव भी दिखाई देते हैं।

जन्म तथा शिक्षा

आर. के. लक्ष्मण का जन्म 24 अक्टूबर, 1921 को मैसूर, कर्नाटक में हुआ था। उनके पिता स्कूल में प्रधानाध्यापक के पद पर नियुक्त थे। पिता की छ: संतान थीं, जिनमें लक्ष्मण सबसे कम उम्र के थे। उनके एक बड़े भाई प्रसिद्ध साहित्यकार आर. के. नारायण का इन्हें पूरा सहयोग प्राप्त था। आर. के. लक्ष्मण ने हाईस्कूल पास करने के बाद ही यह तय कर लिया था कि वह कार्टूनिस्ट के रूप में अपना कैरियर बनाएँगे। बी.ए. के बाद उन्होंने 'मैसूर विश्वविद्यालय' में पढ़ते हुए फ्रीलांस कलाकार के रूप में 'स्वराज अख़बार' के लिए कार्टून बनाने शुरू किए, जिससे उन्हें बहुत ख्याति मिली। साथ ही एनिमेटेड फ़िल्मों में भी लक्ष्मण ने मिथकीय पात्र 'नारद' का चित्रांकन किया।

निर्भीक पत्रकार

लक्ष्मण के बड़े भाई आर. के. नारायण एक कथाकार तथा उपन्यासकार थे, जिनकी रचनाएँ 'गाइड' तथा 'मालगुडी डेज़' ने प्रसिद्धि की ऊँचाइयों को छुआ था। आर. के. लक्ष्मण ने उनके लिए भी चित्र बनाए, जो 'हिंदू' समाचार पत्र में छपे। उसके बाद लक्ष्मण राजनीतिक स्थितियों पर कार्टून बनाते हुए निर्भीक तथा बेबाक पत्रकार माने जाने लगे। 'टाइम्स ऑफ़ इण्डिया' में 'यू सेड इट' आज भी लक्ष्मण के कार्टून सम्मानपूर्वक प्रकाशित करता है।

विशेषता

एक कार्टूनिस्ट के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त करने के साथ ही लक्ष्मण ने महत्त्वपूर्ण लेखन भी किया। उनकी आत्मकथा 'टनल टु टाइम' उनकी लेखन क्षमता का प्रमाण सामने लाती है। आर. के. लक्ष्मण के कार्टूनों में एक आम आदमी को प्रस्तुत करती एक छवि जितनी सादगी भरी है, उतनी ही पैनी भी होती है। लक्ष्मण ने जिस आम आदमी को केंद्र में रख कर सृजन किया, उस आदमी की पीड़ा को उन्होंने न सिर्फ़ महसूस किया, बल्कि उसे रेखाओं की मदद से व्यापक सरोकारों से जोड़ा। अपने समय और समाज से मुठभेड़ करते हुए लक्ष्मण ने हमेशा ही बहुत ही सलीक़े से अपनी बात हमारे सामने रखी। लक्ष्मण के कार्टूनों की एक बड़ी ख़ूबी यह भी है कि उन्होंने हर उस व्यक्ति को अपने सृजन का विषय बनाया, जो उन्हें मुनासिब लगा। व्यक्ति के पद और प्रभाव की वजह से उन्होंने कभी भी किसी तरह का समझौता नहीं किया। दरअसल यह उस आम आदमी का ही जीवट है, जो वक़्त पड़ने पर बड़े से बड़े आदमी की आँखों में आँखें डालकर तन कर बात करता है। लक्ष्मण का यह आदमी जीवन के सुख-दुख को एक-दूसरे से बाँटता हुआ जीवन में नए रंग भी भरता है और जीने का अंदाज़ भी सिखाता है।

प्रमुख पुस्तकें


  1. टनल टु टाइम (आत्मकथा)
  2. द बेस्ट ऑफ़ लक्षमण सीरीज
  3. दि एलोक्वोयेन्ट ब्रश 
  4. द मेसेंजर 
  5. होटल रिवीयेरा 
  6. सर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडिया

'कॉमन मैन' कार्टून के निर्माता

अपने कार्टूनों के जरिए आर.के. लक्ष्मण ने एक आम आदमी को एक ख़ास जगह दी। हाशिये पर पड़े आम आदमी के जीवन की मायूसी, अंधेरे, उजाले, खुशी और गम को शब्द चित्रों के सहारे दुनिया के सामने रखा। लक्ष्मण के कार्टूनों की दुनिया काफ़ी व्यापक है और इसमें समाज का चेहरा तो दिखता ही है, साथ ही भारतीय राजनीति में होने वाले बदलाव भी दिखाई देते हैं। भ्रष्टाचार, अपराध, अशिक्षा, राजनीतिक पार्टियों के छलावों से जो तस्वीर निकल कर आती है वो है आर. के लक्ष्मण का आम आदमी की। आम आदमी सिर्फ जिंदगी की मुश्किलों से लड़ता है, उसे चुपचाप झेलता है, सुनता है, देखता है, पर बोलता नहीं, यही वजह है कि आर. के. लक्ष्मण का आम आदमी ताउम्र खामोश रहा। आर. के. लक्ष्मण का आम आदमी शुरू-शुरू में बंगाली, तमिल, पंजाबी या फिर किसी और प्रांत का हुआ करता था लेकिन काफ़ी कम समय में आम आदमी की पहचान बन गया ये कार्टून टेढा चश्मा, मुड़ी-चुड़ी धोती, चारखाना कोट, सिर पर बचे चंद बाल। लक्ष्मण का आम आदमी पूरी दुनिया में ख़ास बन गया था। 1985 में लक्ष्मण ऐसे पहले भारतीय कार्टूनिस्ट बन गए जिनके कार्टून की लंदन में एकल प्रदर्शनी लगाई गई। लंदन की उसी यात्रा के दौरान वो दुनिया के जाने-माने कार्टूनिस्ट डेविड लो और इलिंगवॉर्थ से मिले- ये वो शख्स थे जिनके कार्टून को देखकर लक्ष्मण को कार्टूनिस्ट बनने की प्रेरणा मिली थी। लक्ष्मण की काबीलीयत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि लंदन का अखबार 'दि इवनिंग स्टैंडर्ड' ने उन्हें एक समय डेविड लो की कुर्सी संभालने का ऑफर दिया था। लक्ष्मण के कार्टून फिल्मों में भी इस्तेमाल हुए। फ़िल्म 'मिस्टर एंड मिसेज' और तमिल फ़िल्म 'कामराज' के लिए लक्ष्मण ने कार्टून बनाए। लक्ष्मण के बड़े भाई आर. के. नारायण की कृति "मालगुडी डेज" को जब टेलीविज़न पर दिखाया गया तो उसके लिए भी लक्ष्मण ने स्केच तैयार किये। लक्ष्मण का आम आदमी उस वक़्त फिर ख़ास हो उठा जब डेक्कन एयरलाइंस की सस्ती विमान सेवा शुरू हुई। एयरलाइंस के संस्थापक कैप्टन गोपीनाथ अपने सस्ते विमान के लिए प्रतीक चिह्न की तलाश में थे, और इसके लिए उन्हें लक्ष्मण के आम आदमी से बेहतर कुछ और नही मिल सकता था।[1]

सम्मान एवं पुरस्कार

आर. के. लक्ष्मण को उनके महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए कई सम्मान व पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं-
  1. पद्म भूषण 
  2. पद्म विभूषण 
  3. रेमन मेग्सेसे पुरस्कार (1984) 
  4. बी. डी. गोयनका पुरस्कार 
  5. दुर्गा रतन स्वर्ण पदक

भारत के मशहूर कार्टूनिस्ट आरके लक्ष्मण का 26 जनवरी, 2015 को 94 वर्ष की उम्र में पुणे में निधन हो गया। वे हफ़्ते भर से भी ज्यादा समय से दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल में भर्ती थे। अस्पताल के अधिकारियों ने उनके निधन की पुष्टि की। लक्ष्मण को संक्रमण के बाद इंटेसिव केअर यूनिट में भर्ती कराया गया था। दिल के मरीज़ लक्ष्मण के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। लक्ष्मण अपने कार्टून चरित्र "कॉमन मैन" यानी आम आदमी के लिए मशहूर थे। यह कार्टून आम आदमी की आकांक्षाओं और उसकी सोच को तो दर्शाता है ही, राजनीतिक हस्तियों पर कटाक्ष भी करता है। यह कार्टून वर्ष 1951 से ही भारत के जाने-माने अंग्रेज़ी अख़बार 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' के पहले पेज पर 'यू सेड इट' शीर्षक के साथ छपता आया है। भारत सरकार ने आरके लक्ष्मण को 2005 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया था। डाक विभाग ने "कॉमन मैन" पर 1988 में एक डाक टिकट भी जारी किया था। पुणे में 2001 में "कॉमन मैन" की आठ फ़ीट की एक प्रतिमा लगाई गई थी। आरके लक्ष्मण क़रीब 60 साल तक कॉमन मैन, कॉमन सेंस और कॉमन प्रॉब्लम्स की आवाज़ बने रहे।




आज आर. के. लक्ष्मण जी के 96वें जन्मदिवस पर हम सब उनको याद करते हुए उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। सादर।।


~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~












मेरे गूगल जी महाराज!


आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।

सोमवार, 23 अक्टूबर 2017

.... सब अपने अपने हिस्से जीते हैं





धूप छाँव
दिन रात
सुख दुःख
हँसी उदासी .....
.... सब अपने अपने हिस्से जीते हैं
कभी बारिश नहीं होती
कभी बेमौसम बरसात से
आँखें फटी की फटी रह जाती हैं !
संकरे रास्ते 
सुख के भी 
दुःख के भी
खुला मैदान 
हँसी के लिए भी उदासी के लिए भी
....
मिलना तो सब है
कब कहाँ क्यूँ - तय नहीं
पर वक़्त आता है
स्थान भी आता है
और क्यूँ ? ...... अंतरात्मा समझती है .
..........
कई बार हम सज़ा के हकदार नहीं होते
पर अत्यधिक अच्छाई भी कटघरे में होती है
जानने के लिए
कि अपनी अच्छाई में आपने जिनका साथ दिया है
वे उसके पात्र नहीं थे
तो गुण जाए न जाए संगत से
सज़ा मिलती ही मिलती है !
.......
पानी से भरा घड़ा ईश्वर थमाता है
उन प्यासों के लिए
जिनकी प्यास बुझाना धर्म है
पर जो एक एक जीवनदायिनी बूंद के लिए
बेमौत मारते हैं
उनकी प्यास मिटाना
उनकी आसुरी शक्ति को जिंदा रखना है
और - इसकी सजा मिलती है
मिलनी भी चाहिए !

श्रद्धा , विश्वास की कीमत
एकलव्य का अंगूठा नहीं
शिष्य की निष्ठा के आगे द्रोण की समझ थी
एकलव्य को ईश्वर ने सब दिया
पर एकलव्य ने अपनी भक्ति के अतिरेक में
द्रोण के इन्कार को भी श्रेष्ठ बना दिया ...
तो अंगूठा - कब , कहाँ , क्यूँ का उत्तर था
सिर्फ एकलव्य के लिए नहीं
हम सबके लिए !



बिखरे हुए मन को
समेटना
क्योंकर होता
कैसे होता ?!
सब तार टूटे थे
विडम्बनाओं का काफ़िला
दूर तक फैला था
दर्द कई रूप धरे
विद्यमान था
दुःख कई थे
सुख और दुःख के बीच की सीमा रेखा का
कुछ यूँ हुआ था विलय
कि सुख और दुःख
अनन्य अविभाज्य से थे दृश्यमान
आंसुओं की सहज उपस्थिति ने
सुख-दुःख के आँचल नम कर रखे थे
शब्द कुछ कहते हुए
कुछ और अभिव्यक्त कर जाते थे
उनकी अपनी सीमा थी
मौन अपनी तरह से संतप्त था
हर एक झरोखा बंद था
रूठा था प्रकाश
बरस रहा था हृदयाकाश !!


आज #छठ की भीड़ है लोहे के घर में। साइड अपर में सामानों के बीच चढ़ कर बैठ गए हैं हम। सामने एक महिला ऊपर के बर्थ पर दो बच्चों को टिफिन में रखा दाना चुगा रही हैं। चूजे कभी इधर फुदकते हैं, कभी उधर। गिरने-गिरने को होते हैं कि मां हाथ बढ़ाकर संभाल लेती हैं। बगल के बर्थ में एक लड़का घोड़ा बेच कर सो रहा है। जफराबाद में #ट्रेन रुकी, ८-१० और यात्री चढ़ कर बैठने का जुगाड तलाश रहे हैं। नीचे के दोनो बर्थ पर कोहराम है। छोटे-छोटे पांच बच्चे, दो महिलाएं और चार पुरुष आपस में गड्डमगड्ड हैं। खाना बेचने वाला भी खड़ा है, यात्रियों के साथ। आवाज़ लगा रहा है-'सब्जी-भात, डिम- भात, मछछी-भात।' डिंबा से डिम बना हो शायद! अंडा को डिम बोल रहा था हाकर। कोई-कोई खरीद भी रहे हैं। जो खरीद रहे हैं वे खा भी रहे हैं। बगल वाले अपर बर्थ में एक महिला अपने बच्चे को चम्मच से अंडा-भात खिला रही है। खिलाते खिलाते मैंगो जूस बेचने वाले हाकर को रोक कर पूछ रही है-ऐ! पानी है?
एक आदमी और चढ़ कर मेरे बगल में बैठ गया है। इसे मालदा टाउन जाना है। बता रहा है कि हम छठ वाले नहीं हैं, बी एस एफ में हैं। छठ वाले वे लोग हैं। इसी भीड़ भाड़ वाले कोहराम में लोग मनोरंजन भी कर रहे हैं। नीचे एक आदमी मोबाइल में वीडियो देख रहा है। बच्चे लगातार 'चिल्ल-पों' मचाए हैं। बड़े उनको संभालने में लगे हैं। डिम-भात खाने वाले बच्चे को पानी की बोतल मिल गई है। पीने के बाद वो उसी बोतल से खेल रहा है। किसी स्टेशन पर रुक गई है ट्रेन। कुछ घबरा कर पूछ रहे हैं-बनारस कब आएगा?
#लोहेकाघर

रविवार, 22 अक्टूबर 2017

११७ वीं जयंती पर अमर शहीद अशफाक उल्ला खाँ को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ,  भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और १९ दिसम्बर सन् १९२७ को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका कर मार दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भी उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे। उनका उर्दू तखल्लुस, जिसे हिन्दी में उपनाम कहते हैं, हसरत था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में लेख एवं कवितायें भी लिखा करते थे। उनका पूरा नाम अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरत था। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सम्पूर्ण इतिहास में बिस्मिल और अशफ़ाक़ की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनुपम आख्यान है।

काकोरी काण्ड में अशफ़ाक़ की भूमिका

बंगाल में शचीन्द्रनाथ सान्याल व योगेश चन्द्र चटर्जी जैसे दो प्रमुख व्यक्तियों के गिरफ्तार हो जाने पर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसियेशन का पूरा दारोमदार बिस्मिल के कन्धों पर आ गया। इसमें शाहजहाँपुर से प्रेम कृष्ण खन्ना, ठाकुर रोशन सिंह के अतिरिक्त अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का योगदान सराहनीय रहा। जब आयरलैण्ड के क्रान्तिकारियों की तर्ज पर जबरन धन छीनने की योजना बनायी गयी तो अशफ़ाक़ ने अपने बड़े भाई रियासत उल्ला ख़ाँ की लाइसेंसी बन्दूक और दो पेटी कारतूस बिस्मिल को उपलब्ध कराये ताकि धनाढ्य लोगों के घरों में डकैतियाँ डालकर पार्टी के लिये पैसा इकट्ठा किया जा सके। किन्तु जब बिस्मिल ने सरकारी खजाना लूटने की योजना बनायी तो अशफ़ाक़ ने अकेले ही कार्यकारिणी मीटिंग में इसका खुलकर विरोध किया। उनका तर्क था कि अभी यह कदम उठाना खतरे से खाली न होगा; सरकार हमें नेस्तनाबूद कर देगी। इस पर जब सब लोगों ने अशफ़ाक़ के बजाय बिस्मिल पर खुल्लमखुल्ला यह फब्ती कसी-"पण्डित जी! देख ली इस मियाँ की करतूत। हमारी पार्टी में एक मुस्लिम को शामिल करने की जिद का असर अब आप ही भुगतिये, हम लोग तो चले।" इस पर अशफ़ाक़ ने यह कहा-"पण्डित जी हमारे लीडर हैं हम उनके हम उनके बराबर नहीं हो सकते। उनका फैसला हमें मन्जूर है। हम आज कुछ नहीं कहेंगे लेकिन कल सारी दुनिया देखेगी कि एक पठान ने इस ऐक्शन को किस तरह अन्जाम दिया?" और वही हुआ, अगले दिन ९ अगस्त १९२५ की शाम काकोरी स्टेशन से जैसे ही ट्रेन आगे बढी़, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने चेन खींची, अशफ़ाक़ ने ड्राइवर की कनपटी पर माउजर रखकर उसे अपने कब्जे में लिया और राम प्रसाद बिस्मिल ने गार्ड को जमीन पर औंधे मुँह लिटाते हुए खजाने का बक्सा नीचे गिरा दिया। लोहे की मजबूत तिजोरी जब किसी से न टूटी तो अशफ़ाक़ ने अपना माउजर मन्मथनाथ गुप्त को पकडाया और घन लेकर पूरी ताकत से तिजोरी पर पिल पडे। अशफ़ाक़ के तिजोरी तोडते ही सभी ने उनकी फौलादी ताकत का नजारा देखा। वरना यदि तिजोरी कुछ देर और न टूटती और लखनऊ से पुलिस या आर्मी आ जाती तो मुकाबले में कई जाने जा सकती थीं; फिर उस काकोरी काण्ड को इतिहास में कोई दूसरा ही नाम दिया जाता।
 
आज उनकी ११७ वीं जयंती के अवसर पर ब्लॉग बुलेटिन टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से हम सब अमर शहीद अशफाक उल्ला खाँ जी को शत शत नमन करते हैं !
 
सादर आपका

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अमर शहीद अशफाक उल्ला खाँ की ११७ वीं जयंती

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

शनिवार, 21 अक्टूबर 2017

सबकुछ कितना सुंदर है !


लहरें कभी नहीं सोचती
किनारों को छूने के लिए
मैं ही क्यूँ बेकरार रहूँ !
मुमकिन है सोचती हो 
लेकिन मोह किनारे का
उसे खींचता है ज़ोर से
और लोग ... तालियाँ बजाते हैं !
12 घण्टे समंदर के किनारे 
लहरों से खेलते हुए
तस्वीरें लेते हुए
वे यही सोचते हैं 
... सबकुछ कितना सुंदर है !


यह है समंदर की बात, उससे भी अधिक है ख़ास आज का दिन , ,,, भाई दूज , भाई-बहन के अटूट रिश्ते का दिन 
आत्मा से अपने भाइयों का नाम लेकर बहनें कहती हैं,
"... भईया चललें अहेरिया 
... बहिनी देली असीस हो न 
जिय जिय हो रे मेरो भईया 
जिय भईया लाख बरीस हो न "